प्राथमिक स्वरूप के अन्नघटक तथा उनसे रसोई बनाना

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        हमारी रसोई में अनाज, दालें एवं सब्जियों का प्रमुख स्थान है । रसोई में इनके प्रयोग से सात्त्विकता बढाई जा सकती है । इस लेख में हम इन अन्नघटकों से संबंधित कुछ सूत्र समझेंगे । जिसे समझने के उपरांत कृति में लाने से हम निश्चित रूप से उनमें निहित सात्त्विकता से लाभान्वित होंगे ।

१. अनाज

अ. अनाज में ६ से १२ प्रतिशत, १ से ५ प्रतिशत स्निग्धपदार्थ (पैट्स) तथा ६० से ७० प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होते हैं ।

आ. यद्यपि दालों की अपेक्षा अनाज में प्रोटीन की मात्रा अल्प होती है, तथापि दैनिक आहार में अनाज अधिक मात्रा में खाने पर आवश्यक प्रोटीन प्राप्त होते हैं ।

इ. साधारणतः एक वर्ष पुराने (एक वर्षसे रखे हुए) अनाज का उपयोग किया जाता है; क्योंकि नया अनाज (जिसे फसल पकने पर एक वर्ष न हुआ हो) पचने में भारी होता है । तीन वर्ष से अधिक पुराने अनाज में स्वाद नहीं रहता; अतः उसे न खाएं ।

अ. पूर्वकाल में अनाज भूमि के नीचे, मिट्टीसे बने बडे घडों में संग्रहित करके क्यों रखे जाते थे ?

पहले घर में भूमि के नीचे ही अनाज के घडे अथवा भंडारगृह हुआ करते थे । ये भंडारगृह भूमितत्त्व से, अर्थात पृथ्वीतत्त्व से संबंधित थे; इसलिए अनाज में पृथ्वीतत्त्व का संवर्धन होता था । पृथ्वी और आपकी धारणा से बने मनुष्य के लिए वह अन्न ग्रहण करने में अधिक सरल और देह के विकास हेतु पूरक होता था । ये विशाल अनाज के घडे दीर्घवृत्ताकार होते थे और उनमें एक प्रकार का नाद घनीभूत होता था । इस नाद की सहायता से भूमि के संपर्क में रखा अनाज रज-तमात्मक धारणा से मुक्त रहता था । इस प्रकार अनाज को भूमिगत भंडारों में संग्रहित करना और कुछ दिनों के उपरांत उसे ग्रहण करना भी एक उत्तम आचार का ही भाग था ।

पूर्वकाल में गोबर से लीपे भंडार-पात्र में अनाज संग्रहित किया जाता था । इस प्रकार रज-तम तरंगों से अनाज की रक्षा होती थी ।

आ. घर में संग्रहित अनाज की आध्यात्मिक देखभाल कैसे करें ?

१. आजकल सभी स्थानों पर अनिष्ट शक्तियों की काली शक्ति का आवरण बढ गया है । इसलिए घर के अनाज पर भी आवरण आता है । इससे रक्षण हेतु घर में रखे अनाज के संग्रह के निकट किसी देवता की सात्त्विक नामजप-पट्टी रखें । इस प्रकार नामजप-पट्टी में विद्यमान चैतन्य अनाज में संचारित होगा तथा उस चैतन्य का लाभ अन्न ग्रहण करते समय भी होगा । इसी के साथ दिन में एक बार सात्त्विक अगरबत्ती भी उस अनाज के संग्रह पर घुमाएं ।

२. अनाज में चुटकीभर अगरबत्ती की विभूति मिलाएं ।

३. वास्तुशुद्धि करते समय वास्तु के सर्व ओर, घर के उपकरण, अन्नअनाज और पानी के सर्व ओर सुरक्षा-कवच बनाने हेतु श्रीकृष्ण से प्रार्थना करें ।

इ. अनाज फटकने से आध्यात्मिक स्तर पर क्या होता है ?

