सीतामाता के वास्तव्य से पवित्र श्रीलंका का ‘सीता कोटुवा’ स्थान !

श्रीलंका में प्रभुु श्रीराम, सीता तथा लक्ष्मण से संबंधित अनेक स्थान हैं । वाल्मिकि रामायण में महर्षि वाल्मिकि ने जो लिखा, उसके अनुसार घटित होने के अनेक प्रमाण श्रीलंका में मिलते हैं । इन प्रमाणों में से एक है श्रीलंका का ‘सीता कोटुवा’ स्थान ! श्रीलंका के ‘उवा’ प्रांत के घने अरण्य में बसे गुरुलूपोथा गांव में सीता कोटुवा नामक स्थान है ।

श्रीलंका के गुरुलूपोथा में रावण की पत्नी मंदोदरी के महल के अवशेेषों के छायाचित्र

१. रामायणकाल में रावण के पास उपलब्ध हवाई अड्डों में से गुरुलूपोथा में महारानी मंदोदरी के महल का होना

महर्षि भारद्वाज द्वारा लिखित विमाननिर्माण शास्त्र के अनुसार रावण ने अलग-अलग विमानों का निर्माण किया था । ऐसा कहा जाता है कि रावण के पास मयुर विमान, पुष्पक विमान आदि १८ प्रकार के विमान थे । इन विमानों के लिए रावण के पास वेरगन्तोटा, थोडूपोल कान्डा, उस्सन्गोडा, वरियपोला, वातरियपाला तथा गुरुलूपोथा, एैसे ६ हवाई अड्डे थे । इनमें से गुरुलूपोथा में रावण की पत्नी मंदोदरी का विशाल महल था ।

२. वनवास की कालावधि में रावण द्वारा सीतामाता का अपहरण कर उन्हें लंका ले आने पर महारानी मंदोदरी के महल में रखा जाना

सीतामाता का अपहरण कर उन्हें विमान से श्रीलंका में लाने के पश्‍चात रावण के सामने यह प्रश्‍न उपस्थित होता है कि अब सीता को कहां रखा जाए । तब रावण सीतामाता को महारानी मंदोदरी के महल में रखना सुनिश्‍चित करता है । महारानी मंदोदरी अपनी दासियों के साथ नदीतट पर स्थित इस महल में निवास करती थीं । रावण जब सीतामाता को लेकर मंदोदरी के महल में जाने पर पतिव्रता मंदोदरी रावण से कहती हैं, ‘‘स्वामी, यह तो स्वयं महालक्ष्मी हैं । जहां परस्री की ओर देखना तो पाप है और आपने तो छलकपट कर उसे उसके स्वामी प्रभु श्रीराम से दूर यहां ले आए हैं । सीता यदि लंका में रही, तो लंका का विनाश अटल है । अतः आप सीता को सम्मान के साथ उसके स्वामी के पास छोड आईए तथा उनसे क्षमायाचना करें । करुणासागर श्रीराम आपको क्षमा कर देंगे ।’’ इसपर क्रोधित होकर रावण कहता है, ‘‘मंदोदरी, मैं लंकापति रावण तीनों लोकों का स्वामी हूं । स्वर्ग के देवता भी मुझे देखकर भयभीत हो जाते हैं । राम तो केवल एक सामान्य मनुष्य है । अतः तुम सीता को अपने महल में रख लो । सीता को किसी बात का अभाव न होने देना । कुछ दिनों पश्‍चात वह राम को भूल जाएगी । तब तुम उसे मेरे विषय में बताना और उसका मनपरिवर्तन कर मेरे साथ विवाह के लिए कहना ।’’ ऐसा कहकर रावण वहां से निकल जाता है । तदुपरांत अशोक वाटिका जाने तक देवी सीता महारानी मंदोदरी के महल में ही रहती हैं ।

३. गुरुलूपोथा गांव में महारानी मंदोदरी के महल के अवशेष तथा उसके नीचे स्थित नदी का आज भी अस्तित्व होना

महारानी मंदोदरी के महल की दक्षिण में स्थित सीढियां उतरकर सीतामाता वहां स्थित नदी में स्नान के लिए जाती थीं ।

गुरुलूपोथा गांव से डेढ कि.मी. अंदर अरण्य में महारानी मंदोदरी का महल है । इस महल के चारों बाजुआें में घना अरण्य है । महल के दक्षिण में ५० सीढियां हैं तथा उन सीढियों से उतरकर नीचे जाने से एक छोटी नदी है । सीतामाता इन नदी में प्रतिदिन स्नान के लिए जाती थीं । आज भी महारानी मंदोदरी के महल के अवशेष तथा उसके नीचे स्थित नदी देखने के लिए मिलते हैं । स्थानीय लोग महारानी मंदोदरी के महल को सीता कोटुवा कहते हैं । कोटुवा का अर्थ है भुवन ! यह स्थान घने अरण्य के अंदरुनी भाग में होने से वहां कोई नहीं जाता ।

४. अनुभूतियां

अ. सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळजी जब सीताकोटुवा इस स्थान पर जाने के मार्ग की जानकारी लेने हेतु स्थानीय लोगों से पूछताछ करने के लिए कह रही थीं, उसी समय एक व्यक्ति का वहां आना तथा उसने स्वयं ही साधकों को सीता कोटुवा लेकर जाना

हम जब गुरुलूपोथा गांव पंहुचे, तब सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळकाकूजी ने हम से कहा, हम इस गांव में रहनेवाले लोगों को सीता कोटुवा जाने का मार्ग पूछेंगे । सद्गुरु काकूजी जब ऐसा कह रही थीं, उसी समय एक व्यक्ति वहां आ गया तथा वह हमें सीता कोटुवा ले जाने के लिए भी सहमत हुआ । उस घने अरण्य में फिसलन की भांति उस छोटे मार्ग से हम उस व्यक्ति के पीछे पैदल चलते गए ।

आ. सीता कोटुवा पहुंचने पर भावजागृति होना तथा अनाहतचक्र के स्थान पर आनंद की फुहारें आ रही हैं, ऐसा प्रतीत होना

सीता कोटुवा पहुंचने पर हम सभी की भावजागृति हुई । वहां का वातावरण भी अशोक वाटिका की भांति आल्हाददायक तथा चैतन्यमय था । उस समय हम सभी साधकों के अनाहतचक्र के स्थान पर आनंद के फुहार उड रह हैं, ऐसा हमें लग रहा था । तत्पश्‍चात हम सभी ने सनातन के सभी साधकों की ओर से श्रीमन्नारायण के ७वें अवतार प्रभु श्रीरामजी के हृदय में सदैव विराजमान सीतामाता के चरणों में प्रणाम किया । प्रभु श्रीराम तथा देवी सीता का स्मरण कर हमने वहां की पवित्र मिट्टी अपने मस्तक पर लगाई ।

– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात