शुद्धीकरण के विषय में धर्मशास्त्र का कथन

सारिणी


 

१. ‘शुद्धीकरण’ की व्याख्या

छल-कपटसे, बलप्रयोगसे अथवा प्राणभयसे, अन्य धर्म स्वीकारनेवाले धर्मभ्रष्ट जनोंको स्वधर्ममें लेनेकी प्रकियाको ‘शुद्धीकरण’ कहते हैं ।

 

२. शुद्धीकरणके विषयमें धर्मशास्त्रका क्या कथन है ?

स्वधर्मको त्याग परधर्म स्वीकारना, हिंदु धर्ममें पाप माना गया है । धर्मशास्त्र में आचारशुद्धिको विशेष महत्त्व दिए जानेके कारण धर्म-परिवर्तन अथवा परधर्मियों के साथ दीर्घकालतक अनेक प्रकारसे संपर्कमें रहे धर्मभ्रष्टोंसे हिंदु समाज अंतर रखकर आचरण करता है । तथापि धर्मशास्त्रके रचनाकारोंने यह नहीं कहा कि, ‘कोई हिंदु परधर्ममें जानेपर हिंदु धर्मसे सदाके लिए वंचित हो जाता है ।’ प्रायश्चित लेकर महापापसे भी मुक्त होनेकी सुविधा धर्मशास्त्रके निर्माताओंने उपलब्ध करवाई है ।

२ अ. अथर्ववेद

इसमें, हमारे प्राचीन वैदिक पूर्वजोंने, ‘व्रात्यस्तोम संस्कार’ कर अवैदिकोंको अपने धर्ममें सम्मानपूर्वक समाविष्ट कर लिया, इसका स्पष्ट उल्लेख है । इससे स्पष्ट होता है कि व्रात्यस्तोम संस्कारसे व्यक्ति शुद्ध होता है ।

२ आ. मनुस्मृति

मनुने कहा है, बलपूर्वक लादे गए, अन्यायसे भोगे हुए, छलकपटसे लिखवाए गए कृत्य ‘अकृत’ हैं अर्थात् ‘ये हुए ही नहीं’, ऐसा मान लिया जाए । (मनुस्मृति, अध्याय ८, श्लोक १६८) अर्थात्, उपरोक्त प्रकारसे हुए धर्मांतरण का दोष प्रायश्चितसे दूर किया जा सकता है । इस विषयमें मनुका वचन इस प्रकार है –

अकामतः कृतं पापं वेदाभ्यासेन शुध्यति ।
कामतस्तु कृतं मोहात् प्रायश्चितैः पृथग्विधैः ।।

– मनुस्मृति, अध्याय ११, श्लोक ४५

अर्थ : बिना लोभ अथवा बिना मोहके (अकामतः) किया हुआ पाप, वेदाभ्याससे नष्ट होता है, तथा लोभ एवं मोहके वशमें आकर किए गए पाप विविध प्रकारके प्रायश्चितोंसे नष्ट होते हैं । (और वह मनुष्य शुद्ध होता है ।)

२ इ. याज्ञवल्क्यस्मृति

इसमें महापातकोंकी सूचीके साथ ३९ उपपातकोंकी (अल्पस्तरके पातकोंकी) सूची दी है । स्वधर्मका त्याग, यह इस सूचीमें दिया हुआ ३४ वां उपपातक है । इस उपपातकसे मुक्त होनेके लिए याज्ञवल्क्यने प्रायश्चित बताया है, जो इस प्रकार है

उपपातकशुद्धिः स्यादेवं चान्द्रायणेन वा ।
पयसा वापि मासेन पराकेणाथ वा पुनः ।।

– याज्ञवल्क्यस्मृति, अध्याय ३, श्लोक २६५

अर्थ : उपपातककी शुद्धि, एक मास चांद्रायण व्रत करनेसे, एक माहतक दुग्धपानपर रहनेसे, अथवा पराक (बारह दिनोंतक भोजन न करना) प्रायश्चित करनेसे होती है ।

२ ई. देवलस्मृति

वर्ष ७३२ में मुहम्मद कासिमने हिंदुस्थानपर चढाई कर सिंध और कश्मीरके हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन किया । उस समय धर्मभ्रष्टोंके शुद्धीकरणका प्रश्न प्रथम ही उत्पन्न हुआ था । उस समय गुजरातके महर्षि देवलने मुख्यतः धर्मभ्रष्टोंको शुद्ध करने हेतु ही देवलस्मृतिकी रचना की । उसमें नाना प्रकारके म्लेच्छसंसर्गोंका उल्लेख कर उनके लिए प्रायश्चित भी बताया गया है ।

