रसोई घर में सात्त्विकता कैसे बनाए रखें ?

रसोईघर अर्थात रसोई बनाने का कक्ष । यह कक्ष स्वच्छ एवं प्रकाश से भरपूर हो । जहां स्वच्छता, व्यवस्थितता होती है वहीं श्री अन्नपूर्णादेवी एवं ईश्वर का वास होता है । साथ ही रसोईघर में बरतन, अन्नपदार्थ एवं जल भी स्वच्छ हों । रसोई बनाने वाला व्यक्ति स्वच्छ एवं स्वस्थ हो । रसोई सात्त्विक बने, इसके लिए रसोईघर में सात्त्विकता बनाए रखना आवश्यक है ।

इस हेतु आगे दिए हुए उपाय करें…

१. रसोईघर सदा स्वच्छ रखें : ‘भोजन बनाते समय, उसे रखते समय स्वच्छ एवं अच्छे स्थान पर अर्थात सात्त्विक स्थान पर बनाएं रखें । इससे वह शुद्ध एवं सात्त्विक ही रहता है । साथ ही अन्न ग्रहण करते समय वह शुद्ध रहता है ।’

२. रसोईघर से कबाड (अनावश्यक वस्तुएं) निकाल दें । वहां अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह न करें । टूटे-फूटे बरतन एवं कप तुरंत निकाल दें ।

३. रसोईघर सुव्यवस्थित होना चाहिए । कपाटिका में (रैक अथवा स्टैंड में) थालियां, कटोरियां, प्याले उचित स्थान पर ठीक से रखें । बरतन जितने अधिक, उतना पसारा अधिक होता है । बरतन अल्प हों तो उन्हीं को धोकर उनका प्रयोग किया जा सकता है ।

४. अनाज, दालें, मिठाई एवं नमकीन के डिब्बे भी एक पंक्ति में एवं इस पद्धति से रखें कि ऊंचाई अनुसार अच्छे स्पंदन प्रक्षेपित हों ।

५. रसोईघर में सात्त्विक नामजप-पट्टियों की वास्तुछत लगाएं । भवन निर्माण के समय अनेक वास्तुदोष उत्पन्न हो जाते हैं ।

६. इसी प्रकार, घर में निवास करनेवालों के विविध प्रकार के स्वभावदोषों के कारण भी उसमें कष्टदायक स्पंदन उत्पन्न होते हैं । ‘नामजप-पट्टियोंका वास्तुछत’ लगाने से कक्ष के कष्टदायक स्पंदन नष्ट होते हैं तथा वातावरण सकारात्मक एवं सात्त्विक बनता है । देवताओं की सात्त्विक नामजप-पट्टियां घर के प्रत्येक कक्ष में चारों भीत पर आगे दी आकृति में दर्शाए अनुसार सीधी और समानांतर रेखा में लगानी चाहिए ।

७. रसोईघर में सात्त्विक अगरबत्ती जलाएं ।

८. रसोई बनाते समय उपास्यदेवता का नामजप अथवा ‘रामरक्षा’ अथवा अन्य स्तोत्र का पाठ करें अन्यथा ‘नामजप का यंत्र’ लगाकर रखें ।

९. भोजन बनाते समय उपास्यदेवता से एवं अन्नपूर्णा माता से निर्धारित कालावधि के उपरांत, उदा. प्रत्येक १० मिनट के उपरांत भावपूर्ण प्रार्थना करें ।

१०. संतों के स्वर में भजन यंत्र पर लगाने से भी रसोई घर का वातावरण चैतन्यमय रहता है ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘रसोईके आचारोंसंबंधी अध्यात्मशास्त्र (भाग २)’ 

JOIN