देशभक्त बटुकेश्वर दत्त एक महान क्रांतिकारी

सारिणी


बटुकेश्वर दत्त (नवंबर १९०८ – १९ जुलाई १९६५) भारतके स्वतंत्रता संग्रामके महान क्रांतिकारी थे । स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त सर्वप्रथम ८ अप्रैल, १९२९ को राष्ट्रसे परिचित हुए, जब वे भगत सिंहके साथ केंद्रीय विधान सभामें बम विस्फोटके पश्चात् बंदी बनाए गए ।

 

१. जन्म

बटुकेश्वर दत्तका जन्म १८ नवम्बर, १९१० को बंगाली कायस्थ परिवारमें ग्राम-औरी, जिला नानी बेदवानमें (बंगालमें) हुआ था; परंतु पिता ‘गोष्ठ बिहारी दत्त’ कानपुरमें नौकरी करते थे । बटुकेश्वरने १९२५ में मैट्रिककी परीक्षा पास की और तभी माता एवं पिता दोनोंका देहांत हो गया । इसी समय वे सरदार भगतसिंह और चंद्रशेखर आजादके संपर्कमें आए और क्रान्तिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन’के सदस्य बन गए । सुखदेव और राजगुरुके साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया । इसी क्रममें बम बनाना भी सीखा ।

 

२. क्रांतिकारी जीवन

८ अप्रैल, १९२९ को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभामें (वर्तमान का संसद भवन) भगत सिंहके साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्यकी अधिनायकताका विरोध किया । बम विस्फोट बिना किसीको हानी पहुंचाए केवल पर्चोंके माध्यमसे अपनी बातको प्रचारित करनेके लिए किया गया था । उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियोंको दबानेके लिए ब्रिटिश शासनकी ओरसे पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगोंके विरोधके कारण एक वोटसे पारित नहीं हो पाया ।

 

३. कारागृह जीवन

इस घटनाके पश्चात् बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंहको बंदी बनाया गया । १२ जून, १९२९ को इन दोनोंको आजीवन कारावासका दंड सुनाया गया । दंड सुनानेके उपरांत इनको लाहौर फोर्ट कारागृहमें भेजा गया । यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षडयंत्र अभियोग चलाया गया । उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशनका विरोध- प्रदर्शन करते हुए लाहौरमें लाला लाजपत रायको अंग्रेजोंके आदेशपर अंग्रेजी राजके सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई । अंग्रेजी राजके उत्तरदायी पुलिस अधिकारीको मारकर इस मृत्युका प्रतिशोध चुकानेका निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था ।

इस कार्यवाहीके परिणामस्वरूप लाहौर षडयंत्र अभियोग चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेवको फांसी दी गई थी । बटुकेश्वर दत्तको आजीवन कारावास काटनेके लिए काला पानी भेज दिया गया । कारागृहमें ही उन्होंने १९३३ और १९३७ में ऐतिहासिक भूख हडताल की । सेल्यूलर कारागृहसे १९३७ में बांकीपुर केंद्रीय कारागृह, पटनामें लाए गए और १९३८ में मुक्त कर दिए गए । काला पानीसे गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त पुनः बंदी बनाए गए और चार वर्षोंके पश्चात् १९४५ में मुक्त किए गए ।

 

४. बटुकेश्वर दत्त : जिन्हें स्वतंत्रताके उपरांत मिली केवल उपेक्षा

देशकी स्वतंत्रताके लिए अनंत दुःख झेलने वाले क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्तका जीवन भारतकी स्वतंत्रताके उपरांत भी दंश, यातनाओं, और संघर्षोंकी गाथा बना रहा और उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वह अधिकारी थे । उन्होंने बिस्कुट और डबलरोटीका एक छोटासा उद्योगालय (कारखाना) खोला; परंतु उसमें बहुत हानि उठानी पडी और वह बंद करना पडा । कुछ समय तक यात्री (टूरिस्ट) प्रतिनिधि एवं बस परिवहनका काम भी किया; परंतु एक के पश्चात् एक कामोंमें असफलता ही उनके हाथ लगी ।

दत्तके जीवनके इस अज्ञात अंगका सारांश नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित पुस्तक (बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंहके सहयोगी) में हुआ है । अनिल वर्मा द्वारा लिखी गयी यह संभवत: पहली ऐसी पुस्तक है, जो उनके जीवनका प्रामाणिक संलेख (दस्तावेज) होनेके साथ-साथ स्वतंत्रता संघर्ष और स्वतंत्रताके पश्चात जीवन संघर्षको उजागर करती है ।

