‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द पर विश्वास नहीं है ! – पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति

हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा नासिक के सिंहस्थ पर्व में पत्रकार परिषद

नेपाल को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करने हेतु ७ सितम्बर २०१५ को नाशिक में हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा पत्रकार परिषद का आयोजन किया गया था। उस समय हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक तथा नेपाल में हिन्दूसंगठन का कार्य करनेवाले पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेद्वारा पत्रकारोंके प्रश्नोंको इस प्रकार उत्तर दिए गए हैं . . .

पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे

प्रश्न : आप नेपाल को ‘हिन्दू राष्ट्र’ करने की मांग कर रहे हैं। क्या आप का राज्यघटना की ‘धर्मनिरपेक्ष’ इस तत्त्वप्रणालीपर विश्वास नहीं है ?

उत्तर : जिस समय राज्यघटना सिद्ध हुई, उस समय ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द कहीं भी अंतर्भूत नहीं था। वर्ष १९७५ में देश में लोकशाही की हत्या कर जनतापर आणीबाणी बलपूर्वक लागू की जाने के पश्चात यह शब्द राज्यघटना में अंतर्भूत किया गया है। ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को अर्थ नहीं है। मूलतः इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है। मुसलमानोंको पाकिस्तान तथा हिन्दुओंको हिन्दूस्थान दिया गया है। उस समय हिन्दूस्थान की राज्यघटना सिद्ध करते समय उस में ‘धर्मनिरपेक्ष’ यह शब्द अंतर्भूत नहीं था।

जनगणना की आंकडेवारी से भी मुसलमानों की संख्या अधिक !

प्रश्न : वर्तमान की आंकडेवारी घोषित की गई है। उस के अनुसार यह स्पष्ट हुआ है कि, हिन्दुओंकी संख्या अल्प, तो मुसलमानोंकी संख्या बढती जा रही है !

उत्तर : जनगणना के आंकडेवारी नुसार हिन्दुओंकी संख्या अल्प तथा मुसलमानोंकी लोकसंख्या बढती जा रही है। यदि यह बात स्पष्ट है, तो भी उस में बांग्लादेशी घुसपैठोंकी संख्या समाविष्ट नहीं की गई है। अतः इन आंकडेवारीपर विश्वास नहीं कर सकते। जनगणना में दिए संख्या की अपेक्षा मुसलमानोंकी संख्या अधिक गुना रहने की संभावना है। यहीं कहना पडेगा कि, कुल मिलाकर शासन की आंकडेवारी अनुचित है। ‘धर्मनिरपेक्षता’ का अर्थ यह होता है कि, किसी भी धर्म को झुकता माप नहीं देना। किसी भी धर्म को विरोध नहीं करना; किंतु ‘हिन्दू धर्म’ को विरोध किया जाता है। हिन्दुओंको परिवार नियोजन करने के लिए बताया जाता है; किंतु अन्य पंथियोंको छूट दी जाती है। अतः हमारा यह आरोप यह है कि, ‘धर्मनिरपेक्षता’ का हनन संसद में जनप्रतिनिधी कर रहे हैं। जनप्रतिनिधी ‘धर्मनिरपेक्षता’ को चलाने की अपेक्षा केवल राजनीति कर जनता को मूर्ख बना रहे है। हिन्दुओंकी संख्या अत्यंत अल्प हुई है।

हिन्दुओंकी संख्या बढाने की अपेक्षा हिन्दुओं में अंतर्भूत ‘पुरुषार्थ’ जागृत करना आवश्यक !

प्रश्न : विहिंप के डॉ. प्रविण तोगडियाद्वारा यह वक्तव्य किया गया है कि, हिन्दुओंकी लोकसंख्या बढाने की आवश्यकता है, इसपर आप का मत क्या है ?

उत्तर : हिन्दुओंकी संख्या बढाने की अपेक्षा हिन्दुओंका ‘पुरुषार्थ’ बढाने की आवश्यकता है। अब हिन्दुओंकी संख्या अधिक होते हुए भी यदि हम कुछ भी नहीं करते, तो कल संख्या बढने के पश्चात क्या करेंगे ? वे तो धरती को बोझ ही होंगे। उस की अपेक्षा हिन्दुओं में ‘क्षात्रवृत्ती’ बढाने की आवश्यकता है। हिन्दुओंको अपने अधिकार हेतु लडने के लिए सीखाने की आवश्यकता है।

यदि ब्रिटन के राजदूत यह मांग कर सकते हैं कि, नेपाल को ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्र होना चाहिए, तो नरेंद्र मोदी नेपाल ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनें, इस लिए प्रयास क्यों नहीं कर सकते ?

