वस्त्र पहनने के संदर्भ में कुछ व्यावहारिक सूचनाएं

wearing-cloths

        प्रस्तुत लेख में वस्त्र पहनने के सम्बन्ध में व्यवहारिक सुझाव दिए गए हैं; जैसे – वस्त्र आरामदायक हों तथा पूरे शरीर को भली भांति ढकनेवाले हों । इस लेख में यह भी बताया गया है कि नए वस्त्रों का शुभारंभ कैसे करें, वस्त्रों की शुद्धि कैसे करें इत्यादि ।

१. वस्त्र से शरीर भली-भांति ढका हुआ हो

अ. वस्त्र से शरीर भली-भांति ढकने का महत्त्व

        ‘वस्त्रों से शरीर भली-भांति ढका हुआ होने से ठंड, हवा, धूप एवं वर्षा से शरीर के अवयवों की सहज रक्षा होती है । इनकी कार्यक्षमता बढती है और ये निरोगी रहते हैं ।’

आ. अपर्याप्त वस्त्रों से रज-तम तरंगों का प्रक्षेपण होकर आस-पास के

भिन्न लिंगी व्यक्ति में अनिष्ट शक्ति आकृष्ट होकर व्यक्ति को कष्ट होना

  • ‘शरीर को भली-भांति ढकने वाले वस्त्र धारण करने से ठंड, हवा, धूप एवं वर्षा से शरीर की रक्षा होने के साथ ही शीलरक्षा भी होती है । इसके विपरीत, अपर्याप्त वस्त्र पहनने से शरीर की एवं शील की रक्षा भी नहीं होती ।

  • अपर्याप्त वस्त्रों से रज-तम तरंगों का प्रक्षेपण होकर आस-पास के भिन्न लिंगी व्यक्तियों की वासनाएं जागृत होती हैं । परिणामस्वरूप ऐसे वस्त्र पहनने वाले व्यक्ति को अन्यों की वासना जागृत करने का पाप लग सकता है ।

  • अपर्याप्त वस्त्रों के कारण होने वाले अंग प्रदर्शन से वायुमंडल में विचरण करने वाली अनिष्ट शक्तियों की लिंग देहों में वासना जागृत होकर, वे ऐसे वस्त्र पहनने वाले व्यक्ति की ओर आकृष्ट होती हैं । इस कारण, उस व्यक्ति को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट हो सकता है । अतः, हिन्दू धर्म में शरीर को वस्त्र से भली-भांति ढकने के लिए कहा गया है ।’

२. परिधान सुविधाजनक नाप के हों

        ‘परिधान सुविधाजनक नाप के हों; अर्थात वे बहुत ढीले अथवा कसे हुए न हों । उदा. कुर्ता एवं पजामा अधिक घेरेवाले न हों । चूडीदार की अपेक्षा मध्यम घेरेवाला पजामा अच्छा है ।’

अ. अतिस्पर्शात्मक (कसे हुए) वस्त्रों के कारण वायुमंडल में विद्यमान कष्टदायक तरंगें आकृष्ट होना

        ‘जीव की देह एवं वस्त्रों में अति घर्षण होता है । इससे सूक्ष्म-वायु के नाद कंपन निर्मित होते हैं । परिणामस्वरूप वायुमंडलीय कष्टदायक तरंगें जीव की ओर सहजता से आकृष्ट होती हैं । जीन्स जैसे वस्त्रों के जडत्व के (तामसिकता के) कारण वायुमंडलीय सूक्ष्म कष्टदायक तरंगों का घनीकरण होता है और वे उस जीव की ओर आकृष्ट होती हैं ।

आ. अल्पस्पर्शात्मक (सुविधाजनक नाप के) वस्त्रों के कारण वायुमंडलीय चैतन्य तरंगें जीव की ओर आकृष्ट होना