(देवलस्मृति, अध्याय ७, श्लोक २३)

शुद्धीकरण संस्कारमें सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न बलात्कारित स्त्रीका था । इस विषयमें देवलस्मृतिने स्पष्ट कहा है कि, बलात्कारित लडकी अथवा स्त्री इस घटनाके पश्चात् अगला रजोदर्शन (मासिक-धर्म) होनेपर दोषमुक्त होकर पूर्वके समान ही शुद्ध हो जाती है ।

२ उ. पराशरस्मृति, बृहस्पतिस्मृति और यमस्मृति

मुसलमान अथवा ईसाईका अन्न (पाव आदि) ग्रहण करनेपर मनुष्यका धर्म-परिवर्तन होता है, यह धारणा मध्यकालमें सर्वत्र रूढ थी । किंतु, इससे भी विकट प्रश्न गोमांस भक्षणके पापसे भी मुक्त होनेका मार्ग पराशरस्मृति, बृहस्पतिस्मृति और यमस्मृतिने दिखाया ।

२ ऊ. शुद्ध होनेके इच्छुकोंकी
शुद्धि न करना, धर्मशास्त्रानुसार पाप ही !

धर्मशास्त्रके निर्माताओंने दृढतापूर्वक कहा है कि, ‘मुझे प्रायश्चित बताकर शुद्ध कर लीजिए’, यह विनती करनेवालेको जो शुद्ध नहीं करता, वह उस अशुद्ध व्यक्तिके पापमें सहभागी होता है ।’

 

३. शुद्धीकरणकी विविध पद्धतियां एवं विधियां

३ अ. गोमय और गोमूत्रद्वारा शुद्धि संस्कार करना

वर्ष १००० में इस्लामी आक्रमणकारियोंद्वारा धर्मांतरित किए गए हिंदुओंके शुद्धीकरण हेतु तत्कालीन ब्राह्मणोंने उन्हें गोमय और गोमूत्रसे स्नान करवाकर शुद्ध किया एवं स्वधर्ममें प्रवेश दिया’, यह इस्लामी इतिहासकार अल्-बिरूनीने लिखा है ।

३ आ. प.पू. करपात्री स्वामीजीद्वारा अपनाई गई शुद्धीकरण पद्धति

‘प.पू. करपात्री स्वामीजीने धर्मांतरित हिंदुओंको शुद्ध करनेके लिए उनसे विष्णुसहस्रनाम और श्रीमद्भगवद्गीताके १२ वें अध्यायका पाठ एवं श्रीरामका त्रयोदश अक्षरी जप करनेकी साधना बताकर तुलसीदल और तीर्थ दिया । इस प्रकार साधना करनेवाले हिंदु धर्ममें सम्मिलित हुए ।’ – गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी

(उच्च आध्यात्मिक स्तरके संतोंकी सात्त्विकता अथवा संकल्पसे ही शुद्धि होती है । वे उपचारके रूपमें कर्मकांड करनेके लिए कहते हैं । – संकलनकर्ता)

३ इ. धर्मशास्त्रमें वर्णित शुद्धि संस्कारकी विधियां

‘धर्मभ्रष्ट हिंदुओंको शुद्ध कर हिंदु धर्ममें पुनः लेनेके लिए जो धार्मिक अनुष्ठान धर्मशास्त्रमें वर्णित है, उसे शुद्धि संस्कार कहते हैं । यह शुद्धीकरण विधि, प्रायश्चितका ही एक प्रकार है ।

