पिंडदान करनेका शास्त्रीय आधार

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सारिणी


भातमें अर्थात पके हुए चावलमें अग्नौकरण अर्थात अग्निमें आहुति देने हेतु लिए गए भातका शेष भाग, तिलोदक, काले तिल, दही, मधु एवं घी, ये मुख्य घटक  मिलाएं । शास्त्रमें सर्व प्रकारके श्राद्धीय अन्नपदार्थोंके अल्प भागसे पिंड बनानेका विधान है । इसलिए पिंड बनानेके मिश्रणमें मुख्य घटकोंके साथही बडे एवं खीर इत्यादि श्राद्धीय भोजनके पदार्थ भी डालने चाहिए । पिंड बनानेके इस मिश्रणको मसलकर साधारणतः चार बडे पिंड एवं अन्य आवश्यक छोटे पक्के (firm) पिंड बनाइए । पितृत्रयके लिए थोडे बडे आकारके पिंड बनानेकी पद्धति है ।

पिंडदान दृश्यपट (Pindadan Video)

१. श्राद्धमें भात अर्थात पके हुए चावलके पिंड बनानेका शास्त्र

चावल सर्वसमावेशक है । चावल पकानेसे उसमें रजोगुण बढता है । इस प्रक्रियामें चावलमें पृथ्वीतत्त्वका प्रमाण घटकर आपतत्त्वका प्रमाण बढता है । आपतत्त्वके कारण भातसे प्रक्षेपित सूक्ष्म-वायुमें आर्द्रता अधिक होती है । जब श्राद्धमें भातका गोला बनाकर उसपर संस्कार किए जाते हैं, तब उसका रूपांतर पिंडमें होता है । संक्षेपमें, भातके सर्व ओर उत्पन्न होनेवाले आर्द्रतादर्शक प्रभावलयमें पितरोंकी लिंगदेहोंकी रज- तमात्मक तरंगोंका संस्करण होता है । इस रजोगुणी पिंडकी वातावरणकक्षामें पितरोंकी लिंगदेहोंके लिए प्रवेश करना सरल होता है । अतः मंत्रोच्चारणसे संचारित वायुमंडलद्वारा लिंगदेहको सूक्ष्म बल प्राप्त होता है तथा उसके लिए आगेका मार्ग प्रशस्त एवं सुगम होता है ।

२. पिंडके लिए सर्व प्रकारके अन्नपदार्थोंका अल्प भाग लेनेका कारण

भातसे बनाया पिंड लिंगदेहका प्रतिनिधित्व करता है । जब लिंगदेह प्रत्यक्षतः व्यक्तिकी स्थूल देहसे विलग होती है, तब वह मनके विविध संस्कारोंका आवरण लेकर निकलती है । आसक्तिदर्शक संस्कारोंमें अन्नसंबंधी संस्कार सर्वाधिक होते हैं । प्रत्येक जीवकी अन्नविषयक रुचि-अरुचि भिन्न होती है । इन सभी रुचियोंके सूचक जैसे मीठा, चटपटा, नमकीन इत्यादि स्वादिष्ट पदार्थोंसे युक्त अन्नका अल्प अंश लेकर उससे पिंड बनाकर श्राद्धस्थलपर रखा जाता है । श्राद्धमें इन विशिष्ट अन्नपदार्थोंकी सूक्ष्म-वायु कार्यरत होती है एवं श्राद्धस्थलपर आई लिंगदेहको इस सूक्ष्म-वायुके माध्यमसे विशिष्ट अन्नके हविर्भाग अर्थात पितरोंको अर्पित अन्नके अंशकी  प्राप्ति होती है । इससे लिंगदेह संतुष्ट होती हैं । विशिष्ट पदार्थोेंका अंश प्राप्त होनेसे विशिष्ट पदार्थोेंकी लिंगदेहकी आसक्ति अंशतः क्षीण होती है । जिससे लिंगदेहके भूलोकमें अटकनेकी आशंका घटती है ।

३. मधुयुक्त पिंड देनेका शास्त्रीय आधार

मधुमें पृथ्वी एवं आप तत्त्वोंसे संबंधित पितरतरंगोंको अपनी मिठाससे प्रसन्न करने एवं उन्हें पिंडमें ही बद्ध करनेकी क्षमता होती है । अतः मधुयुक्त पिंड देनेसे वह दीर्घकालतक पितर-तरंगोंसे संचारित रहता है । अब तक हमने पिंड बनानेकी प्रक्रिया तथा उसे बनाते समय उपयुक्त सामग्रीका शास्त्रीय आधार समझ लिया ।

