अहिल्यानगर (महाराष्ट्र) के श्री विशाल गणपति मंदिर के साथ १६ मंदिरों में वस्त्रसंहिता लागू होगी – महाराष्ट्र मंदिर महासंघ

अहिल्यानगर (पूर्व का नगर जिला) में पत्रकार परिषद !

बाईं ओर से श्री. रामेश्‍वर भुकन, श्री. बापू ठाणगे, ह.भ.प. प्रभाताई भोंग, श्री. पंडित खरपुडे, अधिवक्ता अभिषेक भगत, विषय प्रस्तुत करते हुए श्री. सुनील घनवट, श्री. अभय आगरकर, श्री. संतोष बैरागी, अधिवक्ता पंकज खराडे, श्री. कन्हैया व्यास तथा श्री. मिलिंद चवंडके

अहिल्यानगर – मंदिरों की पवित्रता, मांगल्य, शिष्टाचार तथा संस्कृति को बचाने हेतु नागपुर तथा अमरावती के पश्चात अब यहां के १६ मंदिरों में वस्त्रसंहिता लागू करने का निर्णय लिया गया है ।

जलगांव में ४ तथा ५ फरवरी २०२३ को मंदिर एवं धर्म-परंपराओं की रक्षा हेतु राज्यस्तरीय ‘महाराष्ट्र मंदिर-न्यास परिषद’ में उपर्युक्त प्रस्ताव सम्मत किया गया था तथा अहिल्यानगर में ७ मई २०२३ को हुए प्रांतीय ‘हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ में इस विषय पर चर्चा कर प्रस्ताव सम्मत हुआ था । तत्पश्चात हिन्दुत्वनिष्ठों की बैठक में भी इस विषय पर निर्णय लिया गया । तत्पश्चात महाराष्ट्र मंदिर महासंघ के समन्वयक श्री. सुनील घनवट की उपस्थिति में आयोजित बैठक के उपरांत अहिल्यानगर के ग्रामदेवता श्री विशाल गणपति मंदिर में ३ जून को पत्रकार परिषद आयोजित की गई । उसमें श्री अंबिकादेवी मंदिर (बुर्‍हाणनगर), श्री शनि-मारुति मंदिर (माळीवाडा), श्री शनि-मारुति मंदिर (दिल्ली गेट), श्री शनि-मारुति मंदिर (जेंडीगेट), श्री तुलजाभवानी मंदिर (सबजेल चौक), श्री गणेश राधाकृष्ण मंदिर (मार्केट यार्ड), श्रीराम मंदिर (पवननगर सावेडी), श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर (वाणीनगर) मंदिरों के साथ अहिल्यानगर जिले के मंदिरों में आगामी २ माह की कालावधि में वस्त्रसंहिता लागू करने की घोषणा की गई । पत्रकार परिषद का सूत्र संचालन हिन्दू जनजागृति समिति के जिला समन्वयक श्री. रामेश्‍वर भुकन ने किया ।

इस अवसर पर ‘महाराष्ट्र मंदिर महासंघ’ के समन्वयक श्री. सुनील घनवट ने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा, ‘जिस प्रकार महाराष्ट्र शासन ने वर्ष २०२० में राज्य के सभी शासकीय कार्यालय में वस्त्रसंहिता लागू की तथा देश के अनेक मंदिर, गुरुद्वारा, चर्च, मस्जिदें तथा अन्य प्रार्थनास्थल, निजी प्रतिष्ठान, पाठशाला-विश्वविद्यालय, न्यायालय, पुलिस आदि सभी स्थानों पर वस्त्रसंहिता लागू है, उसी प्रकार मंदिरों में भी वस्त्रसंहिता होनी चाहिए’।

श्री. सुनील घनवट ने आगे कहा…

१. १२ ज्योतिर्लिंगों में एक उज्जैन के श्री महाकालेश्‍वर मंदिर, महाराष्ट्र के श्री घृष्णेश्‍वर मंदिर, अंमलनेर का श्री देव मंगळग्रह मंदिर, वाराणसी का श्री काशी-विश्‍वेश्‍वर मंदिर, आंध्र प्रदेश का श्री तिरुपति बालाजी मंदिर, केरल का विख्यात श्री पद्मानाभस्वामी मंदिर, कन्याकुमारी का श्री माता मंदिर ऐसे कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में अनेक वर्षों से सात्त्विक वस्त्रसंहिता लागू है ।

२. गोवा के अधिकांश मंदिरों के साथ ‘बेसिलिका ऑफ बॉर्न जीजस’ तथा ‘सी कैथेड्रल’ बडे चर्च में भी वस्त्रसंहिता लागू है । महाराष्ट्र शासन ने ‘शासकीय अधिकारी तथा कर्मचारियों को ‘जीन्स-पैंट’, तथा ‘टी-शर्ट’, भडकीले रंग अथवा कढाई वाले वस्त्र तथा ‘स्लीपर’ (वन पीस गाऊन) पहनने पर प्रतिबंध लगाया है ।

