शृंगदर्शन : पिंडी के दर्शन करने की उचित पद्धति

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१. शृंगदर्शन (नंदी के सींगों से शिवलिंग के दर्शन करना)

‘शृंग’ अर्थात शिवजी की विविध लीलाएं । शिवजी की विविध लीलाओं में शिवगण सहभागी होते हैं । शिवगणों के अधिपति नंदी, इस शिवलीला का नेतृत्व करते हैं । शिवजी की इच्छाशक्ति नंदी के माध्यम से तेजोस्वरूप धारण कर ब्रह्मांड के लिए कार्य
करती है । नंदी के सींग शिवजी की विविध लीलाओं का आधिपत्य करने की क्षमता रखनेवाले घटक का प्रतिनिधित्व करते हैं ।

अधिक जानकारी हेतू पढें ‘शिवालय में शिवलिंग के दर्शन करने से पूर्व नंदी के दर्शन करने का महत्त्व

अ. शिवजी का शृंगार नंदी के मस्तक पर सुप्त पद्धति से छत के रूप में छिपा रहना (शिवमंडप)

नंदी के सींगों से प्रक्षेपित इच्छाशक्ति से संबंधित कार्यकारी तरंगें ऊध्र्व दिशा में गतिमान होती हैं । इससे वे देवालय में अपने स्थान पर एक शिवमंडप निर्मित करती हैं । इसी को शिवजी का अपनी चैतन्यस्वरूप तरंगों के माध्यम से किया गया माया से संबंधित ‘शृंगार’ कहा जाता है । शृंगार शब्द तेजोस्वरूप घटकों का, अर्थात साध्य (शिवजी की तरंगें) एवं साधन का (जीव की पिंडप्रकृति का) ऊर्जास्वरूप लेनदेन दर्शाता है । जब श्रद्धालु जीव की प्रार्थना के कारण शिवजी की ऊध्र्व दिशा में (ऊपर की दिशा में) गतिमान तरंगें जागृत होती हैं (साध्य), तब उसका प्रतिबिंब भावात्मक स्वरूप में जीव के, अर्थात साधना के माध्यम से सतर्क हुए पिंड में उभरता है, इसी को शृंगार कहते हैं । इस प्रकार शिवजी का शृंगार नंदी के मस्तक पर सुप्त पद्धति से छत के रूप में छिपा रहता है ।’
– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यमसे, ११.१.२००६, रात्रि १०.४३)

आ. शृंगदर्शन के लाभ

शिवजी की पिंडी से प्रक्षेपित तेज सह पाना : ‘शिवजी की पिंडी से प्रक्षेपित तेज सर्वसामान्य व्यक्ति सहसा नहीं सह पाता । नंदी के सींगों से प्रक्षेपित शिवतत्त्व की सगुण मारक तरंगों के कारण व्यक्ति के शरीर में विद्यमान रज-तम कणों का विघटन होता है तथा उसकी सात्त्विकता बढने में सहायता होती है । इस कारण व्यक्ति शिवजी की पिंडी से निकलनेवाली शक्तिशाली तरंगें सह पाता है । नंदी के सींगों के दर्शन किए बिना शिवजी के दर्शन करने पर तेज की तरंगों के आघात से शरीर में उष्णता निर्माण होना, सिर बधीर (सुन्न) होना, शरीर अचानक कांपना आदि कष्ट हो सकते हैं ।’ – कु. प्रियांका लोटलीकर, गोवा.

इ. शृंगदर्शन की उचित पद्धतियां

१. पद्धति १

नंदी के दाहिनी ओर बैठकर अथवा खडे रहकर बाएं हाथ को नंदी के वृषण पर रखें । दाहिने हाथ की तर्जनी (अंगूठे के निकट की उंगली) एवं अंगूठा नंदी के दो सींगों पर रखें । (गुरुचरित्र, अध्याय ४९, पंक्ति ४४ का अर्थ) दोनों सींग एवं उन पर रखी दो उंगलियों के मध्य के रिक्त स्थान से शिवलिंग को निहारें ।

