कंबोडिया में सनातन हिन्दू धर्म से संबंधित राजा नरोदोम सिंहमोनी के राजमहल के चिन्ह

कंबोडिया के राजा का विशेषतापूर्ण राजमहल

१. कंबोडिया का राजा नरोदोम सिंहमोनी (राजा नरोत्तम सिंहमुनी) ने फ्रेंच सरकार की सहायता से नोम फेन नगर को शाश्‍वत राजधानी बनाकर ४ नदियों की संगम के स्थानपर राजमहल का निर्माण करना

हमने २४ मार्च को कंबोडिया के राजा का राजमहल, कंबोडिया का राष्ट्रीय वस्तु संग्रहालय तथा राष्ट्रीय स्मारक देखना सुनिश्‍चित किया । उसके अनुसार हम सुबह ८ बजे राजमहल की ओर जाने के लिए निकले । १५ वीं शताब्दी तक कंबोडिया की राजधानी वहां की सीम रिप नामक प्रांत में थी । उस नगरी को अब अंकोर नगरी कहा जाता है । उसके पश्‍चात वहां के खमेर हिन्दू साम्राज्य बौद्ध राष्ट्रों के आक्रमण के कारण नष्ट हुआ । १६ वीं शताब्दी से लेकर कंबोडिया की राजधानी अनेक बार बदली गई । अंततः वर्ष १८६६ में तत्कालीन कंबोडिया के राजा नरोदोहम सिंहमोनी (राजा नरोत्तम सिंहमुनी) ने फ्रेंच सरकार की सहायता के नोम फेन नगर को कंबोडिया की शाश्‍वत राजधानी बनाई । नोम फेन में जहां ४ नदियों का संगम है, उसके तट पर राजमहल का निर्माण किया । तब से लेकर अभी तक यह राजमहल कंबोडिया के सभी राजाआें का प्रमुख केंद्र बन गया है । प्रस्तुत राजा को चाहे सम्मान हो; परंतु कंबोडिया की सरकार पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है ।

२. राजमहल के बाहर तथा अंदर के सभी चिन्हों का सनातन हिन्दू धर्म से संबंधित होना

राजमहल की सीढीयों के आरंभ में ही दोनों छोर पर स्थित नागों की मूर्ति गोल में दिखाई दे रही है । (छायाचित्र क्र. १)

इस राजमहल की विशेषता यह है कि इस राजमहल का निर्माण चीन तथा फ्रेंच वास्तुशैली के अनुसार किया गया है; परंतु राजमहल में विद्यमान सभी चिन्ह सनातन हिन्दू धर्म से संबंधित हैं । राजमहल के परिसर में प्रवेश करते समय श्रीविष्णुजी तथा शिवजी की एकत्रित रूप से हरिहर मूर्तियां दिखाई देती हैं । मुख्य राजमहल की सीढियों के दोनों ओर वासुकी तथा तक्षक, इन २ नागों की मूर्तियां दिखाई देती हैं । (छायाचित्र क्र. १ देखें ।)

राजमहल के छत को दिया गया स्तूप का आकार तथा उस पर अंकित गोल में चतुर्मुख ब्रह्मा दिखाई दे रहे हैं । (छायाचित्र क्र. २)

वासुकी नाग पर जिसप्रकार से चोईयां (स्केल्स) होते हैं, उसीप्रकार से राजमहल की छत को चीनी शैली में चोईयां बनाई गई हैं । राजमहल के छत के मध्यभाग को स्तूप का आकार दिया गया है और उसे सुमेरू पर्वत कहा जाता है । उस सुमेरू के नीचे ४ मुख हैं, जो चतुर्मुख ब्रह्माजी हैं । (छायाचित्र क्र. २ देखें ।) राजमहल में जहां राजा बैठता है, उस राजसभा के अंदर की सभी दीवारों पर रामायण तथा महाभारत के प्रसंग अंकित किए गए हैं । कंबोडिया के लोगों का यह मानना है कि राजमहल देवलोक है और उसमें रहनेवाला राजा श्रीमहाविष्णुजी का प्रतीक होता है । राजमहल के अधिकांश खंबों पर विष्णुवाहन गरुड अंकित है । गरुड, विष्णुजी के वाहन हैं, इसलिए कंबोडिया में उनका महत्त्व है । (छायाचित्र क्र. ३ देखें ।)

गोल में राजमहल के खंबोंपर अंकित विष्णुवाहन गरुड की मूर्ति दिखाई दे रही हैं । (छायाचित्र क्र. ३)

३. राजमहल परिसर में स्थित पगोडा की एक ओर नंदी तथा कैलास पर्वत के मंदिर का होना

राजमहल परिसर में बौद्ध धर्म से संबंधित एक बौद्ध मंदिर है, जिसे सिल्वर पगोडा कहा जाता है; क्योंकि उसके अंदर चांदी से बने ५ सहस्र (हजार) ३२९ फर्श लगाए गए हैं । मंदिर के मध्यभाग में ६०० वर्ष पुरानी पाचू की बुद्ध की मूर्ति है । उसे लोग पवित्र मानते हैं । इस मंदिर में अलग-अलग देशों की ओर से राजवंश को भेंट की गईं बुद्ध की ६५० छोटी-बडी मूर्तियां हैं । पाचू से बने बुद्ध की मूर्ति के सामने ९० किलो सोना तथा २ सहस्र (हजार) ८६ अमूल्य हीरों से बनाई गए बुद्ध की खडी मूर्ति है । वास्तव में इस पगोडा की बाजू में भगवान शिवजी का वाहन नंदी तथा कैलास मंदिर, ऐसे २ मंदिर हैं । उससे एक समय में सिल्वर पगोडा शिवमंदिर होगा, ऐसा लगता है । हमारे साथ आए मार्गदर्शक (गाईड) ने हमें बताया कि विगत १६० वर्षों में कंबोडिया में ४ सहस्र से भी अधिक पगोडों का निर्माण किया गया है । राजमहल से सटे सिल्वर पगोडा की बाईं ओर एक मंडप है । उसकी दीवारपर रामायण एवं महाभारत के दृश्य रंगाए गए हैं । उसी परिसर में राजाआें द्वारा उनकी पूर्वजों की अस्थियां रखे हुए स्तुपों का निर्माण किया गया है और उनकी चारों दिशाआें में ४ स्तुप हैं । इन स्तुपों को राज स्तुप कहा जाता है ।

४. वस्तु संग्रहालय में राजा, रानी तथा राजगुरु द्वारा उपयोग किए गए वस्रप्रावरणों की विशेषताएं

राजमहल के परिसर में स्थित एक छोटे वस्तुसंग्रहालय में राजा, रानी तथा राजगुरु द्वारा उपयोग किए गए वस्रप्रावरण रखे गए हैं । रानियां प्रतिदिन अलग-अलग रंगों की अर्थात सप्ताह के ७ दिनों के आधारपर ७ रंगों के वस्रों का उपयोग करती थीं । उसी प्रकार से राजा भी युद्ध में जाते समय पृथ्वी, आप, तेज, वायु इन तत्त्वों के अनुसार ४ रंगों के सुनिश्‍चित किए गए वस्रप्रावरणों का उपयोग करते थे । राजगुरु राजा को ज्योतिषशास्त्र के अनुसार किसी समयपर कौन से वस्रप्रावरण धारण करने चाहिएं, इसका मार्गदर्शन करते थे । राजगुरु संभवतः पीले अथवा श्‍वेत वस्र धारण करते थे ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात