दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन अंतर्गत प्रथम ‘हिन्दू राष्ट्र संसद’ में आदर्श मंदिर प्रबंधन पाठ्यक्रम सिखाने की सूचना

मंदिरों को मॉल तथा तीर्थक्षेत्रों को पर्यटनस्थल न बनाने की मांग !

मंच पर उपस्थित बाएं से धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळजी, श्री. अनिल धीर, श्री. आनंद जाखोटिया एवं बोलते हुए सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी

रामनाथी – प्राचीन काल में अंकोर वाट, हम्पी, आदि भव्य मंदिरों का निर्माण करनेवाले राजा-महाराजाओं ने उनका उत्तम व्यवस्थापन किया था । इन मंदिरों के माध्यम से गोशालाओं, अन्नछत्रों, धर्मशालाओं, शिक्षाकेंद्रों आदि चलाकर समाज की अमूल्य सहायता की जाती थी । उसके कारण ही हिन्दू समाज मंदिरों से जुडा रहता था; परंतु आज के समय में मंदिरों का इतना व्यापारीकरण हुआ है कि ये मंदिर व्यापारीक संकुल (शॉपिंग मॉल) बन चुके हैं, साथ ही विकास के नाम पर तीर्थस्थलों को पर्यटनस्थल बनाया जा रहा है । इसे रोकना आवश्यक है । इसलिए मंदिरों के न्यासियों को और पुरोहितों को मंदिरों का आदर्श व्यवस्थापन करना चाहिए । इसे करने के ळिए ‘मंदिरों का आदर्श व्यवस्थापन’ (दी टेम्पल मैनेजमेंट) यह पाठ्यक्रम चलाना चाहिए; इस विषय पर ‘हिन्दूराष्ट्र संसद’ में विचारमंथन किया गया ।

‘हिन्दू राष्ट्र संसद’ में उपस्थित हिंदुत्वनिष्ठ

१३ जून को दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के दूसरे दिन ‘मंदिराेंं कासुव्यवस्थापन’ इस विषय पर इस हिन्दू राष्ट्र संसद में विभिन्न मंदिरों के न्यासियों, श्रद्धालुओं, अधिवक्ताओं और हिन्दुत्वनिष्ठों ने अपने अभ्यासपूर्ण विचार व्यक्त किए । अन्य मान्यवरों ने भी विचारमंथन किया । इस संसद में सभापति के रूप में भुवनेश्वर (ओडिशा) के ‘भारत रक्षा मंच’के राष्ट्रीय महामंत्री अनिल धीर, उपसभापति ‘हिन्दू जनजागृति समिति’के धर्मप्रचारक संत पू. नीलेश सिंगबाळजी और सचिव के रूप में ‘हिन्दू जनजागृति समिति’के मध्यप्रदेश तथा राजस्थान राज्य समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया ने कामकाज देखा ।

समाज में नैतिकता बढाने के लिए मंदिरों की आवश्यकता है ! – (सुश्री) रामप्रियाश्री (माई) अवघड, अध्यक्षा, ‘रामप्रिया फाऊंडेशन’, अमरावती

रामप्रिया फाउंडेशन की अध्यक्षा रामप्रियाश्री (माई) अवघडहिन्दू समाज शरीर से हिन्दू है; परंतु उसकी भाषा अंग्रेजों की बन चुकी है । मंदिर हमारे श्रद्धा और प्रेरणा के केंद्र हैं; परंतु इन्हीं श्रद्धाओं पर आघात कर हमारे ५ लाख से अधिक मंदिरों का भंजन किया गया । अब तो मंदिरों की रक्षा करने के लिए एक व्यवस्था का निर्माण करने की आवश्यकता है । यह व्यवस्था हिन्दू जनजागृति समिति कर रही है । हमारे देश में विभिन्न स्थानों पर मंदिर हैं । ये मंदिर सद्विचारों की प्रेरणा देते हैं । जहां मंदिर होते हैं, वहां के परिसर में चैतन्य निर्माण होता है । मंदिरों के देवताओं की प्रतिदिन उपासना करते-करते श्रद्धालुओं में विद्यमान देवत्व भी जागृत होता है । उसके लिए मंदिरों में आनेवाले हिन्दू श्रद्धालुओं का एकत्रीकरण कर उन्हें धर्मशास्त्र सिखाया जाना चाहिए । विशेषरूप से छोटे बच्चे और युवकों को मंदिरों के साथ जोडने की आवश्यकता है । लोगों में नैतिकता बढने के लिए मंदिरों की आवश्यकता है ।
केवळ रामनाम का जाप करना उपयोगी नहीं है, अपितु रामकार्य में योगदान देने से भक्ति सफल होती है । योगदान न देने से भक्ति सफल नहीं होती । संतों द्वारा बताए अनुसार वर्ष २०२५ में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने ही वाली है; परंतु हम सभी को उस कार्य में योगदान देने की आवश्यकता है ।’’

