भारत-नेपाल-चीन जैसे गैरइस्लामी देशों के उत्पादों का मुसलमान देशों में निर्यात करना हो, तो पहले उन्हें अपने देश में स्थित वैध इस्लामिक संगठन से हलाल प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है । अतः प्रत्येक निर्यातक को यह प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए खर्चा तो करना ही पडता है । भारत में हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली अनेक निजी संस्थाएं हैं । भारत में हलाल प्रमाणपत्र देनेवाले ‘जमियत उलेमा-ए-हिन्द’ एक प्रमुख संगठन है । हलाल अर्थव्यवस्था बहुत ही वेग से बढ रही है और वह संपूर्णरूप से निजी इस्लामी संस्थाओं द्वारा संचालित की जा रही है । ऐसे समय में इससे प्राप्त धन का उपयोग किस प्रकार किया जाता है, इसके प्रति संदेह उत्पन्न होता है । इस लेख में देखते है हलाल प्रमाणपत्र कौन देता है और प्रमाणपत्र देनेवाली निजी इस्लामी संस्था इससे प्राप्त धन का उपयोग किस प्रकार करते है।
इस्लामिक ‘उम्माह’ का साथ
विश्वस्तर पर इस्लामी देशों का संगठन (ऑर्गनाईजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज – OIC) ‘उम्माह’ अर्थात इस्लाम के अनुसार देश और सीमा रहित धार्मिक भाईचारे की संकल्पना पर चलता है । इसलिए भारत-नेपाल-चीन जैसे गैरइस्लामी देशों के उत्पादों का मुसलमान देशों में निर्यात करना हो, तो पहले उन्हें अपने देश में स्थित वैध इस्लामिक संगठन से हलाल प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है । अतः प्रत्येक निर्यातक को यह प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए खर्चा तो करना ही पडता है ।
हलाल प्रमाणपत्र का विज्ञापन !
अब इस हलाल प्रमाणपत्र का विज्ञापन किया जा रहा है । यह प्रमाणपत्र खरीदने पर उत्पादक को उसके कौन-कौन से लाभ मिलेंगे, उनकी सूची निम्नानुसार है –
अ. हलाल प्रमाणपत्र लेने पर २०० करोड की प्रचुर जनसंख्यावाले वैश्विक मुसलमान समुदाय में व्यापार के अवसर मिलेंगे ।
आ. मुसलमान देशों के बाजारों में व्यापार करना सुलभ होगा ।
इ. विश्व के किसी भी देश के मुसलमान बिना किसी संकोच आपके उत्पाद खरीदेंगे ।
ई. भारत में हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली संस्था १२० देशों में कार्यरत शरीयत बोर्ड और १४० इस्लामी संगठनों के साथ जुडे होने से व्यापार के अवसर बढेंगे ।
उ. हलाल प्रमाणपत्र के लिए आवश्यक अल्प व्यय की अपेक्षा अनेक गुना आर्थिक लाभ मिलेगा ।
ऊ. हलाल प्रमाणपत्र लेने से अन्य धर्मी ग्राहक किसी प्रकार नहीं घटेंगे ।
इस विज्ञापन में दिए कारणों से, साथ ही मुसलमान देशों में व्यवसाय करना हो, तो वहां के हलाल नियमों की अनिवार्यता के कारण व्यवसायियों को हलाल प्रमाणपत्र लेने की संख्या भी बडी है और इतना ही नहीं, अपितु हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली मुस्लिम संस्थाएं अनेक व्यवसायियों से स्वयं ही संपर्क कर हलाल प्रमाणपत्र से होनेवाले लाभ बताकर उन्हें इस जाल में फंसाने का प्रयास कर रही हैं ।
हलाल प्रमाणपत्र प्राप्त कर दिलाने हेतु सर्वसामान्य परीक्षणों को तांत्रिक रूप देना
आज किसी प्रतिष्ठान को गुणवत्ता का ISO (इंटरनैशनल ऑर्गनाईजेशन फॉर स्टैंडर्डाईजेशन) प्रमाणपत्र चाहिए, तो उसे अनेक बातों का अचूकता से पालन करना पडता है; परंतु किसी होटल के लिए हलाल प्रमाणपत्र प्राप्त करना हो, तो संबंधित इस्लामी संगठन द्वारा धर्म पर अधिक बल दिया जा रहा है । वहां मिलनेवाला ‘हलाल मांस अथवा वहां उपयोग किए जानेवाले पदार्थ हलाल प्रमाणित हैं अथवा नहीं ?, इसके परीक्षण पर ही बल दिया गया है । हलाल प्रमाणपत्र के लिए मुसलमान निरीक्षक द्वारा किए जानेवाले परीक्षण निम्नानुसार हैं –
