श्री दत्त की मूर्ति के अंतर्निहित आध्यात्मिक विज्ञान

प्रत्येक देवता एक तत्त्व है । यह देवता-तत्त्व प्रत्येक युग में होता है एवं कालानुरूप सगुण रूप में प्रकट होता है, उदा. भगवान श्रीविष्णु द्वारा कार्यानुमेय धारण किए हुए नौ अवतार ।

वर्ष १००० के आसपास दत्त की मूर्ति त्रिमुखी हो गई; इससे पूर्व वह एकमुखी थी । दत्त की त्रिमुखी मूर्ति में प्रत्येक हाथ में धारण की गई वस्तु किस देवता का प्रतीक है, यह आगे की सारणी में दिया है ।

हाथ में धारण की गई वस्तुएं किस देवता का प्रतीक ?
१. कमंडलु (टिप्पणी १) एवं जपमाला ब्रह्मदेव
२. शंख एवं चक्र श्रीविष्णु
३. त्रिशूल (टिप्पणी २) एवं डमरू शंकर

टिप्पणी १ – ‘कमंडलु त्याग का प्रतीक – कमंडलु एवं दंड, ये वस्तुएं संन्यासी के साथ रहती हैं । संन्यासी विरक्त होता है । कमंडलु एक प्रकार से त्याग का प्रतीक है; क्योंकि कमंडलु ही उसका ऐहिक धन होता है ।’

टिप्पणी २ – ‘त्रिमूर्तिरूप में विद्यमान महेश के हाथ का त्रिशूल एवं भगवान शिव के हाथ का त्रिशूल – त्रिमूर्ति रूप में महेश के हाथ का त्रिशूल एवं भगवान शिव के हाथ के त्रिशूल में विशेष अंतर दिखाई देता है । त्रिमूर्ति रूप में महेश के हाथ में जो त्रिशूल है उस पर शृंग एवं वस्त्र दिखाई नहीं देता । इसका कारण है, शृंग बजाने के लिए दत्त के पास रिक्त हाथ नहीं है । त्रिशूल पर जो वस्त्र है वह ध्वज का प्रतीक है ।’

झोली अहं नष्ट होने का प्रतीक : दत्तात्रेय के कंधे पर एक झोली होती है । इसका भावार्थ निम्नानुसार है – झोली मधुमक्षिका का (मधुमक्खी का) प्रतीक है । मधुमक्खियां जिस प्रकार विभिन्न स्थानों पर जाकर मधु एकत्र करती हैं एवं उसका भंडारण करती हैं, उसी प्रकार दत्त घर-घर जाकर झोली में भिक्षा एकत्र करते हैं । घर-घर घूमकर भिक्षा मांगने से अहं शीघ्र अल्प होता है; इसलिए झोली अहं नष्ट होने का भी प्रतीक है ।

परिवार का भावार्थ

अ. गाय (पीछे की ओर खडी) : पृथ्वी एवं कामधेनु (इच्छित फल देने वाली)

आ. चार कुत्ते

१. चार वेद

२. गाय एवं कुत्ते एक प्रकार से दत्त के अस्त्र भी हैं । गाय सींग मारकर एवं कुत्ते काट कर शत्रु से रक्षा करते हैं ।

इ. उदुंबर का (गूलर का) वृक्ष : दत्त का पूजनीय रूप; क्योंकि उसमें दत्त तत्त्व अधिक मात्रा में रहता है ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘भगवान दत्तात्रेय

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