हाथ-पैर धोना तथा कुल्ला करनेके संदर्भमें आचार

लघुशंका तथा शौचविधि के उपरांत दुर्गंध दूर होनेतक मिट्टी से हाथ रगडकर धोएं । (मिट्टी से धोना संभव न हो, तो साबुन से धोएं ।) तदुपरांत पैर धोएं और कुल्ला करें । तदनंतर अंजुलि में जल लेकर चेहरे पर घुमाएं तथा आंखें धोएं । तदुपरांत आचमन एवं विष्णुस्मरण करें ।

शास्त्र : ‘हाथ तथा पैर धोना, ये दोनों क्रियाएं बाह्य शुद्धिसे संबंधित हैं, जबकि शरीर की अंतर्गत शुद्धि हेतु उसके उपरांत कुल्ला करना, आचमन एवं विष्णुस्मरण आवश्यक है ।

१. दुर्गंध दूर होने तक हाथ मिट्टी से रगडकर धोना

मिट्टी में पृथ्वी तथा आप तत्त्व से संबंधित गंधदर्शक भूमितरंगें सुप्तावस्था में विद्यमान होती हैं । देह की उत्सर्जित गंधप्रक्रिया पृथ्वी तथा आपतत्त्वों से संबंधित है । इसीसे लघुशंका एवं शौच धारणा उत्पन्न होती हैं । इसलिए इन उत्सर्जित गंधतरंगों के उच्चाटन हेतु इस प्रक्रिया में अशुद्ध हुए हाथ को मिट्टी से रगडकर धोते हैं । हाथ को हुए मिट्टी के मर्दनात्मक स्पर्श से गंधदर्शक तरंगों का उत्सर्जन होता है । मिट्टी के भूमितत्त्व से संबंधित गंधतरंगोंद्वारा इन तरंगों का उच्चाटन होता है । इससे उत्सर्जित गंधदर्शक तरंगों का शरीर से संपर्क कम हो पाता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

दुर्गंध नष्ट करने हेतु, पृथ्वी अथवा आपतत्त्व से समृद्ध घटक के उपयोग का आधारभूत शास्त्र

संकलनकर्ता : पृथ्वीतत्त्व से संबंधित उत्सर्जित गंध का उच्चाटन करने के लिए मिट्टी, अर्थात् पृथ्वीतत्त्व का उपयोग करने के स्थानपर जल, अर्थात् आपतत्त्व परिणामकारक क्यों नहीं होता ?

सूक्ष्म-जगत के एक विद्वान : जलसे हाथ धोने से भी पृथ्वीतत्त्व से संबंधित उत्सर्जित गंध का उच्चाटन हो सकता है; परंतु उत्सर्जित गंधका स्थूल स्तर पर त्वचा पर घनीभूत जडत्वदर्शक दुर्गंधयुक्त परिणाम नष्ट करने के लिए, उस स्थान पर मिट्टी की स्थूल गंध का उपयोग अधिक उचित है । बाह्यतः भी मिट्टी की गंध से मन प्रसन्न करने की प्रक्रिया को मानसिक स्तर पर बनाए रखने की योजना इस प्रक्रिया में दिखाई देती है । मिट्टी के मर्दन से त्वचा में घनीभूत जडत्वदायी उत्सर्जित गंधयुक्त परिणाम नष्ट होता है तथा त्वचा के रंध्र मृत्तिकागंध से भर जाते हैं । इससे मन के स्तर पर जीव को दुर्गंध के प्रति प्रतीत घृणा भी नष्ट हो जाती है । स्थूल जडत्वदर्शक दुर्गंध नष्ट करने हेतु यथासंभव पृथ्वीतत्त्व से समृद्ध घटकों का उपयोग किया जाता है, जबकि उत्सर्जित वायुओं के कार्य से निर्मित सूक्ष्म-दुर्गंधदर्शक परिणाम नष्ट करने हेतु यथासंभव पृथ्वीतत्त्व से परे जाकर आपतत्त्व की सहायता लेते हैं । – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

२. पश्चिम की ओर मुख कर पैर धोना

‘शौच एवं लघुशंका जैसी कृति करते समय पैर के संपर्क में आई रज-तमात्मक तरंगों का पैर धोने से जल में विसर्जन होता है तथा देह शुद्ध हो जाता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

प्राङ्मुखोऽन्नानि भुञ्जीत्तोच्चरेद्दक्षिणामुखः ।
उदङ्मुखो मूत्रं कुर्यात्प्रत्यक्पादावनेजनमिति ।।
– आपस्तम्बधर्मसूत्र, १.११.३१.१