अ. हॉटेल की स्वच्छता, उपयोग किए जानेवाले बरतन, मेन्यूकार्ड, फ्रीजर, रसोई में उपयोग किए जानेवाले पदार्थ, पदार्थों का संग्रह आदि का निरीक्षण कर उसका ब्यौरा बनाना
आ. सुअर का मांस अथवा उनसे बनाए गए पदार्थ वहां उपलब्ध नहीं होने चाहिए, साथ ही अल्कोहल का उपयोग अथवा विक्रय नहीं होना चाहिए ।
इ. उपयोग किया जानेवाला मांस वैध हलाल प्रमाणपत्रप्राप्त पशुवधगृह से लाए जाने की आश्वस्तता करना, साथ ही उस पैकेट पर अंकित हलाल चिन्ह की आश्वस्तता करना
ई. पदार्थ बनाने हेतु आवश्यक अन्य घटक, उदा. तेल, मसाले आदि के हलाल प्रमाणित होने की आश्वस्तता करना
उ. वर्षभर में नियोजित अथवा औचक निरीक्षण कर उक्त सभी सूत्रों की आश्वस्तता करना
इनमें से उक्त सूत्रों में ऐसा कोई भी विशेष कार्य अथवा कुशलता दिखाई नहीं देती । किसी भी होटल में सर्वसामान्यरूप से ये बातें हो सकती हैं; परंतु सामान्य बातों को एक विशिष्ट तांत्रिक लेपन कर उससे हलाल अर्थव्यवस्था खडी की जा रही है ।
भारत में हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली संस्थाएं
भारत में हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली अनेक निजी संस्थाएं हैं । उनमें प्रमुखता से निम्नांकित संस्थाएं अंतर्भूत हैं –
अ. हलाल इंडिया प्रा. लिमिटेड
आ. हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेस इंडिया प्रा. लिमिटेड
इ. जमियत उलेमा-ए-हिन्द हलाल ट्रस्ट
ई. जमियत उलेमा-ए-महाराष्ट्र
उ. हलाल काऊन्सिल ऑफ इंडिया
ऊ. ग्लोबल इस्लामिक शरिया सविर्र्सेस
क्या हलाल से प्राप्त धन का उपयोग आतंक के आरोपियों की सहायता के लिए ?
हलाल अर्थव्यवस्था बहुत ही वेग से बढ रही है और वह संपूर्णरूप से निजी इस्लामी संस्थाओं द्वारा संचालित की जा रही है । सरकार का उस पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है । ऐसे समय में इससे प्राप्त धन का उपयोग किस प्रकार किया जाता है, इसके प्रति संदेह उत्पन्न होता है । ऑस्ट्रेलिया के नैशनल्स दल के सांसद जॉर्ज क्रिस्टेन्सेन ने हलाल अर्थव्यवस्था से प्राप्त धन का उपयोग ऑस्ट्रेलिया में शरीयत विधि लागू करने, साथ ही कट्टरतावादी विचारधारावाले संगठनों को अपने कार्य बढाने हेतु किए जाने का संदेह व्यक्त किया था ।
भारत में हलाल प्रमाणपत्र देनेवाले ‘जमियत उलेमा-ए-हिन्द’ एक प्रमुख संगठन है । भारत में ब्रिटिश राजसत्ता का विरोध करने हेतु वर्ष १९१९ में इस संगठन की स्थापना की गई थी । यह संगठन कांग्रेस के साथ कार्यरत था और उसने विभाजन का भी विरोध किया था । विभाजन के समय इस संगठन के २ टुकडे होकर उसमें से ‘जमियत उलेमा-ए-इस्लाम’ संगठन ने पाकिस्तान का समर्थन किया था । आज यह संगठन एक शक्तिशाली मुस्लिम संगठन के रूप में जाना जाता है । हाल ही में इस संगठन के बंगाल प्रदेशाध्यक्ष सिद्दीकुल्ला चौधरी ने CAA विधि के विरोध में, ‘केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को हवाई अड्डे से बाहर ही नहीं आने देंगे’, यह धमकी भी दी थी । इसी संगठन के उत्तर प्रदेश के हिन्दू नेता कमलेश तिवारी के हत्या प्रकरण के आरोपियों का अभियोग लडने की घोषणा की थी । इस संगठन ने ७/११ का मुंबई रेल बमविस्फोट, वर्ष २००६ का मालेगांव बमविस्फोट, पुणे में जर्मन बेकरी बमविस्फोट, २६/११ का मुंबई आक्रमण, मुंबई के जवेरी बजार में बमविस्फोटों की शृंखला, देहली का जामा मस्जिद विस्फोट, कर्णावती (अहमदाबाद) बमविस्फोट आदि अनेक आतंकी घटनाओं के आरोपी मुसलमानों के लिए कानूनी सहायता उपलब्ध कराई है । जामिया ऐसे कुल ७०० संदिग्ध आरोपियों के अभियोग लड रहा है । एक प्रकार से हिन्दू ही इसके लिए उन्हें हलाल प्रमाणपत्रों के शुल्क द्वारा आवश्यक धन की आपूर्ति उपलब्ध करा रहे हैं ।