        शरीर जड है । अल्पस्पर्शात्मक वस्त्र शरीर से संलग्न नहीं होते । इसलिए शरीर का जडत्व वस्त्र के साथ कार्यरत नहीं होता । इसके विपरीत, देह एवं वस्त्र के बीच में एक सूक्ष्म रिक्तिनिर्मित होकर उस स्थान में वायुमंडलीय चैतन्य तरंगें आकृष्ट होकर, अल्पस्पर्शात्मक वस्त्रों की वायुधारणा के (सात्त्विकता के) कारण जीवद्वारा सहज ग्रहण होती हैं । इसीप्रकार से, जीव का आध्यात्मिक स्तर अधिक हो, तो उसकी ओर आकृष्ट ईश्वरीय चैतन्य, वस्त्रों की वायुधारणा के कारण सरलता से अन्य जीवों की ओर प्रक्षेपित होकर, उन्हें भी लाभ प्रदान करता है ।’

३. जिनका रंग फीका पड गया हो, ऐसे वस्त्र न

पहनें । फटे अथवा उधडी हुई सिलाईवाले वस्त्र न पहनें ।

फटे अथवा उधडी हुई सिलाईवाले वस्त्र पहनने से अनिष्ट शक्तियों की पीडा की आशंका होना

        ‘फटे एवं उधडी हुई सिलाईवाले वस्त्रों के विविध आकार के छिद्रों में से रज-तमात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । ये स्पंदन वायुमंडलीय अनिष्ट शक्तियों को आकृष्ट करने में अग्रणी होते हैं । परिणामस्वरूप जीव के लिए अनिष्ट शक्तियों की पीडा की आशंका अधिक रहती है । उधडी हुई सिलाईवाले व फटे वस्त्रों के छिद्रों में वे विशिष्ट स्पंदन घनीभूत होते हुए एक विचित्र प्रकार का सूक्ष्म नाद प्रक्षेपित करते हैं । इस नाद की ओर भी अनेक वायुमंडलीय कष्टदायक स्पंदन आकृष्ट होने की आशंका अधिक रहती है । जहां तक संभव हो, ऐसे वस्त्र पहनने से बचना चाहिए ।’

४. अन्योंद्वारा प्रयुक्त वस्त्र न पहनें

अ. अन्योंद्वारा प्रयुक्त वस्त्रों के माध्यम से अनिष्ट शक्तियों की पीडा की आशंका होना

        ‘अन्योंद्वारा प्रयुक्त वस्त्रों में उनके शरीर के सूक्ष्म रज-तमात्मक एवं वासनात्मक कष्टदायक स्पंदन होते हैं । ये स्पंदन, वस्त्रों के माध्यम से दूसरे जीव में संक्रमित होने की आशंका रहती है । पहला जीव यदि अनिष्ट शक्ति से पीडित हो, तो उसके वस्त्र पहननेवाले व्यक्ति को भी यह कष्ट होने की आशंका अधिक रहती है । ऐसे में उस व्यक्ति का संपूर्ण जीवन अनिष्ट शक्तियों की पीडा से उद्ध्वस्त हो सकता है । कलियुग में १०० प्रतिशत जीवों को न्यूनाधिक मात्रा में अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होता ही है । ऐसे में दूसरों के वस्त्र पहनकर उनका भी कष्ट स्वयं पर ले लेना, जीवन के लिए घातक सिद्ध होता है ।’

आ. (आध्यात्मिक दृष्टिसे) उन्नत पुरुषोंद्वारा धारण किए गए वस्त्र पहनने के लाभ

        (आध्यात्मिक दृष्टि से) उन्नत पुरुष अर्थात संत चैतन्य के स्रोत होते हैं । उनके द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं में भी चैतन्य आता है । ‘उन्नत पुरुषोंद्वारा प्रयुक्त वस्तुओं का उपयोग करना पुण्यप्राप्ति की दृष्टि से एवं देह की शुद्धि होकर अनिष्ट शक्तियों की पीडा दूर होने की दृष्टि से फलदायी होता है ।’

५. नए वस्त्र का शुभारंभ करना

अ. त्यौहार, शुभदिन एवं धार्मिक विधि के दिन नए वस्त्र का शुभारंभ करना चाहिए

आ. आसक्ति उत्पन्न न हो; इसलिए नए वस्त्र प्रथम दूसरों को पहनने को दें अथवा देवता के सामने रखने के उपरांत पहनें