इसमें आगे दिए अनुसार कृत्य करने पडते हैं –

१. प्रायश्चित-कथन, २. आचमन, ३. संकल्प, ४. क्षौर, ५. पंचगव्य सेवन, ६. दंडप्रदान – इसमें कृच्छ्रत्रय प्रायश्चित करना पडता है । यह करना असंभव हो, तो ब्राह्मणको यथाशक्ति द्रव्यदान करें, ७. जलाभिमंत्रण, ८. महाभिषेक – इसमें ‘सर्व देवता, सर्व ग्रह, ऋषि, गाएं, वृक्ष, नाग, दैत्य, अप्सरा, नदियां, तीर्थ, ये सब तुम्हारा अभिषेक करें’, इस अर्थका मंत्र कहकर पवित्र वृक्षोंके पत्तोंसे जलप्रोक्षण (जलका छिडकाव) करना होता है, ९. तिलकधारण, १०. इष्ट देवताकी पूजा, ११. नामकरण, १२. अभिवादन – परमेश्वरको नमस्कार, १३. तीर्थप्राशन (सेवन), १४. मंत्रोपदेश – आवश्यकतानुसार, १५. पुनरुपनयन और १६. होम (हवन) ।

यह अनुष्ठान सरल है तथा धर्मशास्त्रज्ञोंने भी इसका समर्थन किया है । इसके लिए किसी बडे विद्वान पुरोहितकी आवश्यकता नहीं । यह अनुष्ठान सरल है, इसे कोई भी कर सकता है ।’ – म.म. सिद्धेश्वरशास्त्री चित्राव (शुद्धीसंस्कार, १९२७)

 

४. धर्मांतरण कर हिंदु बननेवालोंके लिए साधनामार्ग

४ अ. धर्मभ्रष्ट लोग श्रीविष्णुके नामस्मरणसे पवित्र होते हैं, यह भागवत महापुराणमें कहा गया है ।

४ आ. ‘धर्म-परिवर्तन कर हिंदु धर्ममें आनेवाले वैष्णव पंथीय होंगे । भागवतमें बताया भक्तिमार्ग उनके लिए है । इससे हिंदु समाज प्रबल, तेजस्वी एवं ऐश्वर्यशाली होगा ।’ – गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी

 

५. शुद्धीकरणके विषयमें स्वामी विवेकानंदद्वारा किया गया शंकासमाधान !

‘धर्मांतरित हिंदु और मूलतः अहिंदुओंका शुद्धीकरण’ इस विषयपर एक नियतकालिक ‘प्रबुद्ध भारत’ने वर्ष १८९९ में स्वामी विवेकानंदसे वार्तालाप किया था । उस समय ‘प्रबुद्ध भारत’के प्रतिनिधिद्वारा पूछी गई शंकाओंपर स्वामी विवेकानंदद्वारा दिया उत्तर यहां साररूपमें दिया है ।

५ अ. धर्मांतरित हिंदुओंका शुद्धीकरण आवश्यक !

प्रतिनिधि : क्या धर्मांतरितोंको शुद्धीकरणद्वारा हिंदु धर्ममें पुनः लेना चाहिए ?

स्वामी विवेकानंद : ‘निःसंशय धर्मांतरित हिंदुओंका शुद्धीकरण करना ही चाहिए । यदि ऐसा नहीं किया गया, तो हिंदुओंकी संख्या दिन-प्रतिदिन घटती ही जाएगी । फरिश्ता नामक प्राचीन मुसलमान इतिहासकार कहता है, मुसलमान इस देशमें प्रथम आए, उस समय हिंदुओंकी संख्या साठ करोड थी । आज (वर्ष १८९९ में) वह घटकर केवल बीस करोड रह गई है । अधिकांश धर्म-परिवर्तन मुसलमान और ईसाई धर्मियोंने तलवारके बलपर किया है । आजके परधर्मीय हिंदु उस कालमें धर्मांतरित हिंदुओंके ही वंशज हैं । ऐसे लोगोंको दूर रखना हितकर नहीं । स्वेच्छासे परधर्म अपनानेवालोंको भी पुनः मूल धर्ममें आनेकी इच्छा हो, तो उन्हें भी शुद्ध करना चाहिए । अत्याचारोंके कारण धर्म-परिवर्तनके लिए विवश हुए मूल हिंदुओंको हिंदु धर्ममें पुनः प्रवेश देते समय कोई प्रायश्चित न बताया जाए ।

५ आ. अहिंदुओंको हिंदु धर्मने स्वीकारा यह इतिहास है !

प्रतिनिधि : क्या मूलतः अहिंदुओंका शुद्धीकरण अर्थात् हिंदुकरण करना चाहिए ?

