हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?

सारणी


‘अपना पद, पक्ष, संघटना, जाती, संप्रदाय आदी भेद भूलकर हिन्दूसंघटन करना तथा उस द्वारा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना’, यह हिन्दू जनजागृती समिती का उद्देश है । तथापि ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?’ इस प्रश्न के पीछे हमारी भूमि का प्रस्तूत लेख द्वारा स्पष्ट की गई है ।

विश्व में ईसाइयों के १५७, मुसलमानों के ५२, बौद्धों के १२, जबकि यहूदियों का १ राष्ट्र है । हिन्दूओं का राष्ट्र इस सौरमंडल में कहां है ? हां, हिन्दूओं का एक सनातन राष्ट्र १९४७ तक इस पृथ्वी पर था । आज इस राष्ट्र की स्थिति क्या है ?

१. स्वतंत्रता के समय का एवं आज का भारत !

१९४७ में जहां १ पैसे का भी ऋण नहीं था, उस भारत में आज प्रत्येक नागरिक अपने सिर पर ३२,८१२ रुपयों के ऋण का भार ढो रहा है । १९४७ में ३३ प्रतिशत से अधिक निर्यात करनेवाला भारत आज १ प्रतिशत से भी अल्प निर्यात कर रहा है । जहां अधिक से अधिक १० से २० विदेशी प्रतिष्ठान थे, उस भारत में आज ५,००० से भी अधिक विदेशी प्रतिष्ठानों को सिर पर उठाया जा रहा है । जहां एक भी संवेदनशील जनपद (जिला) नहीं था, उस भारत में आज ३०० से भी अधिक जनपद संवेदनशील बन गए हैं । जहां प्रति नागरिक एक-दो गौएं होती थीं, उस भारत में अबाध गोहत्या के कारण आज १२ व्यक्तियों पर एक गाय है । विदेश में जाकर अत्याचारी कर्जन वाइली, ओडवायर जैसे शासकों को ईसावासी करनेवाला भारत आज संसद पर आक्रमण करनेवाले अफजल को फांसी देने में कर्इ साल लगा रहा है !

देशाभिमान जागृत रखनेवाले भारत से, देशाभिमान गिरवी रखनेवाला भारत, निम्नतम भ्रष्टाचार करनेवाले भारत से भ्रष्टाचार की उच्चतम सीमातक पहुंचा भारत, सीमापार झंडा फहरानेवाले भारत से आज नहीं तो कल, कश्मीर से हाथ धो बैठने की प्रतीक्षा करनेवाला भारत… यह सूची लिखते समय भी मन आक्रोशित हो रहा है; परंतु ‘गण की तो दूर, मन की भी लज्जा न रखनेवाले’ शासनकर्ता सर्वत्र गर्व से सीना तानकर घूम रहे हैं । मुसलमान आक्रमणकारियों एवं धूर्त ब्रिटिशों ने भी भारतीय जनता को जितना त्रस्त नहीं किया, उससे सैकडों गुना लोकतंत्र द्वारा उपहारस्वरूप मिले इन शासनकर्ताओं ने मात्र ६ दशकों में कर दिया है !

‘लोगों द्वारा, लोगों के लिए, लोगों का शासन’, लोकतंत्र की ऐसी व्याख्या, भारत जैसे विश्व के सब से बडे देश के लिए ‘स्वार्थांधों द्वारा स्वार्थ के लिए चयनित (निर्वाचित) स्वार्थी शासनकर्ताओं का शासन’, ऐसी हो चुकी है ।

इस लेखमालिका में भारत की अनेक समस्याएं वर्णित हैं । ये समस्याएं पढकर कुछ लोगों के मन में संदेह उत्पन्न होगा कि ‘हिन्दू राष्ट्र’में ये समस्याएं दूर कैसे होंगी ? क्या इतिहास में ऐसा कभी हुआ है ? ऐसा समझनेवाले लोग यह समझ लें कि – हां, इतिहास में ऐसा हुआ है ! छत्रपति शिवाजी महाराज का ‘हिन्दू राष्ट्र (हिन्दवी स्वराज्य)’ स्थापित होते ही ऐसी तत्कालीन समस्याएं दूर हुई हैं !

२. छत्रपति शिवाजी महाराज का ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होते ही सबकुछ कुशल-मंगल !

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म होने के पूर्व भी आज के समान ही हिन्दू स्त्रियों का शील सुरक्षित नहीं था, प्रत्यक्ष जीजामाता की जिठानी को ही पानी लाते समय यवन सरदार ने अगवा कर लिया था । उस समय भी मंदिर भ्रष्ट किए जाते थे एवं गोमाता की गर्दन पर कब कसाई का छुरा चल जाएगा, यह कोई बता नहीं सकता था । महाराज का ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होते ही मंदिर ढहाना बंद हुआ, इतना ही नहीं; अपितु मंदिर ढहाकर बनाई मस्जिदों का रूपांतरण पूर्ववत मंदिरों में हुआ । मौन रहकर क्रंदन करनेवाली गोमाताएं आनंदित होकर रंभाने लगीं । ‘गोहत्या बंद की जाए !’, ऐसी मांग के लिए कभी शासन के पास लाखों हस्ताक्षर नहीं भेजे गए अथवा महाराज ने भी कोई ‘गोहत्या प्रतिबंधक विधेयक’ मंत्रीमंडल में प्रस्तुत नहीं किया ।