३. मद्रास उच्च न्यायालय ने भी ‘‍वहां के मंदिर में प्रवेश करने हेतु सात्त्विक वेशभूषा होनी चाहिए’, इसे स्वीकार कर १ जनवरी २०१६ से राज्य में वस्त्रसंहिता लागू की । मंदिरों में भगवान के दर्शन हेतु अधूरे वस्त्रों अथवा परंपराहीन वेशभूषा में जाना, ऐसी ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ संभव नहीं है ।

४. प्रत्येक ‍व्यक्ति को ‘अपने घर में तथा सार्वजनिक स्थान पर कौन से वस्त्र पहनने चाहिए ?’, इसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है; परंतु मंदिर धार्मिकस्थल हैं । वहां धार्मिकता के अनुकूल ही आचरण होना चाहिए । वहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं, अपितु धर्माचरण को महत्त्व है ।

५. आज मंदिरों में वस्त्रसंहिता लागू होते ही कुछ पुरोमागी, आधुनिकतावादी तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता वाले त्वरित इसका विरोध करते हैं; परंतु पांव तक लंबा श्वेत गाऊन धारण करनेवाले ईसाई पादरी, अधूरा पायजामा विजार धारण करनेवाले मुल्ला-मौलवी अथवा काला बुरखा धारण करनेवाली मुसलमान महिलाओं के वस्त्रों के संदर्म में वे आप‌‌‌त्ति नहीं जताते ।

मंदिर के बाहर लगाया गया वस्त्रसंहिता का फलक

पत्रकार परिषद में प्रतिष्ठित व्यक्तियों की प्रतिक्रियाएं

१. माळीवाडा पंच मंडल देवस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष अभय आगरकर ने कहा, ‘मंदिर महासंघ द्वारा किया गया आवाहन अच्छा है तथा इसका आरंभ हमने विशाल गणपति से ही किया है । सभी को वस्त्रसंहिता का पालन कर सहयोग देना चाहिए ।

२. माळीवाडा पंच मंडळ देवस्थान ट्रस्ट के उपाध्यक्ष पंडित खरपुडे ने कहा, ‘पाश्‍चात्त्यों की तुलना में भारतीय वस्त्र अधिक सात्त्विक तथा सभ्यतापूर्ण हैं । ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर हम कुछ भी करें’, यहां ऐसा नहीं चलेगा । धर्माचरण करने का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को है ।’

३. ह.भ.प. प्रभाताई भोंग ने कहा, ‘मंदिर संस्कृति रक्षा हेतु वस्त्रसंहिता अत्यावश्यक है । मंदिरों की संस्कृति, पवित्रता तथा मांगल्य टिका रहने हेतु यह निर्णय लिया गया है । मंदिर में प्रवेश करते समय अंगप्रदर्शन करनेवाले, अशोभनीय तथा अधूरे वस्त्र पहन कर न आएं’, हमारी ऐसी भूमिका है, जिसके लिए हम वस्त्रसंहिता लागू कर रहे हैं । इसलिए श्रीकृष्ण-राधा मंदिर तथा सारसनगर आदि स्थान पर भी वैसा फलक लगाएंगे ।’

४. बुर्‍हाणनगर के श्री तुलजाभवानी मंदिर के प्रमुख अधिवक्ता अभिषेक भगत ने कहा, ‘मंदिर में वस्त्रसंहिता लागू करना अर्थात किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आंच लाना’, ऐसा नहीं, अपितु मंदिर की पवित्रता टिकाए रखने हेतु ‍यह आवश्यक है । भारतीय वस्त्र पहनने से अपनी संस्कृति का प्रचार-प्रसार होने के साथ उसके विषय में युवा पीढी में स्वाभिमान भी जागृत होगा । पाश्‍चात्त्यों की तुलना में पारंपरिक वस्त्रनिर्मिति करनेवाले उद्योग को प्रेरणा मिलेगी । ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ होगी । यदि मंदिर की सात्त्विकता अधिक मात्रा में ग्रहण करनी है, तो अपना आचरण एवं वेशभूषा सात्त्विक होनी चाहिए, महाराष्ट्र मंदिर महासंघ की ऐसी भूमिका है ।’

५. मंदिर रक्षा समिति के श्री. बापू ठाणगे ने कहा, ‘मंदिर रक्षा समिति के माध्यम से वस्त्रसंहिता अभियान चलाया जा रहा है । इसको सर्वत्र सकारात्मक प्रतिसाद मिल रहा है तथा सभी मंदिरों के न्यासी अपने-अपने स्तर पर वस्त्रसंहिता का पालन करने तथा मंदिर के सामने सूचना फलक लगाने को तैयार हैं ।’

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