स्वामी विवेकानंद : भूतकालमें ऐसे अनेक परवंशीय हमारे हिंदु धर्ममें अपनाए गए हैं । अबतक राष्ट्रकी सीमापर स्थित अनेक वन्य जातियोंको हिंदु धर्मने आत्मसात किया । मुसलमानोंसे पूर्व आए शक, हूण, कुशाण इत्यादि सर्व विदेशी आक्रमणकारियोंको भी हिंदु धर्मने स्वीकारा है । रक्तसे पृथक ऐसे अन्य धर्मियोंको हिंदु धर्ममें प्रवेश देते समय कोई प्रायश्चित न हो ।

५ इ. धर्मांतरित हिंदु शुद्धीकरणके पश्चात् अपनी पूर्वकी

जाति अपनाएं, तथा अहिंदु हिंदु धर्म स्वीकारनेके पश्चात् वैष्णव पंथीय बनें !

प्रतिनिधि : जिनका शुद्धीकरण हो जाए, वे किस जातिमें हों ?

स्वामी विवेकानंद : बलपूर्वक धर्मांतरित लोग जब पुनः स्वधर्ममें लौटेंगे, उस समय उन्हें उनकी पूर्वकी जाति मिलेगी । हिंदु धर्ममें जो नए प्रवेश करेंगे, उन सबको मिलकर एक नई ही जाति बनानी पडेगी । यह जाति वैष्णव पंथीय होगी (वर्णसंकरसे बचनेके लिए) । वे आपसमें विवाह करें । अपना नाम हिंदुओंकी भांति रखें; क्योंकि, वे हिंदुत्वके परिचायक हैं तथा उनमें चैतन्य है । – ‘प्रबुद्ध भारत’ (अप्रैल १८९९)

 

६. हिंदु समाजको आवाहन

६ अ. हिंदु समाजको जीवित रखनेके लिए शुद्धीकरण आंदोलन चलाएं !

‘व्यक्ति अथवा कुछ व्यक्तियोंको शुद्ध कर लेने मात्रसे क्या साध्य होगा’, ऐसा कुछ लोग बडे आवेशमें पूछते हैं । ‘जिस प्रकार बूंद-बूंदसे घडा भरता है, उसी प्रकार, खाली भी होता है’, यह नियम यहां क्रियाशील हिंदुओंको ध्यानमें रखना चाहिए । इस संदर्भमें नासिक निवासी ‘भोसले सैनिक विद्यालय’के संस्थापक और हिंदु समाजके तेजस्वी नेता स्व. डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे कहते हैं, ‘‘गोजरके सहस्र पांव होनेपर भी एक-एक कर पांव टूटने लगे, तो क्या वह जीवित रहेगा ? हिंदु समाजकी भी यही स्थिति होगी । हिंदु समाजकी क्षात्रवृत्ति जीवित रहे, ऐसे लगता है, तो शुद्धीकरण आंदोलन चलाइए ।’’ – श्री. संजय मुळ्ये, रत्नागिरी, महाराष्ट्र.

६ आ. धर्मांतरितोंके शुद्धीकरणका

विषय हिंदुओंको अपनी कार्यसूचीमें लेना चाहिए !

‘टीपू सुलतानको अंग्रेजी सेनासहित समाप्त कर मराठोंकी सेना जब पुणेकी ओर लौट रही थी, उस समय टीपूद्वारा धर्मांतरित अनेक हिंदु परिवार मार्गके दोनों किनारे खडे होकर, हाथ जोडकर मराठा सेनापति हरिपंत फडकेसे विनती कर रहे थे, ‘हमें हिंदु धर्ममें पुनः ले लें’ । वे हिंदु धर्ममें लौटना चाहते थे ।

परंतु, मराठोंकी कार्यसूचीमें शुद्धीकरण विषय नहीं था । आज भी, हिंदुओंकी कार्यसूचीमें यह विषय नहीं है । महर्षि देवल, छत्रपति शिवाजी महाराज, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, प.पू. मसूरकर महाराज, स्वामी श्रद्धानंद आदिके छिटपुट कालखंडोंको छोड दें, तो ऐसा दिखाई देता है कि हिंदुओंने शुद्धीकरणकी अक्षम्य उपेक्षा की है । स्वातंत्र्यवीर सावरकरने इस संबंधमें स्पष्ट कहा था, ‘शुद्धिका यह कार्य केवल धार्मिक नहीं, राजनीतिक भी है ।’ इस कारण आजकी राजनीतिक भाषामें कहना हो, तो हिंदुओंकी कार्यसूचीमें धार्मिक प्रत्यावर्तन, अर्थात् ‘शुद्धीकरण’ यह विषय होना चाहिए !’ – श्री अरविंद विठ्ठल कुळकर्णी (मासिकपत्र ‘लोकजागर’, अमरनाथ यात्रा विशेषांक, २००८)

६ इ. हिंदुस्थानमें धर्मांतरित
हिंदुओंके शुद्धीकरणका आंदोलन गतिमान हो !