 

५. बीमारीमें उपेक्षाके शिकार बटुकेश्वर दत्त

बटुकेश्वर दत्तके १९६४ में अचानक व्याधिग्रस्त होनेके पश्चात् उन्हें गंभीर स्थितिमें पटनाके शासकीय चिकित्सालयमें भर्ती कराया गया । इस पर उनके मित्र चमनलाल आजादने एक लेखमें लिखा, ‘क्या दत्त जैसे कांतिकारीको भारतमें जन्म लेना चाहिए, परमात्माने इतने महान शूरवीरको हमारे देशमें जन्म देकर भारी भूल की है । खेदकी बात है कि जिस व्यक्तिने देशको स्वतंत्र करानेके लिए प्राणोंकी चिंता नहीं की और जो फांसीसे बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थितिमें चिकित्सालयमें पडा एडियां रगड रहा है और उसे कोई पूछनेवाला तक नहीं है ।’

इसके पश्चात सत्ताके गलियारोंमें हडकंप मच गया और चमनलाल आजाद, केंद्रीय गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा और पंजाबके मंत्री भीमलाल सच्चरसे मिले । पंजाब शासनने एक सहस्र रुपएका धनादेश बिहार शासनको भेजकर वहांके मुख्यमंत्री के. बी. सहायको लिखा कि यदि वे उनका वैद्यकीय उपचार करानेमें सक्षम नहीं हैं तो वह उनका दिल्ली अथवा चंडीगढमें वैद्यकीय उपचारका व्यय वहन करने को तत्पर हैं ।

बिहार शासनकी उदासीनता और उपेक्षाके कारण क्रांतिकारी बैकुंठनाथ शुक्ला पटनाके शासकीय चिकित्सालयमें असमय ही प्राण छोड चुके थे । अत: बिहार शासन क्रियाशील हो गयी और पटना वैद्यकीय महाविद्यालयमें (मेडिकल कॉलेज) डॉ. मुखोपाध्यायने दत्तका उपचार चालू किया; परंतु उनकी स्थिति बिगडती गयी; क्योंकि उन्हें सही उपचार नहीं मिल पाया था और २२ नवंबर १९६४ को उन्हें दिल्ली लाया गया ।

दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारोंसे कहा था, मैने स्वप्नमें भी नहीं सोचा था कि, मैं उस दिल्लीमें जहां मैने बम डाला था, एक अपाहिज बनकर स्ट्रेचर पर लाया जाऊंगा । उन्हें सफदरजंग चिकित्सालयमें भर्ती  किया गया । पीठमें असहनीय पीडाके उपचारमें लिए किए जाने वाले कोबाल्ट ट्रीटमेंटकी व्यवस्था केवल एम्समें थी; परंतु वहां भी कमरा मिलनेमें विलंब हुआ । २३ नवंबरको पहली बार उन्हें कोबाल्ट ट्रीटमेंट दिया गया और ११ दिसंबरको उन्हें एम्समें भर्ती किया गया ।

तदनंतर पता चला कि, दत्त बाबूको कैंसर है और उनके जीवनके चंद दिन ही शेष बचे हैं । भीषण पीडा झेल रहे दत्त अपने मुखपर वह पीडा कभी भी न आने देते थे । पंजाबके मुख्यमंत्री रामकिशन जब दत्तसे मिलने पहुंचे और उन्होंने पूछ लिया, हम आपको कुछ देना चाहते हैं, जो भी आपकी इच्छा हो मांग लीजिए । छलछलाए नेत्र और मंदस्मितके साथ उन्होंने कहा, हमें कुछ नहीं चाहिए । बस मेरी यही अंतिम इच्छा है कि, मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंहकी समाधिके पासमें किया जाए ।

 

६. जीवनके अंतिम क्षण

लाहौर षडयंत्र अभियोगके किशोरीलाल अंतिम व्यक्ति थे, जिन्हें उन्होंने पहचाना था । उनकी बिगडती स्थिति देखकर भगत सिंह की मां विद्यावतीको पंजाबसे कारसे बुलाया गया । १७ जुलाईको वह कोमामें चले गये और २० जुलाई १९६५ की रात एक बजकर ५० मिनट पर दत्त बाबू इस संसारसे विदा हो गये । उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छाके अनुसार, भारत-पाक सीमाके पास हुसैनीवालामें भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेवकी समाधिके निकट किया गया ।

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