आईएस महिलाओं को कैसे लुभाता है ?

फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वितीया, कलियुग वर्ष ५११६

isis_mumbai‘बिकमिंग मुलान’ नामक इस रिपोर्ट के अनुसार ऐसी महिलाएं सबसे ज़्यादा इस बात से प्रभावित थीं कि मुसलमानों के लिए नए इलाक़े का निर्माण हो रहा है। हालांकि इनमें से कुछ ने लड़ाई में शामिल होने की भी इच्छा जाहिर की थी।

इनमें से कई महिलाओं का व्यक्तित्व विभाजित लगता है। ऐसी कुछ महिलाओं जिनके बारे में माना जाता है कि वो इस वक़्त सीरिया या इराक़ में हैं, के ट्विटर या फ़ेसबुक अकाउंट को देखेने पर यह बात साफ़ प्रतीत होती है।

ये महिलाएं एक पल तो डिज़नी की किसी फ़िल्म से संबंधित कोई बात कहती हैं या अपने पालतू कुत्ते के बच्चे के साथ अपनी तस्वीर लगाती हैं और दूसरे ही पल वो किसी सार्वजनिक जगह पर आईएस के लड़ाकों की किसी का सिर काटते या नृशंसता से पेश आने वाली तस्वीर लगाती हैं।

लेकिन ये महिलाएँ करना क्या चाहती हैं ?

‘बिकमिंग मुलान’ रिपोर्ट के सह-लेखक रॉस फ्रेनेट कहते हैं, “ये महिलाएँ उन्हीं चीज़ों से प्रेरित हैं जिनसे पुरुष प्रेरित हो रहे हैं।”

वो कहते हैं, “लड़ाई में शामिल हो रहे पुरुष ख़लीफ़ा के शासन की स्थापना, पश्चिम से नफ़रत, पहचान की तलाश जैसे वैचारिक कारणों से प्रेरित हैं। आईएस के क़ब्ज़े वाले इलाक़े में इन लोगों की भूमिका अफ़ग़ानिस्तान या बाल्कन से इसलिए अलग हैं क्योंकि यहाँ वो एक राष्ट्र का निर्माण करना चाह रहे हैं।”

इस ‘राष्ट्र निर्माण’ की प्रक्रिया में कुछ महिलाएँ अपनी भूमिका घर की देखरेख करने वाले के तौर पर देख रही हैं। कुछ महिलाओं ने अपने लिए जिहादी पति चुने हैं।

कुछ महिलाओं के सोशल मीडिया अकाउंट के अनुसार जिहादी लड़ाके से शादी करने पर उन्हें घर इत्यादि सुविधाएँ मिलती हैं।

केआईके और एएसके डॉट एफएम जैसी सवाल-जवाब वाली वेबसाइटों पर सीरिया में होने का दावा करने वाले कुछ लोग ‘ख़लीफ़ा के राज्य’ में शादी की संभावना से जुड़े सवालों का जवाब देते हैं।

इनमें से कई शादियाँ ज़्यादा समय नहीं तक चलतीं क्योंकि उनके पति लड़ाई में मारे जाते हैं। ऐसे में ये महिलाएं ट्विटर पर अपने पतियों के “शहीद” हो जाने की घोषणा करती हैं।

एक ब्रितानी लड़की जिसकी उम्र और समझ का उसके उस ब्लॉग पोस्ट से चल रहा था जिसमें उसने अपने पति की मौत की ख़बर मिलने पर लिखा था, “मुझे इस पर यकीन नहीं हुआ इसलिए मैं इस पर हँसी।।।मैं तो बस हँस रही थी।”

धर्मांतरण

आईएस से जुड़े रही महिलाएं एक मामले में पुरुषों से काफ़ी अलग हैं। ऐसी ज़्यादातर महिलाओं ने इस्लाम में धर्मांतरण किया है। ये सवाल परेशान करने वाला है कि कम उम्र की लड़कियाँ ऐसा माहौल क्यों स्वीकार करना चाहती हैं?