प.पू. मसूरकर महाराजने कहा था, ‘हिंदुस्थानमें सर्वत्र बलपूर्वक धर्मांतरित हिंदुओंके वंशजोंको पुनः हिंदु धर्ममें लाकर उन्हें धार्मिकरूपसे मुक्त करना, यही आजके युगमें काशीकी यात्रासे भी अधिक पवित्र कार्य है ।’ यह पवित्र कार्य केवल धर्मांतरित वनवासी क्षेत्रोंमें ही नहीं, अपितु प्रत्येक अहिंदु क्षेत्रमें जाकर करना चाहिए । जिस प्रकार सुन्नत हुए बिना मुसलमान नहीं बन सकते, बप्तिस्मा लिए बिना कोई ईसाई नहीं बन सकता; उसी प्रकार शुद्धि संस्कारके बिना धर्मांतरित लोग हिंदु नहीं बन सकते । इसीलिए हिंदुस्थानमें धर्मांतरित हिंदुओंके शुद्धीकरणका आंदोलन गतिमान होना चाहिए । देवालयोंके विध्वंससे भी हिंदुओंका धर्म-परिवर्तन है । तोडे गए देवालय पुनः बनाए जा सकते हैं; परंतु, परधर्ममें गए लोग पुनः नहीं आएंगे । इतना ही नहीं, उनके वंशज आगे जाकर कट्टर हिंदुद्वेषी होंगे और वे ही नए देवालय पुनः ध्वस्त करेंगे । इस दुष्चक्रको रोकनेके लिए प्रत्येक हिंदुको धर्मांतरितोंके हिंदुकरणका दायित्व उठाना ही होगा ।

‘ईश्वरका अधिष्ठान रखकर समाजमें धर्मसंस्थापना करनेके लिए प्रबोधन अथवा आवश्यकता पडनेपर दंडनीतिका अवलंबन करना चाहिए ।’ समर्थ रामदासस्वामीजीके इस कथनके अनुसार हिंदुओंको धर्मकी रक्षा हेतु शुद्धीकरणका शंखनाद पूरे हिंदुस्थानमें करना होगा !

शुद्धीकरणके लिए आगे दिए पतोंपर संपर्क करें !

१. दिल्ली

अ. धर्म प्रसार विभाग, विश्व हिंदु परिषद, आर्.के. पूरम, ११००२२.
दूरभाष क्रमांक : (०११) २६१८७३०९, २६१०३४९५

आ. अखिल भारतीय शुद्धि सभा, ६९४९,

बिडला भवन, नई दिल्ली – ११०००७.

इ. श्री. गुरुदीन प्रसाद रस्तोगी, झंडेवाला देवी मंदिर, करोल बाग.
भ्रमणभाष क्रमांक : ९९११३३०८३०

२. हरियाणा

श्री. राजेंदर फोगाट, हिस्सार.
भ्रमणभाष क्रमांक : ९२५५५९२८९२

३. पंजाब

श्री. रामकृष्ण श्रीवास्तव, विश्व हिंदु परिषद कार्यालय समिति केंद्र,

सिविल लाइन्स, लुधियाना.

४. बिहार

आर्य समाज मंदिर, जवाहरलाल मार्ग, मुजफ्फरपुर.

५. गुजरात

आर्य समाज, हाथीखाना, राजकोट महलके समीप,
दयानंद सरस्वती मार्ग, राजकोट ३६०००१.
दू.क्र. : (०२८१) २२३११४६

६. मुंबई

मसुराश्रम, मसुराश्रम मार्ग, पांडुरंग वाडी,
गोरेगाव (पूर्व) मुंबई ४०००६३.
दू.क्र : (०२२) २८७४१९९७

 

संदर्भ : हिंदु जनजागृति समितीद्वारा समर्थित ग्रंथ ‘धर्म-परिवर्तन एवं धर्मांतरितोंका शुद्धिकरण’

Leave a Comment