श्री तुळजाभवानी मंदिर का करोडों रुपए के भ्रष्टाचार का प्रकरण बंद करने का चौंकानेवाला निर्णय !

न्यायालय एवं विधानमंडल का अनादर कर भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देनेवाले सरकारी अधिकारियों को निलंबित कीजिए – हिन्दू जनजागृति समिति

बाएं से हिन्दू विधि परिषद की अधिवक्ता वैशाली परांजपे, लोक जागृति मोर्चा के अध्यक्ष अधिवक्ता रमन सेनाड, समिति के राज्य संगठक श्री. सुनील घनवट, सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस और समिति के विदर्भ समन्वयक श्री. श्रीकांत पिसोळकर दिखाई दे रहे हैं।

नागपुर – सीआयडीने महाराष्ट्र की कुलदेवी श्री तुळजाभवानी मंदिर में 8 करोड 45 लाख 97 हजार रुपए का दानपेटी घोटाला करनेवाले 9 नीलामीदारों, 5 तहसिलदारों तथा अन्य 2 लोगों पर आय.पी.सी की धारा 406, 409, 420, 476, 468, 471, 109 एवं 34 के अनुसार अपराध पंजीकृत करने की महत्त्वपूर्ण अनुशंसा की थी । संभाजीनगर उच्च न्यायालय एवं विधानमंडल के आदेश से यह जांच चल रही थी; परंतु ऐसे में इन भ्रष्टारियों पर कठोर कार्यवाही करने के स्थान पर गृह विभाग के उपसचिव ने यह जांच बंद करने का चौंकानेवाला निर्णय लिया है । ऐसा निर्णय लेना विधानमंडल, साथ ही इसकी जांच पर नियंत्रण रखनेवाले उच्च न्यायालय का अनादर है । अपने अधिकारों का दुरूपयोग कर भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देनेवाले तथा न्यायालय का अनादर करनेवाले अधिकारियों को तत्काल निलंबित करें, साथ ही छत्रपती शिवाजी महाराजजी की कुलदेवी श्री तुळजाभवानी मंदिर में भ्रष्टाचार करनेवाले महापापियों को कठोर से कठोर दंड देखर हिन्दू समाज को एक अच्छा संदेश दे । हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ राज्य संगठक श्री. सुनील घनवट ने नागपुर की पत्रकार वार्ता में यह मांग महाराष्ट्र सरकार से की ।

इस अवसर पर ‘लोकजागृति मोर्चा’ के अध्यक्ष अधिवक्ता रमण सेनाड, ‘सनातन संस्था’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस, ‘हिन्दू विधिज्ञ परिषद’ की अधिवक्ता वैशाली परांजपे एवं समिति के विदर्भ समन्वयक श्री. श्रीकांत पिसोळकर उपस्थित थे ।

वर्ष 1991 से 2009 की अवधि में दानपेटी की नीलामी में करोडों रुपए का भ्रष्टाचार होने के उपरांत विधानमंडल में की गई मांग के अनुसार वर्ष 2011 में राज्य आपराधिक अन्वेषण विभाग की अेार से इस प्रकरण की जांच आरंभ हुई; परंतु इस प्रकरण में सरकारी अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों के संलिप्त होने के कारण 4-5 वर्ष बीतकर भी जांच आगे नहीं बढ पा रही थी; इसलिए समिति ने हिन्दू विधिज्ञ परिषद की सहायता से वर्ष 2015 में संभाजीनगर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका प्रविष्ट की । उस समय ३ बार न्यायालय ने जांच उचित ढंग से नही हो रही है, ऐसा बताकर जांच अधिकारियों को फटकारा । अंततः न्यायालय के आदेश के अनुसार वर्ष 2017 में गृह विभाग को सीआईडी का उक्त जांच का ब्योरा प्रस्तुत किया गया; परंतु पांच वर्ष बीतकर भी उस पर कार्यवाही न होने से वर्ष 2022 में समिति ने पुनः दो याचिकाएं प्रविष्ट की । उसे भी पांच वर्ष बीत जाने के उपरांत न्यायालय ने शासन से पूछा है, कि ‘दोषियों पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई है ?’ तब ‘यह प्रकरण 30 वर्ष पूर्व का है तथा इसमें अनियमितताएं होने’ का कारण बताकर सरकारी अधिकारियों ने आपस में ही यह जांच बंद करने का निर्णय लिया है, ऐसा सामने आया है । सर्वोच्च न्यायालय की संविधानपीठ ने ‘ललिताकुमारी विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकार, 2014(2) एस.सी.सी.क्र.1’ प्रकरण में ‘संज्ञानयोग्य अपराध होने पर भी अपराध पंजीकृत करने के आदेश’ दिए गए हैं; परंतु ऐसा होते हुए भी तुळजापुर प्रकरण में 8.5 करोड रुपए का घोटाला होते हुए भी इस प्रकरण को बंद करना अनुचित है । देवकोष लूटनेवाले महापापी यदि ऐसे ही खुले छूट गए तथा उन्हें दंड नहीं मिला, तो ऐसे लोग अन्य मंदिरों को लूटने में पीछे नहीं रहेंगे; इसलिए ‘सीआईडी’द्वारा दोषी प्रमाणित लोगों पर तुरंत अपराध पंजीकृत कर कठोर कार्यवाही की जाए, यह हमारी मांग है ।

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