वस्त्रों के विषय में अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

        इस लेख में पहनने के लिए उपयुक्त वस्त्रों का चुनाव किस प्रकार करें, इस विषय में अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत किए गए हैं ।

१. रेशमी वस्त्र चमकीले होकर भी सात्त्विक कैसे ?

        रेशमी वस्त्र सत्त्व-रज प्रधान होते हैं । चमक रजोगुण से संबंधित है । रेशमी वस्त्रों से प्रक्षेपित तरंगों के कारण, इसे धारण करनेवाले व्यक्ति की कष्टदायक शक्तियों से रक्षा होती है ।

        जब सात्त्विक तेजरूपी चैतन्य कार्य करने के लिए सगुण रूप में अवतरित होता है, उस समय वह चमकीला अर्थात दैदिप्यमान दिखाई देता है । निर्गुण तेजरूपी चैतन्य चमकीला नहीं होता; क्योंकि उसकी कार्यकारी सगुणता समाप्त हो चुकी होती है । यह चैतन्य अव्यक्त स्वरूप में कार्यरत रहता है; इसलिए दैदिप्यमान नहीं दिखाई देता । रेशमी वस्त्र, सत्त्व-रज गुणों से संबंधित होता है । इसलिए सत्त्वगुण के आधार से विशिष्ट स्तर पर ईश्वर के सगुणधारी चैतन्य को ग्रहण कर, वह रजोगुण की गतिशीलता की सहायता से उसे ब्रह्मांड में वेगपूर्वक प्रक्षेपित करता है । इसलिए वह दैदिप्यमान दिखाई देता है ।

२. हिन्दू धर्म में काला रंग त्याज्य माना जाना

‘स्नानं दानं तपो होमः पितृयज्ञश्च तर्पणम् ।
पंच तस्य वृथा यज्ञा कृष्णवर्णस्य धारणात् ।।

(स्मृतिवचन)

अर्थ : संध्या, स्नान, दान, तप, होम, पितृयज्ञ, तर्पण जैसी धार्मिक कृतियां, काले वस्त्र पहनकर करने से विफल होती हैं । हिन्दू स्त्री-पुरुषों के लिए कृष्णवर्ण के (काले) वस्त्र निषिद्ध हैं । काले छोर (किनार) वाले वस्त्र धारण करना सदाचार नहीं; अपितु अनाचार है ।  काले रंग की पगडी, टोपी, रुमाल, शर्ट, छः एवं नौ गज की साडी धारण करना शास्त्रनिष्ठ एवं श्रद्धावान हिंदुओं के लिए क्लेशजनक है । पूजाकर्म में धुले हुए पवित्र वस्त्रों का उपयोग किया जाता है; परंतु काले रंग के वस्त्र धुले हुए एवं किसी पवित्र वस्तु से स्पर्शित होने पर भी उनके काले रंग के कारण निषिद्ध हैं । काले रंग के वस्त्र धारण कर भोजन बनाना अथवा परोसना निषिद्ध कर्म है ।’

अ. काला रंग त्याज्य होने का आध्यात्मिक कारण

        काले रंग में वातावरण में विद्यमान तमोकण ग्रहण करने की क्षमता सर्वाधिक होती है । प्रत्येक विषय-वस्तु से सात्त्विकता कैसे बढाएं, इसकी शिक्षा हिन्दू धर्म देता है । इसलिए हिन्दूधर्म में काला रंग अशुभ एवं त्याज्य माना गया है । (इसके विपरीत, कुछ पंथों में काले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है ।)

आ. अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित व्यक्ति को काले रंग से भी अच्छे स्पंदन प्रतीत होना

        ‘अनिष्ट शक्तियोंद्वारा पीडित व्यक्ति के चारों देहों पर, स्थूल, सूक्ष्म, कारण एवं महाकारण देहों पर दुष्परिणाम होता है । कष्ट दीर्घकालतक बना रहे, तो व्यक्ति का अपना अस्तित्व धीरे-धीरे घटता जाता है तथा उसके आचरण एवं रुचि-अरुचि से अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव प्रतीत होता है अर्थात, वह व्यक्ति अनिष्ट शक्ति से एकरूप होने लगता है । अनिष्ट शक्ति तमप्रधान हो, तो उससे पीडित व्यक्ति को तमप्रधान वस्तुएं भाने लगती हैं । ऐसे व्यक्ति को काला रंग अच्छा लगता है एवं उससे उसे अच्छे स्पंदन प्रतीत होते हैं । ऐसे व्यक्ति अधिकांशतः काले वस्त्रों का उपयोग करते हुए दिखाई देते हैं ।’

३. सात्त्विकता की दृष्टि से वस्त्रों पर कलाकृति कैसी हो ?

