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भारतको रसातलकी ओर ले जानेवाली लोकशाहीकी निरर्थकता !

ppdrराजनेताओंके अतिरिक्त जीवनके प्रत्येक क्षेत्रका उत्तरदायित्व उसी विषयके तज्ञोंकी ओर रहता है । अध्यापक, वैद्य, प्राध्यापक, अभियन्ता, सनदी लेखापाल आदि सर्व अपने अपने विषयकी शिक्षा प्राप्त किए हुए होते हैं, अन्यथा उनकी नियुक्ति नहीं होती; किन्तु राजनीतिमें किसी विषयकी कुछ भी जानकारी न होते हुए भी उन्हें उस विषयका मन्त्रीपद प्रदान किया जाता है, उदा.

१. आरोग्यविभागका मन्त्री डॉक्टर नहीं होता !

२. शिक्षा विभागका मन्त्री शिक्षातज्ञ नहीं होता !

३. निर्माणकार्य विभागका मन्त्री स्थापत्य विशारद नहीं होता !

४. व्यापार विभागका मन्त्री व्यापारी नहीं होता !

५. उद्योग विभागका मन्त्री उद्योगपति नहीं होता !

६. सुरक्षा विभागका मन्त्री लश्करका नहीं होता !

७. अर्थ विभागका मन्त्री अर्थतज्ञ नहीं होता !

८. कृषि विभागका मन्त्री कृषितज्ञ किसान नहीं होता !

९. जलसंसाधन विभागका मन्त्री जलतज्ञ नहीं होता !

१०. कानून एवं न्याय विभागका मन्त्री कानूनकी शिक्षा प्राप्त नहीं होता !

११. क्रीडा विभागका मन्त्री किसी भी खेलमें प्राविण्य प्राप्त नहीं होता !

किनको मत देना चाहिए, इस विषयसे भी अनभिज्ञ जनताके कारण ही इस प्रकारकी नियुक्ति होती है । जो जनता अपने परिवारका पालन भी ठीक प्रकारसे नहीं कर सकती, वही राष्ट्रका कार्य करनेके लिए उम्मीदवारको चुनकर देती है ! यदि ऐसी स्थितिमें रहनेवाला भारत रसातलको गया है, तो उसमें आश्चर्यकी क्या बात है ?

– प. पू. डॉ. जयंत आठवले (७.११.२०१४)

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