कपडे धोने के संदर्भ में आचार

१. कपडे धोने एवं धुले हुए वस्त्र परिधान करने का महत्त्व

अ. धुले हुए कपडे सात्त्विक होने से उन्हें परिधान करने पर व्यक्ति का रज-तम न्यून होकर सात्त्विकता बढना

        ‘कपडे परिधान करने पर उसके धागे में व्यक्ति की देह की रज-तम तरंगें आकृष्ट होती हैं । अस्वच्छ कपडे पहनने पर उनमें आकृष्ट रज-तम तरंगों के कारण व्यक्ति का रज-तम बढता है । उसके आस-पास का वायुमंडल दूषित होता है तथा उसके कपडों पर अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की आशंका अधिक होती है । कपडे धोने से जल के आपतत्त्व युक्त ईश्वरीय चैतन्य के कारण कपडों पर आध्यात्मिक उपाय होते हैं तथा उनके रज-तम कण नष्ट होकर सात्त्विकता बढती है । धुले हुए कपडे सात्त्विक होते हैं, इसलिए उन्हें परिधान करने से व्यक्ति में रज-तम न्यून होकर उसकी सात्त्विकता बढने में सहायता होती है ।

आ. अनिष्ट शक्तियों के तीव्र कष्ट से पीडित व्यक्तियों की गंदे, काले और मैले कपडे पहनने में रुचि

        अनिष्ट शक्तियों के तीव्र कष्ट से पीडित कुछ व्यक्तियों को धुले हुए कपडे पहनने में रुचि नहीं रहती । उन्हें गंदे और मैले कपडे पहनना अच्छा लगता है । ऐसे में उन्हें कष्ट देनेवाले मांत्रिकों को (बलवान आसुरी शक्तियों को) अपनी कष्टदायक शक्ति बढाने के लिए पोषक वातावरण मिलता है; इसलिए मांत्रिक ही उन व्यक्तियों के मन में ऐसे कपडे पहनने के विचार डालते हैं ।

इ. कपडे धोए बिना उन पर सुगंधित द्रव्य का (इत्र का) फुवारा मारने पर कपडों का रज-तम नष्ट न होना, जिससे अनिष्ट शक्तियां आक्रमण कर पाना

        हिन्दू धर्म में धुले हुए वस्त्र परिधान करने का विधान है । कुछ पंथों में लोग प्रतिदिन स्नान भी नहीं करते, कपडे धोना तो दूर की बात है । कुछ लोग अनेक दिन धोए बिना कपडों का उपयोग करते हैं । कुछ लोग उन पर सुगंधित द्रव्य का फुवारा मार कर बार-बार पहनते हैं । फुवारा मारने से कपडे स्थूलरूप से सुगंधित होने पर भी सूक्ष्म से उन कपडों में विद्यमान रज-तम नष्ट नहीं होता । इसलिए ऐसे कपडे परिधान करनेवाले व्यक्ति में रज-तम बढता है और उस पर अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण भी बढते हैं ।’

२. कपडे धोने की उचित पद्धति : हाथ से कपडे धोते समय झुककर धोना

        ‘झुककर कपडे धोने से नाभिचक्र निरंतर जागृत स्थिति में रहता है । वह देह की पंचप्राणात्मक वायु-वहन को पोषित करता है । इस मुद्रा के कारण तेजदायी उत्सर्जन हेतु पूरक सूर्य नाडी भी निरंतर जागृत अवस्था में रहती है । इस से इस नाडी की विशिष्ट कृत्य में कार्यकारी सहभाग से, कपडे धोते समय उनमें हस्तस्पर्श से तेजदायी तरंगों का संक्रमण होता है । यह तेजदायी तत्त्व अल्पावधि में जल के आपतत्त्व की सहायता से कपडों में प्रवाहित होने लगता है । यह प्रक्रिया कपडों में सूक्ष्म-स्तर पर विद्यमान रज-तमात्मक मलिनता के उच्चाटन अथवा विघटन हेतु सहायक है तथा यथार्थ रूप से कपडे सूक्ष्म-स्तर पर स्वच्छ, अर्थात पवित्र होते हैं ।’

३. कपडे धोने की अनुचित पद्धति : उकडूं बैठकर कपडे धोना

स्त्रियां :

        ‘स्त्रियां दोनों घुटने पेट से सटाकर अर्थात उकडूं बैठकर कभी कपडे न धोएं; क्योंकि इस से देह में योनिमार्ग की रिक्ति का सीधा संबंध भूमि से सटे रज-तमात्मक वायुमंडल से होता है तथा पाताल से उत्सर्जित रज-तमात्मक तरंगें इस योनिमार्ग की रिक्ति से तीव्र गति से देह में संक्रमित होती हैं । इस से जीव को कष्ट हो सकता है ।

पुरुष :

        पुरुषों के संदर्भ में भी इस मुद्रा से देह के अधोगामी मार्ग का, भूमि के निकट के पट्टे में घूमनेवाले कष्टदायक स्पंदनों से सीधा संपर्क होता है । इससे कष्ट की आशंका अधिक होती है ।

४. नदी के तट पर कपडे धोने का महत्त्व

        पूर्वकाल में नदी के तट पर नदी के प्रवाह की सहायता से कपडे धोए जाते थे । जल के प्रवाहात्मक शुद्ध स्पर्श से कपडों के रज-तमात्मक स्पंदनों में विद्यमान पाप का भी परिमार्जन जल में होता था । अर्थात यह कृत्य कपडों में विद्यमान रज-तमात्मक सूक्ष्म परिणाम को भी नष्ट करता था । इसीलिए उस समय ब्रह्मकर्म में धुले हुए वस्त्र को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता था ।

