श्रीलंका में राम-रावण युद्ध का साक्षी रामबोडा तथा रावणबोडा पर्वत !

श्रीलंका का नगर नुवारा एलिया में राम-रावण युद्ध का साक्षी रामबोडा तथा रावणबोडा पर्वत !

हनुमानजी की निद्रित अवस्था की भांति दिखाई देनेवाला रावणबोडा पर्वत

अनेक अभ्यासी तथा इतिहास विशेषज्ञों ने अभी तक श्रीलंका के ९ प्रांतों में रामायण से संबंधित अनेक स्थान ढूंढ लिए हैं । उनमें से अधिकतम स्थान श्रीलंका के मध्य प्रांत में हैं । इन प्रांत का सबसे बडा और प्रमुख नगर है ‘नुवारा एलिया’ ! इस नगर के निकट अशोक वाटिका, रावण गुफा, रावण जलप्रपात, हनुमानजी के पदचिन्ह, रावणपुत्र मेघनाद का तपश्‍चर्या का स्थान, राम-रावण युद्ध से संबंधित क्षेत्र, ऐसे अनेक स्थान हैं । ‘नुवारा एलिया’ का वातावरण ठंडा है; क्योंकि यह प्रदेश ऊंचे पर्वत पर स्थित है । आईए, इस परिसर के कुछ स्थानों के विषय में देखते हैं ।

१. रामबोडा पर्वत : हनुमानजी जब सीतामाता की खोज कर रहे थे, तब उन्होंने इस पर्वत पर विश्राम किया तथा

अब आध्यात्मिक संस्था चिन्मय मिशन द्वारा १६ फुट ऊंचाईवाली हनुमानजी की मूर्तिवाले मंदिर का निर्माण किया जाना

श्रीरामजी के अनन्य सेवक वायुपुत्र हनुमानजी रामेश्‍वरम् के समुद्र से उडान भरकर आकाशमार्ग से उत्तरी लंका में प्रवेश करते हैं । अशोक वाटिका लंका के मध्यभाग में अर्थात ‘नुवारा एलिया’ नगर के निकट होने से हनुमानजी उस दिशा में अपनी यात्रा करते हैं । हनुमानजी एक पर्वत से दूसरे पर्वत पर छलांग लगाते जाते हैं । अशोक वाटिका के ३५ कि.मी. पहले हनुमानजी, जहां विश्राम के लिए रुके थे, वह स्थान है आज का रामबोडा पर्वत ! यहां हनुमानजी कुछ समय श्रीरामजी का स्मरण करते हुए ध्यान लगाए बैठे थे । उसके पश्‍चात अंतप्रेरणा से हनुमानजी ने आकाशमार्ग से अशोक वाटिका की ओर उडान भरी । अब इसी स्थान पर भारत की एक आध्यात्मिक संस्था चिन्मय मिशन ने १६ फुट ऊंची हनुमानजी की मूर्तिवाले मंदिर का निर्माण किया है । यहां श्रीरामनवमी तथा हनुमानजयंती के दिन उस परिसर के हिन्दू एकत्र होते हैं ।

२. रावणबोडा पर्वत : इस पर्वत पर राम-रावण युद्ध आरंभ होना

यहां रामबोडा पर्वत की भांति अनेक पर्वत हैं । रामबोडा पर्वत के सामने जो पर्वत है, उसे रावणबोडा पर्वत कहते हैं । श्रीरामजी तथा लक्ष्मण अपनी वानरसेना के साथ जब लंका आए, तब वे प्रवास करते-करते अंततः रामबोडा पर्वत पहुंचे । वहां उन्होंने वानरसेना के लिए सेना-शिविर लगाया । रावण की सेना ने रामबोडा पर्वत के सामनेवाले पर्वत पर अपना शिविर लगाया । इसलिए उसे रावणबोडा पर्वत कहा जाता है । इसकी विशेषता यह है कि रामबोडा तथा रावणबोडा, ये दोनों पर्वत चाहे एक-दूसरे के सामने हों परंतु कोई भी सहजता के साथ एक पर्वत से दूसरे पर्वत पर नहीं जा सकता; क्योंकि इन दोनों पर्वतों के मध्य में महावेली गंगा नदी है । स्थानीय लोग तथा चिन्मय मिशन के पदाधिकारियों ने हमें बताया कि श्रीरामजी की सेना तथा रावण की सेना के मध्य यहां पहला युद्ध आरंभ हुआ । रावणबोडा पर्वत में रावण ने अपनी मायावी शक्ति से अनेक सुरंगमार्ग बनाकर अपने सेना के छिपने का प्रबंध किया था । रावण की सेना ने अनेक दिनों तक इस प्रदेश में रहकर मायावी युद्ध किया था । सबसे आश्‍चर्य की बात यह कि स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि रावणबोडा पर्वत की ओर देखने पर ऐसा लगता है मानो वहां हनुमानजी सोए हुए हैं । (छायाचित्र देखें ।)

हनुमानजी के रामभक्ति की महानता !

श्रीलंका के रामबोडा तथा रावणबोडा पर्वतों पर श्रीरामजी की वानरसेना तथा रावणासुर की मायावी सेना के मध्य ६ मास तक (महिने) युद्ध चला । इस युद्ध में एक बार श्रीरामजी तथा लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं, तब जांबुवंत बिभीषण के पास आकर कहते हैं,

तस्मिञ्जीवति वीरे तु हतमप्यहतं बलम् ।

हनूमत्युज्झितप्राणे जीवन्तोऽपि वयं हताः ॥

– वाल्मीकिरामायण, कांड ६, सर्ग ६१, श्‍लोक २२

अर्थ : यदि श्रीरामजी की सभी सेना मृत हो गई, तब भी श्रीरामजी की सेना जीवित है; परंतु यदि हनुमानजी ने अपना शरीर त्याग दिया, तो हम सभी जीवित होते हुए भी प्राणविहीन हैं । इससे श्रीरामभक्त हनुमानजी की महानता ध्यान में आती है । भक्त अपनी भक्ति के बल पर युद्ध में विजय प्राप्त कर सकता है, इसकी शिक्षा देनेवाले हनुमानजी के चरणों में तथा रामायण करवानेवाले श्रीमन्नारायणजी के अवतार श्रीरामजी के चरणों में हम सभी साधक नतमस्तक हैं ।

– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१२.६.२०१८)