‘शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन’ इस विषयपर ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ के छठे दिन मान्यवरों ने किया उद्बोधन

बाएं से डॉ. अजित चौधरी, जगदीश चौधरी, आनंद जाखोटीया, श्रीमती मीनाक्षी शरण और सूत्रसंचालन मैं सै. क्षिप्रा जुवेकर

यद्यपि भारत स्वतंत्र है, तथापि हमारी शिक्षाप्रणाली परतंत्र की है ! – जगदीश चौधरी निर्देशक, बालाजी ग्रुप ऑफ इन्स्टिट्यूशन्स, हरियाणा

जगदीश चौधरी निर्देशक, बालाजी ग्रुप ऑफ इन्स्टिट्यूशन्स, हरियाणा

रामनाथी – वर्ष १८२९ में भारत में ६ लाख ७५ हजार विश्वविद्यालय थे । वर्ष १८४९ में अंग्रेजों के सर्वेक्षण के अनुसार ९१ प्रतिशत भारतीय शिक्षित थे । ऐसा होते हुए भी ‘प्राचीन भारत में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था, ऐसा झूठा प्रचार किया जाता है ।’ जब तक भारतीय शिक्षा व्यवस्था नष्ट नहीं होती, तब तक भारत पर राज्य नहीं कर सकते’, यह अंग्रेजों ने जान लिया था । इसलिए भारतीय विश्वविद्यालय नष्ट कर अंग्रेजों ने स्वयं की शिक्षा प्रणाली भारत में लागू की । आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग शिक्षा से खुलता है । भारतीय शिक्षा प्रणाली उद्ध्वस्त कर अंग्रेजों ने यह आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग बंद कर दिया । यद्यपि भारत स्वतंत्र हो गया है, तथापि शिक्षा में हम अभी भी परतंत्र में ही हैं । भारत में इतिहास की पाठ्यपुस्तक में आक्रमणकारियों का इतिहास पढाया जाता है । जिसमें भारतीय संस्कृति का समावेश नहीं है, ऐसा इतिहास पढाया जा रहा है । विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में भारत के शोधकार्य के स्थान पर विदेश के शोधकार्य की जानकारी दी जाती है । भारतीय इतिहास की पुस्तक में भारतीय इतिहास का समावेश होना चाहिए । भारतीय स्वावलंबी न बनकर सदैव गुलाम बने रहें, ऐसी शिक्षा प्रणाली अंग्रेजों ने बनाई । इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली से अंग्रेजों ने भारतियों की रीढ तोड दी । भारतीय शिक्षा मोक्षप्राप्ति की दिशा देनेवाला है । ऐसी महान शिक्षा प्रणाली का समावेश भारतीय शिक्षा में करना चाहिए, ऐसा आवाहन हरियाणा के ‘बालाजी ग्रुप ऑफ इन्स्टिट्यूशन्स’ के निर्देशक जगदीश चौधरी ने किया । वे वैश्विक हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के पांचवे दिन (२१.६.२०२३ को) उपस्थितों को संबोधित कर रहे थे ।

धर्मशिक्षा, धर्मजागृति एवं धर्मरक्षा के लिए संस्कृत भाषा उपयुक्त ! – डॉ. अजित चौधरी, प्राचार्य, यशवंतराव चव्हाण पॉलिटेक्निक, बीड

रामनाथी – यह देश अनादि काल से हिन्दू राष्ट्र था तथा आगे भी हिन्दू राष्ट्र ही रहेगा । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए धर्मशिक्षा, धर्मजागृति एवं धर्मरक्षा के लिए प्रयास किए जाने चाहिए । उसके लिए संस्कृत भाषा के बिना अन्य कोई विकल्प नहीं है । हमारी संस्कृति में संपूर्ण धर्मशिक्षा संस्कृत भाषा में है, उसे जान लेने के लिए संस्कृत भाषा जान लेना आवश्यक है । परिणामकारी धर्मजागृति करने के लिए हमें हिन्दू धर्म का स्वरूप जान लेना होगा । उसके लिए भी संस्कृत भाषा जान लेना आवश्यक है । इसके साथ ही धर्म पर हो रहे आघात तोड डालने के लिए भी संस्कृत भाषा ही उपयुक्त है, यह श्रीरामजन्मभूमि अभियोग में दिखाई दिया है । श्रीरामजन्मभूमि श्री प्रभु श्रीराम की ही है, यह प्रमाणित करने के लिए हमारे अधिवक्ताओं को सर्वोच्च न्यायालय के सामने संस्कृत धर्मग्रंथों के ही प्रमाण प्रस्तुत करने पडे थे, ऐसा मत बीड के यशवंतराव चव्हाण पॉलिटेक्निकचे प्राचार्य डॉ. अजित चौधरी ने व्यक्त किया । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के छठे दिन दिन (२१.६.२०२३ को) उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे ।‘वैश्विक हिंदु राष्ट्र महोत्सव’ के छठे दिन (२१.६.२०२३ या दिवशी) को उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे ।

उन्होंने आगे कहा,

‘‘संपूर्ण विश्व में कहीं पर भी रहनेवाले हिन्दुओं में संस्कृत का ही संचार है । हमारे धर्माचरण के संस्कार संस्कृत में ही हैं । हमारे दिन का आरंभ एवं अंत भी संस्कृत श्लोक से ही होता है । मेकैले शिक्षापद्धति ने भले ही हमें संस्कृत भाषा से पृथक किया हो; परंतु आज भी यह देवभाषा हमारे जीवन का अभिन्न अंग है । आज विभिन्न शोधकर्ताओं ने संस्कृत भाषा संगणक के ‘प्रोसेसिंग’ के लिए सर्वथा उपयुक्त है, यह बात प्रमाणित की है । हमारे प्राचीन मंदिर केवल प्रार्थनास्थल नहीं थे, अपितु वो शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी के भी केंद्र थे । सहस्रों वर्ष पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों ने संस्कृत भाषा में ही अनेक अविष्कार लिखकर रखे हैं । ऐसी सर्वार्थ से आदर्श देववाणी संस्कृत को व्यावहारिक भाषा बनाने के लिए हमें प्रयास करने चाहिएं; इसलिए प्रत्येक परिवार को अपने बच्चों को बचपन से अंग्रेजी नहीं, अपितु संस्कृत भाषा की शिक्षा देना आवश्यक है ।’’

…तो हिन्दू युवतियां गाय को काटनेवालों के साथ भाग नहीं जातीं ! – श्रीमती मीनाक्षी शरण, संस्थापक, अयोध्या फाऊंडेशन, मुंबई

रामनाथी – इस भारतभूमि की रक्षा के लिए करोडों हिन्दुओं ने प्राणों का बलिदान दिया है । ऐसा होते हुए हम इस भूमि के टुकडे अन्य धर्मियों को कैसे लेने दे सकते हैं ? हमारे महान ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के हित के लिए भारतीय परंपराएं एवं संस्कृति बनाई हैं । सवेरे जागने के उपरांत सर्वप्रथम भूमि को प्रणाम करना, सूर्यदेव को प्रणाम करना आदि हिन्दुओं की संस्कृति है । भगवान को समर्पित करने के लिए फूल तोडने से पूर्व उस पेड से अनुमति लेना हिन्दू धर्म की सीख है । ऐसी संस्कृति में पर्यावरण का विनाश कैसे हो सकेगा ? भारतीय संस्कृति मूलतः पर्यावरण के संवर्धन की शिक्षा देती है । वर्ष २०२१-२२ में भारत से ११ लाख ७५ सहस्र मेट्रीक टन ‘बीफ’ (गोमांस) का निर्यात हुआ । यह बात हमारे धर्म एवं शास्त्र के विरुद्ध है । हमारी संस्कृति में गाय को चारा देने के लिए कहा गया है । हमारे अभिभावकों ने अपने बच्चों को गाय को चारा देना सिखाया होता, तो हिन्दू युवतियां गाय को काटनेवालों के साथ भाग नहीं जातीं । हिन्दुओं ने अपने बच्चों को अपनी संस्कृति सिखाई होती, तो लव जिहाद की घटनाएं नहीं होतीं । हिन्दुओं को अपने बच्चों को अपनी भारतीय संस्कृति सिखानी चाहिए, ऐसा स्पष्टतापूर्ण प्रतिपादन मुंबई के ‘अयोध्या फाऊंडेशन’ की संस्थापिता श्रीमती मीनाक्षी शरण ने किया । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के छठे दिन (२०.६.२०२३ को) उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रही थीं ।

 

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