        ‘हिन्दू धर्म, ब्रह्म से संबंधित आसक्ति विरहित जीवन जीना सिखाता है । अपने प्रत्येक आचार-विचार से संबंधित विषय-वस्तु के प्रति आसक्ति उत्पन्न होती है । आसक्ति विषयक, उदाहरणार्थ नए वस्त्र धारण करने के विचारों के कारण माया में लिप्त होने की आशंका अधिक रहती है । नए वस्त्रों के प्रति हमारे मन में अधिक आसक्ति रहती है । अपना नया वस्त्र प्रथम दूसरे को पहनने के लिए देना, अर्थात उस व्यक्ति में विद्यमान देवत्व की पूजाकर, तदुपरांत उसी वस्त्र को देवता का कृपाप्रसाद समझकर धारण करना । इस कृति के कारण उस विषय-वस्तु के प्रति आसक्ति क्षीण होने में सहायता मिलती है । प्रत्येक वस्तु प्रथम ईश्वर को अर्पित कर तदुपरांत उसे र्ईश्वर का प्रसाद मानकर स्वीकारने से उसमें विद्यमान ईश्वरीय चैतन्य का लाभ प्राप्त करने की सीख, अर्थात उस विशिष्ट कर्म को ईश्वरविषयक सात्त्विक विचार से करने की सीख हमारा धर्म देता है । इसीलिए प्रथम नया वस्त्र दूसरे को पहनने के लिए देने की अथवा देवता के सम्मुख रखने के उपरांत पहनने की प्रथा है ।’

इ. नया वस्त्र प्रथम किसे पहनने के लिए दें तथा किसे न दें ?

  • ‘कलियुग में १०० प्रतिशत जीवों को न्यूनाधिक मात्रा में अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होता ही है । इसलिए सामान्यतः अन्य किसी को अपना नया वस्त्र प्रथम पहनने के लिए न दें; क्योंकि उस व्यक्ति द्वारा वस्त्र धारण करने से वस्त्र में आने वाली कष्टदायक तरंगों के कारण हमें कष्ट हो सकता है ।

  • सात्त्विक एवं (आध्यात्मिक दृष्टिसे) उन्नत व्यक्ति अर्थात संत को वस्त्र प्रथम पहनने के लिए देने से जीव को उस वस्त्र से सात्त्विकता का लाभ अधिक मिलता है ।

  • सामान्य जीवन में प्रायः किसी संत से भेंट अथवा उनके दर्शन सभी के लिए संभव नहीं होते । इसलिए प्रत्येक वस्तु देवता के समक्ष रखकर उस वस्तु से हमें चैतन्य मिलने के लिए देवता से प्रार्थना कर उसका प्रयोग करना अधिक लाभदायक होता है ।’

६. वस्त्रों की शुद्धि करना

अ. वस्त्र एवं शरीर पर सुगंधित द्रव (सेंट) फुहारने से हानि

  • ‘अधिकांश सुगंधित द्रव (सेंट अथवा परफ्यूम) कृत्रिम रासायनिक पदार्थों से बनते हैं । अतः उनकी सुगंध भी कृत्रिम होती है; इसलिए शरीर एवं वस्त्रों पर उनका उपयोग करने से उनसे बाह्य अर्थात स्थूल स्तर पर सुगंध तो आती है; परंतु उस सुगंधित द्रव में विद्यमान रज-तम तरंगें तथा उन पर यदि काली शक्ति का आवरण आया हो, तो दोनों अर्थात तरंगें एवं आवरण सूक्ष्म स्तर पर नष्ट नहीं होते ।