प्रश्न : यदि नेपाल में ‘हिन्दू राष्ट्र’ चाहिए, तो ‘धर्मनिरपेक्ष’ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापन करें, ऐसी मांग कैसे कर सकते हैं ? वहां की जनता मतदान कर उनकी इच्छा नुसार घटना निर्माण कर सकती है।

उत्तर : अब नरेंद्र मोदी से हमारा यह कहना है कि, यदि आप ‘धर्मनिरपेक्ष’ हैं, तो आप एक भी इस्लामी राष्ट्र के साथ द्विपक्षीय संबंध (बायलॅटरल रिलेशन) नहीं रख सकते; क्यों कि वे तो धर्मांध शक्ति हैं। यदि मोदी ‘धर्मनिरपेक्ष’ हैं, तो युरोप के एक भी ईसाई राष्ट्र के साथ संबंध नहीं रख सकते। भारत में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शासन होते हुए भी यदि ईसाई तथा मुसलमान राष्ट्रोंके साथ द्विपक्षीय संबंध (बायलॅटरल रिलेशन) रख सकते हैं, तो भारत नेपाल के विषय में अधिकार पूर्वक हस्तक्षेप कर सकता है।

दूसरी बात यह है कि, भारत में ईसाईयोंके संदर्भ में कुछ घटने के पश्चात अमरिका से वॅटिकन सिटी तक ईसाई पंथ के मुख्यालय उस में हस्तक्षेप करते हैं, क्या यह बात उचित है ? इस्लामी पंथियोंको कुछ होने के पश्चात इस्लामी राष्ट्र उस संदर्भ में विरोध प्रदर्शित करते हैं। अतः वैश्विक स्तरपर भारत भी अपनी निश्चित भूमिका प्रस्तुत कर सकता हैं। श्री. नरेंद्र मोदी इतना कह सकते हैं कि, नेपाल को भारत शासनद्वारा अधिक मात्रा में अनुदान प्राप्त होता है, इस लिए नेपाल में जनतंत्रानुसार वहां की बहुसंख्य जनता की मांग के नुसार वहां की व्यवस्था करनी चाहिए। यदि वहां के ८० प्रतिशत हिन्दुओंकी ‘हिन्दू राष्ट्र’ की मांग रहेगी, तो तदनुसार ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करने के लिए बताईएं। यह भारत के प्रधानमंत्री के लिए अनुचित बात सिद्ध नहीं हो सकती। ब्रिटन के नेपाल के राजदूत खुले आम यह वक्तव्य कर रहे हैं कि, नेपाल ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्र होना चाहिए। युरोपीय राष्ट्र तथा चर्च अधिक मात्रा में धन व्यय कर नेपाल ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्र करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। यदि इतनी अधिक मात्रा में ईसाई राष्ट्र नेपाल में हस्तक्षेप कर रहे हैं, तो मोदी शासन क्यो नहीं कर सकते ? मोदी ने ईसाई राष्ट्रोंका यह षडयंत्र उधेड देना चाहिए।

नेपाली हिन्दू जनता को संगठित करने की आवश्यकता !

प्रश्न : नेपाल में बहुसंख्यंक जनता की मांग ‘हिन्दू राष्ट्र’ की है, तो क्या चुनावद्वारा ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना कर सकते हैं ?

उत्तर : मूलतः नेपाल में लोगोंका, लोंगोंके लिए, लोगोंद्वारा चलाया गया राज्य नहीं है। वहां के जनप्रतिनिधियोंको खरीद कर वहां की राज्यघटना परिवर्तित करने का प्रकार ईसाई राष्ट्रोंद्वारा आरंभ है। अतः वहां चुनावद्वारा जनता को राज्यघटना निश्चित करने का अधिकार नहीं है। भारत के अनुसार वहां भी वर्ष २००७ से हिन्दू जनता में ‘विभाजन करें, तथा राज्य करें’, इस आधारपर भाषावाद, प्रांतवाद, जातिवाद इत्यादि निर्माण किया जा रहा है। अतः वहां की जनता आपस में लड रही है। जनता संगठित नहीं होगी, इस का ध्यान रखा जाता है। अतः हमारी यह मांग है कि नेपाल की जनता को संगठित करें तथा हिन्दू राष्ट्र के लिए प्रयास करें। इस के लिए भारत शासन ने हस्तक्षेप करना आवश्यक है।

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आप यहां से देख सकते हैं, हिन्दू जनजागृति समिति का
‘नेपाल को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करें’ अभियान ! 
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स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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