कर्नाटक में श्री मुकाम्‍बिका मंदिर की देवनिधि की मंदिर प्रबंधन द्वारा करोडों रुपये की लूट !

  • कर्नाटक में देवस्थान और धार्मिक संस्थाओं के संघ ने एक संवाददाता सम्मेलन में जानकारी उजागर की !
  • सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं होने पर देवस्थान और धार्मिक संस्थानों के फेडरेशन ने राज्यव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी !
  • १५ साल में लुटेरी सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं !

भारत भर में सरकार द्वारा संचालित अधिकांश मंदिरों में भ्रष्टाचार हो रहा है या यहां तक कि मंदिरों की पवित्रता कायम रखी जाती है, फिर भी उनको सरकारी नियंत्रण से मुक्त नहीं किया गया हैं ! यह संताप जनक है ।

उडुपी (कर्नाटक) – अगर भक्तों द्वारा किया गया दान भ्रष्ट अधिकारियों की जेब में जाता है, तो भक्त मंदिरों में दान क्यों दें ? आर.टी.आई. से पता चला है कि श्री मुकांबिका देवस्थान प्रबंधन समिति में सरकारी अधिकारियों ने करोडों रुपये लूटे हैं । भक्तों द्वारा अर्पित धन, देवनिधि है और देवनिधि को लूटना महापाप है । श्री मुकांबिका देवी निश्चित रूप से इन महान पापियों को दंडित करेंगी ; हालांकि, प्रत्येक भक्त का यह कर्तव्य है कि वह इन अधिकारियों के विरुद्ध कडी कार्रवाई के लिए संघर्ष करे और तुरंत ही ‘मंदिर सरकारीकरण’ मुक्त कराए, क्योंकि मंदिर, देवनिधि को लूटने का एक उपकरण बन गया है । कर्नाटक देवस्थान और धार्मिक संस्थाओं के संघ के प्रवक्ता, श्री. गुरुप्रसाद गौड़ा ने यहां यह आवाहन किया । वह कोल्लूर में एक पत्रकार सम्मेलन में सरकार द्वारा संचालित श्री मुकांबिका मंदिर प्रबंधन समिति में बडे पैमाने पर घोटाले और वित्तीय कदाचार का खुलासा करने के लिए बोल रहे थे । इस समय, महासंघ के एक सदस्य, श्री. मधुसूदन अय्‍यर भी उपस्थित थे । इसी विषय पर बैंगलोर में एक पत्रकार सम्मेलन भी आयोजित किया गया था । महासंघ के राज्य समन्वयक श्री. मोहन गौड़ा द्वारा प्रस्तुत सूत्र :

सभी सरकार द्वारा संचालित मंदिरों को मुक्त करें !

पत्रकार सम्मेलन में श्री गौड़ा ने आर.टी.आई. दस्तावेजों के आधार पर श्री मुकांम्बिका देवस्थान प्रबंधन समिति के प्रबंधन की आलोचना की । “वर्ष २०१८-१९ की कैग रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक सरकार ने १४० प्रतिष्ठानों, सहकारी समितियों और ग्रामीण बैंकों में ६६५१८ करोड रुपये का निवेश किया, किंतु सरकार ने ०.०६ प्रतिशत या केवल ३८ करोड रुपये का लाभ कमाया ; वास्तव में, सरकार को इस राशि पर ८.२ प्रतिशत व्याज देना पडा । इससे सरकार को नुकसान हुआ । मोटे वेतन के बावजूद प्रशासनिक अधिकारी सरकार को नुकसान पहुंचा रहे हैं, तो क्या ये अधिकारी कभी मंदिरों का प्रबंधन ठीक से करेंगे ? यह इस मंदिर की प्रबंधन समिति के कार्यकलाप से स्पष्ट हो गया है । इसलिए, हम मांग कर रहे हैं कि सरकार द्वारा संचालित सभी मंदिरों को डी-गवर्न किया जाए”, ऐसा श्री गौड़ा ने कहा ।

श्री गौड़ा ने आगे कहा कि, ‘हम माननीय मुख्यमंत्री, साथ ही माननीय मंत्री कोटा श्रीनिवास पुजारी से मिलेंगे और हम श्री मुकांम्बिका देवस्थान के देवनिधि में हो रहे भ्रष्टाचार और दुर्भावनाओं की तत्काल जांच की मांग करेंगे । हमारा संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक कि देवनिधि का हर एक रुपया बरामद नहीं हो जाता और देवनिधि को लूटने वाले दोषियों को कडी सजा नहीं दी जाती है ।’

