व्रत करते समय व्रताचार के संदर्भ में ध्यान रखने योग्य बातें

सारणी


 

१. व्रतको सोच-समझकर अंगीकार करना आवश्यक है

        कोई भी व्रत अत्यंत सावधानीसे अपनाया जाना चाहिए । व्रतके संदर्भमें मनमानी उचित नहीं । व्रतको अंगीकार करनेसे पूर्व घरके ज्येष्ठ व्यक्तियोंसे मार्गदर्शन लेकर उसकी संपूर्ण जानकारी प्राप्त करनेके उपरांत उसके लिए यथोचित प्रबंध करना चाहिए । व्रतके अंतर्गत बताए कर्म, अपने आर्थिक एवं शारीरिक सामर्थ्य तथा समयकी उपलब्धताके अनुसार कीजिए ।

२. व्रतका यथार्थ पालन आवश्यक है

        व्रतोंका पालन यथार्थ शास्त्रमें बताए अनुसार ही होना चाहिए । व्रतके नियम कठिन होते हैं; परंतु उनका पालन करना अनिवार्य होता है । मनमें ऐसे विचार लाना उचित नहीं कि उसके लिए कष्ट झेलना पडेगा । व्रतके संदर्भमें मुझे यह पता नहीं था, ऐसा कहना भी अनुचित होता है । यदि व्रतसे संबंधित नियमोंका पालन करना संभव न हो, तो व्रतको अंगीकार ही न करें ।

३. आरंभ किया व्रत पूर्ण करना आवश्यक है

        धर्मग्रंथोंका संकेत है कि व्रत आरंभ करनेपर उसे पूर्ण करना ही चाहिए । असावधानीसे व्रतको अधूरा छोडनेसे दुष्परिणाम होते हैं । व्रत टूट अथवा छूट जाए, तो उसका ‘प्रायश्चित’ लेना चाहिए । प्रायश्चितके साथही उसका ‘पश्चाताप’ होना भी आवश्यक है । चूकसे व्रतभंग होनेपर तीन दिन उपोषण करना चाहिए । पुरुषको क्षौर अर्थात सिर मुंडाकर पुनः व्रत रखना चाहिए । इन सब बातोंको ध्यानमें रखकर व्रतको अंगीकार करनेके उपरांत व्रतपरिभाषा अर्थात व्रतीद्वारा पालनयोग्य नियम समझ लेना उचित होगा ।

३.१ स्नानसंबंधी नियम

         व्रतको अंगीकार करनेके उपरांत प्रतिदिन स्नान करना आवश्यक है । परंतु स्नानसे पूर्व अथवा उपरांत शरीर एवं मस्तकपर तेल लगाना, शरीरपर उबटन लगाना इत्यादि कर्म नहीं करने चाहिए ।

३.२ वस्त्र एवं अलंकार धारण करनेसंबंधी नियम

        व्रताचरण करते समय चंदन, पुष्प, माला, वस्त्र तथा व्रतयोग्य अलंकार धारण करने चाहिए । व्रतपूजा अथवा होम इत्यादि करते समय पुरुषोंको केवल एक वस्त्र धारण न कर उपवस्त्र अर्थात उपरना भी धारण करना चाहिए । व्रतके लिए तीन काछ अथवा लांगकी धोती परिधान करना उत्तम है । काछ अर्थात (that portion of the dhoti which is tucked in at the back of the waist) ध्वज समान ग्रंथियुक्त अर्थात गांठ बंधी हुई धोती पहनकर तथा काछ की धोती एवं उपवस्त्र से अधिक वस्त्र धारण कर मंत्रोच्चारण, जप अथवा होम इत्यादि नहीं करना चाहिए । मंत्र अथवा जपद्वारा शरीरमें निर्मित उष्णतासे कष्ट न हो, इसलिए यह नियम है । स्त्रियोंको व्रतके समय छह अथवा नौ गजकी सूती अथवा रेशमी साडी पहननी चाहिए तथा अपना सिर पल्लुसे ढकना चाहिए ।

