हिन्दू धर्म में बताए गए वस्त्र धारण करनेसे क्या लाभ होता है ?

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        प्रत्येक वस्तु के गुणगत स्पंदन होते हैं । वस्त्रों का प्रकार, आकार, रंग, कलामयी रचना, सिलाई इत्यादि घटकों पर वस्त्रों के स्पंदन निर्भर करते हैं । ये घटक जितने अधिक सात्त्विक होंगे, उतने ही वस्त्र सात्त्विक बनते हैं । सामान्य मनुष्य को चैतन्य ग्रहण करने के उद्देश्य से सात्त्विक वस्त्र ही पहनने चाहिए । जिसमें भाव है, उसकी वृत्ति सात्त्विक बनती है । इस लेख में हम वस्त्रधारण क्यों करते हैं, यह बताया गया है । इसमें यह भी बताया गया है कि सात्त्विक वस्त्र पहनने का क्या महत्त्व है और इसके शारीरिक, मनोवैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक दृष्टिकोण से क्या लाभ हैं ।

१ शारीरिक दृष्टि से महत्त्व

        वस्त्र पहनने से मनुष्य के शील की रक्षा होती है; साथ ही ठंड, वायु, उष्णता, वर्षा आदि से भी उसकी देह की रक्षा होती है ।

२. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्व

अ. वस्त्रों से मनुष्य के स्वभाव एवं व्यक्तित्व का बोध होना

        मनुष्य अपने स्वभाव के अनुरूप वस्त्र चुनता है । साधारणतः जो लोग सदैव व्यवस्थित एवं इस्त्री किए हुए वस्त्र पहनते हैं, वे अनुशासनप्रिय एवं परिपूर्ण स्वभाव के होते हैं । जो सदैव अनौपचारिक एवं सुखदायक वस्त्र पहनते हैं, वे मिलनसार एवं स्वच्छंद स्वभाव के होते हैं । जो लोग सदैव अस्त-व्यस्त एवं विचित्र वस्त्र पहनते हैं, वे स्वभाव से आलसी एवं असावधान होते हैं । संक्षेप में, वस्त्र मनुष्य के स्वभाव एवं व्यक्तित्व का परिचायक होता है । अतएव मनुष्य के लिए व्यावहारिक जीवन में विशिष्ट प्रसंग के लिए पूरक वस्त्र धारण करना आवश्यक है । उदा. नौकरी के साक्षात्कार (इंटरव्यू) के लिए जाते समय व्यवस्थित एवं इस्त्री किए परिधान में जाने से मनुष्य के अनुशासनप्रियता एवं नम्रता जैसे गुण प्रदर्शित होते हैं ।

३. आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्त्व

अ. वस्त्र धारण करना, अर्थात ब्रह्मपद पर आरूढ होने हेतु माया का (वस्त्र का) आलंबन करना

        ‘वस्त्र धारण करना, अर्थात ब्रह्मपद पर आरूढ होनेहेतु माया में कार्य करने के लिए माया का (वस्त्र का) आलंबन करना ।’

आ. हिन्दू धर्म में बताए गए वस्त्र धारण करने से उनसे शिव एवं शक्ति का तत्त्व जागृत होना

        ‘हिन्दू धर्म में स्त्री एवं पुरुषद्वारा धारण किए जानेवाले वस्त्रों की रचना देवताओं ने की है । इसीलिए ये वस्त्र शिव एवं शक्तितत्त्व प्रकट करते हैं । स्त्रियों के वस्त्रों से अर्थात साडी से शक्तितत्त्व जागृत होता है एवं पुुरुषों के वस्त्रों से शिवतत्त्व जागृत होता है । शास्त्रानुसार वस्त्र धारण करने से हमें अपने वास्तविक स्वरूप का परिचय और अनुभव होता है । साथ ही हमारी आध्यात्मिक शक्ति का व्यय नहीं होता; अपितु उसकी बचत होती है । देवताओंद्वारा निर्मित वस्त्र पहनने से स्थूलदेह एवं मनोदेह के लिए आवश्यक शक्ति अपनेआप मिलती है ।’

इ .हिन्दू धर्म में बताए अनुसार वस्त्र धारण करने से ईश्वरीय चैतन्य एवं देवताओं के तत्त्व आकृष्ट होना

        इसके दो उदाहरण आगे दिए हैं । आध्यात्मिक दृष्टि से कपडे कैसे हों ?

  • कुर्ता एवं पजामा : ‘कुर्ता एवं पजामा पहनने से शरीर के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार(दीप की ज्योतिसमान) कवच निर्मित होता है । इससे जीव के लिए वायुमंडल से ईश्वरीय चैतन्य ग्रहण करना सुलभ होता है । साथ ही रज-तम पर विजय पाना भी सुलभ होता है ।

  • रेशमी धोती : कुर्ता एवं पजामा की अपेक्षा रेशमी धोती अधिक सात्त्विक है । उसे धारण करने से जीव की देह के सर्व ओर सूक्ष्म गोलाकार कवच निर्मित होता है । इससे जीव के लिए देवता के तारक-मारक एवं सगुण निर्गुण, दोनों तत्त्व ग्रहण करना सुलभ हो जाता है ।’

ई. वस्त्रोें द्वारा सात्त्विकता आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होना,