मंदिरों में व्यक्तिस्वतंत्रता को नहीं, अपितु धर्माचरण का ही महत्त्व होने से वस्त्रसंहिता लागू की जाए ! – सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था

‘‘आज के समय में हिन्दू धर्म को न माननेवाले अथवा देवता के प्रति श्रद्दा न रखनेवाले आधुनिकतावादी ही व्यक्तिस्वतंत्रता के नाम पर मंदिर की वस्त्रसंहिता का विरोध करते हैं । मंदिरों में देवता के दर्शन के ळिए तंग वस्त्रों में अथवा परंपराहीन वेशभूषा में जाना, इसे हम ‘व्यक्तिस्वातंत्रता’ नहीं कहेंगे । प्रत्येक व्यक्ति को ‘अपने घर में और सार्वजनिक स्थानों पर कौनसे कपडे पहनने चाहिएं’, इसकी व्यक्तिस्वतंत्रता है; परंतु मंदिर धार्मिक स्थल होने से वहां धार्मिकता के नअुरूप ही आचरण करना पडेगा । यहां व्यक्तिस्वतंत्रता को नहीं, अपितु धर्माचरण का महत्त्व है ।’’, ऐसा मार्गदर्शन सनातन के संत सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने किया । ‘हिन्दू राष्ट्र संसद’ में ‘मंदिर व्यवस्थापन’ इस विषय पर किए गए विचारमंथन में ‘मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए वस्त्रसंहिता लागू की जाए !’ इस विषय पर वे मार्गदर्शन कर रहे थे ।

सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने आगे कहा कि,

१. तमिलनाडू उच्च न्यायालय ने भी ‘वहां के मंदिरों में प्रवेश करने के लिए सात्त्विक वेशभूषा होनी चाहिए’, इसे स्वीकार कर १ जनवरी २०१६ से वस्त्रसंहिता लागू की है । उसके अनुसार श्रद्धालुओं को केवल पारंपरिक वस्त्र धारण करना अनिवार्य बना दिया गया है ।

२. १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन का श्री महाकालेश्वर मंदिर, महाराष्ट्र का श्री घृष्णेश्वर मंदिर, वाराणसी का श्री काशी-विश्वेश्वर मंदिर, आंध्रप्रदेश का श्री तिरुपति बालाजी मंदिर, केरल का विख्यात श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, कन्याकुमारी का श्री माता मंदिर ऐसे कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए सात्त्विक वस्त्रसंहिता लागू हुई है ।

३. हम यह आवाहन करते हैं कि भारत के सभी मंदिर इस प्रकार से वस्त्रसंहिता लागू कर मंदिरों में धर्माचरण को प्रधानता दें ।

सरकारें मंदिरों की ओर धनप्राप्ति के साधन के रूप में देख रहे हैं ! – पू. नीलेश सिंगबाळजी, धर्मप्रचारक संत, हिन्दू जनजागृति समिति

मंदिर चैतन्य के स्रोत होने के कारण यहां के तीर्थस्थलों में देश-विदेशों के श्रद्धालु जाते हैं । आक्रांताओं ने हमारे सहस्रों मंदिर ध्वस्त किए हैं । इन मंदिरों के पुनर्निर्माण के लिए हिन्दू आज की संघर्ष कर रहे हैं, तो दूसरी ओर धर्मनिरपेक्ष सरकारें मंदिरों का अधिग्रहण कर रहे हैं । मंदिरों के निर्माण में किसी प्रकार का योगदान न होते हुए भी सरकारें मंदिरों की ओर धनप्राप्ति के साधन के रूप में देख रही हैं । देवनिधि का दुरुपयोग किया जा रहा है । अनेक मंदिर समितियों के विरुद्ध न्यायालय में अभियोग चल रहे हैं । हिन्दू मंदिरों में दिए जानेवाले दान का उचित विनियोग होना भी महत्त्वपूर्ण है । इसके लिए मंदिरों का सुनियोजन होना आवश्यक है ।

मंदिर केवल धनवान लोगों के लिए नहीं, अपितु सामान्य लोगों के लिए भी हैं ! – रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति

‘‘हिन्दू धर्म और मंदिरों का प्राचीनकाल से संबंध है । धर्म की रक्षा में मंदिरों का बडा योगदान है । इसलिए मंदिरों का सुनियोजन किया जाना चाहिए । मंदिर केवल धनवान लोगों के लिए ही नहीं, अपितु सामान्य लोगों के लिए भी हैं । इसलिए मंदिर व्यवस्थापन में सर्वसामान्य लोगों का भी विचार किया जाना चाहिए ।’’, ऐसा प्रतिपादन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने किया ।