इस क्रियाद्वारा अनाज की रज-तमात्मक तरंगों को सूप के रिक्त आकार में अधिकाधिक घनीभूत करने का प्रयास किया जाता है । साथ ही इस प्रक्रिया में स्थूलरूप से त्याज्य पदार्थ भी अनाज से बाह्य दिशा में फेंके जाते हैं । इससे सूक्ष्म स्तर पर आंशिक मात्रा में फटकने की क्रियाद्वारा होनेवाले वायु के स्पर्श से अनाज शुद्ध होता है ।

र्इ. अनाज धोने तथा उसे सुखाकर जांते में पीसने से क्या लाभ है ?

फटकने की प्रक्रियाद्वारा सूक्ष्म स्तर पर अनाज का पूर्णरूप से शुद्धीकरण नहीं होता था । जल से अनाज धोकर उसे सुखाने के उपरांत जांते में पीसने से, अनाज धोते समय जल में अनाज की रज-तमात्मक तरंगें समाहित हो जाती थीं । अनाज सुखाने से उसमें शेष कष्टदायक स्पंदन धूप के तेज से नष्ट हो जाते हैं । ऐसा शुद्ध अनाज जांते में दक्षिणावर्त अर्थात घडी की दिशा में हाथ की गतिविधियों से और अधिक शुद्ध एवं अच्छे स्पंदनों से संचारित कर उससे आटा बनाया जाता है । इससे बना अन्न अत्यंत सात्त्विक होता है । – (पू.) श्रीमती अंजली मुकुल गाडगीळ

उ. ज्वार और बाजरा किस ऋतु में खाएं ?

१. ज्वार : स्वास्थ्य के लिए ठंडा; इसलिए ग्रीष्मऋतु में खाएं ।

२. बाजरा : स्वास्थ्य के लिए उष्ण; इसलिए वर्षा और शीतऋतु में खाएं ।

ऊ. भारत और विदेश में पके अनाज में क्या अंतर है ?

भारत देश अन्य देशों की अपेक्षा अधिक सत्त्वप्रधान है । वातावरण और मिट्टी की सात्त्विकता के कारण इस मिट्टी में उपजे अनाज में मिठास उत्पन्न होने से यह अनाज अधिक स्वादिष्ट होता है ।

विदेश में हुई धान की फसल भारत में हुई धान की फसल
१. खेती करने की पद्धति वैज्ञानिक पारंपरिक
२. रसायनों का प्रयोग होना न होना
३. सत्त्वगुण अल्प अधिक
४. वातावरण का अन्नपर हुआ संस्कार तमोगुणी रज-सत्त्व
५. दैवी सुरक्षा न होना होना
६. स्वाद अल्प स्वादिष्ट अधिक स्वादिष्ट

२. दालें और अंकुरित अनाज

अ. शरीर की क्षतिपूर्ति करने की दृष्टि से आहार में दालों का महत्त्व है ।

आ. दालों में २० से २४ प्रतिशत प्रोटीन, १ से ५ प्रतिशत स्निग्धपदार्थ और ५५ से ६० प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं ।

इ. मूंग और मसूर की दालें पचने में हलकी होती हैं और अन्य दालों की अपेक्षा वायु (गैसेस) अल्प मात्रा में उत्पन्न करती हैं ।

ई. साधारणतः दालों में ‘मिथियोनिन’ नामक आवश्यक अमीनो ऐसिड नहीं होता । इसलिए दालों के साथ अनाज का प्रयोग करते हैं ।

अ. उडद को ‘माष’; अर्थात मांससमान क्यों कहा जाता है ?

उडद को ‘मांससमान’ कहा गया है, यह आधुनिक चिकित्सकीय भाषा में प्रोटीन के संदर्भ में है, अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से नहीं । जिस शाकाहारी व्यक्ति को प्रोटीन की आवश्यकता है, उसके लिए उडद अथवा उससे बना इडलीसमान पदार्थ ‘उत्तम अन्न’ है ।

३. सब्जी

आहार में सब्जी के उपयोग के लाभ

अ. ‘शरीर की कोशिकाओं की कार्यक्षमता बढती है ।

आ. शरीर की सुदृढता और सौंदर्य बढता है ।

इ. मन और बुद्धि का कार्य व्यवस्थित और उचित पद्धति से चलता है ।

ई. व्यक्ति की सात्त्विकता ५ प्रतिशत, अर्थात ३० प्रतिशत तक बढ सकती है ।

संदर्भ ग्रंथ : सानातन का ग्रंथ, ‘रसोईके आचारोंका अध्यात्मशास्त्र’