दर्भका शुद्धिकरण किया जाता है । प्रत्येक पिंड रखते हुए कर्ता कहता है अमुक गोत्रके वसु स्वरूप अथया रुद्र स्वरूप अथवा आदित्य स्वरूपके अपने अमुक नामके परिजनके लिए मैं पिंड रखता हूं  । उसके उपरांत पिंडपूजन किया जाता है ।

अ. पिंडस्वरूपी पितरोंके लिए काजल, ऊनका धागा, पुष्प, तुलसी, भृंगराज, धूप, दीप द्वारा उपचार किए जाते हैं ।

आ. पिंडरूपी पितरोंको नैवेद्य अर्पित किया जाता है ।

इ. पीनेके लिए तथा हाथ-मुंह धोनेके लिए जल अर्पित किया जाता है । मुखशुद्धि हेतु पान अर्पित किया जाता है ।

र्इ. उसके पश्चात पितर-ब्राह्मणोंको तिलोदक एवं देव-ब्राह्मणोंको यवोदक अर्थात जौ युक्त जल देकर पिंडपर जल छोडा जाता है । जिन पितरोंकी मृत्यु अग्निमें जलनेसे   अथवा कोखमें जन्मसे पहलेही हो गई है उनके लिए बनाए गए विशेष पिंडोंपर तिलोदक चढाया जाता है ।

उ. उसके पश्चात परिवारके अन्य सदस्य पिंडोंको नमस्कार करते हैं  ।

४. श्राद्धकर्ताद्वारा दर्भपर पिंड रखने तथा उसका पूजन करनेके सूक्ष्म-परिणाम

  • श्राद्धविधिमें मंत्रो का उच्चारण करते समय पुरोहितमें शक्तिके वलयकी जागृति होती है ।
  • पुरोहितके मुखसे वातावरणमें शक्तिकी तरंगोंका प्रक्षेपण होता है ।
  • श्राद्धविधि भावपूर्ण करनेवाले पूजकके अनाहतचक्रके स्थानपर भावके वलय जागृत होते हैं ।
  • ईश्वरसे प्रक्षेपित शक्तिका प्रवाह पिंडदान हेतु रखे दर्भमें आकृष्ट होता है ।
  • दर्भ एवं उसपर रखे जानेवाले पिंडमें शक्तिके वलय जागृत होते हैं ।
  • इस वलयसे वातावरणमें शक्तिके प्रवाहोंका प्रक्षेपण होता है ।
  • शक्तिका प्रवाह पूजककी ओर प्रक्षेपित होता है ।

५. पिंडपूजनके सूक्ष्म-परिणाम

  • पुरोहितद्वारा श्राद्धसे संबंधित मंत्रपठनके कारण भुवलोकसे एक काला-सा प्रवाह पिंडकी ओर आकृष्ट होता है ।
  • लिंगदेहके रूपमें पितर आकृष्ट होते हैं ।
  • आकृष्ट हुए पितरोंके कारण दर्भपर रखे पिंडके सर्व ओर काला तमोगुणी वलय उत्पन्न होता है ।
  • श्राद्धकर्ता पिंडपूजन कर प्रार्थना करता है, ‘मेरे परिवारपर मेरे पितरोंकी कृपादृष्टि बनी रहे । मेरे पितरोंको अन्न एवं शक्ति प्राप्त हो’ ।
  • प्रार्थना करनेसे श्राद्धकर्ताकी ओर चैतन्य तथा शक्तिके प्रवाह आकृष्ट होते है ।
  • श्राद्धकर्ताके स्थानपर चैतन्य तथा शक्तिके वलय जागृत होते हैं ।
  • श्राद्धकर्ताके भावपूर्ण पिंडपूजनसे पूर्वजदोषकी तीव्रता घटती है ।

पिंडपूजन करनेसे अतृप्त पितर भुवलोकसे पिंडकी ओर सहजतासे आकृष्ट होते हैं तथा उनकी इच्छाएं पूर्ण होकर उन्हें गति मिलती है ।  इसप्रकारसे पितरोंके कष्ट न्यून होते हैं । इससे श्राद्धविधिमें पिंडपूजनका महत्त्व स्पष्ट होता है ।

संदर्भ – सनातनके ग्रंथ – ‘श्राद्ध (महत्त्व एवं शास्त्रीय विवेचन)’ एवं ‘श्राद्ध (श्राद्धविधिका शास्त्रीय आधार)

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