सरकारी प्रतिष्‍ठानों द्वारा बहुसंख्‍यक हिन्दुओं पर हलाल मांस खाना अनिवार्य !

अल्‍पसंख्‍यकों के कारण सरकारी प्रतिष्‍ठानों द्वारा बहुसंख्‍यक हिन्दुओं पर हलाल मांस खाना अनिवार्य !

संविधान द्वारा दी गई स्‍वतंत्रता के संदर्भ में निधर्मीवादी सदैव आक्रोश करते रहते हैं; परंतु धर्मनिरपेक्ष भारत सरकार के ही भारतीय पर्यटन विकास महामंडल (ITDC), एयर इंडिया, साथ ही रेलवे कैटरिंग, ये सभी संस्‍थाएं केवल हलाल मांस की आपूर्ति करनेवालों को ही ठेके देती हैं । भारतीय लोकतंत्र का सर्वोच्‍च स्‍थान संसद की भोजन व्‍यवस्‍था भी रेलवे कैटरिंग के ही पास है । वहां भी बहुसंख्‍यक हिन्दुओं को स्‍वयं के धार्मिक आधार पर मांस खाने की स्‍वतंत्रता नहीं है । हिन्दुओं को ऐसे सरकारी संस्‍थानों को इस संदर्भ में पूछना चाहिए, साथ ही जबतक वे धार्मिक आधार पर आहार उपलब्‍ध नहीं कराएंगे, तबतक उनके खाद्यपदार्थों का बहिष्‍कार किया जाना चाहिए ।

निधर्मी सरकार के प्रशासनिक तंत्रों द्वारा धार्मिक मान्‍यताओं के आधार पर हलाल प्रमाणपत्र अनिवार्य !

स्‍वयं को धर्मनिरपेक्ष कहलानेवाले भारत सरकार के वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाले कृषि एवं प्रक्रियायुक्‍त खाद्य उत्‍पादन निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) ने एक नियमावली बनाई है, जिसमें लाल मांस उत्‍पादक एवं निर्यातक को हलाल प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य किया गया है । केवल इतना ही नहीं, अपितु इस्‍लामी संस्‍था के निरीक्षक की देखरेख में हलाल पद्धति से ही पशु की हत्‍या करना अनिवार्य किया गया है । संविधान में विद्यमान ‘सेक्‍युलर’ शब्‍द का यह सीधा-सीधा अनादर ही है । भारत से निर्यात होनेवाले मांस में से ४६ प्रतिशत (६ लाख टन) मांस का निर्यात गैरइस्‍लामी विएतनाम देश में होता है । तो क्‍या ‘वास्‍तव में उसके लिए हलाल प्रमाणपत्र की आवश्‍यकता है ?’, यह प्रश्‍न उपस्‍थित होता है; परंतु सरकार की इस इस्‍लामवादी नीति के कारण वार्षिक २३ सहस्र ६४६ करोड रुपए के मांस का यह व्‍यापार हलाल अर्थव्‍यवस्‍था को बल दे रहा है । ‘जिसे हलाल मांस नहीं चाहिए, उसे वैसे मांस का चयन करने की स्‍वतंत्रता क्‍यों नहीं है ?’, यह प्रश्‍न ही अनुत्तरित है ।