हनुमानजी का कार्य एवं विशेषताएं

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१. सर्वशक्तिमान

जन्म लेते ही सूर्य को निगलने के लिए उडान भरने की कथा से यह स्पष्ट होता है कि वायुपुत्र (वायुतत्त्व से उत्पन्न) हनुमान, सूर्य पर (तेजतत्त्व पर) विजय प्राप्त करने में सक्षम थे । पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश तत्त्वों में से वायुतत्त्व तेजतत्त्व की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म है अर्थात अधिक शक्तिमान है ।

अ. भूत एवं हनुमान

सर्व देवताओं में केवल हनुमान जी को ही अनिष्ट शक्तियां कष्ट नहीं दे सकतीं । लंका में लाखों राक्षस थे, तब भी वे हनुमान जी का कुछ नहीं बिगाड पाए । इसीलिए हनुमान को ‘भूतोंका स्वामी’ कहा जाता है । यदि किसीको भूतबाधा हो, तो उस व्यक्तिको हनुमान जी के देवालय ले जाते हैं अथवा हनुमानचालीसा का पाठ करते हैं । इससे कष्ट दूर न हो, तो पीडित व्यक्ति पर से नारियल उतारकर, हनुमान जी के मंदिर में जाकर फोडते हैं । नारियल उतारने से व्यक्ति में विद्यमान तमोगुणी स्पंदन नारियल में प्रविष्ट होते हैं । वह नारियल हनुमानजी के मंदिर में फोडने पर उससे बाहर निकलनेवाले स्पंदन हनुमानजी के सामथ्र्य से नष्ट होते हैं । तत्पश्चात वह नारियल विसर्जित किया जाता है ।

२. महापराक्रमी

राम-रावण युद्ध में ब्रह्मास्त्र के प्रयोग से राम, लक्ष्मण, सुग्रीव आदि वीर अचेत हो गए । तब जांबवंतने हनुमानजी के पराक्रम का इस प्रकार वर्णन किया – ‘वानरश्रेष्ठ हनुमान जीवित है न ? यह वीर जीवित है, तो संपूर्ण सेनाका ही वध क्यों न हो जाए, वह न होने समान ही है । यदि हनुमान प्राणत्याग करते हैं, तो हम जीवित होते हुए भी मृतप्राय ही हैं ।’ हनुमानने जंबुमाली, अक्ष, धूम्राक्ष, निकुंभ आदि बलशाली वीरों का नाश किया । उन्होंने रावण को भी मूच्र्छित किया । समुद्री उडान, लंकादहन, द्रोणागिरि पर्वत उठा लाना आदि घटनाएं हनुमंत के शौर्य के प्रतीक हैं ।

३. भक्त

दास्यभक्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देने हेतु आज भी हनुमान की रामभक्ति का स्मरण होता है । वे अपने प्रभुपर प्राण अर्पण करने हेतु सदैव तत्पर रहते । उनकी सेवा की तुलना में शिवत्व एवं ब्रह्मत्व भी उन्हें कौडी के मोल लगते । हनुमान सेवक एवं सैनिक का सुंदर सम्मिश्रण हैं ! हनुमान अर्थात शक्ति एवं भक्ति का संगम !

४. अविरत सतर्कता एवं अखंड साधना

युद्ध के जारी रहते हुए भी हनुमानजी कुछ समय निकालकर ध्यानस्थ बैठ जाते थे; परंतु उस समय भी वे सतर्क रहते थे । उनकी पूंछ सदा गदा पर रहती ।

५. बुद्धिमान

‘व्याकरणसूत्र, सूत्रवृत्ति, भाष्य, वार्तिक एवं संग्रह में हनुमान के समतुल्य कोई नहीं था ।’ (श्रीवाल्मीकिरामायण, उत्तरकाण्ड, सर्ग ३६, श्लोक ४४-४६) हनुमान को ‘ग्यारहवां व्याकरणकार’ मानते हैं ।

६. मनोविज्ञान में निपुण एवं राजनीति में कुशल

अनेक प्रसंगों में सुग्रीव आदि वानर ही नहीं; अपितु रामने भी हनुमान का परामर्श माना है । जब अन्य सेनानियों ने अपना मत व्यक्त किया कि रावण को छोडकर आए विभीषण को अपने पक्ष में न लिया जाए; तब हनुमान की बात मानकर श्रीराम ने उसे अपने पक्ष में ले लिया । लंका में प्रथम ही भेंट में सीता के मन में अपने प्रति विश्वास उत्पन्न करना, शत्रुपक्ष के पराभव के लिए लंकादहन करना, अपने (राम के) आगमनसंबंधी भरत की भावनाएं जानने हेतु श्रीराम द्वारा उन्हीं को भेजा जाना, इन सभी प्रसंगों से हनुमानजी की बुद्धिमत्ता एवं मनोविज्ञान में निपुणता स्पष्ट होती है । लंकादहन कर उन्होंने रावण की प्रजा का, रावण के सामथ्र्य पर से विश्वास उठा दिया ।

