समर्थ रामदासस्वामी

समर्थ रामदासस्वामीकी क्षात्रवृत्तिका अनुकरण करें !

समर्थ रामदासस्वामी
समर्थ रामदासस्वामी

 

१. महाराष्ट्रमें अत्याचारी मुसलमान अधिकारियोंने होहल्ला मचाकर धर्माचरण करनेवाले हिंदुओंको कष्ट देना
२. मुसलमान थानेदारने प्रवचन करनेवाले श्रीसमर्थशिष्य उद्धवस्वामी तथा उनके सहयोगी लोगोंकी पिटाई कर अन्यायसे कालकोठरीमें बंदी बनाना
३. शिष्यपर हुए अन्यायका समाचार सुनते ही समर्थ रामदासस्वामीने सभीके सामने अत्याचारी थानेदारकी पिटाई करना
४. श्रीसमर्थसे पूरे प्रभावित थानेदारने समर्थके चरण पकडकर क्षमा मांगना
५. दयालु समर्थने थानेदारको क्षमा कर उसकी पीडापर औषधोपचार करना
६. सभीके साथ समान आचरण करना, इस विषयपर समर्थका प्रवचन


 

१. महाराष्ट्रमें अत्याचारी मुसलमान अधिकारियोंने होहल्ला मचाकर धर्माचरण करनेवाले हिंदुओंको कष्ट देना

श्रीसमर्थ रामदासस्वामीके शिष्य प्रचारकार्य हेतु सर्वत्र संचार करते थे । हाल ही में श्री शिवरायका उदय होने लगा था । महाराष्ट्रमें स्थानस्थानपर अत्याचारी मुसलमान अधिकारी होहल्ला मचा रहे थे । सातारा विभाग विजापुरके अदिलशाहके अधिकारमें था । वहांका एक मुसलमान थानेदार संगम माहुलीमें निवास करता था । यह थानेदार अत्याचारी था । वह हिंदुओंको अत्यंत कष्ट देता था । वह निरंतर निर्धन ब्राह्मण, गोसावी, बैरागी, संन्यासियोंको अत्यंत कष्ट देता था । उसने ब्राह्मणोंकी स्नान-संध्या, होमहवन, यज्ञयागपर पाबंदी डाली । पुराण तथा कीर्तन बंद किए ।

२. मुसलमान थानेदारने प्रवचन करनेवाले श्रीसमर्थशिष्य उद्धवस्वामी तथा उनके सहयोगी लोगोंकी पिटाई कर अन्यायसे कालकोठरीमें बंदी बनाना

उस समय श्री समर्थशिष्य उद्धवस्वामीका निवास माहुलीमें था । उन्होेंने उनके सहयोगी मंडलियोंके साथ स्नान, संध्या, पूजाअर्चा आरंभ की । कृष्णामाईके घाटपर प्रवचन आरंभ किया । थानेदारको इसकी सूचना प्राप्त होते ही उन्होंने उद्धवगोसावियोंको बंदी बनाया । उनकी पिटाई की तथा उन्हें उनके चार सहयोगियोंके साथ कालकोठरीमें बंदी बनाया । सर्व लोग भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे । समर्थका केवल एक शिष्य संधिका लाभ पाकर भाग गया ।

३. शिष्यपर हुए अन्यायका समाचार सुनते ही समर्थ रामदासस्वामीने सभीके सामने अत्याचारी थानेदारकी पिटाई करना

उस समय श्री समर्थ चाफळमें थे । दूसरे दिन दौडते हुए शिष्य चाफल आया । उसने पूरा समाचार समर्थको निवेदन किया । समर्थ क्रोधित हुए । क्रोधसे उनकी आंखें लाल हो गर्इं । उनकी आंखें आगका वर्षाव करने लगीं । उन्होंने कल्याणस्वामीसे बेंतकी एक छडी मांगी । वे आसनसे उठकर त्वरित निकल पडे । उस समय उन्हें रोकनेका साहस किसमें था ?

