हिन्दू धर्म के बेहद पवित्र स्थल और चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी की धरती को भगवान विष्णु का स्थल माना जाता है। यह ओडिशा राज्य में स्थित है। भगवान जगन्नाथ मंदिर से जुडी एक बेहद रहस्यमय कहानी प्रचलित है कि आज भी मंदिर में मौजूद भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर स्वयं ब्रह्मा विराजमान हैं। भगवान जगन्नाथ को विष्णु का १०वां अवतार माना जाता है। पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है।
पुरी में भगवान जगन्नाथ अपने बडे भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मू्र्ति स्थापित है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा सबसे दाईं आेर स्थित है, बीच में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है और दाईं आेर बडे भाई बलभद्र हैं।
हर साल ओडिशा के पुरी जिले में भगवान ‘जगन्नाथ जी’ की रथयात्रा निकाली जाती है। यह परंपरा आज से नहीं बल्कि पिछले ५०० सालों से चली आ रही है। इस रथ यात्रा से कई तरह की मान्यताएं जुडी हैं। इसी के साथ इस यात्रा और खुद जगन्नाथ मंदिर को लेकर कई तरह चौंकाने वाली बातें जुडी हैं। मंदिर के पास हवा समंदर से जमीन की आेर चलती है, परंतु, पुरी में ऐसा बिल्कुल नहीं है। यहां हवा जमीन से समंदर की आेर चलती है और यह भी किसी रहस्य से कम नहीं है। आम दिनों में हवा समंदर से जमीन की आेर चलती है परंतु शाम के समय ऐसा नहीं होता है।
जगन्नाथ मंदिर ४ लाख वर्गफुट में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग २१४ फीट है। मंदिर की इतनी ऊंचाई के कारण ही पास खडे़ होकर भी आप गुंबद नहीं देख सकते। विज्ञान के अनुसार, किसी भी चीज पर सूरज की रोशनी पडने पर उसकी छाया जरूर बनती हैं, मगर इस मंदिर के शिखर की कोई छाया या परछाईं दिखाई ही नहीं देती है।
जगन्नाथ मंदिर के ऊपर कोई भी पक्षी आज तक उडता हुआ नहीं देखा गया है। यहां तक मंदिर के उपर विमान उडाना भी निषेध है।
जगन्नाथ मंदिर के रसोईघर को दुनिया का सबसे बडा रसोईघर माना जाता है। मान्यता है कि कितने भी श्रद्धालु मंदिर आ जाए, परंतु अन्न कभी भी समाप्त नहीं होता। मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी समाप्त हो जाता है।
मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए ७ बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकडी पर ही पकाया जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की आेर से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है।
इस मंदिर के शिखर पर लगा हुआ सुदर्शन चक्र मंदिर की शान है। इसकी सबसे बडी खासियत यह है कि आप उसे कहीं से भी देख लें यह आपको सीधा ही नजर आएगा। अष्टधातु से निर्मित यह चक्र बेहद पवित्र माना जाता है। करीब २०० साल पहले इसे मंदिर में स्थापित किया गया था, जो इसको स्थापित करने की तकनीक आज भी रहस्य है।
मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश करने के बाद मंदिर के अंदर समंदर की कोई भी आवाज सुनाई नहीं देती। इसके अलावा मंदिर के ऊपर लगा ध्वज भी हवा की विपरित दिशा में लहराता रहता है।
मंदिर में हमेशा २० फीट का ट्रायएंगुलर ध्वज लहराता है, इसे रोजाना बदला जाता है। एक पुजारी मंदिर के ४५ मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है। इसे बदलने का जिम्मा चोला परिवार पर है। वह परिवार ८०० साल से यह काम करता चला आ रहा है। ऐसी मान्यता है कि अगर ध्वज रोज नहीं बदला गया, तो मंदिर १८ सालों तक अपने आप बंद हो जाएगा।
मंदिर में तीनों की मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। बारहवें वर्ष में एक बार प्रतिमा नई जरूर बनाई जाती हैं, परंतु इनका आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं। पुरानी मूर्तियों को दफना दिया जाता है।
वर्तमान में जो मंदिर है वह 7वीं सदी में बनवाया था। ११७४ ईस्वी में ओडिशा शासक अनंग भीमदेव ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। मुख्य मंदिर के आसपास लगभग ३० छोटे-बडे अन्य मंदिर भी हैं।
स्त्रोत : न्युज १८