श्री. रमेश शिंदे ने आगे कहा कि,

१. आधुनिक मंदिरों में फर्श ‘मार्बल’ अथवा ‘ग्रैनाईट’के बने होने से धूप में श्रद्धालुओं के पैर जलते हैं । उस पर उपाय के रूप में गुरुद्वार के मार्ग में पानी की व्यवस्था होती है, तो क्या हम मंदिरों में भी इस प्रकार की व्यवस्था कर सकते हैं ? मंदिर परिसर में ठंडक बनी रहने के लिए मंदिर परिसर में वृक्ष भी लगाए जा सकते हैं ।

२. मंदिर में आनेवाले अर्पण का विनियोग करने की व्यवस्था पारदर्शी होनी चाहिए । मंदिर के धन का उपयोग धर्मप्रसार के लिए होना चाहिए ।

३. मंदिरें की ओर से वेदपाठशालाएं भी चलाई जानी चाहिएं । मंदिरों में ग्रंथालय होना चाहिए । उसके द्वारा मंदिर के इतिहास और हमारी संस्कृति की जानकारी दी जानी चाहिए ।

४. कुछ मंदिरों में दर्शन के लिए शुल्क लिया जाता है । धन के आधार पर नहीं, तो भाव होनेवाले श्रद्धालुओं को देवता का दर्शन मिलना चाहिए ।

अपना काम ठीक से न कर सकनेवाली सरकार मंदिरों का कार्य क्या देखेगी ? – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

आज के समय में मंदिरों की रक्षा के लिए हिन्दुओं का दबावसमूह तैयार करना आवश्यक है । मंदिरों के धन का उपयोग हिन्दुओं के लिए ही किया जाना चाहिए; परंतु वैसा न होकर अनेक मंदिरों के धन का उपयोग सामाजिक कार्य के लिए किया जाता है । शिरडी देवस्थान ने एक बांध की परियोजना के लिए ५०० करोड की आर्थिक सहायता दी । वास्तविक यह आर्थिक सहायता किसानों के लिए न देकर उस क्षेत्र के एक राजनेता के राजनीतिक लाभ के लिए दिया गया था । निजी क्षेत्र में काम करनेवाले कर्मचारियों ने काम में ढिलाई बरती, तो उन्हें दंड दिया जाता है; तो मंदिर के व्यवस्थापन में ढिलाई बरतनेवालों को दोगुना दंड दिया जाना चाहिए । सरकार अपना काम ठीक से नहीं करती, तो मंदिरों का व्यवस्थापन क्या देखेगी ? हमें सरकार की इस अकार्यक्षमता को निरंतर उजागर करते रहना चाहिए ।

मंदिरों का आदर्श व्यवस्थापन कैसे होना चाहिए, यह दिखा देना होगा ! – अनिल धीर, राष्ट्रीय महामंत्री, भारत रक्षा मंच, भुवनेश्वर, ओडिशा.

आज अनेक मंदिरों के स्थान पर मॉल बन रहे हैं, जो पर्यटकों के लिए हैं । मंदिर पर्यटन के स्थान नहीं हैं, अपितु वे धार्मिक केंद्र हैं । पर्यटक तंग कपडों में मंदिरों में प्रवेश करते हैं; इसलिए मंदिरों के लिए वस्त्रसंहिता (ड्रेसकोड) सुनिश्चित किया जाना चाहिए । कुछ मंदिरों का व्यवस्थापन अच्छे ढंग से किया जाता है । मंदिरों का आदर्श व्यवस्थापन कैसे होना चाहिए, यह हिन्दुओं को विश्व को दिखा देना चाहिए ।

हिन्दू राष्ट्रसंसद में सम्मिलित अन्य मान्यवरों द्वारा व्यक्त अनुभव !

१. ह.भ.प. मदन तिरमारे, गजानन महाराज सेवा समिति, अमरावती – ग्रामवासियों ने मंदिर सामूहिक उपासना की, तो उन्हें उसका लाभ मिलता है, इसे ध्यान में रखकर हमने अनेक मंदिरें में सभी आयुसमूह के लोगों को एकत्रित करने का प्रयास किया । सामूहिक उपासना करने से गांव के लोगों में संगठितता उत्पन्न होकर उनमें सकारात्मक परिवर्तन आ रहे हैं ।

२. श्री. सुधाकर टाक, अध्यक्ष, राष्ट्रसंत श्री संत पाचलेगांवकर महाराज, मुक्तेश्वर आश्रम, नांदेड – अहम हमारे आश्रम के सभी व्यवहारों में पारदर्शिता रखते हैं । हमारे आश्रम में ‘जीन्स’ पहनने पर प्रवेश नहीं दिया जाता ।