७. जितेंद्रिय

सीता को ढूंढने हनुमान रावण के अंतःपुर में गए । उस समय उनकी जो मनःस्थिति थी, वह उनके उच्च चरित्रका सूचक है । इस संदर्भ में वे स्वयं कहते हैं – ‘सर्व रावणपत्नियोंको निःशंक लेटे हुए मैंने देखा तो सही; परंतु देखने से मेरे मन में विकार उत्पन्न नहीं हुआ ।’ (श्रीवाल्मीकिरामायण, सुंदरकाण्ड, सर्ग ११, श्लोक ४२, ४३) अनेक संतों ने ऐसे जितेंद्रिय हनुमान की पूजा निश्चित कर, उनका आदर्श समाज के सामने रखा । इंद्रियजीत होने के कारण ही हनुमान इंद्रजीत को भी पराजित कर सके ।

८. साहित्य, तत्त्वज्ञान एवं वक्तृत्वकला में प्रवीण

रावण की राज्यसभा में हनुमान द्वारा किया गया भाषण वक्तृत्व कला का उत्कृष्ट आदर्श है ।

९. संगीतशास्त्र का प्रवर्तक

हनुमानजी को संगीत शास्त्र का एक प्रमुख प्रवर्तक माना गया है । संभवतः इसका कारण है उनके एवं रुद्र के बीच का संबंध । उन्हें रुद्र का अवतार मानते हैं । रुद्र शिव का एक रूप है । यद्यपि हनुमान शिवके अवतार हैं, तथापि राम की उपासना के कारण उनमें विष्णुतत्त्व की मात्रा अधिक हो गई है । शिव के डमरू से नाद उत्पन्न हुआ, इसलिए शिव को संगीत का प्रवर्तक माना जाता है । हनुमान की जन्मजात गायन प्रतिभा के कारण समर्थ रामदासस्वामी जी ने उन्हें ‘संगीतज्ञानमहंता’की उपाधि दी ।

१०. भक्तों की मनौती पूर्ण करनेवाले

हनुमान जी को मनौती पूर्ण करनेवाले देवता मानते हैं, इसलिए व्रत अथवा मनौती माननेवाले अनेक स्त्री-पुरुष हनुमान की मूर्ति की प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक निर्धारित परिक्रमा करते हैं । कई लोगों को आश्चर्य होता है कि जब किसी कन्या का विवाह निश्चित न हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमान जी की उपासना करने के लिए कहा जाता है । कुछ लोगों की यह भ्रांति होती है कि ‘कन्या के मन में इच्छा होती है कि पति के रूप में बलवान पुरुष मिलें’ एवं इसलिए वह हनुमान जी की उपासना करती है’; किंतु इस के वास्तविक कारण आगे दिए अनुसार हैं ।

  • १. जिन लोगों का विवाह नहीं हो पाता, उनमें से लगभग ३० प्रतिशत व्यक्तियों का विवाह भूत, जादू-टोना आदि अनिष्ट शक्तियोंके कष्टके कारण नहीं हो पाता । हनुमान जी की उपासना करने से ये कष्ट दूर हो जाते हैं एवं विवाह संभव हो जाता है । (१० प्रतिशत व्यक्तियों के विवाह, भावी वधू अथवा वर के एक-दूसरे से अवास्तविक अपेक्षाओं के कारण नहीं हो पाते । अपेक्षाओं को न्यून (कम) करने पर विवाह संभव हो जाता है । ५० प्रतिशत व्यक्तियों का विवाह प्रारब्ध के कारण नहीं हो पाता । यदि प्रारब्ध मंद अथवा मध्यम हो, तो कुलदेवता की उपासना द्वारा प्रारब्धजनक अडचनें नष्ट हो जाती हैं एवं विवाह संभव हो जाता है । यदि प्रारब्ध तीव्र हो, तो केवल किसी संत की कृपा से ही विवाह हो सकता है । शेष १० प्रतिशत व्यक्तियों का विवाह अन्य आध्यात्मिक कारणों से नहीं हो पाता । ऐसी परिस्थिति में कारणानुसार उपाय करने पडते हैं ।)
  • २. अत्युच्च स्तर के देवताओं में ‘ब्रह्मचारी’ अथवा ‘विवाहित’ जैसा कोई भेद नहीं होता । इन सब देवताओं का जन्म संकल्प द्वारा अर्थात ‘अयोनिसंभव’ होता है, जिस कारण उनमें स्त्री अथवा पुरुष जैसा कोई लिंगभेद नहीं होता । ऐसा अंतर मानवनिर्मित है । स्त्रीवाचक देवता अर्थात देवताओं की शक्ति ।

११. चिरंजीवी

अपने विभिन्न अवतारों में प्रभु श्रीराम तो वही रहते हैं, परंतु प्रत्येक अवतार में हनुमान का स्थान कोई और ले लेता है । हनुमान सप्तचिरंजीवों में से एक हैं, फिर भी चार युगों के अंत में ये सप्तचिरंजीव मोक्ष को प्राप्त होते हैं एवं इन का स्थान सात आध्यात्मिक दृष्टि से) अति उन्नत व्यक्ति ले लेते हैं ।

संदर्भ : सनातनका ग्रंथ, ‘श्री हनुमान