हिंदू समुदाय को लगता है कि वर्तमान सरकार हिंदू समर्थक सरकार है । इसलिए, उन्हें उम्मीद है कि मंदिर प्रणाली इस तरह की अनदेखी चीजों के विरुद्ध जल्द से जल्द गंभीर कार्रवाई करेगी । गौड़ा ने टिप्पणी की ।

श्री गौड़ा ने आर.टी.आई. दस्तावेजों में दिए गए विवरण की घोषणा करते हुए, मंदिर प्रबंधन समिति के भ्रष्टाचार को उजागर किया । निम्नलिखित कुछ उदाहरण हैं :

१. इस नियम के बावजूद कि भेंट में प्राप्त सोने और चांदी के आभूषणों के रिकॉर्ड को क्रम में रखा जाना चाहिए, सूची के अनुसार आभूषण का नियमित रूप से निरीक्षण किया जाना चाहिए और प्रमाणित किया जाना चाहिए ।

अ. मंदिर को दान के रूप में मिले सोने और चांदी के आभूषणों को नियमानुसार दर्ज नहीं किया गया था ।

आ. वर्ष २०१८ -१९ के लिए दान किए गए गहनों की सूची सरकारी लेखा परीक्षकों को प्रस्तुत नहीं की गई है ।

इ. वर्ष २०१६ में अधिकारी द्वारा देवी के ४ किलो २० ग्राम सोने के ९ हार चुरा लिए गए और अधिकारी को गिरफ्तार कर लिया गया था । यदि अधिकारी स्वयं देवी का सोना चुरा लेते हैं, तो ऐसे अधिकारियों पर कैसे विश्वास किया जा सकता है ?

२. यह देखा गया है कि फर्जी कर्मचारियों को दिखाकर बहुत अधिक भ्रष्टाचार किया जाता है । मंदिर के कर्मचारियों की, अधिनियम की धारा १३ के अनुसार विस्तृत जानकारी रखने के प्रावधान के बावजूद, मंदिर अधिकारियों के पास उनके के.वाई.सी. (अपने ग्राहक को जानें), जन्म तिथि आदि जैसे बुनियादी विवरण नहीं हैं ।

३. मंदिर के कर्मचारियों का भविष्य निधि पंजीकृत, भविष्य निधि आयुक्त के पास जमा नहीं किया गया है ; इसलिए, संबंधित सरकारी अधिकारियों पर ७ लाख ४६ हजार ३५५ रुपये का जुर्माना लगाया गया है ; हालांकि, सरकारी अधिकारी के वेतन से जुर्माना वसूलने के बजाय, यह भक्तों से मिले दान के माध्यम से भुगतान किया गया था । बार-बार मुद्दा उठाने के बावजूद मंदिर अधिकारियों ने इसे नजरअंदाज कर दिया । यह प्रश्न गंभीर है ; क्योंकि मंदिर के कई कर्मचारी अस्थायी हैं । निष्कर्ष यह है कि, अधिकारियों द्वारा फर्जी कर्मचारियों के नाम और उनके वेतन दिखाकर पैसा निगला जा रहा है ।

४. बडी मात्रा में अग्रिम धनराशि वितरित की जा रही है और यह कई दिनों से लंबित है । इसमें

अ. वर्ष २००४ में कुल २ करोड ४१ लाख रुपये बकाया है । २०१८-१९ में यह २ करोड रुपये से बढकर २ करोड ८३ लाख रुपये हो गया है ।

आ. मंदिर प्रबंधन के पास यह जानकारी नहीं है कि यह राशि किससे और किस प्रयोजन के लिए वसूली जानी है । इसका कोई विवरण लेखा परीक्षकों को नहीं दिखाया जाता है या उचित दस्तावेजों के साथ कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता है ।

इ. वर्ष २००४-०५ में, मंदिर प्रबंधन ने १ लाख ४५ हजार ९४ रुपये का दूरभाष बिल भुगतान किया है ; किंतु एक साल में, मंदिर प्रबंधन ने किसे फोन किए ? किस कारण के लिए किए ? या कुछ गलत किया ? यही वह प्रश्न है ।

५. भूमि के उचित पंजीकरण और मंदिर की अन्य संपत्तियों की कमी अत्यंत गंभीर है । परिणामस्वरूप, कई भूमि पर अतिक्रमण हो गया है । क्या मंदिर की व्यवस्था मंदिर की संपत्ति पर ध्यान देने योग्य है ? यह प्रश्न उठता है ।

