धर्मग्रंथ पर शपथ लेकर चलनेवाली व्यवस्था, स्वयं को कौन सी दृष्टी से ‘धर्मनिरपेक्ष’ कहलाती है ? – पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे

रतलाम (मध्यप्रदेश) में, सनातन धर्मसभा एवं महारूद्र यज्ञ समिति की ओर से आयोजित व्याख्यान

व्याख्यान में मार्गदर्शन करते हुए पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे, व्यासपीठ पर पीछली बाजू में बार्इं ओर से श्री. मिलिंद करंदीकर, महापौर श्रीमती सुनीता यारदे एवं भूतपूर्व विधायक श्री. कोमलसिंह राठोड

रतलाम (मध्यप्रदेश) : आज धर्मग्रंथ पर हाथ रख कर ली गई साक्ष को न्यायालय मानती है। यदि धर्मनिरपेक्ष एवं पंथनिरपेक्ष व्यवस्था में धर्मग्रंथ पर हाथ रख कर ली गई शपथ चल सकती है, तो धर्म पर आधारित अन्य व्यवस्थाएं क्यों नहीं चल सकती ? हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने यहां ऐसा प्रश्न उपस्थित किया। वे हाल ही में सनातन धर्मसभा एवं महारूद्र यज्ञ समिति की ओर से आयोजित व्याख्यान में बोल रहे थे।

इस अवसर पर व्यासपीठ पर रतलाम की महापौर श्रीमती सुनीता यारदे, ‘रतलाम महाराष्ट्र मंडल’ के अध्यक्ष श्री. मिलिंद करंदीकर एवं भूतपूर्व विधायक श्री. कोमलसिंह राठोड उपस्थित थे। कार्यक्रम का सूत्रसंचालन सनातन धर्मसभा के सहसचिव श्री. पुष्प्रेंद्र जोशी ने किया।

पू. डॉ. पिंगळेजी ने आगे कहा कि, ‘धर्म’ अर्थात केवल तारक रूप नहीं है। जो हनुमान प्रभु श्रीराम के सामने अत्यंत दास्यभाव में रहते थे, वे रावणादि असुरों के सामने आक्रमक होते थे, अर्थात यही धर्म है ! इसलिए केवल धर्म की ‘जानकारी’ होना एवं जीवन में धर्मसमान ‘आचरण’ होना इसमें अंतर है। जैसे शक्कर एवं उसकी मीठास अलग नहीं है; उसीप्रकार धर्म से मनुष्य को अलग करना असंभव है ! धर्म सर्वव्यापी है, यह त्रिकालबाधित सत्य है। अतः सभी को धर्म को जान कर उसका आचरण करना चाहिये !’

व्याख्यान में उपस्थित जनसमुदाय

मनुष्य को ‘मनुष्य’ बनाने हेतु धर्म ही आवश्यक है ! – श्री. मिलिंद करंदीकर, अध्यक्ष, रतलाम महाराष्ट्र मंडल

इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री. करंदीकर ने कहा कि, पू. डॉ. पिंगळेजी एक उच्चशिक्षित डॉक्टर होते हुए भी वे धर्मप्रसार कर रहे हैं, यह अत्यंत प्रशंसनीय है। सभी लोग कहते हैं कि, ‘हमारा धर्म श्रेष्ठ है’; परंतु केवल हिन्दू धर्म सभी से सिखने की दृष्टी प्रदान करता है। इससे अधिक ‘धर्मनिरपेक्ष’ धर्म और कौनसा होगा ? आज हमें धर्म एवं विज्ञान दोनों को आगे ले जाने की आवश्यकता है। कोई व्यक्ति शिक्षा से कितनी भी बडी हुई हो, मनुष्य को ‘मनुष्य’ बनाने हेतु ‘धर्म’ की ही आवश्यकता है !

प्रभु श्रीराम समान अपना सभी दायित्व प्रामाणिकता से पूरा करना, यही धर्म है ! – श्रीमती सुनीता यारदे, महापौर, रतलाम

रतलाम की महापौर श्रीमती सुनीता यारदे ने कहा कि, अपना कर्म एवं दायित्व प्रामाणिकता के साथ निभाना, यह भी ‘धर्म’ ही है। प्रभु श्रीराम ने अपने हर धर्म का यथायोग्य पालन किया। हमें मनुष्यजन्म मिला है, जिस का हमें सार्थक करना चाहिये।

आज पू. डॉ. पिंगळेजी ने आज की वैज्ञानिक भाषा में धर्म का महत्त्व समझा कर बताया। इनके समान संत हमारे गांव अनेक बार आने चाहिये। उनका आशीर्वाद सदैव हम सभी के साथ रहे !

यदि हर क्षेत्र के लिए अलग विशारद रहना आधुनिकता है, तो हर कार्य के लिए स्वतंत्र देवता रहनेवाला हिन्दू धर्म ‘पिछडा हुआ’ कैसे हो सकता है ?

पू. डॉ. पिंगळेजी ने कहा कि, जिस प्रकार पूर्व में प्राणी एवं मनुष्य के लिए एक ही डॉक्टर होते थे। अब मनुष्य के हर अवयव के लिए एक स्वतंत्र डॉक्टर होने पर हम कहते हैं कि ‘विज्ञान ने बड़ी उन्नति की ! पूरा विश्व आधुनिक हो गया है !’ उसी प्रकार जो पानी देती है, वह ‘वरुण देवता’, नदी स्वरूप ‘जल देवता’ ऐसे ३३ कोटि देवी-देवता रहनेवाले हिन्दू धर्म को ‘पिछडा हुआ’ कहना कैसे संभव है ?

क्षणचित्र

१. कार्यक्रम स्थल पर देवालय दर्शन, आचारधर्म, गोरक्षा आदि संदर्भों पर फ्लेक्स प्रदर्शनी तथा सनातन के ग्रंथ एवं सात्विक उत्पादों की भी प्रदर्शनी लगाई गई थी।

२. इस अवसर पर पू. डॉ. पिंगळेजी ने ‘प्रोजेक्टर’द्वारा सनातन आश्रम में किए गए विविध यज्ञ एवं उसमें आयी अनुभूतियों के संदर्भ में जानकारी दी।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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