हमने ब्रिटेन के गृह मंत्रालय की एक ऐसी अधिकारी से बात की जो ऐसी युवा महिलाओं के बीच काम करती हैं जो इस तरह की चीज़ों के प्रति झुकाव रखती हैं। उनका काम प्रभावित न हो इसलिए उन्होंने अपनी पहचान जाहिर करने से मना किया।

वो कहती हैं, “ऐसी ज़्यादातर लड़कियों की उम्र 16 से 25 साल होती है। इस्लाम ग्रहण करने वाली ज़्यादातर लड़कियों को इस्लाम धर्म के बार में बिल्कुल भी पता नहीं होता। उन्होंने इंटरनेट पर इसके बारे में सर्च किया होता है जैसा आम लोग करते हैं। उन्होंने यूट्यूब पर ऐसे वीडियो देखे होते हैं जिनमें अतिश्योक्तिपूर्ण दावे किए गए होते हैं। धर्म के बारे में जानने कि लिए उनके पास यही एक रास्ता होता है।”

वो बताती हैं, “ऐसी लड़कियाँ न कभी मस्जिद गई होती हैं, न किसी लाइब्रेरी में। वो 100 प्रतिशत यूट्यूब, गूगल, सोशल मीडिया पर निर्भर होती हैं।”

कुछ अपवादों को छोड़ दें तो ज़्यादातर ऐसी महिलाएँ एक परेशानी भरे अतीत वाली होती हैं जो अपनापन तलाश करती हैं। वो ऑनलाइन भर्ती तक पहुँचती और उसके बाद चीज़ें बहुत तेज़ी से होती हैं।

ख़राब पालन-पोषण का असर

मंत्रालय की अधिकारी बताती हैं, “उनके पालन-पोषण ख़राब माहौल में हुआ होता है। उनके जीवन में कोई न कोई समस्या होती है। आम तौर पर वो अच्छी नीयत से जुड़ती है क्योंकि उनकी उम्र नाज़ुक होती है।”

वो कहती हैं, “सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ लोगों को पता होता है कि इंटरनेट पर कम उम्र के आसानी से प्रभावित होन जाने वाले लोग मौजूद होते हैं। ये एक तरह के जाल की तरह है। एक बार कोई इस रास्ते पर आ जाए फिर उसे इस्लाम के बारे में एक ख़ास तरह की जानकारी ही मिलती है। उन्हें बाक़ी हर किसी पर संदेह होता है और बस ऐसे लोगों पर ही भरोसा होता है।”

इंटरनेट पर ऐसी भर्ती करने वाले लोगों में एक हैं 45 वर्षीय ब्रितानी सैली जोंस। केंट निवासी कुख्यात पंक गिटारिस्ट जोंस इस्लाम में धर्मांतरित होने के बाद सीरिया स्थिति एक 20 वर्षीय ब्रितानी जिहादी से शादी करने के लिए ब्रिटेन छोड़कर सीरिया चली गईं। वो ट्विटर पर कई छद्म अकाउंट चलाती हैं जिन्हें बाद में रद्द कर दिया जाता है। वो अक्सर ही आईएस के इलाक़े में जिंदगी जीने की तारीफ़ करती हैं।

इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं के बारे में बिना कुछ जाने इस्लाम ग्रहण करने वाले सैली जोंस जैसे लोगों के लिए इस्लाम का मतलब बहुत अलग है।

इस्लाम की शिक्षा

गृह मंत्रालय की अधिकारी बताती हैं कि नफ़रत के संदेश का जवाब देना संभव है। वो कहती हैं, “ऐसी महिलाओं को इस बात पर यकीन दिलाया जाता है कि पश्चिमी देश इस्लाम और उससे जुड़ी हर चीज़ को मिटा देना चाहते हैं। ये महिलाएं ‘वो बनाम हम’ के विचार पर यकीन करने लगती हैं। उन्हें यकीन दिलाया जाता है कि यह उनका कर्तव्य है।”

वो कहती हैं, “मैं ऐसी महिलाओं को उनके निर्णय पर फिर से सोचने के लिए प्रेरित करती हूँ। मैं उन्हें विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों से परिचित कराती हूँ। और इस्लाम की बुनियादी शिक्षाएँ बताती हूँ जो कमोबेश सार्वभौमिक हैं, काफ़ी फ़ायदेमंद हैं। ख़ुद भला बनना, दुनिया और मानवता का भला करना। उन्हें ऐसे विचार कभी नहीं बताए जाते। लेकिन ये विचार बहुत आसानी से स्वीकार्य होते हैं इसलिए मैं बहुत आसानी से उनका ध्यान इन पर ला पाती हूँ।”

इराक़ और सीरिया में चल रहे संघर्ष में पिछले तीन सालों में दो लाख से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं।

गृह मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि स्कूलों और संबंधित संस्थाओं को आईएस द्वारा लुभाए जाने के प्रयासों के प्रति अति सतर्क रहने के लिए कहा गया है।

स्त्रोत : बी बी सी

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