पितृपक्षका (महालयपक्ष) महत्त्व एवं उसका शास्त्रीय आधार

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सारिणी


१. पितृपक्ष का (महालयपक्ष) का महत्त्व

हिंदू धर्मशास्त्रोंमें इसे ‘महालय’के नामसे भी जानते हैं । वृश्चिक राशिमें प्रवेश करनेसे पूर्व, जब सूर्य कन्या एवं तुला राशिमें होता है, वह काल ‘महालय’ कहलाता है । इस कालावधिमें पितर यमलोकसे आकर अपने परिवारके सदस्योंके घरमें वास करते हैं । इसीलिए शक संवत अनुसार भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदासे भाद्रपद अमावास्यातकके एवं विक्रम संवत अनुसार आश्विन कृष्ण प्रतिपदासे आश्विन अमावस्यातकके पंंद्रह दिनकी कालावधिमें पितृतर्पण एवं तिथिके दिन पितरोंका श्राद्ध अवश्य करना चाहिए । ऐसा करनेसे ‘पितृव्रत’ यथासांग पूरा होता है । इसीलिए यह पक्ष पितरोंको प्रिय है । इस पक्षमें पितरोंका श्राद्ध करनेसे वे वर्षभर तृप्त रहते हैं । जो लोग पितृपक्षमें कुछ कारणवश महालय श्राद्ध नहीं कर पाते, उन्हें पितृपक्षके उपरांत सूर्यके वृश्चिक राशिमें प्रवेश करनेसे पहले तो महालय श्राद्ध करना ही चाहिए । पितृपक्षमें पितरोंके लिए श्राद्ध करनेका महत्त्व स्पष्ट करता है महाभारतका यह श्लोक ।

इस श्लोकमें कहा है . . .

श्राद्धं कन्यागते भानौ यो न कुर्याद् गृहाश्रमी । धनं पुत्राः कुततस्य पितृकोपाग्निपीडनात् ।।
यावच्च कन्यातुलयोः क्रमादास्ते दिवाकरः । शून्यं प्रेतपुरं तावद् यावद् वृश्चिकदर्शनम् ।।

अर्थ : कन्या राशिमें सूर्यके रहते, जो गृहस्थाश्रमी श्राद्ध नहीं करता, उसे पितरोंकी कोपाग्निके कारण धन, पुत्र इत्यादिकी प्राप्ति कैसे होगी ? उसी प्रकार सूर्य जब तक कन्या एवं तुला राशियोंसे वृश्चिक राशिमें प्रवेश नहीं करता, तब तक पितृलोक रिक्त रहता है । पितृलोकके रिक्त रहनेका अर्थ है, उस कालमें कुलके सर्व पितर आशीर्वाद देनेके लिए अपने वंशजोंके समीप आते हैं । वंशजोंद्वारा श्राद्ध न किए जानेपर शाप देकर चले जाते हैं । अतः इस कालमें श्राद्ध करना महत्त्वपूर्ण है ।

२. भरणी श्राद्ध

गया जाकर श्राद्ध करनेपर जो फल मिलता है, वही फल पितृपक्षके भरणी नक्षत्रपर करनेसे मिलता है । शास्त्रानुसार भरणी श्राद्ध वर्षश्राद्धके पश्चात् करना चाहिए । वर्षश्राद्धसे पूर्व सपिंडीकरण (सपिंडी) श्राद्ध किया जाता है । तत्पश्चात् भरणी श्राद्ध करनेसे मृतात्माको प्रेतयोनिसे छुडानेमें सहायता मिलती है । यह श्राद्ध प्रत्येक पितृपक्षमें करना चाहिए ।

कालानुरूप प्रचलित पद्धतिनुसार व्यक्तिकी मृत्यु होनेके पश्चात् १२ वें दिन ही सपिंडीकरण श्राद्ध किया जाता है । इसलिए, कुछ शास्त्रज्ञोंके मतानुसार व्यक्ति की मृत्युके पश्चात् उस वर्ष पडनेवाले पितृपक्षमें ही भरणी श्राद्ध कर सकते हैं ।

महालय श्राद्ध दृश्यपट (Mahalay Shraddha Video)

३. पितृपक्ष अर्थात महालय में श्राद्ध के लिए आनेवाले पितर

२.१ पितृत्रय अर्थात पिता, दादाजी, परदादाजी

२.२ मातृत्रय अर्थात माताजी, दादीजी, परदादीजी

२.३ सापत्न माता अर्थात सौतेली मां

२.४ मातामहत्रय अर्थात मांके पिताजी, दादाजी एवं परदादाजी

२.५ मातामहीत्रय अर्थात मांकी माताजी, दादीजी एवं परदादीजी

२.६ भार्या,  पुत्र, पुत्रियां, चाचा, मामा, भाई, बुआ, मौसियां बहनें, ससुर, अन्य आप्तजन

२.७ श्राद्धकर्ता किसीके शिष्य हों, तो गुरु

२.८ श्राद्धकर्ता किसीके गुरु हों, तो शिष्य

इन सबके नाम तथा गोत्रकी सूची बनाकर रखिए । पितृपक्षमें श्राद्धके समय इसका उपयोग होता है । इस विवरणसे स्पष्ट होता है, कि मृत्युके उपरांत भी जीवके सुख एवं उन्नति से संबंधित इतना गहन अभ्यास केवल हिंंदू धर्मने ही किया है !