अर्थ : पूर्व की ओर मुख कर अन्न ग्रहण करें; दक्षिण दिशा में मुख कर मल एवं उत्तर दिशा में मुख कर मूत्रका त्याग करें तथा पश्चिम में मुख कर पैर धोएं ।

पश्चिम की ओर मुख कर पैर धोने का आधारभूत शास्त्र

‘धर्माचारके अनुसार विशिष्ट दिशामें विशिष्ट वायुमंडलमें विशिष्ट कृति करनेसे वायुमंडलको दूषित किए बिना ब्रह्मांडकी विशिष्ट शक्तिरूपी गतितरंगोंमें उचित संतुलन रखा जाता है । पश्चिम दिशा कर्मकी, अर्थात् विचारधारणाके रजोगुणकी क्रिया हेतु आमंत्रित करती है, इसलिए इस स्थानपर पैर धोकर शुद्धीकरण करने से आगे की क्रिया के संबंध में जीव के मन में उन विशिष्ट विचारों की गति के लिए पूरक चक्र निर्माण होता है तथा भविष्यकालीन कृतिविषयक कर्मरूपी सूक्ष्म विचारधारा को गति मिलती है ।

विशिष्ट दिशा में मुख कर, विशिष्ट तरंगों के स्पर्श के स्तरपर विशिष्ट कर्म करना, पाप-मार्जन एवं पुण्य-प्राप्ति हेतु सहायक है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

३. कुल्ला करना एवं उसका महत्त्व

कुल्ला करने से रातभर देह से उत्सर्जित तमोगुणी वायुओं का मुख में घनीभूत प्रवाह उत्सर्जित होना

‘हाथ-पैर धोने के उपरांत तत्काल झुककर दाएं हाथ से मुख में जल भरकर, तीन बार कुल्ला कर बाहर थूकें । ‘कराग्रे वसते लक्ष्मीः …’ यह श्लोकपाठ करने से अंजुलिमें आया देवत्व (हाथकी अंजुलिमें लिए) जलमें संक्रमित होता है । जल सर्वसमावेशक है, इसलिए यह देवत्वरूपी तरंगों को तत्काल ग्रहण करता है । दैवीगुणों से संपन्न यही देवत्वरूपी जल कुल्ला करने के लिए मुख में भरने से, रातभर देह से उत्सर्जित तमोगुणी वायुओं के मुख में घनीभूत प्रवाह को, थूकने की क्रिया के माध्यम से (जल के प्रवाहसहित) बाहर उत्सर्जित करता है ।

झुककर कुल्ला करने से मुख तथा देह की रिक्ति स्वच्छ होकर चैतन्यमय बनना

झुककर कुल्ला करने से देह की रिक्ति में विद्यमान ऊर्ध्व दिशा में प्रवाहित सूक्ष्म-वायु कार्यरत होने से यह वायु ही देह की रिक्ति में घनीभूत अन्य त्याज्य वायुओं को ऊर्ध्वगामी पद्धति से बाहर धकेलने में सहायता करती है । इससे मुख तथा देह की रिक्ति स्वच्छ होकर चैतन्यमय बनना आरंभ होती है ।

४. हाथ के दैवीगुणसंपन्न जल को आंखों पर लगाने से मस्तिष्क की रिक्तता शुद्ध होना

अंजुलि में भरा दैवीगुणसंपन्न जल आंखों पर लगाने से, आंखों की कोटरिका को चैतन्य प्रदान कर वह आज्ञा-चक्र को जागृत करता है । इससे मस्तिष्क की रिक्ति की शुद्धि आरंभ होती है । आज्ञा-चक्र की जागृति, क्रिया के स्तर पर देह को जागृति प्रदान करने का प्रतीक है । इससे दिनभर हाथ से होनेवाले साधन उचित पद्धति एवं आचारसहित होते हैं ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से)

५. आचमन करना

‘आचमन करने से मंत्रसहित शुद्धोदक प्राशन करने से देह की अंतर्गत रिक्तियों के रज-तमात्मक तरंगों का विघटन होता है तथा देहकी आंतरिक शुद्धि होती है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

६. विष्णुस्मरण करना

देह के चारों ओर सुरक्षाकवच की निर्मिति हेतु भावपूर्वक विष्णुस्मरण सहायक है । इससे जीव आगे का कर्म करने में शुद्धता के स्तर पर सिद्ध बनता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से)

संदर्भ पुस्तक : सनातन का सात्विक ग्रन्थ ‘आदर्श दिनचर्या भाग २ – स्नान एवं स्नानोत्तर आचारों का अध्यात्मशास्त्र