चूल्हे पर भोजन बनाने के लाभ

‘पूर्वकाल में स्त्री चूल्हे के समीप बैठ कर भोजन बनाती थी । इससे चूल्हे की प्रदीप्त अग्नि के संपर्क में आने से उस की देह की शुद्धि होती थी ।’

१. चूल्हे पर भोजन बनाने के लाभ

अ. नित्य चूल्हे पर भोजन बनाने की क्रिया के कारण उस स्थान की शुद्धि होकर उसमें सत्त्वगुण की वृद्धि होती है । इससे वहां का वातावरण अधिक सात्त्विक होकर शुद्ध रहता है ।

आ. चूल्हे पर पकाया गया अन्न अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से अत्यल्प (न्यूनतम) प्रभावित होता है ।

इ. चूल्हे पर अन्न पकाने से अन्न और अन्न के पतीलों के सर्व ओर सुरक्षाकवच निर्मित होता है । अग्नि एवं लकडी के जलने से कनिष्ठ देवताओं के तत्त्व तथा परिसर में विद्यमान इष्ट शक्तियां वातावरण में आकर्षित होती हैं ।

ई. अन्न बनानेवाले के भावानुसार उच्च देवताओं का अस्तित्व वहां सक्रिय होता है । इन सब बातों का लाभ भोजन बनानेवाले को भी होता है । इस सात्त्विक वातावरण का परिणाम भोजन बनानेवाले जीव पर होता है । उसके सत्त्वगुण में वृद्धि होती है तथा उसे समाधान प्राप्त होकर आध्यात्मिक लाभ भी होता है ।

उ. चूल्हे पर भोजन बनाने से वहां सत्त्वगुण आधारित वायुमंडल का निर्माण होता है, जिसका प्रभाव वहां प्रवेश करनेवालेपर भी होता है तथा उसे उस वातावरणका लाभ होता है । चूल्हेके कारण वातावरण की निरंतर शुद्धि होती रहती है । इस कारण वहां अनिष्ट शक्तियों की पीडा अन्य स्थानों की अपेक्षा अल्प होती है; इसलिए वहां शांति एवं स्थिरता का अनुभव होता है । इससे वहां विचरण करनेवाले जीव का मन भी प्रसन्न रहने में सहायता मिलती है ।

ऊ. अनुभूति – सूक्ष्म से चूल्हे पर अन्न पकते हुए दिखाई देना और प्रज्वलित अग्नि से अन्न में नीली तरंगें प्रवेश करना : आषाढ शु. चतुर्थी, कलियुग वर्ष ५१११ (२६.६.२००९) को सूक्ष्म से चूल्हे पर अन्न पकते हुए दिखाई दिया । उस समय प्रज्वलित अग्निसे नीली तरंगें अन्न में प्रवेश करती दिखीं । वे संपूर्ण कक्ष में तत्पश्चात वातावरण में फैलती प्रतीत हुर्इं ।

२. चूल्हे पर भोजन बनाते समय किया गया सूक्ष्म-ज्ञान संबंधी परीक्षण

अ. चूल्हे में जलती लकडियों की अग्नि से वातावरण शुद्ध होना

‘वैशाख कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५१११ (२३.४.२००९) को मैं अपने संबंधियों के घर गई थी । उनके रसोईघर में उनकी बेटी चूल्हे पर भोजन बना रही थी । वहां जाने पर मुझे चूल्हे में जलती लकडियों की गंध से अच्छा लगा । ऐसा लगा कि लकडियों से प्रज्वलित अग्नि के कारण वातावरण की शुद्धि हो रही है ।

आ. लकडी एवं अग्नि में विद्यमान अग्नि देवता का तत्त्व अन्नकणों में प्रवेश करने से अन्न सात्त्विक प्रतीत होना

मेरे मन के विचार भी घट गए । ऐसा लगा कि मन अंतर्मुख हो रहा है । कक्ष के एक कोने में अग्निदेवता का अस्तित्व प्रतीत हुआ । अग्नि की ज्वाला पतीले को स्पर्श कर रही थीं । उस समय लगा कि लकडी एवं अग्नि में विद्यमान देवता का तत्त्व पतीले को स्पर्श कर रहा है और देवता के तत्त्व का अन्नकणों में प्रवेश होने से अन्न सात्त्विक बन रहा है ।

इ. चूल्हे पर भोजन बनाने से अन्न में विद्यमान अनिष्ट घटक नष्ट होना तथा उस में दैवी तत्त्व संचारित होना

ऐसा प्रतीत हुआ कि लकडी जलते समय उसका रूपांतरण पृथ्वीतत्त्व से तेजत्त्व में होता है । ऐसा लगा कि अन्न में विद्यमान अनिष्ट घटक नष्ट होकर उसमें दैवी तत्त्व संचारित हो रहा है । ऐसा लगा कि लकडी प्राकृतिक होने के कारण एवं लकडी के सत्त्वगुण के कारण अग्नि एवं लकडी की प्रक्रिया द्वारा चूल्हे पर पक रहे अन्न में कुछ मात्रा में देवता का तत्त्व प्रवेश कर रहा है ।