३.३ आचमनसंबंधी नियम

         यदि किसी कारणवश व्रती आचमन करना भूल जाए तो उसका व्रत व्यर्थ हो जाता है । स्नान एवं भोजन करते समय, बाहरसे घूमकर आनेपर यदि आचमन किया हो, तो भी व्रत आरंभ करनेसे पूर्व दूसरी बार आचमन करना चाहिए ।

३.४ देवतापूजनसंबंधी नियम

         जिस देवताके प्रीत्यर्थ व्रतको अंगीकार किया है, व्रतीको उस देवताकी नियमित पूजा करनी चाहिए । देवतासे संबंधित जप, ध्यान, कथाश्रवण, अर्चन, कीर्तन, धार्मिक ग्रंथपाठ इत्यादि करना चाहिए ।

३.५ आहारसंबंधी नियम

         व्रतीका आहार मर्यादित होना चाहिए; जल भी अनेक बार नहीं पीना चाहिए । व्रतकी कालावधिमें आहारमें हविष्यान्न अर्थात हवनके लिए उपयुक्त अन्न लेना चाहिए । चावल, मूंग, जौ,तिल, गेहूं, गायका दूध, केले, नारियल इत्यादि पदार्थ हविष्यान्न हैं । भिक्षान्न, होमके लिए बनाई खीर,शाक, दही, घी, मूली, आम, अनार, मोसंबी एवं संतरे इत्यादि पदार्थ भी व्रतकालमें ग्रहण करने योग्य होते हैं ।

        व्रतकालमें नमक, मद्य एवं मांसका सेवन नहीं करना चाहिए तथा पान-बीडा खाना भी व्रत-कालमें निषिद्ध है । व्रतनियमोंमें अन्य भी कुछ निषेध हैं ।

४. व्रतीके लिए वर्ज्य बातें

        जिसने व्रतको अंगीकार किया हो, उसे ये सब नहीं करना चाहिए ।

१. ऐसा आचरण जिससे मनोविकारमें वृद्धि हो

२. क्रोध, लोभ, मोह एवं आलस्य

३. धूम्रपान

४. दिनके समय सोना

५. अनावश्यक बोलना

६. रज-तम गुण बढानेवाला आचरण, जैसे चलचित्र देखना, चलचित्रके गाने सुनना

७. चोरी करना एवं वाहनसे यात्रा करना

 

५. व्रतकालमें व्रतीद्वारा अपेक्षित गुणोंका पोषण

१. व्रतकालमें ब्रह्मचर्यका पालन कीजिए ।

२. क्षमा, सत्य, दया, दान इत्यादि गुणोंका संवर्धन कीजिए ।

३. संपूर्ण व्रतकालमें अधिकाधिक नामजप कीजिए ।

४. सदासर्वकाल सत्संगमें रहिए ।

५. सबसे प्रेमपूर्वक व्यवहार कीजिए ।

६. गुरु, देव, ब्राह्मणकी पूजा एवं सत्कार करवाइए ।

७. ब्राह्मणभोजन करवाइए ।

८. सुहागन स्त्रियों एवं कन्याओंको भोजन करवाइए ।

९. गाय, द्रव्य, अलंकार इत्यादिका दान करवाइए ।

 

६. व्रतीके लिए व्रतकालमें एक अन्य महत्त्वपूर्ण आचरण है, अन्नदान

         व्रतपालनके अंतर्गत अन्नदानका बडा महत्त्व है । इस कालमें अंधे, दरिद्र एवं शारीरिक दृष्टिसे विकलांगको अन्नदान करना चाहिए । ‘कालिकापुराण’में ऐसा नियम बताया गया है कि व्रतके दिन अनाथ, अंधे तथा मूकबधिरको रुचिकर, स्वादिष्ट अन्न तथा पेय मुक्त हस्तसे बांटना चाहिए । भविष्यपुराण बताता है कि किसी व्रतका आचरण करनेवालेको अपने सामथ्र्यानुसार अंधे, संकटग्रस्त एवं असहाय लोगोंको अन्नदान करना चाहिए ।

(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ-त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)

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