उत्कृष्ट वक्तृत्व के कौशल्यवाले महान मदनमोहन मालवीय !

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१८८६ में कोलकाता में संपन्न हुए कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन में २५ वर्ष के मदन मोहन मालवीय ने वक्तव्य दिया था । उनके उस वक्तव्य से अध्यक्ष दादाभाई नवरोजी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ये उद्गार निकाले, कि ‘उस समय मालवीयजी के मुख से साक्षात भारतमाता ही वक्तव्य दे रही थीं ।’ मदनमोहन के पिताश्री पंडित ब्रजनाथ रसाळ कीर्तनकार थे । स्वयं मालवीयजी को संगीत में उत्तम गति थी ।

१. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना करनी है, यह बात निश्चित होने के पश्चात, अपरिमित संपत्ति देनेवाली वकालत छोडनेवाले त्यागी वृत्ति के महान मदनमोहन मालवीय !

पुलिस चौकी जलाई तथा २१ पुलिसकर्मियों को जलाया । अतः गांधीजी ने चौरीचौरा में जो आंदोलन वापस लिया था, उस अभियोग में १७० लोगों को फांसी हुई । कांग्रेस नेता मदनमोहन मालवीयजी ने आंदोलनकारियों का पक्ष इतने समर्थ रूप से प्रस्तुत किया, कि न्यायमूर्ति ने खडे होकर उनका अभिवादन किया तथा अधिकांश लोगों का फांसी का दंड निरस्त किया । किंतु काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना करने का निश्चय करने के पश्चात उन्होंने अधिकतम धन प्रदान करनेवाली वकालत पलभर में ही छोड दी । हिन्दुओं को उनके उज्वल भूतकाल का साभिमान ज्ञान होना चाहिए. किंतु वर्तमान समस्याओं को पराजित करने के लिए प्रतिकार शक्ति इतनी सक्षम होनी ही चाहिए, यह उद्देश्य मन में अंकित कर एक कुंभमेले में उन्होंने विश्वविद्यालय का संकल्प लिया । १९०५ में गोपाळ कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में काशी में कांग्रेस अधिवेशन संपन्न हुआ । इस अधिवेशन में १९०५ में उसी प्रकार का औपचारिक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था । वाईसराय लॉर्ड हार्डिंग्ज ने १९१६ में कोनशिला का निर्माण कार्य करते समय ये उद्गार  व्यक्त किए थे, कि ‘निश्चित ही अब शिक्षण प्रणाली में परिवर्तन होगा, इस विश्वास से यहां उपस्थित सर्व व्यक्तियों के मुख पर आनंद प्रतिबिंबित हुुआ प्रतीत हो रहा है ।’

२. वसिष्ठ तथा गौतम, इन तपस्वी मुनियों की परंपरा का आदर करनेवाले छात्रों का सृजन करनेवाला बनारस का ‘हिन्दू विश्वविद्यालय’ !

मदनमोहन मालवीयजी के काशी के हिन्दू विश्वविद्यालय में ‘अलीगढ मुस्लिम विद्यापीठ के समान विघटन के विचार प्रसृत करनेवाले छात्रों का सृजन नहीं हुआ । वाइसराय लॉर्ड हार्डिंग्ज ने इस विश्वविद्यालय के कोनशिला समारोह में वसिष्ठ तथा गौतम, इन तपस्वी मुनियों की परंपरा का उल्लेख किया था । यहां उसी परंपरा का आदर करनेवाले छात्रों का सृजन हुआ ।

३. हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण कार्य हेतु निरंतर प्रयास करनेवाले ज्ञानतपस्वी मदनमोहन मालवीय !

हिन्दू विश्वविद्यालय की कल्पना का प्रचार तथा गोहत्याबंदी की मांग करने हेतु मदनमोहन मालवीयजी ने पूरे देश का भ्रमण किया । भ्रमण करते समय वे उस दिन के निधि संकलन का उद्देश्य निश्चित करते थे तथा उसे पूरा होने तक अन्नग्रहण नहीं करते थे । वास्तव में घर से बाहर निकलने के पश्चात वे किसी के हाथ का पानी भी नहीं पीते थे । इतनी कर्मठ निस्पृहता से उन्होंने इतना भव्य जनसंग्रह तथा इतना भीषण कार्य कैसे किया, यह एक आश्चर्य की ही बात है ।

४. किसी समय कांग्रेस दल में मदनमोहन मोलवीय के समान हिन्दुओं के लिए प्रयास करनेवाला व्यक्तित्त्व होना, अपनेआप में यह एक महान आश्चर्य की बात है !

कांग्रेस नेता पंडित मदनमोहन मालवीय ने जीवन में पहला भाषण, जो उन्होंने वर्ष १८७७ में दिया, वर्ष १९४६ में वही अंतिम भाषण गोरक्षा पर दिया । गर्भवती गौओं की हत्या कर अंदर के बालकों की चमडी के जूते बनाकर उन्हें पहनने की पद्धत यूरोप में प्रचलित है । इस बात का पता होने के पश्चात उन्होंने चमडे के जूते पहनना बंद कर दिया । जालियनवाला बाग हत्याकांड पर इंपीरियल लेजिस्लेटिव एसेंबली में ५ घंटे तक उन्होंने सरकार पर टिप्पणी करनेवाला भाषण दिया । ऐसा कहा जाता है, कि उनका यह भाषण ब्रिटिश पार्लियामेंट में एडमंड बर्क द्वारा दिए गए भाषण का स्मरण करवानेवाला था । रावलपिंडी में जाकर उन्होंने बताया, कि ‘हिन्दू धर्म केवल मानवीय मूल्यों का उद्घोष करता है, वह बिलकुल संकुचित नहीं है ।’  पुरोहित को आमंत्रित कर उन्होंने यह बताया कि ‘मुझे काशी में मृत्यु नहीं आना चाहिए, क्योंकि मुझे मुक्ति नहीं चाहिए, अपितु पुनर्जन्म लेकर भारतमाता की अधिक अच्छी प्रकार से सेवा करने की मेरी इच्छा है । उनका व्यक्तित्व समग्र क्रांति की दृष्टिवाला था । हिन्दुओं की मानसिकता परिवर्तित करने हेतु उन्होंने भीषण संघर्ष किया । उनका मन करुणा से ओतप्रोत था तथा उनके प्रदीर्घ जीवन में उन पर किसी भी प्रकार का धब्बा नहीं लगने पाया था । विभाजन के समय हिन्दुओं पर जो अनन्वित अत्याचार हुए, उसी धक्के के कारण उनका देहांत हुआ । कांग्रेस दल में किसी समय में ऐसे भी लोग थे ।’

स्त्राेत : दैनिक सनातन प्रभात

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