  • अ. शृंगदर्शन का भावार्थ : नंदी के वृषण को हाथ लगाने का अर्थ है, काम वासना पर नियंत्रण रखना सीखना । सींग अहंकार, पौरुष एवं क्रोध का प्रतीक है । सींगों को हाथ लगाना अर्थात अहंकार, पौरुष एवं क्रोध पर नियंत्रण रखना सीखना ।
  • आ. पद्धति १ के अनुसार शृंगदर्शन करने के लाभ
    • १. ‘शिवपिंडी से प्रक्षेपित शक्ति का प्रवाह अधिक कार्यरत होना : दाहिने हाथ की तर्जनी एवं अंगूठे को नंदीदेव के सींगों पर टिकाने से निर्मित मुद्रा से श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक स्तर पर अधिक लाभ होता है । नली से वायु प्रक्षेपित करने पर उसका वेग एवं तीव्रता अधिक होती है, इसके विपरीत पंखे की वायु सर्वत्र पैâलती है । ऐसा प्रतीत होता है कि उपरोक्त मुद्रा के कारण नलीसमान कार्य होता है । इस मुद्रा के कारण शिवपिंडी से प्रक्षेपित शक्ति का प्रवाह अधिक मात्रा में कार्य करता है ।
    • २. इस प्रकार से की गई मुद्रा के कारण शक्ति के स्पंदन संपूर्ण शरीर में फैलते हैं ।’ – कु. प्रियांका लोटलीकर, गोवा.

२. पद्धति २

‘दाहिने हाथ की मध्य उंगली (मध्यमा) एवं अंगूठा, ये दोनों उंगलियां नंदी के दो सींगों पर रखें । दोनों सींग तथा उन पर रखी दो उंगलियों के बीच की रिक्ति से शिवलिंग को निहारें ।

  • अ. पद्धति २ के अनुसार शृंगदर्शन करने के लाभ
    • १. जिस समय जीव बीच की उंगली तथा अंगूठे की नोक नंदी के सींगों पर रखकर उसके बीच की रिक्ति से शिवलिंग को निहारता है, उस समय शिवलिंग से प्रक्षेपित; परंतु छत के भाग में कार्यमान तथा शिवजी की इच्छा से संबंधित सगुण तरंगें नंदी के सींगों के माध्यम से अंगूठा एवं बीच की उंगली से तेज एवं आकाश तत्त्वों की सहायता से प्रवाही बनकर जीव की देह में प्रवेश करती हैं । तेजोतरंगों के कारण जीव की सूर्यनाडी जागृत होती है, जबकि आकाशतत्त्व की सहायता से ये तरंगें देह की अंतःस्थ रिक्ति में भ्रमण कर पाती हैं । इससे जीव की अंतःस्थ रिक्ति में विद्यमान रज-तम नष्ट होकर देहशुद्धि होती है ।
    • २. इस प्रक्रिया के कारण शिवलिंग के निकट भ्रमण करनेवाली आकर्षणशक्ति की कक्षा में न जाते हुए भी जीव को नंदी के सींगों के माध्यम से शिवतरंगों के स्रोत का लाभ मिल सकता है; इसलिए नंदीदर्शन महत्त्वपूर्ण माना गया है । शिवलिंग की कक्षा में भ्रमण करनेवाली तरंगें अपनी इस आकर्षणशक्तिद्वारा तेज निर्मित करती हैं, इसलिए सर्वसामान्य जीव को शिवपिंडी के निकट कष्ट हो सकता है । अतः हिंदू धर्म ने नंदीदर्शन का माध्यम बनाकर सर्वसामान्य व्यक्ति को सहनेयोग्य शिवजी की इच्छाशक्ति से संबंधित कनिष्ठ स्तर की सगुण तरंगें ग्रहण करने की सुविधा उपलब्ध करवाई है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यमसे, पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी, कलियुग वर्ष ५१०७, ११.१.२००६, रात्रि १०.४३)

ई. (पद्धति १ अनुसार) शृंगदर्शन के सूक्ष्म-स्तरीय लाभ दर्शानेवाला चित्र

 

चित्र में अच्छे स्पंदन : ४ प्रतिशत’ – प.पू. डॉ. जयंत आठवले

अ. नंदी शिवजी का वाहन है, इसलिए नंदी के शृंगोंमें शिवजी की अप्रकट क्रियाशक्ति समाई रहती है ।

आ. शृंगदर्शन करते समय व्यक्ति की देह पर विद्यमान काली शक्ति का विघटन होता है । मन के अनुचित विचार नष्ट होते हैं, साथ ही उसकी बुद्धि भी शुद्ध होती है ।

इ. शिवजी की पिंडी से प्रक्षेपित स्पंदन सामान्य व्यक्ति को सहनेयोग्य नहीं होते हैं । शृंगदर्शन करने से वे सहजता से ग्रहण हो पाते हैं ।