वे बिना खाए-पिए चलते गए । सूर्यास्त होनेमें एक घंटा शेष था, उस समय वे माहुली पहुंचे । सीधे थानेदारके निवासमें प्रवेश किया । थानेदार हुक्का पी रहा था । समर्थने एक छलांग लगाकर उसकी गर्दन पकडकर उसे खींचा तथा हाथकी छडीसे बुरीतरह उसकी पिटाई करना प्रारंभ किया । पिटाई करते करते समर्थ उसे पथपर लेकर आए । वातावरणमें थानेदारका विलाप गूंज उठा । थानेदारके सेवक मुंहमें उगली डालकर खडे थे । समर्थकी उग्र नरसिंह मूर्ति देखकर सभी भयभीत हो गए थे । उनकी पिटाईसे थानेदारको मुक्त करनेका साहस किसीमें भी नहीं था ।

४. श्रीसमर्थसे पूरे प्रभावित थानेदारने समर्थके चरण पकडकर क्षमा मांगना

थानेदारके शरीरसे रक्त बह रहा था । उन्होंने दीन होकर समर्थके चरण पकडे । उस समय समर्थने यह गर्जना की कि सर्वप्रथम कालकोठरीमें बंदी बनाए गए बंदियोंको बाहर निकालें ! थानेदारने अपने सेवकोंको आदेश दिए । कालकोठरी खोल दी गई । उद्धवस्वामी तथा सहयोगी मंडली बाहर आकर समर्थके चरणोंपर नतमस्तक हुई । थानेदारपर श्रीसमर्थका पूरा प्रभाव पडा था । उसने समर्थके चरण पकडकर क्षमा मांगी । साथ ही कुराणपर हाथ रखकर शपथ ली कि भविष्यमें किसीको भी कष्ट नहीं दूंगा । भजन-कीर्तन-पुराणपर प्रतिबंध नहीं लगाऊंगा तथा अन्यायसे किसीका भी धर्मपरिवर्तन नहीं करूंगा ।

५. दयालु समर्थने थानेदारको क्षमा कर उसकी पीडापर औषधोपचार करना

इतना होनेके पश्चात भी श्रीसमर्थ रामदासस्वामीने दयाळु अंतःकरणसे उस थानेदारको क्षमा तो की ही; अपितु उसके अतिरिक्त उसकी पीडापर स्वयं पेडपत्तियोंका औषध लगाकर मलहमपट्टी भी की । श्री समर्थने पूरे दिन कुछ नहीं खाया, इसका पता चलते ही गांवके लोगोंने समर्थ तथा उद्धवस्वामीके साथ अन्य सभी लोगोंके भी भोजनका प्रबंध किया ।

६. सभीके साथ समान आचरण करना, इस विषयपर समर्थका प्रवचन

उसी रात्रिमें श्रीसमर्थने माहुलीके घाटपर कहा, `सर्व प्राणी भगवंतके बालक हैं’ । सभीके साथ समताका आचरण करें, इस सूत्रपर पृथक दृष्टांत तथा उदाहरण देकर सुश्राव्य प्रवचन किया । माहुलीकी जनता तृप्त हुई । – श्री. श्रीपाद मोकाशी (संदर्भ : मासिक धार्मिक, मार्च १९८५)

(संत केवल देवताओंके तारकरूपकी ही नहीं, अपितु समय आनेपर आवश्यकतानुसार मारक रूपकी भी साधना किस प्रकार करते हैं, यह इसीका एक उदाहरण है । अन्याय एवं अत्याचार होते हुए देखकर दयालु संत भी उसका प्रतिकार करते हैं, केवल प्रेक्षककी भूमिका नहीं रखते, यह सीख लेकर हिंदुओंको भी जागृत होकर वैध मार्गसे अत्याचारका प्रतिकार करना चाहिए । ईश्वरके साथ एकरूप होनेके लिए भक्तको उसके तारक एवं मारक दोनों रूपोंकी उपासना करना आवश्यक है । समयानुसार तो अब क्षात्रधर्म साधनाका ही अधिक महत्त्व है । – संकलक, दैनिक सनातन प्रभात)

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