हिन्दुओे, पवित्र भारत भूमि पुनः चैतन्यमय होने हेतु साधना करें एवं ब्रह्मांड को नष्ट होने से बचाएं !

माघ पूर्णिमा, कलियुग वर्ष ५११६

भारत विश्व का आध्यात्मिक गुरु रहने से उसने विश्व को साधना का महत्त्व बताकर साधना करने पर विवश किया, तो निश्चित ही एक दिन पूरे ब्रह्मांड का वातावरण चैतन्यमय होकर इस से पूरा ब्रह्मांड मानवजाति को विनाश से बचाएगा !

         प.पू. परशराम पांडे

१. भारत देश की विशेषता पूर्ण भौगोलिक स्थिति

भारत देश पूर्व गोलार्ध में है तथा कर्कवृत्त उस के मध्य भाग से होकर गया है। भारत विश्व के उत्तर गोलार्ध में एवं पूर्व रेखांश की ईशान्य दिशा में है। इसलिए उस की स्थिति विशेषता पूर्ण है। ईशान्य बाजू ईश्‍वर की मानी जाती है तथा भारत में विश्व के सभी प्रकार का वातावरण अनुभव करने को मिलता है।

२. भारत की पवित्र नदियां

 भारत में गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु एवं कावेरी समान अनेक पवित्र नदियां हैं।

३. भारतभूमि का आध्यात्मिक महत्त्व

अ. इसी भूमि पर अब तक श्रीविष्णु के ९ अवतार हुए तथा व्यास महामुनि समान महान ऋषियोंने जन्म लिये।

आ. इसी भूमि पर वेद एवं अन्य सभी शास्त्रोंके मूल प्रस्तुत किए गए हैं। देव, ऋषि, संत तथा महात्माओंने यहां निवास किया है। उसीप्रकार अब तक एवं आज भी संत तथा महात्मा भारी संख्या में हैं।

इ. संतोंके चार धाम की तीर्थयात्रा के समय उन के चरण स्पर्श से यह भूमि पवित्र हो गई है। इसलिए यह भूमि सात्त्विकता से ओतप्रोत है।

ई. प्रभु रामचंद्र ने वनवास में रहते हुए १४ वर्ष तक पैदल भारत भूमि से श्री लंका तक यात्रा की। उन की इस यात्रा में उन्होंने जहां कहीं भी निवास किया, वहां आज भी वे पवित्र तीर्थक्षेत्र के रूप में कार्य कर रहे हैं/प्रसिद्ध हैं।

उ. इसी भारत भूमि में शक्तिपीठ के केंद्र, विविध स्थानोंपर (उन उन क्षेत्रों में), आज भी शक्ति प्रदान कर रहे हैं।

ऊ. कुंभमेला, पवित्र तीर्थ, वेदपठन एवं यज्ञसंस्कृति विशेषता पूर्ण हैं।

ए. यह विश्‍व की सात्त्विक भूमि एवं विश्‍व का नाभि केंद्र है।

४. भारत देश के श्रीचक्र के आकार से बद्ध रहना

४ अ. श्रीचक्र शिव-पार्वती का मिलन स्वरूप दर्शक रहना : भारत देश श्रीचक्र रेखांकित है। इसलिए पुण्यभू है। श्रीचक्र में दो त्रिकोण होते हैं। इस में त्रिकोण का (शिरोभाग) अग्रभाग ऊपर होता है तथा दूसरे त्रिकोण का शिरोभाग निम्न दिशा में होता है। ये दोनों त्रिकोण आपस में संलग्न होते हैं। इस प्रकार के श्रीचक्र में ऊपर का त्रिकोण पुरुष शिवस्वरूप एवं नीचे का उलटा त्रिकोण प्रकृति पार्वतीदर्शक है। श्रीचक्र शिव-पार्वती का मिलनस्वरूप दर्शक है।

४ आ. भारत राष्ट्र (भरत खंड) एक श्रीचक्र है।  : साथ में संलग्न भारत के मानचित्र देखने पर ऐसा दिखाई देता है कि अरवली, हिमालय एवं सातपुडा पर्वत का मिलन, अर्थात पुरुषदर्शक शिव त्रिकोण। इस त्रिकोण में दाएं बाजू को हिमालय एवं बार्इं ओर से अरवली एवं त्रिकोण का आधार (बुनियाद) सातपुडा है। उसीप्रकार नीचे दक्षिण बाजू के त्रिकोण में पूर्व की ओर पूर्व घाट तथा पश्चिम की ओर पश्चिम घाट, अर्थात सह्याद्रि पर्वत तथा त्रिकोण का आधार (बुनियाद) विंध्य पर्वत मिलकर, यह प्रकृति अर्थात पार्वतीदर्शक त्रिकोण है, जिस का शिरोभाग नीचे दक्षिण की ओर है। ये दोनों त्रिकोण आपस में विलीन हो गए हैं। कैलास उत्तर दिशा में भगवान शिव का उच्चतम शिरोबिंदू एवं पायंता शिव की टेकडीवाला सातपुडा। शिवरात्रि के अवसर पर शिवभक्त सातपुडा टेकडी पर शिवदर्शन को जाते हुए दिखाई देते हैं। प्रकृति त्रिकोण के दक्षिण का कोण कन्याकुमारी है तथा उस का पायंता विंध्य पर्वत है। ये सभी केवल पर्वत नहीं, अपितु महान शक्तियां हैं।