५. धुलाई यंत्र में कपडे धोने पर, उनके रज-तमात्मक बनने से होने वाले परिणाम

        आजकल समय के अभाववश तथा कपडे धोने के कष्ट से बचने के लिए अनेक लोग कपडे धोने के लिए धुलाईयंत्र का उपयोग करते हैं । धुलाईयंत्र में कपडे धोने से कपडों में निर्माण होनेवाले यांत्रिक एवं वेगवान रज-तमात्मक विद्युत स्पंदनों से कपडों में घनीभूत रज-तमात्मक तरंगें जागृतावस्था में आती हैं तथा जल के स्पर्श से आपतत्त्वात्मक तरंगों के बल पर प्रवाह के रूप में तीव्र गति से कार्य करने लगती हैं । परिणामस्वरूप –

१. कपडों के कष्टदायक स्पंदन वायुमंडल में प्रक्षेपित होने लगते हैं ।

२. बाह्यतः ऐसा लगता है कि ‘धुलाईयंत्र से कपडे धुल गए हैं’, परंतु वास्तव में वे सूक्ष्म-स्तर पर रज-तमात्मक स्पंदनों से अधिक दूषित हो जाते हैं ।

        परिणामस्वरूप ऐसे रज-तमात्मक स्पंदनों से दूषित कपडे पहनने से अनिष्ट शक्तियों द्वारा कष्ट होने की आशंका बढ जाती है ।

रज-तमात्मक परिणाम दूर करने के उपाय :

  • कपडे धोते समय धुलाई-यंत्र में अगरबत्ती की विभूति अथवा पवित्र यज्ञ की विभूति डालें तथा कपडों में विद्यमान रज-तमात्मक रूपी सूक्ष्म-मलिनता नष्ट होने हेतु विभूति के देवत्व से प्रार्थना करें ।’

६. लकडी की काठी से कपडे सुखाना

        ‘जहां तक संभव हो, स्नानघर से नहाकर निकलते समय ही कपडे धोकर लाएं । कपडे धोने के उपरांत उन्हें घर में ऊंचाई पर लगाए गए (लकडी के) डंडे पर (लकडी की) काठी से सुखाने के लिए फैलाएं । ये डंडे स्वयं में विद्यमान सूक्ष्म-अग्नि की सहायता से सुखाने हेतु फैलाए गए कपडों के सर्व ओर सुरक्षा-कवच निर्माण करते हैं । कपडे सुखाते समय ऊर्ध्व दिशा में लगाया गया डंडा स्वयं में से वलयों के रूपमें तेजदायी तरंगें प्रक्षेपित करता है । इस प्रकार यह गतिमान एवं अधिकाधिक प्रक्षेपण क्षमता युक्त कवच ही कपडों के लिए उपलब्ध किया जाता है; क्योंकि कपडे डंडे पर फैलाकर सुखाने के लिए डाले जाते हैं, जिसके कारण वे भी प्रक्षेपण अवस्था में ही रहते हैं । काठी से कपडे फैलाने से धातुसदृश किसी भी वस्तु से कपडों का रज-तमात्मक संसर्ग रोका जाता है ।

७. सूखे हुए कपडे रखना

        पूर्वकाल में कडक सूखे हुए कपडे सायंकाल के पूर्व ही उचित पद्धति से समेट कर दीवार पर लगाई गई लकडी की खूंटी पर टांग दिए जाते थे । वहां कपडों के मध्यभाग में निर्माण हुए गोलाकार से भूमि के समांतर लकडी की खूंटी बाहर निकली हुई दिखाई देती थी । इस खूंटी के केंद्रबिंदु से तेजदायी तरंगों का तीव्र गति से प्रक्षेपण होता है ।

इसलिए घनीभूत अवस्था में कपडों के चुन्नटों की तरंगें प्रक्षेपण अवस्था में आती थीं । काष्ठ से चुन्नटों में संक्रमित अग्निरूपी तेजतरंगें घनीभूत हो कर सगुण रूप धारण कर भूमि की दिशा में अपनी नोंक से पाताल से प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनों से लडती थीं ।

अर्थात यह स्पष्ट होता है कि वास्तु में अन्य पूरक वस्तुओं की रचना कृत्य के अनुरूप कर उन विशिष्ट घटकों के कार्य के लिए कवचात्मक पूरक एवं पोषक वातावरण निर्माण किया जाता है ।

इस पद्धति से निरंतर भूमि से दूर एवं ऊर्ध्व वायुमंडल के संपर्क में लकडी की अग्नि की सहायता से कपडे फैलाने से वे निरंतर शुद्ध रहकर अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से भी मुक्त रहते थे ।’

८. सात्त्विक वस्त्र परिधान करने से देह के सर्व ओर सुरक्षाकवच निर्माण होना

        ‘वस्त्र परिधान करना एक सुरक्षात्मक आचार है । वस्त्रों के सात्त्विक रंगों के माध्यम द्वारा तथा उन्हें परिधान करने की आकारधारणा द्वारा वायुमंडल की रज-तमात्मक तरंगों के संक्रमण से जीव की रक्षा होती है । अतः स्नान के उपरांत देह शुद्ध होने पर धुले हुए वस्त्र परिधान कर देह पर सुरक्षा-कवच चढाया जाता है । इसीलिए सात्त्विक वस्त्रों को अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है ।’

संदर्भपुस्तक : सनातनका सात्विकग्रन्थ ‘आदर्श दिनचर्या (भाग १) स्नानपूर्व आचार एवं उनका अध्यात्मशास्त्रीय आधार