वर्तमान कलियुग में विविध प्रकार के प्राणियों की आकृतियोंवाले वस्त्र, भयानक भूतों के मुखोंवाले वस्त्र, विविध स्थानों पर फटे हुए वस्त्रों समान कढाई किए गए परिधान प्रचलित हैं । ऐसे वस्त्रों के आकृतिबंध में घनीभूत कष्टदायक तरंगें कालांतर से जीवकी वृत्ति पर परिणाम करती हैं । ऐसे विचित्र वस्त्र धारण करनेवाला जीव कालांतर से तमोगुणी बनता है । सात्त्विकता की दृष्टि से वस्त्रों पर कलाकृति कैसी हो ये देखते है ।

अ. कलाकृति अर्थहीन न हो

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आ. कलाकृति का आकार अधिक बडा न हो

इ. अधिक तीक्ष्ण (नोकदार) कलाकृति न हो

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        उदाहरणार्थ फूल-पत्तोंवाली कलाकृति का चयन करते समय यहां चित्र में दर्शाई गई कलाकृति के समान वह तीक्ष्ण फूल-पत्तोंवाली न हो । कलाकृति महीन (नाजुक) तथा आकर्षक हो ।

ई. वस्त्र कलाकृतियों से भरा हुआ न हो

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        वस्त्र पर अधिक कलाकृतियां होने से उसके द्वारा कष्टदायक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । अच्छे आकार की कलाकृति भी यदि एक-दूसरे से सटी हुई हो, तो उससे कष्टदायक स्पंदन ही निर्मित होते हैं । कलाकृतियां जितनी खुली-फैली हुई होंगी, उतनी वे निर्गुण तत्त्व के निकट होती हैं । इस कारण उनसे अच्छे स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं ।

४. यदि वस्त्रों पर रेखाएं हैं तो वह रेखाएं कैसी होनी चाहिए ?

प्रत्यक्ष प्रयोग : आगे दर्शाई प्रत्येक आकृति ‘अ’, ‘आ’ एवं ‘इ’ की ओर २ मिनट देखकर क्या अनुभव होता है, इस पर ध्यान देने के उपरांत आगे पढिए ।

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प्रयोग का उत्तर : आकृति ‘अ’ को देखकर सबसे अच्छा लगता है,‘आ’ को देखकर थोडा अच्छा लगता है, जबकि ‘इ’ को देखकर कष्टदायक लगता है । आडी रेखाओं की तुलना में खडी रेखाओं से अच्छे स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं; क्योंकि आडी रेखाएं पृथ्वीतत्त्व से तथा खडी रेखाएं आकाशतत्त्व से संबंधित होती हैं । तिरछी रेखाओं से दो दिशाओं के मिश्र स्पंदन प्रक्षेपित होने के कारण उनसे कष्टदायक स्पंदन निर्मित होते हैं । इससे स्पष्ट होता है कि खडी रेखाओंवाले वस्त्र चुनना अधिक उचित है ।

अ. रेखाएं, रंग एवं तत्त्व

रेखाएं रंग तत्त्व
१. खडी सर्व तारक रंग तारक
२. आडी लाल मारक

        सर्वसाधारण मनुष्य की प्रकृति तारक होने से उसे मारक तत्त्व से कष्ट होने की आशंका रहती है । वस्त्रोें पर आडी रेखाएं होने से उससे मारक तत्त्व प्रक्षेपित होता है । अतः उससे कष्ट होने की आशंका रहती है । अतः आडी रेखाओंवाले वस्त्रों का उपयोग न करें ।

५. कलाकृतियोंवाले (चित्रकारी एवं कढाई जैसी कलामया रचनावाले)

वस्त्रों की अपेक्षा कलामयी रचनाओं से रहित वस्त्र अधिक योग्य क्यों होते हैं ?

        वस्त्र कलाकृतिरहित हो, तो उसमें ब्रह्मांंड से आनेवाली निर्गुण चैतन्यदायी तरंगें सहजता से आकृष्ट होती हैं । आगे कार्य की आवश्यकतानुसार वायुमंडल में न्यूनतम स्तर पर प्रक्षेपित करने में भी आकृतिबंध की कोई भी अडचन नहीं आती । इसलिए कलामयी रचनाओं से रहित वस्त्र अधिक सात्त्विक माना जाता है ।

        कलामयी रचना का चयन करते समय यह भली-भांति परखना पडता है कि ‘कलाकृति सात्त्विक है अथवा नहीं’ । कलाकृतिरहित वस्त्रोें के संदर्भ में यह प्रश्न ही नहीं उठता । इस दृष्टि से भी कलाकृतिरहित वस्त्र धारण करना सदा हितकारी होता है ।

६. शरीर पर धारण करने के उपरांत वस्त्र की सिलाई क्यों नहीं करनी चाहिए ?

        ‘अखंड वस्त्र सात्त्विक होता है, तो अनेक छिद्रोंवाला वस्त्र कष्टदायक स्पंदनों से युक्त होता है । वस्त्र की सिलाई करने की क्रिया फटे वस्त्र को अखंडता प्रदान करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तो है; परंतु फटे वस्त्र को सिलने की प्रक्रिया फटे हुए भाग में रज-तम तरंगों के उत्सर्जन के लिए पोषक होती है । वस्त्र की सिलाई करते समय बडी मात्रा में रज-तमात्मक तरंगों का फुवारे के रूप में वायुमंडल में उत्सर्जन होता है । इसलिए देह को इस प्रक्रिया का स्पर्श नहीं होने देना चाहिए । अन्यथा इस रज-तमात्मक प्रक्रिया के कारण देह को कष्ट होने की आशंका अधिक होती है । इसलिए यथासंभव देह पर अर्थात देह के निकट वस्त्र की सिलाई करना इष्ट नहीं है ।’

संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्विक ग्रंथ ‘आध्यात्मिक दृष्टि से कपडे कैसे हों ?’

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