६. कई अवैध वित्तीय लेनदेन बताए गए हैं । यह आंकडा करोडों रुपये में हो सकता है । जैसे-

अ. मंदिर प्रशासन ने कई लोगों को अनधिकृत दान करने की अनुमति दी है, और उन दान के लिए कोई रसीद नहीं है ।

आ. मंदिर प्रबंधन ने विभिन्न व्यय किए ; हालांकि, कोई भुगतान या वाउचर उपलब्ध नहीं है ।

इ. वर्ष २००४-५ में, मंदिर प्रबंधन ने टेलीफोन का १ लाख ४५ हजार ९४ रुपये का भुगतान किया है ; किंतु एक साल में, मंदिर प्रणाली ने किस तरह के फोन कॉल किए ? किस कारण के लिए किए ? या भ्रष्टाचार किया ? यही प्रश्न है ।

ई. वर्ष २००५ से २०१८ तक, मंदिर प्रबंधन ने छात्रों को विद्यालय की वर्दी के लिए ५३ लाख रुपये प्रदान किए ; हालांकि, कोई रसीद या प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं हैं । वास्तव में, यह उम्मीद की जाती है कि प्रबंधन उन लोगों के दान का अच्छा उपयोग करेगा जो दान करते हैं । लेकिन उन्होंने न्यूनतम आवश्यकताएं भी पूर्ण नहीं कीं ।

उ. वर्ष २०११ -१२ में मंदिर प्रबंधन ने रेस्ट हाउस के लिए बाल्टियां और २ लाख ३५ हजार ५५५ रुपये के कचरे के डिब्बे खरीदे । कितनी बाल्टियां और कचरा डिब्बे खरीदे गए, इसकी रसीदें व दर उपलब्ध नहीं हैं ।

ऊ. २०१८ में, जिला कलेक्टर के निवास के लिए २,३३,३६३ रुपये का टेलीफोन भुगतान, साथ ही नगरपालिका के कुछ कर्मचारियों के वेतन का भुगतान भी मंदिर निधि से किया गया था । ऐसा क्यों ? क्या सरकार के पास इसके लिए धन नहीं है ? क्या इसमें भी कोई भ्रष्टाचार है ? इन प्रश्नों के उत्तर मंदिर प्रबंधन समिति से लेना आवश्यक है !

७. मंदिर के विश्राम गृह पर, ३.३.२०१८ तक, २१ लाख ५२ हजार रुपये से अधिक का बकाया है ।

ऑडिटर्स ने कहा कि, मंदिर में २१ करोड ८० लाख रुपये के वित्तीय लेनदेन संदिग्ध हैं और मंदिर प्रबंधन को ८४ करोड ९६ लाख रुपये के बकाया की वसूली की आशा है ।

इस समय आगे की मांग भी की गई :

इस ऑडिट के आधार पर, मामले की पूरी जांच होनी चाहिए । जांच में दोषी पाए जाने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, और संबंधित व्यक्तियों से मंदिर का बकाया तुरंत वसूला जाना चाहिए ।
मंदिरों के सभी लेनदेन में पारदर्शिता लाने के लिए, मंदिर के सभी प्रकार के लेनदेन की जानकारी और उनके विस्तृत रिकॉर्ड मंदिर की वेबसाइट पर नियमित रूप से प्रकाशित किए जाने चाहिए ।
राज्य के सभी सरकारी संचालित मंदिरों को सरकार के नियंत्रण से मुक्त कर भक्तों को सौंप दिया जाए ।

मंदिरों के उचित प्रबंधन के लिए नियुक्त अधिकारी मंदिर का ऐसा उपयोग कर रहे हैं जैसे कि यह उनकी अपनी निजी संपत्ति हो ! – श्री मधुसूदन अय्यर

यह राज्य के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक, श्री मुकांम्बिका मंदिर में हो रहा है ; तो यह कल्पना करना कठिन है कि सरकारी अधिकारी अन्य मंदिरों के बारे में क्या कर रहे हैं । अधिकारी व्यवस्था बनाए रखने के लिए निजी संपत्ति के रूप में मंदिर का उपयोग कर रहे हैं । इसके अलावा, केवल हिंदू मंदिरों का ही सरकारीकरण क्यों किया जाता है, मस्जिदों और चर्चों का सरकारीकरण क्यों नहीं किया जाता है ? क्या यह सरकार की धर्मनिरपेक्षता है ? हम इसे सहन नहीं करेंगे और हम इसके विरुद्ध लडेगे ।

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