यह वस्त्र के प्रकार एवं वस्त्र धारण करने की पद्धतियों पर निर्भर करना

वस्त्र एवं उसे परिधान करनेकी पद्धति वस्त्रद्वारा सात्त्विकता ग्रहण एवं प्रक्षेपित होनेकी मात्रा
१. ‘नौ गजकी साडी एवं धोती सर्वाधिक
२. छः गजकी साडी

अ. बाएं कंधेपर पल्लू लेना

आ. दाएं कंधेपर पल्लू लेना

 

अधिक

अल्प

३. लुंगी अल्प
४. सलवार-कुर्ता अथवा चुडीदार-कुर्ता

अ. चुनरी दोनों कंधोंपर लेना

आ. चुनरी एक कंधेपर लेना

छः गजकी साडीसे अल्प

अधिक

अल्प

        इससे हिन्दू संस्कृति के परंपरागत परिधान, नौ-गज लंबी साडी एवं धोती का महत्त्व ज्ञात होता है । हिन्दू संस्कृति चैतन्यमय संस्कृति कैसे है, इसका यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है ।

उ. धार्मिक विधि के समय एवं तीज-त्यौहार पर हिन्दू धर्म की परंपरा

के अनुसार सात्त्विक वस्त्र धारण करने से सर्वाधिक ईश्वरीय चैतन्य ग्रहण होना

        ‘हिन्दू धर्मानुसार वर्षभर में अनेक त्यौहार, व्रत एवं उत्सव आते हैं । साथ ही विविध पूजा एवं उपनयन, विवाह जैसी धार्मिक विधियां की जाती हैं । श्रीरामनवमी, जन्माष्टमी, हनुमान जयंती, संतों के प्रकटोत्सव आदि दिनों पर विशिष्ट देवी-देवताओं एवं संतों का तत्त्व अधिक मात्रा में कार्यरत रहता है । धार्मिक विधि के समय हम पूजास्थल पर देवताओं का आवाहन करते हैं, इसलिए देवता वहां उपस्थित रहते हैं । तात्पर्य यह है कि उस विशिष्ट दिन ईश्वरीय चैतन्य अधिक मात्रा में कार्यरत रहता है । उस दिन हिन्दू धर्म की परंपरा के अनुसार सात्त्विक परिधान धारण करने से उस चैतन्य का हमें अधिक लाभ हो सकता है, उदा. स्त्रियों के लिए छः गज अथवा नौ गज लंबी सुनहरी तार (जरी) के छोरवाली साडी पहनना एवं पुरुषों के लिए धोती-उपरना अथवा कुर्ता-पजामा पहनना अधिक उचित है ।’

ऊ. वस्त्रों के कारण अनिष्ट शक्तियों से रक्षण होना

        अपवित्र एवं नग्न रहने से अनिष्ट शक्तियों के कष्ट कीआशंका होना

शक्तिविषये न मुहूर्तमप्यप्रयतः स्यात् । नग्नो वा ।।

– आपस्तंबधर्मसूत्र प्रश्न १, सूत्र ५, काण्डिका १५, पटल ८, ९

अर्थ : यथासंभव एक क्षण भी अपवित्र एवं नग्न नहीं रहना चाहिए ।

        ‘अनिष्ट शक्तियों से बालकों की रक्षा हेतु, उन्हें वस्त्र में लपेटकर रखते हैं, नग्न नहीं रखते ।’

ए. हिन्दू धर्म में बताए अनुसार वस्त्र धारण करने से अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होना

        साडी की चुन्नट से शक्तिप्रवाह भूमि की दिशा में प्रक्षेपित होने पर पाताल की अनिष्ट शक्तियों से स्त्रियों की रक्षा होना : ‘साडीद्वारा प्रक्षेपित शक्तितत्त्व का वायुमंडल की अनिष्ट शक्तियों से अनायास ही युद्ध होता है । इससे व्यक्ति के मन एवं बुद्धि पर अनिष्ट शक्ति का प्रभाव घटता है । साडी की प्रत्येक चुन्नट से प्रक्षेपित शुभ्रप्रकाश का स्रोत तलवार जैसा होता है । चुन्नट से शक्तिप्रवाह भूमि की दिशा में प्रक्षेपित होता है, इसलिए पाताल की अनिष्ट शक्तियों से भी स्त्री की रक्षा होती है ।’

ऐ. त्यौहार, शुभदिन एवं धार्मिक विधि के दिन नए अथवा रेशमी वस्त्र और अलंकार धारण करने से अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होना

        ‘त्यौहार, यज्ञ, उपनयन, विवाह, वास्तुशांति जैसी धार्मिक विधि के समय देवता और आसुरी शक्तियों का सूक्ष्म-युद्ध क्रमशः ब्रह्मांड, वायुमंडल एवं वास्तु, इन स्थानों पर होता है । अतः त्यौहार मनानेवालों एवं धार्मिक विधि के लिए उपस्थित व्यक्तियों पर इस सूक्ष्म-युद्ध का परिणाम होता है । इससे उन्हें अनिष्ट शक्तियोंद्वारा कष्ट होने की आशंका रहती है । विविध स्वर्णालंकार एवं नए अथवा रेशमी वस्त्र धारण करनेवाले व्यक्ति के सर्व ओर ईश्वर के सगुण-निर्गुण स्तर के चैतन्य का सुरक्षावलय निर्मित होता है । इससे व्यक्ति की सात्त्विकता बढती है व अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों से उसकी रक्षा होती है ।’

संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्विक ग्रंथ ‘आध्यात्मिक दृष्टि से कपडे कैसे हों ?’