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अल्‍पसंख्‍यकों की तानाशाही !

नसीम निकोलस तालेब नामक एक सुप्रसिद्ध लेखक ने इसे अल्‍पसंख्‍यकों की तानाशाही कहा है । अपने ‘अल्‍पसंख्‍यकों की तानाशाही’ : सर्वाधिक असहिष्‍णु को ही विजय मिलती है’, इस लेख में तालेब स्‍पष्‍ट करते हैं कि हठीले लोगों का छोटा समूह निरंतर मांग कर वहां के बहुसंख्‍यकों को अपनी इच्‍छा के अनुसार आचरण करने पर बाध्‍य बनाता है । हिन्दुओं को मांस खाते समय वह हलाल है अथवा नहीं, इसमें विशेष रुचि नहीं होती; परंतु अल्‍पसंख्‍यक मुसलमान बिना किसी समझौते के ‘मुझे मेरी धार्मिक मान्‍यता के अनुसार ‘हलाल’ मांस ही चाहिए’, निरंतर यह मांग कर दबाव बनाता है । उसकी इस मांग का बहुसंख्‍यक हिन्‍दू विरोध नहीं करते; इसलिए धीरे-धीरे उन्‍हें भी हलाल मांस ही खाना पडता है । इसमें मुसलमान अल्‍पसंख्‍यक होते हुए भी हिन्दुओं को उनकी धार्मिक मान्‍यताओं को स्‍वीकार कर उसके अनुसार आचरण करना पडता है । यह इस्‍लामीकरण का ही एक प्रकार है । इजिप्‍त के बहुसंख्‍यक कॉप्‍टिक ईसाई इसी मानसिकता के कारण आज अल्‍पसंख्‍यक बन गए हैं ।

निर्धन हिन्‍दू कसाईयों के व्‍यवसाय की हानि !

हिन्‍दू धर्म की अलग-अलग जातियों को उनकी कुशलता के आधार पर जीविका चलाने के साधन उपलब्‍ध थे और उसके अनुसार हिन्‍दू कसाई समुदाय मांस का व्‍यापार कर अपनी जीविका चलाता था । आजकल सरकारी प्रतिष्‍ठानों सहित निजी व्‍यावसायियों द्वारा केवल इस्‍लामी पद्धतिवाले हलाल मांस की मांग किए जाने तथा हिन्‍दू कसाईयों के मांस को हलाल न मानने से इस समुदाय का व्‍यवसाय धीरे-धीरे मुसलमानों के नियंत्रण में जाने लगा । इस्‍लाम के अनुसार सुअर का मांस हराम होने से केवल उसे छोडकर अन्‍य सभी प्रकार के मांस का व्‍यापार अल्‍पसंख्‍यक मुसलमान समुदाय के हाथ में जा रहा है । हलाल मांस के संदर्भ में सरकार की अयोग्‍य नीतियों के कारण वार्षिक २३ सहस्र ६४६ करोड रुपए के मांस का निर्यात, साथ ही देश का लगभग ४० सहस्र करोड से भी अधिक रुपए के मांस का व्‍यापार अल्‍पसंख्‍यक मुसलमानों के हाथ में जा रहा है । उससे पहले ही निर्धन और पिछडा हिन्‍दू कसाई समुदाय आर्थिकरूप से ध्‍वस्‍त होने की कगार पर आ गया है ।

हलाल संकल्‍पना के आधार पर अल्‍पसंख्‍यकों द्वारा व्‍यापार हडप लेना !

हलाल संकल्‍पना का और एक महत्त्वपूर्ण सूत्र समझकर लेना पडेगा कि किसी उत्‍पाद को हलाल प्रमाणित करना और किसी होटल को हलाल प्रमाणपत्र देना ये दोनों अलग-अलग बातें हैं । उत्‍पाद को हलाल प्रमाणित करते समय वह केवल उस उत्‍पाद से संबंधित हता है, उदा. हलाल मांस का प्रमाणपत्र लेते समय वह मांस हलाल के नियमों के अनुसार होना चाहिए; परंतु किसी मांसाहारी उपाहारगृह को उस उपाहारगृह में अल्‍कोहल और स्‍पिरीट के मिश्रणवाले किसी भी घटक का उपयोग अथवा विक्रय करने की अनुमति नहीं होगी । वहां का मांस हलाल तो होना ही चाहिए; किंतु उसके साथ ही तेल, मसाले के पदार्थ, पदार्थ में उपयोग किए जानेवाले रंग, चावल, अनाज इत्‍यादि सभी घटकों का हलाल प्रमाणित होना चाहिए । इसके कारण हलाल प्रमाणपत्र के आधार पर इन पदार्थों का व्‍यवसाय भी हिन्‍दू उद्यमियों से हडपा जा रहा है ।

हलाल संकल्‍पना के कारण औषधियों पर मर्यादाएं !

हलाल संकल्‍पना के अनुसार अल्‍कोहल, स्‍पिरीट, साथ ही पशुओं के अवशेषों में से प्राप्‍त घटकों के उपयोग पर प्रतिबंध होने से उनका उपयोग कर बनाई जानेवाली औषधियों पर भी अपनेआप प्रतिबंध लगता है । कुछ औषधियों में सुअर के शरीर से प्राप्‍त होनेवाले तेल का भी उपयोग किया जाता है; परंतु इस्‍लाम के अनुसार सुअर के हराम होने से जिन औषधियों में उनका अंश होता है, उन पर भी प्रतिबंध लगाया जा रहा है । उसके कारण किसी रोग पर परिणामकारी औषधि न हो, तो उसे इस्‍लाम के अनुसार ‘हराम’ माना जाता है ।

पतंजलि आयुर्वेद एवं ईशान्‍य भारत के पदार्थों को हलाल प्रमाणपत्र देना अस्‍वीकार !

योगऋषि स्‍वामी रामदेव बाबा की पतंजलि आयुर्वेद संस्‍था को भी औषधियों के निर्यात के लिए हलाल प्रमाणपत्र लेना पडा; परंतु हलाल इंडिया संस्‍था ने हलाल प्रमाणपत्र देना अस्‍वीकार कर दिया । उसके लिए कारण दिया गया कि उनकी औषधियों में गोमूत्र के उपयोग से बनाई जानेवाली औषधियों को अलग कारखानों में बनाया जाए । वास्‍तव में संबंधित औषधियों में किन-किन घटकों का उपयोग किया गया है,औषधि के डिब्‍बे पर वह स्‍पष्‍टता से लिखने के पश्‍चात भी उन पर विश्‍वास नहीं किया गया ।

इसी प्रकार से ईशान्‍य भारत की जनजातियों के लोग वन में रहते हैं और वे सांप, सुअर आदि अनेक जीव खाते हैं; इसलिए ‘हलाल इंडिया’ ने उन्‍हें भी हलाल प्रमाणपत्र देना अस्‍वीकार किया है ।