आज हमें महंगाई दिखती है । क्या कभी पढा है कि ‘महाराज के शासनकाल में प्रजा महंगाई से त्रस्त थी’ ? ‘जय जवान, जय किसान’की घोषणा करनेवाले शासनकर्ता आज जवान एवं किसान, दोनों की नृशंस हत्या करवा रहे हैं । महाराज को तो केवल कृषकों के (किसानों के) प्राण ही नहीं, अपितु उनके द्वारा उपजाई फसल भी अमूल्य लगती थी । उन्होंने ऐसी आज्ञा ही दी थी कि ‘कृषकों द्वारा उपजाई फसल के डंठल को भी कोई हाथ न लगाए ।’ महाराज ने ‘किसानों’की ही भांति ‘जवानों को’भी संभाला था । वे लडाई में घायल हुए अनेक सैनिकों को पुरस्कार के साथ सोने के आभूषण देकर सम्मानित करते थे । कारगिल युद्ध में वीरगति प्राप्त करनेवाले सैनिकों की विधवाओं के लिए वर्ष २०१० में ‘आदर्श’ सोसाइटी बनाई गई; परंतु उसमें एक भी सैनिक की विधवा को सदनिका (फ्लैट) नहीं मिली । भ्रष्टासुरों ने ही वे सभी सदनिकाएं हडप लीं !

इसके विपरीत महाराज ने सिंहगढ के युद्ध में वीरगति प्राप्त करनेवाले तानाजी के पुत्र का विवाह कर उनके परिजनों को सांत्वना दी !

३. ‘हिन्दू राष्ट्र’में भारत को त्रस्त करनेवाली बाह्य समस्याएं भी दूर होंगी !

‘हिन्दू राष्ट्र’में आंतरिक समस्याएं दूर होंगी, उसी प्रकार बाह्य समस्याएं भी दूर होंगी । इन समस्याओं में मुख्य हैं पाकिस्तान एवं चीन द्वारा भारत पर संभावित आक्रमण । शिवकाल में भी ऐसी ही स्थिति थी । औरंगजेब ‘शिवा’का छोटासा राज्य नष्ट करने को तुला था; परंतु ‘महाराज का राज्याभिषेक और विधिवत ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित हुआ’, यह सुनते ही उसके पैरोंतले की भूमि खिसक गई ! तदनंतर आगे महाराज के स्वर्गारोहणतक वह मात्र महाराष्ट्र में ही नहीं; अपितु दक्षिण में भी नहीं आया ! एक बार ‘हिन्दू राष्ट्र’की स्थापना हुई कि हमारे सर्व पडोसी अपनेआप सीधे हो जाएंगे !

‘हिन्दू राष्ट्र’का विषय निकलते ही एक निरर्थक प्रश्न तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों द्वारा पूछा जाता है, ‘हिन्दूराष्ट्र’में मुसलमानों के साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा ? वास्तव में यह प्रश्न मुसलमानों को पूछना चाहिए । वे नहीं पूछते । वे तो यही कहते हैं, ‘हंस के लिया पाकिस्तान, लड के लेंगे हिन्दूस्तान !’

तथापि इस प्रश्नका भी उत्तर है । आगामी ‘हिन्दू राष्ट्र’में मुसलमानोंसे ही नहीं; अपितु सभी पंथियोंसे वैसा ही व्यवहार किया जाएगा जैसा शिवराज्यमें किया गया था !

संक्षेप में, सूर्योदय होने से पूर्व सर्वत्र अंधकार छाया रहता है, दुर्गंध आती है; परंतु सूर्य के उगते ही अंधकार अपनेआप नष्ट हो जाता है, सर्व दुर्गंध वातावरण में लुप्त हो जाती है । अंधकार अथवा दुर्गंध से कोई नहीं कहता, ‘दूर हटो, सूर्य उग रहा है !’ यह अपनेआप ही होता है । उसी प्रकार आज भारत में फैला विविध समस्यारूपी अंधकार एवं दुर्गंध ‘हिन्दू राष्ट्र’के स्थापित होते ही अपनेआप नष्ट हो जाएगी । धर्माचरणी शासनकर्ताओं के कारण भारत की सर्व समस्याएं दूर होंगी तथा सदाचार के कारण सर्व जनता भी सुखी होगी !

किन्हीं एक-दो समस्याओं के विरोध में लडने की अपेक्षा ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करना आवश्यक मात्र भारत के लोगों के लिए ही नहीं; अपितु अखिल मानवजाति के कल्याण हेतु स्थापित किया जानेवाला ‘हिन्दू राष्ट्र’ सहज ही स्थापित नहीं होगा । पांडव मात्र पांच गांव चाहते थे, वे भी उन्हें सहजता से नहीं मिल सके । हमें तो कश्मीर से कन्याकुमारीतक अखंड ‘हिन्दू राष्ट्र’ चाहिए । इसके लिए बडा संघर्ष करना होगा । भारत की किन्हीं एक-दो समस्याओं के (उदा. गोहत्या, धर्मांतरण, गंगा नदी का प्रदूषण, कश्मीर, राममंदिर, स्वभाषारक्षा आदि के) विरोध में पृथक-पृथक लडने की अपेक्षा सर्व समविचारी व्यक्ति एवं संस्थाएं मिलकर ‘हिन्दू राष्ट्र-स्थापना’का ही ध्येय रखकर कार्य करेंगे, तो यह संघर्ष थोडा सुलभ होगा ।

स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद, वीर सावरकर, प.पू. गोळवलकर गुरुजी जैसे हिन्दू धर्म के महान योद्धाओं को अपेक्षित धर्माधारित ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होने हेतु आवश्यक शारीरिक, मानसिक, बौदि्धक एवं आध्याति्मक सामथ्र्य हिन्दूनिष्ठों को मिले, यही श्री गुरुचरणों में प्रार्थना है !

जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम् ।

संदर्भ : ‘हिन्दू जनजागृति समिति’द्वारा समर्थित ग्रंथ ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?’

JOIN