हिन्दू धर्म की रक्षा करना, प्रत्येक व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य !

१. धर्मरक्षाका महत्त्व

अ. आध्यात्मिक दृष्टिकोणसे

अ. ‘धर्मका विनाश खुली आंखोंसे देखनेवाला महापापी है, जबकि धर्मरक्षाके लिए प्रयास करनेवाला मुक्तिका अधिकारी बनता है’, यह धर्मवचन है ।

आ. जो धर्मकी रक्षा करता है, उसकी रक्षा स्वयं धर्म (ईश्‍वर) करता है ।

इ. जो ईश्‍वर स्वयंमें विद्यमान है, वही ईश्‍वर हमारे धर्मबन्धुओंमें हैं । कुछ लोग धर्माचरण और साधना द्वारा अपनेमें विद्यमान ईश्‍वरको प्रसन्न करते समय धर्मबन्धुओंपर होनेवाले आघातोंके समय भी उनके विषयमें संवेदनहीन रहते हैं । उनके इस आचरणसे उनमें विद्यमान ईश्‍वर क्या कभी प्रसन्न होंगे ?

ई. कोई भी कृत्य कालानुसार करनेका अत्यधिक महत्त्व है । धर्मरक्षा करना, वर्तमानमें कालानुसार आवश्यक धर्मपालन ही है । गुरुतत्त्व भी कालानुसार उचित धर्मपालन करना सिखाता है । धर्मरक्षा हेतु कौरवोंसे लडनेके कारण शिष्य अर्जुन, गुरु श्रीकृष्णका प्रिय हुआ ।

संक्षेपमें, धर्मरक्षण हेतु प्रयत्न करनेपर हमपर ईश्‍वरीय कृपा होती है ।

आ. राष्ट्रहितके दृष्टिकोणसे

‘सनातन धर्म और केवल धर्म ही हिन्दुस्थानका जीवन है । जिस दिन यह नष्ट हो जाएगा, उस दिन हिन्दुस्थानका अन्त हो जाएगा । आप कितनी भी राजनीति अथवा समाजसुधार करें, भले ही कुबेरकी सम्पूर्ण सम्पत्ति इस आर्यभूमिके प्रत्येक पुत्रपर बहा दें, सबकुछ निष्फल
होगा ।’ – स्वामी विवेकानंद

२. हिन्दू धर्मकी वर्तमान स्थिति

अवतार, ऋषि-मुनि, सन्त और राजा- महाराजाओंद्वारा अनादि कालसे रक्षित विश्‍ववन्दनीय हिन्दू धर्म आज सर्व दिशाओंसे संकटोंसे घिरा हुआ है । धर्मद्रोही और हिन्दूद्वेषी लोग सार्वजनिकरूप से हिन्दू धर्मपर आघात कर रहे हैं । धर्मपर आघात करनेवाले अपने कट्टरपन्थी पूर्वजोंकी परम्परा आगे बढा रहे हैं । इसके अतिरिक्त, स्वयंको धर्म-निरपेक्ष, आधुनिक, विज्ञानवादी और समाजसुधारक कहलानेवाले कुछ हिन्दू भी धर्म पर आघात करने लगे हैं । हमारे पूर्वजोंद्वारा रक्षित महान हिन्दू धर्म यदि हमें बचाना है, तो प्रत्येक हिन्दूको धर्मपर हो रहे आघातोंके विषयमें समझकर उन्हें रोकनेके लिए कार्य करना चाहिए ।

३. धर्मरक्षा हेतु ये करें !

अ. चित्र, विज्ञापन, नाटक, सम्मेलन, समाचार-पत्र, उत्पाद आदि माध्यमोंद्वारा होनेवाला देवताओं और राष्ट्रपुरुषों का अनादर रोकें ! इसके लिए सर्वप्रथम देवताओं और राष्ट्रपुरुषोंका अनादर करनेवाले उत्पादोंका उपयोग न करें !

आ. देवताओंकी मूर्तियोंकी तोडफोड और देवालयोंमें चोरियां न हों, इस हेतु देवस्थानोंके न्यासी और ग्रामीणों का प्रबोधन करें !

इ. हिन्दुत्वनिष्ठ नेता और सन्तोंकी हत्या रोकने हेतु ‘स्वरक्षा प्रशिक्षण’ लेकर प्रतिकारक्षम बनें !

र्इ. हिन्दू सन्तोंको अन्यायपूर्वक बन्दी बनाए जाने तथा कारागारमें उनपर हो रहे अत्याचारोंके विरुद्ध आन्दोलन कर

उ. हिन्दुओंकी धार्मिक शोभायात्राओंपर (जुलूसोंपर) होनेवाले आक्रमण, गोहत्या और ‘लव जिहाद’ जैसे हिन्दूविरोधी षड्यन्त्रोंके विरुद्ध हिन्दुओंका प्रबोधन करें !

ऊ. ‘अन्धश्रद्धा निर्मूलन कानून’, ‘मन्दिर सरकारीकरण कानून’ जैसे धर्मविरोधी कानूनोंकी निर्मिति तथा मन्दिरोंको अनधिकृत बताकर उसे उद्ध्वस्त करनेकी शासकीय नीतियोंका वैध मार्गसे प्रतिकार करें !

ए. प्रलोभन दिखाकर अथवा बलपूर्वक किए जानेवाले हिन्दुओंके धर्म- परिवर्तनका विरोध करें !

एे. हिन्दू धर्म, देवता, धर्मग्रन्थ, सन्त और राष्ट्रपुरुषोंकी आलोचना करनेवालोंके विरुद्ध पुलिसमें परिवाद (शिकायत) लिखवाएं !

आे. धार्मिक तथा सामाजिक उत्सवोंमें अनुचित कृत्य (उदा. बलपूर्वक धनसंकलन, अश्‍लील नृत्य, महिलाओंसे छेडछाड, मद्यपान इत्यादि) न होने दें !

४. धर्मरक्षा-सम्बन्धी कार्य करनेके कुछ सामान्य चरण

अ. प्रबोधन : धर्महानि करनेवाले व्यक्तिका प्रबोधन कर उसे धर्महानि करनेसे परावृत्त करें !

आ. विरोध : प्रबोधनके उपरान्त भी धर्महानि होती रहे, तो विभिन्न मार्गोंसे विरोध करें, उदा. पत्र, ‘फैक्स’ अथवा ‘इ-मेल’ भेजें; दूरभाष करें !

इ. ज्ञापन : धर्महानि रोकनेके लिए शासनको ज्ञापन दें !

ई. धर्मभावनाओंको ठेस पहुंचानेवालोंके विरुद्ध पुलिसमें परिवाद (शिकायत) करें !

उ. संयत आन्दोलन : उपरोक्त प्रयत्नोंके उपरान्त भी धर्महानि जारी ही रहे, तो संयतमार्गसे आन्दोलन करें !

ऐसे विभिन्न माध्यमोंसे कर्तव्य भावसे धर्मरक्षा करनेपर हम भगवानकी कृपाके पात्र होंगे ।

राष्ट्र और धर्म रक्षा हेतु ‘सनातन संस्था’ और ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ वैध मार्गसे आन्दोलन कर रही है । उनके कार्यमें आप भी सम्मिलित होइए !

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘धर्मका आचरण एवं रक्षण’