पू. (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ली, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री श्री. लोकेंद्र बहाद्दूरचंद से भेंट !

हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी की नेपाल यात्रा

काठमांडु : हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी नेपाल यात्रापर हैं। वहां वे विविध मान्यवरों से भेंट कर रहे हैं। इस अवसरपर उनके साथ की गई बातचीत के विषय में संक्षेप में जानकारी दे रहे हैं।

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री श्री. लोकेंद्र बहाद्दूरचंद से पू. (डॉ.) पिंगळेजी की भेंट !

श्री. लोकेंद्र बहाद्दूरचंद (मध्य में) को सनातन के ग्रंथ भेंट देते हुए पू. (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे एवं दाईं ओर श्री. भरत चंद

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री श्री. लोकेंद्र बहाद्दूरचंद ने कहा, ‘किसी को भी ‘सेक्यूलर’ शब्द का अर्थ ज्ञात नहीं है। किसी भी देश के संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द नहीं लिखा है। आपातकाल के समय अकस्मात मध्यरात्रि में ही देश को सेक्यूलर घोषित किया गया। नेपाल में भी ऐसा ही हुआ है, उसके कारण जनता में अप्रसन्नता है। हिन्दू धर्म नैतिकता एवं अनैतिकता में होनेवाले भेद को स्पष्ट कर नैतिकता का पालन कैसे किया जाना चाहिए, यह सिखाता है। लोकतंत्र में मनगढंत आचरण किया जाता है; किंतु उसका परिणाम क्या होगा ? और क्या योग्य है अथवा क्या अयोग्य है ?, इसे जान लेने का प्रयास लोकतंत्र में नहीं किया जाता !’

इसपर पू. (डॉ.) पिंगळेजी ने कहा, ‘नेपाल में वास्तविक रूप से लोकतंत्र नहीं है। यदि यहां लोकतंत्र होता, तो यहां ९० प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू होते हुए भी नेपाल ‘हिन्दू राष्ट्र’ क्यों नहीं बन सका ? ये सभी सिद्धांतों को पश्‍चिम से आयात किया गया है, जिसका पालन वो स्वयं ही नहीं करते। जो हमारा नहीं है, उसका हम क्यों स्वीकार करें ? अब हिन्दुओं को जागृत होना होगा तथा धर्म का पालन करना होगा !’

इस अवसरपर पू. (डॉ.) पिंगळेजी ने नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री श्री. लोकेंद्र बहाद्दूरचंद को सनातनद्वारा प्रकाशित ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार’ एवं ‘धर्मशिक्षा फलक’ ग्रंथ भेंट दिए।

लिडरशिप एकॅडमी, नेपाल के संस्थापक श्री. संतोष शहा से पू. (डॉ.) पिंगळेजी ने ली भेंट !

श्री. संतोष शहा ने कहा, ‘आज की स्थिति में सभी लोग दूसरों को क्या करना चाहिए, यह तो बताते हैं; किंतु स्वयं उसके अनुसार आचरण नहीं करते। नेपाल विदेशी राष्ट्रों की युद्धभुमि बन चुका है। यहां कुछ न कुछ घटनाक्रम चल रहा है। अब ‘मधेसका’ विषय की चर्चा हो रही है। नेपाल के टुकडे हो रहे हैं। ये पहाडी (ग्रामीण), ये मधेसी (शहरी) आदि किसी न किसी कारण से विभाजन किया जा रहा है !’

इस पर पू. (डॉ.) पिंगळेजी ने कहा, ‘इसमें परिवर्तन लाने हेतु अनेक उपाय हैं। इसके लिए राजनिती विरहित संघटित शक्ति के एक व्यासपिठ की आवश्यकता है। हमारे विचार अलग हो सकते हैं; किंतु हम विविध संघटनों से जुड सकते हैं। अलग विचारधाराओंवाले होकर भी हमें धर्म के लिए एक होकर लडना चाहिए। जो धर्मांतरित ईसाई होते हैं, उनकी पहली पिढी में कट्टरतावादी विचार होते हैं। वह हम सभी के लिए हानीकारक है। इसके लिए समाज को जागृत करना हमारा कर्तव्य है। हमें वैचारिक स्तरपर लडना भी आवश्यक है !’

प्रा. गोविंदशरण उपाध्याय से भेंट !

पू. (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने प्रा. गोविंदशरण उपाध्याय से भेंट की। इस अवसरपर प्रा. उपाध्याय ने कहा, ‘विश्‍व के अनेक भागों में आज भी सनातन धर्म के अस्तित्व के प्रमाण मिल रहे हैं। कुछ स्थानोंपर मुसलमान भी हिन्दू धर्म का पालन करते हैं। नेपाल के परवत जिले में ७३ प्रतिशत जनसंख्या ब्राह्मणों की है। वहां जेमिनी ऋषी का वास्तव्य था। आज नेपाल में धर्मांतरण, राजनीतिक अस्थिरता, जाती-पातियों में समाज का विभाजन, भौगोलिक स्थिति आदि अनेक प्रकार की समस्याएं हैं !’

