फेंटा (पगडी) धारण करने की पद्धति क्यों निर्मित हुई ?

कलियुग में मनुष्य देवधर्म से कोसों दूर चला गया है । इसलिए टोपी अथवा फेंटा (पगडी, साफा) जैसे बाह्य माध्यमों की आवश्यकता प्रतीत होने लगी, जिससे उसमें अपने कर्म के प्रति भाव तथा गंभीरता और आगे इसी माध्यम से ईश्वरप्राप्ति की रुचि उत्पन्न हो । इसीसे फेंटा अथवा टोपी धारण  करने की पद्धति निर्मित हुई ।

१. फेंटे का महत्त्व और लाभ

अ. फेंटे की रचना के कारण देह में सात्त्विक तरंगों के संवर्धन में सहायता मिलना

उपरने से अथवा धौत वस्त्र से सिर को गोलाकार पद्धति से लपेटना, यह सबसे सरल, सहज एवं सात्त्विक उपाय है । इस लपेटे हुए भाग के
मध्य में निर्मित रिक्ति में ब्रह्मांड के सात्त्विक स्पंदन घनीभूत किए जाते हैं । फेंटे की इस रचना से देह में सात्त्विक तरंगों के संवर्धन में सहायता मिलती है ।

आ. फेंटे के स्पर्श से जीव की प्रज्ञा विकसित होने में सहायता मिलना

सिर पर निर्मित फेंटे की रचना सब से सात्त्विक है; क्योंकि गोल आकार में घनीभूत होनेवाले स्पंदन ज्ञानशक्ति से संबंधित होने से, फेंटे के स्पर्श से जीव की प्रज्ञा विकसित होने में सहायता मिलती है । फेंटे की रचना में अनेक घेरों की निर्मिति होने से उसमें ज्ञानशक्तियुक्त स्पंदन अधिक मात्रा में घनीभूत होते हैं । फेंटे में आवश्यकतानुसार मारक एवं तारक तरंगें घनीभूत होने से जीव को उसकी प्रकृति के अनुसार  भप्राप्ति में सहायता मिलती है ।

इ. फेंटे के कारण देह की कार्यशक्ति की धारणा में वृद्धि होना

देह की कार्यशक्ति की धारणा बढानी हो, तो फेंटे का छोर पीछे पीठ पर रखते हैं । पीठ के मध्यभाग में, अर्थात् रीढ को स्पर्श करनेवाले फेंटे के वस्त्र के कारण जीव की सुषुम्ना नाडी जाग्रत रहने में सहायता मिलती है ।

ई. फेंटे से जीव की स्थूल, मनो, कारण एवं महाकारण देहों की शुद्धि होना

फेंटे की ओर ब्रह्मांड के उच्च देवताओं की सूक्ष्मतम तरंगें आकृष्ट होकर जीव के सहस्रार चक्र द्वारा उसकी संपूर्ण देह में फैलकर वे कार्यरत होती हैं । उसी प्रकार देवताओं की तत्त्व युक्त सात्त्विक एवं चैतन्यदायी सूक्ष्म तरंगें ग्रहण किए जाने से जीव की स्थूल, मनो, कारण एवं महाकारण देहों की शुद्धि होकर वे सात्त्विक एवं चैतन्यमय बनती हैं । इससे जीव का अहं घटता है । ऐसे जीव द्वारा सत्कर्म सहजता से होते हैं एवं जीव का भाव यदि ३० प्रतिशत से अधिक हो, तो देवता उसके माध्यम से कार्य करते हैं ।

उ. फेंटा धारण करनेवाले जीव के सर्व ओर क्षात्रशक्ति और ज्ञानशक्ति से युक्त कवच निर्माण होना

फेंटा धारण करनेवाले जीव के सर्व ओर लालसा-नारंगी रंग का कवच निर्मित होता है । यह कवच क्षात्रशक्ति और ज्ञानशक्ति से युक्त होता है । फेंटा सिर पर धारण किए मुकुटसमान कार्य करता है । फेंटे के कारण सिर के सर्व ओर सुरक्षाकवच निर्मित होता है । इससे वातावरण की अनिष्ट तरंगें जीव द्वारा ग्रहण नहीं होतीं । फेंटे के कारण जीव की बुद्धि पर काला आवरण आने की मात्रा भी न्यून होती है, तथा उसमें वैराग्यभाव की निर्मिति भी होती है ।