ई. चूल्हे के कक्ष के वातावरण में मन के विचार न्यून होना एवं सत्त्वगुण बढना

कक्ष के वातावरण में हलकापन लग रहा था । मेरे अनाहत एवं स्वाधिष्ठान, इन कुंडलिनी चक्रों में सुखद संवेदनाएं प्रतीत हुर्इं । उस वातावरण में मन के विचार घट गए । ऐसा प्रतीत हुआ कि मन में भाव उत्पन्न होकर वह वर्तमान स्थिति में रह रहा है । ऐसा लगा कि उस स्थान पर जाने के पश्चात मन में सत्त्वगुण बढने से उसमें परिवतन हो रहा है ।

उ. ऐसा लगा कि जलती हुई लकडी के बाहर ५-६ फुट दूर तक श्वेत कण फैले हुए हैं और उस स्थान का वातावरण सात्त्विक हो गया है । ऐसा भान हुआ कि चूल्हे से निकलने वाले लकडी के धुएं की गंध के कारण मुझ पर आध्यात्मिक उपाय हो रहे हैं और पके हुए चावल के पतीले पर श्वेत वलय दिखाई दिया ।

३. चूल्हे पर भोजन बनानेवाले व्यक्ति को लाभ

अ. चूल्हे पर भोजन बनाते समय चूल्हे से निकलनेवाला धुआं वातावरण में फैलता प्रतीत हुआ । भोजन बनानेवाले के श्वास के साथ वह धुआं भीतर जाने से उसके स्वाधिष्ठानचक्र के स्थान पर श्वेत प्रकाश का बिंदु बनता दिखाई दिया ।

आ. वह बिंदुरूपी श्वेत प्रकाश बिंदु से आगे निकलकर भोजन बनानेवाले व्यक्ति की रीढ की हड्डियों में व्याप्त हुआ । तत्पश्चात वह उसके संपूर्ण मस्तिष्क में संचारित हुआ । उससे सिर और पीठ पर श्वेत गोलाकार वलय घूमते प्रतीत हुए ।

इ. इस प्रक्रिया के कारण ऐसा लगा कि जीव के सूक्ष्मदेहों की भी शुद्धि हो रही है ।

४. चूल्हे पर पकाया गया अन्न खाने के लाभ

अ. चूल्हे पर पकाए गए अन्न में अधिक मात्रा में ईश्वरीय तत्त्व आकर्षित होने से खानेवाले की देह में सत्त्वगुण की वृद्धि होती है । इसके परिणाम स्वरूप उसका शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक रहता है ।

आ. चूल्हे पर बने अन्न को ईश्वरीय गुणधर्म का स्पर्श होनेसे वह अधिक स्वादिष्ट बनता है । इससे भोजन करनेवाले को वह अन्न तृप्त करता है ।’

५. उडुपी में अन्नशाला में चूल्हे पर ही भोजन बनाना

‘उडुपी में (कर्नाटक राज्य) अन्नशाला में परंपरागत पद्धति से अन्न पकाया जाता है । कहीं भी गैस अथवा इलेक्ट्रिक अंगीठी का उपयोग न कर चूल्हे पर ही अनेक लोगों का भोजन बनाया जाता है ।’ – श्री. अभिजीत खरात

६. चूल्हे के अंगारे पानी से क्यों न बुझाएं ?

‘चूल्हे के अंगारों से प्रदीप्त अग्नि शिव के रूप में तथा अन्नपूर्णा देवी शक्ति के (आदिशक्तितत्त्व के) रूप में अन्न पकाने की प्रक्रिया में सहभागी होती है । इसमें अग्नि शिव के रूपमें और अन्नपूर्णादेवी शक्ति के रूप में कार्य कर अन्न को अन्नब्रह्म के स्तरतक पहुंचाती है । अन्न पकाने की प्रक्रिया पूर्ण होने के उपरांत चूल्हे के अंगारों पर तुरंत पानी डालकर बुझाना अर्थात प्रकट अग्नितत्त्व की तरंगों को नष्ट करना । ऐसा न कर, अग्नितत्त्व तथा अन्नपूर्णादेवी की तरंगों को चढाया हुआ भोग ग्रहण करने की, तदुपरांत उन्हें शांत होने की प्रार्थना करने के पश्चात अंगारों पर थोडा-सा पानी छिडकें । अग्निको शांत होने की प्रार्थना कर पानी थोडा-सा छिडकने से ही वह तुरंत शांत हो जाती है ।’

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘रसोईके आचारोंसंबंधी अध्यात्मशास्त्र (भाग २)’