नींद की पूर्व-सिद्धता (तैयारी)

preparation_before_going_to_bed

१. नींद की पूर्व-सिद्धता (तैयारी)

        हम सभी सोने से पूर्व अपनी इच्छा अनुसार अनेक कार्य करते हैं, जैसे दन्त मंजन करना, भजन सुनना, दूरदर्शन देखना, कहानियां पढना इत्यादि । किन्तु आध्यात्मिक स्तर पर हमारे किए गए कार्यों का हम पर किस प्रकार प्रभाव पडता है, इसका हम विचार नहीं करते । इस लेख को पढकर हम सीख सकते हैं कि कौन से कार्य सोने से पूर्व हमें आध्यात्मिक स्तर पर लाभ देंगे एवं सुरक्षा कवच पूरी रात्रि भर हमारे चारों ओर बनाए रखेंगे।

अ. आचमन करें

आचमन करने से चित्त शुद्धि होती है ।

आ. सोते समय यदि पैर गीले हों, तो उन्हें भली-भांति पोंछकर ही सोना चाहिए, इसका शास्त्रीय आधार क्या है ?

सोते समय यदि पैर गीले हों, तो आपतत्त्वात्मक तरंगें पैरों द्वारा देह में ग्रहण होकर शरीर में संचारित होती हैं । इससे शरीर आपतत्त्वात्मक तरंगों से युक्त बनता है । पैरोंद्वारा ये तरंगें संपूर्ण देह में प्रत्येक कोष में संचारित होती हैं । जल से देह अधिक संवेदनशील बनती है और शरीर के अंतर्कोष कार्यरत होते हैं । जल सर्वसमावेशक है, अतः वह अच्छे तथा अनिष्ट स्पंदनों से उतनी ही क्षमता से प्रभावित होता है । सोते समय जीव भूमि से संलग्न होने के कारण भूमि से प्रक्षेपित कष्टदायी तरंगें जीव के गीले शरीर की ओर तुरंत ही आकर्षित होती हैं और शरीर के अंतर्कोषों तक पहुंचती हैं । इस कारण जीव के मनोमयकोष में विद्यमान रज-तम की मात्रा में वृद्धि होती है । इससे जीव चिडचिडा बनता है तथा उसे बुरे स्वप्न आना, स्वप्न में ऊंचे स्वर में चिल्लाना अथवा संपूर्ण रात्रि अस्वस्थ प्रतीत होना इत्यादि कष्ट होते हैं । इसलिए गीले पैर पोंछकर सोना ही अधिक श्रेयस्कर है । सूखा शरीर तेजतत्त्वात्मक तरंगों का संवर्धन कर सकता है । इससे तुलनात्मक दृष्टि से अनिष्ट शक्तियों द्वारा पीडा की संभावना अल्प होती है ।

इ. सोते समय मस्तक के पास (सिरहाने) जल से भरा लोटा (पूर्णकुंभ) क्यों रखें ?

१.‘जल को अतिसंवेदनशील माध्यम माना जाता है । जल सर्वसमावेशक अर्थात सगुण तथा उतनी ही मात्रा में निर्गुण तरंगें ग्रहण एवं प्रक्षेपित करन में अग्रसर होता है । इसलिए मस्तक के पास जल रखने से रात्रि के समय अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों से देह की रक्षा सुलभ होती है ।

२. दिन भर साधना करने से देह में सात्त्विक तरंगें घनीभूत होती हैं । इन सात्त्विक तरंगों में विद्यमान देवत्व भी जल से भरे पूर्णकुंभ के सान्निध्य के कारण जागृत स्थिति में रहता है ।

३. मस्तक के पास रखे जल के पूर्णकुंभ के कारण ब्रह्मरंध्र भी जागृत / कार्यरत रहता है ।

४. इससे देह के सर्व ओर विद्यमान साधनात्मक कवच अभेद्य रहने में सहायता मिलती है; अन्यथा रात्रि के तमोगुणी काल में अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों के विरुद्ध लडने में देह की सात्त्विक ऊर्जा का व्यय हो सकता है ।

२. सामान्य व्यक्तियों के लिए विभूति मिश्रित अथवा कर्पूर मिश्रित जल का

पूर्णकुंभ अथवा किसी तीर्थ क्षेत्र के पवित्र जल के कुंभ का प्रयोग करना इष्ट होना

        सामान्य व्यक्तियों को भी तीर्थ रूपी जल के पूर्णकुंभ का एक रक्षात्मक माध्यम के रूप में उपयोग हो सकता है । साधारण व्यक्तियों के लिए एक रक्षात्मक माध्यम के रूप में तीर्थ रूपी जल के पूर्णकुंभ का उपयोग हो सकता है । सामान्य जीव साधना नहीं करता, इसलिए वह विभूति मिश्रित अथवा सात्त्विक कर्पूर मिश्रित जल के पूर्णकुंभ का अथवा किसी तीर्थ क्षेत्र के पवित्र जल के पूर्णकुंभ का रक्षात्मक माध्यम के रूप में उपयोग कर सकता है ।

३. सोते समय अपने बिछौने के समीप लाठी रखने का शास्त्रीय आधार

अ. लकडी में विद्यमान सुप्त अग्नि की विशेषता एवं उसका कार्य

लकडी में सुप्त अग्नि होती है । इस सुप्त अग्नि के कारण लाठी द्वारा तेजतत्त्व रूपी मारक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । इन तेजतत्त्व रूपी मारक स्पंदनों के कारण रात्रि के तमो गुणी काल में बाह्य वायुमंडल में विद्यमान कष्ट दायी स्पंदनों से जीव की रक्षा हो सकती है ।

आ. लाठी रखने की पद्धति एवं उसका शास्त्रीय आधार

लाठी सोनेवाले की दाहिनी ओर रखने से उसके तेजतत्त्व रूप स्पंदनों के संपर्क से जीव की दाहिनी नाडी कार्यरत रहती है । इससे निद्राधीन अवस्था में भी सोनेवाले का क्षात्रतेज जागृत रहता है । क्षात्रतेज के कारण रात्रि काल में भी जीव की स्थूल देह अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों का प्रतिकार करने में सतर्क एवं संवेदनशील अवस्था में रहती है ।

संदर्भ ग्रंथ : ‘शांत निद्रा के लिए क्या करें ?