हलाल-हराम के जाल में फंसा कनाडा, इस्लामी बैंकिंग पर कर रहा विचार

आरबीआय के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारत में लागू करने की कोशिश की थी

कनाडा ने ६ अप्रैल २०२४ को कहा है कि वह हलाल मॉर्टगेज जैसे वैकल्पिक वित्तपोषण उत्पादों के लिए नए उपायों का पता लगाने की योजना बना रहा है। वहाँ के बजट रिपोर्ट में कहा गया है, “कनाडा वैकल्पिक वित्तपोषण उत्पादों के एक जीवंत और बढ़ते बाजार का घर है, जिसमें हलाल मॉर्टगेज भी शामिल है। यह मुस्लिम कनाडाई और अन्य समुदायों को हाउसिंग मार्केट में भाग लेने में सक्षम बनाता है।”

इसमें लिखा है, “बजट २०२४ घोषणा में उपभोक्ता सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इन उत्पादों के टैक्स में बदलाव या वित्तीय सेवा प्रदाताओं के लिए एक नया नियामक शामिल हो सकता है। कनाडा सरकार ने वित्तीय सेवा प्रदाताओं और विविध समुदायों से परामर्श करना शुरू कर दिया है कि ‘घर का मालिक बनने के इच्छुक सभी कनाडाई लोगों’ की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघीय नीतियों में क्या सुधार किया जा सकता है।”

दरअसल, शरिया कानून ब्याज को सूदखोरी मानती है। मॉर्टगेज या गिरवी को शरिया के अनुरूप या ‘हलाल’ बनाने के लिए इस्लामी दुनिया में सक्रिय वित्तीय संस्थान अक्सर गिरवी और ऋण उत्पाद पेश करते हैं, जिनमें पारंपरिक ब्याज का भुगतान नहीं होता है। कनाडा में कुछ वित्तीय संस्थान ऐसे कुछ मॉर्टगेज पेशकश करते हैं, लेकिन कनाडा के पाँच सबसे बड़े बैंकों के पास ऐसी कोई पेशकश नहीं है।

कनाडा हलाल मॉर्टगेज विकल्पों की संभावना तलाश रहा है। इसके तहत कनाडा के पाँच सबसे बड़े बैंकों को मुस्लिमों के लिए हलाल मॉर्टगेज का एक अलग खंड रखने के लिए प्रेरित कर सकता है। अक्टूबर २०२२ में सीटीवी न्यूज़ की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि विशेषज्ञों का मानना ​​है कि मुस्लिम कनाडाई घर खरीदने से ‘छूट गए’, क्योंकि उनके पास हलाल गिरवी का विकल्प नहीं था।

कनाडा के एक इस्लामी वित्तीय संस्थान ‘मंज़िल’ के सीईओ मोहम्मद सवाफ ने सीटीवी को बताया, “वे (कनाडा के मुस्लिम) मूल रूप से खुद को इस पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली से बाहर रख रहे हैं, क्योंकि यह उनके धार्मिक या नैतिक सिद्धांतों के साथ मेल नहीं खाता है। इसलिए उनका वित्तपोषण तक पहुँच बहुत मुश्किल हो जाता है।”

सवाफ़ के अनुसार, हलाल मॉर्टगेज के तहत दो विकल्प हैं: ‘मुराबाहा’ और ‘मुशरका’। मुराबाहा के तहत, वित्तीय संस्थान एक मध्यस्थ है और विक्रेता से सीधे संपत्ति खरीदता है। फिर कंपनी इसे एम्बेडेड लाभ दर के साथ ग्राहक को तुरंत बेच देती है। मुशरका के तहत विक्रेता और खरीदार एक समझौते में जाते हैं, जहाँ विक्रेता का नाम घर के मालिक के तौर पर रहता है।

जैसे ही खरीदार मॉर्टगेज का भुगतान करता है, संपत्ति में विक्रेता की इक्विटी कम हो जाती है। वहीं, मुराबाहा को भुगतान चक्र पूरा करने में लगभग १०-१५ साल लगते हैं, जबकि मुशरका के मामले में भुगतान चक्र पूरा करने में लगभग २५-३० साल लगते हैं। संपत्ति की लागत से ऊपर की राशि का उल्लेख वित्तीय संस्थान द्वारा लिए गए ब्याज के रूप में नहीं, बल्कि ‘अतिरिक्त शुल्क’ के रूप में किया गया है।