ऊ. फेंटे से लाल और फेंटे के नीचे के गोलाकार भाग से नीले और नारंगी रंगों की तरंगें प्रक्षेपित होना और उससे फेंटा धारण करनेवाले जीव को, तथा अन्य जीवों को भी उनका लाभ होना ।

१. फेंटे से लाल रंग की तरंगें जीव के अनाहत चक्र में प्रवाहित होती हैं और उसका क्षात्रभाव जाग्रत रहता है । इन तरंगों के वातावरण में फैलने से उन तरंगोंके संपर्क में आनेवाले, तथा आसपास विद्यमान जीवों के सर्व ओर भी लाल रंग का शक्ति युक्त कवच निर्मित होता है ।

२. फेंटे के नीचे के गोलाकार भाग से नीली और नारंगी रंगों की तरंगें वातावरण में प्रक्षेपित होती हैं । नीले रंग की भावतरंगों के कारण फेंटा धारण करनेवाले जीव में लीनता और नम्रता आने में सहायता मिलती है । इसी प्रकार ये तरंगें उस वातावरण में भी फैलने से उन्हें ग्रहण करनेवाले को भी वैसा ही लाभ होता है ।

३. पीठ पर आनेवाला फेंटे का सिरा, भाव, शक्ति और निर्गुण तरंगों से युक्त होता है । इसलिए वह एकत्रित शक्ति जीव के सर्व ओर कुंडली मारकर वहीं रहती है । इससे जीव को ऊर्जास्रोत की निरंतर आपूर्ति होती है ।

२. फेंटा बांधे व्यक्ति को होनेवाले सूक्ष्म-स्तरीय लाभ

१. फेंटे में कपडा अखंड होता है । इस कारण उसमें सात्त्विकता अधिक होती है ।

२. फेंटे से मन और बुद्धि शुद्ध होते हैं तथा व्यक्ति पर आध्यात्मिक उपाय होते हैं ।

३. फेंटा बांधने से व्यक्ति का मन शांत होकर एकाग्रता और स्थिरता बढती है तथा वह धर्म के विषय में जागरूक बनता है ।

४. फेंटे से धर्मशक्ति की तरंगें वातावरण में प्रक्षेपित होने के कारण फेंटा पहननेवाले एवं उसके संपर्क में आनेवाले अन्य हिंदुुओं की क्षात्रवृत्ति जाग्रत होती है ।
– श्रीमती योया वाले, यूरोप, एस्.एस्.आर्.एफ्.

३. फेंटे के उद्देश्यानुसार रंग

अ. क्षात्रतेज बढाने हेतु लाल

क्षात्रतेजयुक्त शक्ति के तरंग प्रक्षेपित होने हेतु फेंटे का रंग लाल हो । लाल रंग अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होने हेतु पूरक रंग है ।

आ. ब्राह्मतेज हेतु पीला

समाज में ब्राह्मतेज का प्रसार करने हेतु, तथा उसे स्वयं में संवर्धित करने हेतु फेंटे का रंग पीला हो । पीला रंग आध्यात्मिक उन्नति हेतु पूरक रंग है ।

४. फेंटा और मुंडासा

पूर्वकाल में सिर पर मुंडासा बांधते थे; अर्थात् एक श्वेत गमछा अथवा सूती वस्त्र सिर पर गोल लपेटते थे । यह रचना सात्त्विक तरंगें ग्रहण करने की दृष्टि से अच्छी है । इसकी तुलना में, फेंटे जैसी रचना में सिर पर तुर्रा होता है तथा उसके पीछे फेंटे का एक खुला छोर होता है, जो अच्छी तरंगें प्रक्षेपित करने की दृष्टि से इष्ट है ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘आध्यात्मिक दृष्टिसे पुरुषोंके लिए उपयुक्त वस्त्र’