  • कृत्रिम सुगंध की ओर वातावरण की रज-तम तरंगें आकृष्ट होती हैं । ये तरंगें उस व्यक्ति के शरीर एवं वस्त्रों में प्रवेश करती हैं और वहां कार्यरत होकर वहां की सात्त्विकता नष्ट करती हैं । रज-तम प्रधान वस्त्र एवं स्थूल देह की ओर वायुमंडल की अनिष्ट शक्तियां शीघ्र आकृष्ट होती हैं और उन पर आक्रमण कर उनमें काली शक्ति भर कर, व्यक्ति को कष्ट देती हैं ।’

आ. वस्त्रों पर आक्रमण (अनिष्ट शक्तियों के कारण वस्त्रों से दुर्गंध आना) एवं उस पर उपाय

प्रक्रिया

        ‘अनिष्ट शक्तियों से पीडित साधकों के शरीर में मांत्रिक काली शक्ति भरकर रखते हैं तथा काली शक्तियों के स्थान निर्मित करते हैं । इसलिए अनिष्ट शक्तियों से पीडित साधकोंद्वारा पहने गए वस्त्रों में काली शक्ति का संचय होता है । वस्त्रों पर अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण हो, तो उनमें काली शक्ति संग्रहित रहती है । (वर्तमान समय में, लगभग सभी को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट न्यूनाधिक मात्रा में होता ही है ।) वातावरण में भी रज-तम की प्रबलता है । परिणामस्वरूप वस्त्र काली शक्ति एवं रज-तम से दूषित होते हैं ।

कष्ट

        काली शक्ति व रज-तम से दूषित वस्त्रों की ओर देखने पर एवं उसे धारण करने पर दुर्गंध आना, मितली होना, आंखें भारी होना आदि कष्ट होते हैं ।

उपाय

  • प्रार्थना : वस्त्रों में निहित काली शक्ति एवं रज-तम की मात्रा घट जाए, इसके लिए देवता से प्रार्थना करें ।

  • वस्त्र धोने की पद्धति : वस्त्र १० मिनट तक खडे नमक के पानी में भिगो कर रखें । तदुपरांत साबुन से वस्त्र धो कर अंत में विभूति मिश्रित पानी में अच्छी तरह से खंगाल कर सूर्य प्रकाश में सूखने के लिए फैला दें ।

  • वस्त्र धोने पर दुर्गंध न जाए, तो उस पर आगे दिया उपाय करें : वस्त्र अधिक दुर्गंधी हों, तो उनके सूखने पर थोडी विभूति लगाकर उनमें सनातन-निर्मित सात्त्विक उत्पाद (देवताओं की नामजप-पट्टियां, कर्पूर, उदबत्ती (अगरबत्ती), उदबत्ती का रिक्त वेष्टन अथवा ‘दैनिक सनातन प्रभात’) रखें ।’

इ. वस्त्र धोने के उपरांत उसे विभूति और उदबत्ती से शुद्ध

कर पहनने से व्यक्ति की सात्त्विकता बढकर उसकी अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होना

        ‘वस्त्र धोने से उसमें विद्यमान रज-तम तरंगें एवं काली शक्ति घट जाती है । धुले वस्त्रों में विभूति लगाने से अथवा वस्त्रों में उदबत्ती के टुकडे रखने से उनके चैतन्य एवं सुगंध का परिणाम वस्त्रों पर होता है । इससे वस्त्रों में विद्यमान काली शक्ति एवं रज-तम नष्ट होने में सहायता मिलती है । साथ ही उदबत्ती की सात्त्विक सुगंध वस्त्रों को लगकर उनमें से भी वह सुगंध आती है ।

        इस प्रकार से शुद्ध हुए वस्त्र धारण करने से व्यक्ति की सात्त्विकता बढकर उसके लिए वायुमंडल में विद्यमान देवताओं की सूक्ष्म-तरंगें ग्रहण करना सरल होता है । साथ ही उन तरंगों को व्यक्ति की सात्त्विकता की सहायता से व्यक्ति के सर्व ओर सुरक्षा कवच निर्मित करना सरल होता है । परिणामस्वरूप अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों से व्यक्ति की रक्षा होती है ।’

संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्विक ग्रंथ ‘आध्यात्मिक दृष्टि से कपडे कैसे हों ?’

JOIN