रघुराम राजन ने भारत में इस्लामी बैंकिंग शुरू करने की कोशिश की थी

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कॉन्ग्रेस के शासन काल के दौरान साल २००८ में भारत में इस्लामी बैंकिंग प्रणाली का प्रस्ताव रखा था। अगस्त २००७ में योजना आयोग ने रघुराम राजन की अध्यक्षता में वित्तीय क्षेत्र सुधारों पर एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। उस समय वे शिकागो विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे।

इस समिति ने साल २००८ में ‘ए हंड्रेड स्मॉल स्टेप्स’ शीर्षक से अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस रिपोर्ट की पृष्ठ संख्या ७२ पर ‘वित्तीय समावेशन के लिए बुनियादी ढाँचे में सुधार’ शीर्षक का एक खंड है, जहाँ ब्याज मुक्त बैंकिंग के विचार पर चर्चा की गई है। उस अनुभाग में एक पैराग्राफ में लिखा है, “एक और क्षेत्र, जो व्यापक रूप से समावेशन के लिए वित्तीय बुनियादी ढाँचे के दायरे में आता है, वह है ब्याज मुक्त बैंकिंग का प्रावधान।”

इसमें आगे कहा गया है, “कुछ धर्म ब्याज देने वाले वित्तीय साधनों के उपयोग पर रोक लगाते हैं। ब्याज मुक्त बैंकिंग उत्पादों की अनुपलब्धता के परिणामस्वरूप कुछ भारतीय, जिनमें समाज के आर्थिक रूप से वंचित तबके के लोग भी शामिल हैं, सक्षम नहीं हो पाते हैं। यह अनुपलब्धता भारत को क्षेत्र के अन्य देशों से बचत के पर्याप्त स्रोतों तक पहुँच से भी वंचित कर देती है।”

हालाँकि, रिपोर्ट में इस्लामी बैंकिंग या शरिया काूनन बैंकिंग जैसे शब्दों का उल्लेख नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से इस्लामी बैंकिंग की ओर इशारा करता है। रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में कुछ एनबीएफसी द्वारा ब्याज मुक्त बैंकिंग प्रदान की जाती है, लेकिन इसे बैंकिंग प्रणाली सहित बड़े पैमाने पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। हालाँकि, आरबीआई ने भारत में शरिया बैंकिंग की अनुमति नहीं दी है।

हालाँकि, कंपनियों के शरिया-अनुपालक सूचकांक देश में उपलब्ध हैं। जून २०२२ में ऑपइंडिया ने बताया कि कुछ X (तब ट्विटर) यूजर ने शरिया-अनुपालक म्यूचुअल फंड की पेशकश के लिए टाटा समूह की आलोचना की। हालाँकि, अधिकांश निवेशक और आमतौर पर लोग इस बात से अनजान हैं कि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की कंपनियों के लिए ‘शरिया सूचकांक’ है।

क्या है शरिया इंडेक्स?

सरल शब्दों में कहें तो शरिया सूचकांक को उन कंपनियों के सूचकांक के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो शरिया कानून का अनुपालन करती हैं। सूचकांकों में सूचीबद्ध होने से पहले इन कंपनियों की एक अधिकृत बोर्ड द्वारा जाँच की जाती है। मूल रूप से इन सूचकांकों में केवल वे कंपनियाँ शामिल हैं, जो हलाल उत्पादों और सेवाओं से संबंधित हैं और हराम वस्तुओं का कारोबार नहीं करती हैं।

उदाहरण के लिए, अल्कोहल वाली पेय कंपनियों को शरिया सूचकांक में शामिल नहीं किया जा सकता, क्योंकि इस्लाम में शराब हराम है। ऐसे सूचकांक दुनिया भर में मौजूद हैं और भारत में इस तरह के चार मुख्य सूचकांक हैं। ये हैं- एसएंडपी बीएसई ५०० शरिया इंडेक्स, बीएसई टैसिस शरिया ५० इंडेक्स, निफ्टी ५०० शरिया इंडेक्स और निफ्टी ५० शरिया इंडेक्स हैं।

शरिया सूचकांकों में शामिल करने के लिए कंपनियों की स्क्रीनिंग करने वाले बोर्ड को इस्लामी कानून या शरिया को नियंत्रित करने वाले कुरान के सिद्धांतों से अच्छी तरह वाकिफ होना आवश्यक है। शरिया-अनुपालक सूचकांक २००० के दशक के अंत से भारत में काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, एनएसई के शरिया सूचकांक २००८ में लॉन्च किए गए थे।

स्त्रोत : ऑप इंडिया

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