इस पर पू. (डॉ.) पिंगळेजी ने कहा, ‘हमें यह समझ लेना चाहिए कि, पाश्‍चात्त्य देश हमारे साथ किस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं। जब पाश्‍चात्य देशों में कोई पद्धति पुरानी हो जाती है, तब वह पद्धती भारत एवं नेपाल में आरंभ हो जाती है। जब नए भ्रमणभाष संच आते हैं, तब उनका मूल्य ३० सहस्र रुपए, कुछ समय पश्‍चात २० और तत्पश्‍चात १० तथा अंततः ५ सहस्र होता है। तो वो पहले चरण से लेकर अंतिम चरणतक इस मूल्य का कितना लाभ उठाते होंगे। पाश्‍चात्त्य देश क्या कर रहे हैं, इसे हमें जानकर लेना आवश्यक है !’

मेधा चिकित्सालय के प्रमुख के साथ भेंट

मेधा चिकित्सालय के प्रमुख श्री. किशोरजंग राणा से पू. (डॉ.) पिंगळेजी ने भेंट की। इस अवसरपर श्री. राणा ने उनसे पूछा, ‘आज के समय में हम किस प्रकार से शांति प्राप्त कर सकते हैं ? किस प्रकार से शरीर एवं मन की एकरूपता बना सकते हैं ?’

इसका उत्तर देते हुए पू. (डॉ.) पिंगळेजी ने कहा, ‘इसके लिए साधना एवं नामजप के महत्त्व को समझ लेना चाहिए। नामजप के कारण ईश्‍वर में व्याप्त सभी तत्त्वों को आकर्षित कर लेना संभव है। हमें अपने नित्य जीवन में साधना एवं अध्यात्म का निरंतर अध्ययन करना चाहिए, साथ ही समाज को इसका महत्त्व समझाना चाहिए। हमें स्वयं धागा बनकर सभी हिन्दुओं को एक माला में पिरोना चाहिए !’

पू. (डॉ.) पिंगळेजी के साथ ‘कांतीपुर एफएम’ पर किया गया साक्षात्कार !

पू. (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी का साक्षात्कार लेते हुए कांतीपुर एफएम के प्रा. जनार्दन घिमिरे (बाईं ओर)

काठमांडु के प्रा. जनार्दन घिमिरे ने कांतीपुर एफएम पर पू. (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे के साथ साक्षात्कार लिया।

साक्षात्कार के प्रारंभ में प्रा. घिमिरे ने उनसे पूछा, ‘नेपाल की आज की स्थिति ऐसी है कि, जो अपने पास नहीं है, उसी के पीछे सभी भाग रहे हैं; किंतु जो पास है, उसे दूर कर रहे हैं। तो ऐसी स्थिति में विश्‍व में अध्यात्म की पुनर्स्थापना एवं प्रसार कैसे हो सकता है, इसे जान लेने की हम में इच्छा है !’

इसका उत्तर देते हुए पू. (डॉ.) पिंगळेजी ने कहा, ‘जिस प्रकार से सुबह होनेपर दिन निकलता है तथा सायंकाल होनेपर रात होती है, उसी प्रकार से विश्‍व में सत्त्व, रज एवं तम का चक्र चलता रहता है। अनिष्ट (तमोगुण) के पश्‍चात इष्ट (सात्त्विक) आता ही है। ऑक्सफोर्ड के शब्दकोश में ‘धर्म’ एवं ‘रिलिजन’ की व्याख्या अलग-अलग की गई है। ऑक्सफर्ड के अनुसार हिन्दू एवं बौद्ध धर्मों को ही धर्म माना गया है। हिन्दू सहिष्णु है। समय आनेपर वह शत्रु का भी सम्मान करता है। आज सर्वत्र ‘सर्वधर्मसमभाव’ प्रचलित है। यदि ऐसा है, तो जो बाहर से नेपाल आ रहे हैं, वो चर्च क्यों बनवा रहे हैं ?, वो मंदिर क्यों नहीं जातें ?, उनको केवल चर्च ही क्यों बनवाने हैं ?

यदि भगवान श्रीरामजी आ गए तो श्रीहनुमानजी की भांति हमें प्रार्थना एवं भक्ति को बढाना चाहिए और यदि रावण आ गया, तो हमें गदा लेकर उसके समक्ष खडे होना चाहिए !’

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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