ई. शृंगदर्शन करने से व्यक्ति का भाव जागृत होता है । वह शिवपिंडी के प्रत्यक्ष दर्शन करता है, उस समय उसकी आत्मशक्ति (कुछ क्षणों के लिए) जागृत होती है तथा उसका ध्यान भी लगता है ।’
– कु. प्रियांका लोटलीकर, अधिक वैशाख शुक्ल पक्ष १२, कलियुग वर्ष ५११२ (२५.४.२०१०)़

२. पिंडी के दर्शन करते समय पिंडी एवं नंदी को जोडनेवाली रेखा के एक ओर खडे रहना

शिवजी से प्रक्षेपित शक्तिशाली सात्त्विक तरंगें सर्वप्रथम नंदी की ओर आकर्षित होती हैं, तदुपरांत वातावरण में प्रक्षेपित होती हैं । विशेष यह है कि ये तरंगें नंदी के माध्यम से आवश्यकता अनुरूप सर्वत्र प्रक्षेपित होती हैं । इसलिए पिंडी के दर्शन करनेवाले
श्रद्धालु पर भगवान शिव से प्रक्षेपित शक्तिशाली तरंगें सीधे नहीं पडतीं; अर्थात उसे तरंगों से कष्ट नहीं होता । ध्यान में रखें, शिवजी से प्रक्षेपित तरंगें सात्त्विक ही होती हैं; परंतु सर्वसाधारण भक्त का आध्यात्मिक स्तर अधिक न होने के कारण उस में उन सात्त्विक तरंगों को सहने की क्षमता नहीं होती । इसलिए उसे इन तरंगों से कष्ट हो सकता है । अतः सर्वसाधारण भक्त पिंडी के दर्शन करते समय पिंडी एवं नंदी के मध्य में नहीं; अपितु वह पिंडी एवं नंदी को जोडनेवाली रेखा के समीप खडा रहे अथवा बैठे  । (उपरोक्त तत्त्व के अनुसार श्रीविष्णु आदि देवताओं के मंदिरों में देवता की मूर्ति तथा उसके सामने रखी कच्छप की प्रतिकृति के मध्य खडे रहकर अथवा बैठकर देवता के दर्शन न करें । दर्शन की अभिलाषा रखनेवाले कच्छप की प्रतिकृति के निकट खडे रहकर दर्शन करें ।)

अ. शिवपिंडी का दर्शन करते समय पिंडी एवं नंदी के मध्य में खडे रहकर दर्शन करने के सूक्ष्म-स्तरीय परिणाम दर्शानेवाला चित्र

 

चित्र में अच्छे स्पंदन : २ प्रतिशत’ – प.पू. डॉ. जयंत आठवले

१. शिव तथा श्रीविष्णु उच्च देवता होने से उनमें से (उनकी मूर्ति से) शक्ति का प्रक्षेपण अधिक होता रहता है ।

२. जब व्यक्ति शिवपिंडी एवं नंदी के मध्य में खडे रहकर दर्शन करता है, तब शिवपिंडी से प्रक्षेपित प्रकट शक्तितरंगों का सीधे व्यक्ति की देह पर आघात होता है । मारक प्रकट शक्तितरंगें सामान्य आध्यात्मिक स्तर का व्यक्ति सह नहीं पाता । इनसे उसकी देह में उष्णता निर्मित होती है तथा इसका देह पर विपरीत परिणाम होता है ।

३. शिवपिंडी के समक्ष स्थित नंदी शिवपिंडी से प्रक्षेपित प्रकट शक्ति का सौम्य शक्ति में रूपांतरण कर उन्हें व्यक्ति को प्राप्त करवाने का कार्य करता है । अतः नंदी के निकट खडे रहकर पिंडी के दर्शन करने से व्यक्ति को शिवतत्त्वस्वरूप शक्ति सहजता से ग्रहण कर पाना संभव होता है ।

४. शिवपिंडी से प्रक्षेपित प्रकट शक्तितरंगें एक ही लय में गतिमान रहती हैं । व्यक्ति में विद्यमान रज-तम गुणों के कारण उन तरंगों के लिए बाधा उत्पन्न होती है एवं वे आडी-तिरछी प्रवाहित होने लगती हैं ।’

–  कु. प्रियांका लोटलीकर, सनातन संस्था

संदर्भ : भगवान शिव (भाग २) शिवजी की उपासना का शास्त्रोक्त आधार

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