४. सर्वपित्री अमावस्या

पितृपक्षकी अमावस्याका यह नाम है । इस तिथिपर कुलके सर्व पितरोंको उद्देशित कर श्राद्ध करते हैं । वर्षभरमें सदैव एवं पितृपक्षकी अन्य तिथियोंपर श्राद्ध करना संभव न हो, तब भी इस तिथिपर सबके लिए श्राद्ध करना अत्यंत आवश्यक है; क्योंकि पितृपक्षकी यह अंतिम तिथि है । शास्त्रमें बताया गया है कि, श्राद्धके लिए अमावस्याकी तिथि अधिक उचित है, जबकि पितृपक्षकी अमावस्या सर्वाधिक उचित तिथि है ।

इस दिन प्रायः सर्व घरोंमें न्यूनतम (कमसे कम) एक ब्राह्मणको तो भोजनका निमंत्रण दिया ही जाता है । उस दिन मछुआरे, ठाकुर, बुनकर, कुनबी इत्यादि जातियोंमें पितरोंके नामसे भातका अथवा आटेका पिंड दिया जाता है और अपनी ही जातिके कुछ लोगोंको भोजन कराया जाता है । इनमें इस दिन ब्राह्मणोंको सीधा (अन्न सामग्री) देनेकी भी परंपरा प्रचलित है ।

५. पितृपक्ष में दत्तात्रेय देवताका नाम जपने का महत्त्व

पितृपक्षमें ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ का नामजप अधिकाधिक करनेसे पितरोंको गति प्राप्त होनेमें सहायता मिलती है । (इसके संदर्भमें विस्तृत जानकारी दत्तात्रेयके नामजपद्वारा पूर्वजोंके कष्टोंसे रक्षण कैसे होता है ?  इस लेख में दी है ।)

६. परिवार में किसीकी मृत्यु होनेपर उस वर्ष महालय श्राद्ध न करना

परिवारमें जिस व्यक्तिके पिता अथवा माताकी मृत्यु हो गई हो, उस श्राद्धकर्ताको उनके लिए उनके देहांतके दिनसे आगे एक वर्षतक महालय श्राद्ध करनेकी आवश्यकता नहीं होती; क्योंकि, उनके लिए वर्षभरमें श्राद्धकर्म किया ही जाता है । श्राद्धकर्ता पुत्रके अतिरिक्त अन्योंको, उदा. श्राद्धकर्ताके चचेरे भाई एवं जिन्हें सूतक लगता है, ऐसे लोगोंको अपने पिता इत्यादिके लिए प्रतिवर्षकी भांति महालय श्राद्ध करना चाहिए । किंतु, सूतकके दिनोंमें महालयपक्ष पडनेपर श्राद्ध न करें । सूतक समाप्त होनेपर आनेवाली अमावस्यापर श्राद्ध करें ।

७. महालय श्राद्ध के लिए आमंत्रित ब्राह्मण

महालय श्राद्धके समय प्रत्येक पितरके लिए एक ब्राह्मण होना चाहिए ।

यदि एक ही ब्राह्मण मिले, तो क्या करें ? : उस ब्राह्मणको पितृस्थानपर बिठाकर देवस्थानपर शालग्राम अथवा बालकृष्ण रखें ।

आवश्यक संख्यामें ब्राह्मण उपलब्ध न हों अथवा उचित ब्राह्मण न मिलें, तो क्या करें ? : ऐसेमें देवस्थानपर बालकृष्ण एवं पितृस्थानपर दर्भ रखें अथवा दोनों ही स्थानोंपर दर्भ रखें । इसे चट अथवा दर्भबटु (कुशसे बनी कूंची) कहते हैं । चट रखकर किए गए श्राद्धको चटश्राद्ध कहते हैं । इस श्राद्धमें दक्षिणा भी देते हैं ।

संदर्भ – सनातनके ग्रंथ – ‘श्राद्ध (महत्त्व एवं शास्त्रीय विवेचन)’ एवं ‘श्राद्ध (श्राद्धविधिका शास्त्रीय आधार)

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