३. श्री. महेश डगला, हिन्दू उपाध्याय समिति, अध्यक्ष, आंध्रप्रदेश – तिरुपति बालाजी मंदिर में होनेवाले घोटालों को ध्यान में रखकर हिन्दुओं को यह बात ध्यान में लेनी चाहिए कि मंदिरों को सरकारीकरण के चंगुल से मुक्त किया जाना चाहिए ।

४. श्री. गणेश महाजन, अध्यक्ष, श्रीद्वादश ज्योर्तिलिंग आर्य वैश्य नित्यान्न सतराम ट्रस्ट, नांदेड – विगत ७५ वर्षाें से मेरे पूर्वजों ने अन्नदान का बडा कार्य किकया है । इस अन्नदान के कार्य को निरंतर जारी रखने के लिए मैं मेरा संपूर्ण जीवन व्यतीत करनेवाला हूं ।

५. श्री. शंकर खरेल, नेपाल – अनेक मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते ही दलाली आरंभ होती है । मंदिर व्यापारीक आखाडे बन रहे हैं । नेपाल में ३२ वर्षतक वामपंथियों द्वारा हिन्दुओं के मंदिरों की भूमि हडप ली गई; इसलिए मंदिरों की रक्षा होना आवश्यक है ।

६. स्वामी संयुक्तानंद महाराज, भारत सेवाश्रम संघ – भारत मंदिरों के कारण पहचाना जानेवाला देश है । हमारे देश में श्रद्धापूर्वक देवता का पूजन किया जाता है । मंदिरों के कारण व्यक्ति का देवता के साथ व्यक्तिगत संबंध जुड जाता है । आज के समय में मंदिरों को व्यापारीक संकुल का स्वरूप आ गया है, उसे दूर करने हेतु भारत के सभी हिन्दुओं को संगठित होकर प्रयास करने चाहिएं ।

७. श्री. मदन उपाध्याय, श्रीराम शक्ति समाज रक्षा केंद्र, छत्तीसगढ – मंदिरों में वेतन लेनेवाले पुजारियों की नियुक्ति करने के कारण देवता का पूजन एक काम के रूप में किय ाजाता है; इसलिए पुजारियों को भी मंदिरों का व्यवस्थापन सिखाया जाना चाहिए ।

८. श्री. गणेशसिंह ठाकूर, सचिव, क्षत्रिय समाज राजपूत संघटना – नांदेड के श्री रेणुकामाता मंदिर में चल रहे भ्रष्टाचार के विरोध में हमने न्यायालयीन लडाई लडी, जिससे संबंधित लोगों को दंड मिला । हमारे साथ श्री रेणुकामाता के आशीर्वाद थे, उसके कारण ही यह संभव हुआ ।

९. श्री. निधीश गोयल, ‘जम्बू टॉक’ यू ट्यूब चैनेल, जयपुर – मंदिर का गर्भगृह सर्वत्र सूर्यप्रकाश की भांति चैतन्य का प्रक्षेपण का काम करता है । मंदिरों के निर्माण का इतिहास समझ लेना चाहिए ।

१०. डॉ. नीलेश लोणकर, अध्यक्ष, स्वतंत्रतावीर सावरकर युवा विचार मंच, पुणे – मंदिरात पहले मंदिरों में स्वच्छता और शांति होनी चाहिए, साथ ही देवताओं का विधिवत् पूजन होना चाहिए । मंदिरों में गैरहिन्दू कर्मचारी नहीं होने चाहिएं, साथ ही मंदिरों में ही काम करने की उनकी इच्छा हो, तो उन्हें हिन्दू धर्म का स्वीकार करना चाहिए ।

११. श्री. शरद कुलकर्णी, जनसंपर्क अधिकारी, मंगलग्रह देवस्थान, जलगांव : जलगांव (महाराष्ट्र) के अमळनेर में मंगल भगवान की मूर्ति है । यह मंदिर अतिप्राचीन है । इस मंदिर में देवताआतें की शास्त्रोक्त पद्धति से पूजा होती है । यहां के पुजारी पाटंबर पहनकर पूजा करते हैं । उसके कारण मंदिर में चैतन्य टिका हुआ है । इस मंदिर में धर्माचरण की जानकारी देनेवाले फलक लगाए गए हैैं ।

हिन्दू राष्ट्र संसद’ में ‘जयतु जयतु हिन्दूाष्ट्रम्’के जयघोष में पारित किए गए प्रस्ताव !

अ. सरकारी नियंत्रण हटाकर मंदिरों को भक्तों को सौंपा जाए ।

आ. मंदिरों में किसी भी काम के लिए अन्य पंथियों की नियुक्ति नहीं की जाए ।

इ. मंदिर परिसर में अन्य धर्म के प्रचार, साथ ही मदिरापान और मांस का सेवन करने पर संपूर्णरूप से प्रतिबंध लगाया जाए ।

 

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