कुशल तथा बहादुर क्रांतिकारी वीरगति प्राप्त अण्णासाहेब कोतवाल !

सारिणी


भारत स्वतंत्र हुआ, वह `बिना खड्ग बिना ढाल नहीं ’, अपितु सहस्रों ज्ञात-अज्ञात क्रांतिकारियोंके रक्तरंजित बलिदानसे ! रायगढ जिला स्थित कर्जतके बहादुर क्रांतिकारी वीरगति प्राप्त भाई उपनाम (उर्प) अण्णासाहेब उपनाम (उर्प) विट्ठलराव लक्ष्मण कोतवाल, उन्हींमेंसे एक महान क्रांतिकारी ! आईए देखते है अण्णासाहेब कोतवालके क्रांतिकार्यकी पहचान करवानेवाला यह लेख ।

 

१. छात्रावस्थाकी बुदि्धमानी तथा नेतृत्वगुण

रायगढ जिलास्थित माथेरानके अण्णासाहेब कोतवालका जनम १ दिसंबर १९१२ को हुआ था । माथेरानकी पाठशाला जानेवाले अण्णा अति बुदि्धमान छात्र थे । एक बार पाठशालाके अध्यापकने उनका सही गणित चूक सिद्ध किया । उस समय उन्होंने सारे छात्रोंको इकट्ठा कर दूसरे दिन पाठशाला न आनेके लिए कहा तथा वे अकेले ही कक्षामें गए । अध्यापकद्वारा उसका कारण पूछते ही उन्होंने, उनका गणित कैसे उचित है, यह उन्हें समझाया । अध्यापकने हंसकर कहा, `विट्ठल, तुम जीते, मैं हारा ! ’

 

२. शिक्षा लेते समय राष्ट्रकार्यमें समि्मलित होने हेतु अचानक गायब हो गए !

मैट्रिकतक ही शिक्षा पूरी करते समय तात्याराव सावरकारके उग्र एवं तीखे भाषण, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेवका बलिदान उन्हें स्वस्थ एवं स्थिर नहीं बैठने देता था । प्रतिदिन घटनेवाली स्वतंत्रता आंदोलनकी घटनाओंसे उनका मन दहक उठा था । महाविद्यालयीन शिक्षा लेते हुए एक दिन अचानक वे पूनासे गायब हो गए । मुंबईके कांग्रेस हाऊस जाकर उन्होंने स्वयंसेवकके रूपमें नाम प्रविष्ट  करवाया ।

 

३. छात्रजीवनमें गवर्नरकी हत्या करनेका कारस्थान

मुंबईका गवर्नर बिनाकारण निरपराध लोगोंको कारागृहमें बंदी बना रहा था । उनसे यह सहा नहीं गया । उन्होंने एक रिवॉल्वर प्राप्त किया तथा मित्रको लेकर मुंबई आए । वे दो दिनोंतक गवर्नरके बंगलेके बाहर छुपकर बैठे रहे ; किंतु उचित अवसर प्राप्त नहीं हुआ । उनके मित्रको गवर्नरके बंगलेपर छुपकर दृष्टि रखनेको कहा; किंतु तदुपरांत उनके ध्यानमें गवर्नरके उस बंगलेसे बाहर जानेकी बात आई । उस समय दो दिनोंकी मेहनत व्यर्थ जानेसे वे अपने मित्रके ऊपर बहुत क्रोधित हुए । उनका भयंकर क्रोध देखकर मित्र घबराहटके कारण उनकी पिस्तौलको ठाणाकी खाडीमें फैककर भाग गया । घरवाले कहने लगे कि ‘दिमागसे यह पागलपन निकाल दो ।’ अण्णाने निशिचत किया, देशकार्यमें अब पीछे नहीं हटना; चाहे मृत्यु भी आ जाए, तो कोई दुख नहीं !

 

४. गोरे साहबको सलाम नहीं करना, इस हेतु नौकरी छोड दी !

डॉ. तुकारामने उनकी शिक्षाका उत्तरदायित्व उठाया था । उसी समय उन्हें पचास रपए प्रति माहकी नौकरी लगी । उस समय पचास रुपए किसी बडे अधिकारीका वेतन था । घरवालोंको लगा कि वे सुधर गए ! कचहरीमें गोरा साहब सवेरे आता था । सब जन उठकर उन्हें सलाम करते थे । उन्हें यह बात खटकने लगी । एक दिन साहबके आनेपर अण्णा समाचारपत्र पढते रहे । साहबके उत्तर मांगनेपर उन्होंने कहा, `मुझे मेरे कामका वेतन प्राप्त होता है, सैल्यूट ठोकनेका नहीं ।’ साहबको कोतवालका उद्दंड वर्तन अच्छा नहीं लगा । उसने उनसे कहा, ‘गेटआऊट !’ इसपर उन्होंने कहा, ‘हम ही आपको हिंदुस्थानसे गेटआऊट करनेवाले हैं, वह समय अब दूर नहीं !’ इस प्रकार उन्होंने दूसरे माहमें ही नौकरीपर लात मार दी ।

 

५. बिजली काट दी गई तो अंग्रेजोंपर

नियंत्रण पाया जा सकता है, यह बात अण्णाने पहचान ली !