४ इ. श्रीचक्र के अनुसार भारत भूमि के पर्वत एवं नदियों का स्थान : पर्वत की पांक्तियां एवं नदियों से सम्पूर्ण भारत ओतप्रोत है। इस श्रीचक्ररूपी पर्वत पाक्तियोंकी उत्तर दिशा सें ब्रह्मपुत्र, सिंधु, गंगा, यमुना, सरस्वती एवं उन की उपनदियां निकली हैं। मध्यभाग से नर्मदा, तापी एवं पूर्णा ये नदियां निकली हैं। दक्षिण दिशा के क्षेत्र की पर्वत पंक्तियोंसे महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी एवं उन की उपनदियां निकली हैं। इस पर स्थित पर्वत एवं नदियां पूरे भारत प्रदेश में व्याप्त हैं। उन के कृपाप्रसाद से पूर्व में भारत देश सुवर्णभूमि के रूप में पहचाना जाता था; इसीलिए ‘वंदे मातरम,’ इस राष्ट्रीय गीत में कवि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने सुजलाम् सुफलाम् कहा है। विश्व में ऐसा आध्यात्मिक भूप्रदेश कहीं पर भी दिखाई नहीं देता।

५. भारत में अनाचार एवं अधर्म बढने से तथा श्रीचक्र उत्पन्न करनेवाली नदियों एवं पर्वतों के अनिष्ट शक्ति से प्रभावित होने के कारण उन में स्थित चैतन्य का परिणाम दृष्टिगोचर न होना

भारत भूखंड आध्यात्मिक केंद्र रहने से उस के चैतन्य से पूरा विश्व आज भी अस्तित्व में है; परंतु आज भ्रष्टाचार, अनाचार एवं अधर्म मचा हुआ है। चारों वर्ण अधिकांशत: शूद्र समान आचरण कर रहे हैं। ऐसे कलियुग के निशान दिखाई दे रहे हैं। इसलिए रज-तम प्रवृत्ति का प्राबल्य बढकर श्रीचक्र उत्पन्न करनेवाली नदियां एवं पर्वत अनिष्ट शक्ति से प्रभावित हो गए हैं। अतः उन में स्थित चैतन्य का परिणाम दृष्टिगोचर नहीं होता। अनिष्ट शक्ति के परिणाम में ऐसी ही वृद्धि होती रही तो इस के फलस्वरूप भविष्य में विश्व में प्रलय हुए बिना नहीं रहेगा। साधना कर चैतन्य प्राप्त करने पर अनिष्ट शक्ति का आवरण निकल कर आज भी उस साधक को इस चैतन्य का लाभ होता है।

६. भारत को पूर्ववैभव प्राप्त होने हेतु यह कीजिए

भारत को पूर्ववैभव प्राप्त होने हेतु सभी भारतीयोंसे प्रार्थना है कि वे साधना को आरंभ करें। बढे रज-तम के कारण उत्पन्न अनिष्ट शक्ति इस से न्यून होगी एवं पवित्र भारत भूमि पुनः चैतन्य से प्रभावित होगी। भारत विश्व का आध्यात्मिक गुरु रहने से उसने विश्व को साधना का महत्त्व बताकर साधना करने पर विवश किया, तो निश्चित ही एक दिन पूरे ब्रह्मांड का वातावरण चैतन्यमय होकर इस से पूरा ब्रह्मांड मानवजाति को विनाश से बचाएगा।

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७. सनातन संस्था के संस्थापक प.पू. डॉ. जयंत बाळाजी आठवले का कार्य

इसलिए सनातन संस्था पिछले २० वर्षों से आज तक इस दृष्टि से अध्यात्मप्रसार का कार्य कर रही है। इसका परिणाम आज दिखाई दे रहा है। इस संस्था के संस्थापक प.पू. डॉ. जयंत बालाजी आठवले कहते हैं कि वर्ष २०२३ में ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होकर उसके द्वारा सर्वत्र सात्त्विकता का प्रसार होगा। इसलिए यदि सभी ने साधना करने का प्रयास किया, तो ‘हिन्दू राष्ट्र’ शीघ्र आएगा। इस स्थिति को शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त करने हेतु भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रार्थना करें।

– प.पू. परशराम पांडे,  सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (१.११.२०१४)

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