जिस बिजलीसे रेल, पुणेके बारूद निर्मितिके कारखाने तथा मुंबई स्थित मिलें चलती हैं, वह बिजली बंद कर दी गई तो, अंग्रेजोंके हाथ बंध जाएंगे तथा अंग्रेजोंको दूसरे महायुद्ध हेतु आवश्यक साहित्य प्राप्त नहीं होगा, यह बात अण्णा जान गए थे । अण्णा भूमिगत हो गए ! भयंकर कष्ट सहते हुए वे जंगलोंमें भटकते थे । समाजसेवा करते करते जो लोग साथ जुड गए, वे ही आगे जाकर उनके क्रांतिकार्यमें सम्मिलित हुए तथा वह दल `कोतवाल दल’ के नामसे प्रसिद्ध हुआ ।

 

६. बिजलीके खंभे गिरानेवाला कोतवाल दल कार्यरत !

अण्णाने टाटा आस्थापनसे एक अभियंताको विश्वासमें लेकर उससे बिजलीका खंभा गिरानेकी जानकारी प्राप्त की । मुंबईके भूमिगत मुख्यालयसे आदेश प्राप्त होनेपर २४ सितंबर १९४२ की रातको डोणे गांवके निकट कोतवाल दल बिजलीका खंभा (पायलन) काटने निकला । रातके काले-काले घने अंधेरेमें यह दल तीन घंटे खंभा काटता रहा … तथा अंतमें खंभा गिरानेमें इस दलको प्रथम यश प्राप्त हुआ । बिजलीकी गडगडाहटसे एकसाथ सहस्रों बिजलियां कौंधनेपर जैसी आवाज होगी, वैसी आवाज करते हुए खंभा नीचे गिर गया । परिसर एकदम प्रकाशमय होनेसे क्षणभरमें किसीकीसमझमें कुछ भी नहीं आया । वह दृश्य देखकर सभीने भारतमाताका जयजयकार किया ! इस प्रकार बिजलीके खंभे गिरानेका सत्र आरंभ हुआ । वे बस इतना ही जानते थे कि उन्हें कहीं भी न्यून नहीं पडना है अर्थात पीछे नहीं हटना है । अण्णा कहते थे, ‘ देशभक्ति अर्थात बलिवेदीपर चढाई गई रोटी है । इसे जो पचा लेगा (हजम) करेगा वह देशभक्त !’

 

७. कोतवालको मृत अथवा जीवित पकडनेका आदेश !

स्थान-स्थानपर बिजलीके खंभे गिराए जा रहे थे । अबतक ब्रिटिशोने अण्णाको जीवित अथवा मृत पकडनेका बीडा उठाया था । इस भूमिगत आंदोलनके कारण कर्जत तहसीलके स्वतंत्रता संग्रामका ‘अनभिषिक्त सम्राट’ के रूपमें अण्णा कोतवालका नाम लिया जाने लगा ।

 

८. अण्णाका बलिदान !

पुलिसके कार्यने गति पकड ली थी । अण्णाको इसका अनुमान था । अल्प सहकारियोंके साथ सिद्धगढकी घाटीमें उनका पडाव (मुकाम) था । भोरमें सैकडों सशस्त्र पुलिसने आक्रमण किया । अण्णाकी जांघमें गोली लगी । घाटी चढकर पुलिस ऊपर आई । अण्णा एक वृक्षके नीचे बेहोश पडे थे; किंतु पुलिसको निकट जाकर देखनेकी हिम्मत नहीं थी । निकटके वृक्षके निचले हिस्सेमें ६०-७० गोलियां दागनेके चिह्न थे । इधर उधर लगी सो अलग । एक घायलपर पुलिसद्वारा कितनी गोलियां दागी जाएं, इसकी कोई सीमा ही नहीं थी ! थोडी देर पश्चात वहां अंग्रेज अधिकारी हॉल पहुंच गया । एकने चिल्लाकर पूछा, ‘क्या तुम ही विट्ठलराव कोतवाल हो ?’ उन्होंने प्रामाणिकतासे उत्तर दिया,  `जी हां ! मैं ही हूं !’ पुलिस उन्हें मारना टाल रही थी; किंतु क्रूर हॉलने हाथकी बंदुककी नली अण्णाके सिरसे लगाकर चाप खींचा । अंग्रेजोंने एक शूर क्रांतिकारीकी हत्या की ! कोतवालकी जीवनज्योत बुझ गई । कोतवालको वीरगति प्राप्त हुई ! क्रातिकारी अण्णा कोतवाल वकील तथा सहकारी हीराजी पाटिलके नामसे सिद्धगढकी सडकपर निर्झरकी संगतिमें आज भी एक स्तंभ शांतिसे खडा है !
(संदर्भ : भारतीय स्वातंत्र्यसंग्रामके बहादुर क्रांतिकारी वीर भाई कोतवाल, लेखक : शशिकांत चौहान )

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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