‍वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव : ‘रेशनलिस्ट मर्डर्स’ का पुस्तक विमोचन एवं उद्बोधन इस सत्र में मान्यवरों द्वारा व्यक्त किए गए विचार

‘द रैशनलिस्ट मर्डरर्स’ पुस्तक का लोकार्पण !

विद्याधिराजा सभागार – पिछले कुछ वर्षाें में महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्यों में हुईं नास्तिकतावादियों की हत्याओं के प्रकरणों में हिन्दुत्वनिष्ठों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें कारावास में बंद किया गया । इस षड्यंत्र को उजागर करनेवाले डॉ. अमित थडानी द्वारा लिखित पुस्तक ‘द रेशनलिस्ट मर्डरर्स’ का इस वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव में लोकार्पण किया गया । हिन्दू विधिज्ञ परिषद के संस्थापक सदस्य पू. (अधिवक्ता) सुरेश कुलकर्णीजी के करकमलों से इस पुस्तक का लोकार्पण हुआ । इस अवसर पर व्यासपीठ पर इस पुस्तक के लेखक डॉ. अमित थडानी, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर एवं अधिवक्ता पी. कृष्णमूर्ती उपस्थित थे । डॉ. अमित थडानी मुंबई के निवासी हैं तथा वे सुप्रसिद्ध शल्यकर्म चिकिस्तक हैं । डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, कॉ. गोविंद पानसरे, कलबुर्गी एवं पत्रकार गौरी लंकेश इन नास्तिकतावादियों की हत्याओं के अभियोगों में अंतर्भूत १० सहस्र पृष्ठोंवाले आरोपपत्रों, न्यायालयीन निर्णयों एवं सरकारी कागदपत्रों का गहन अध्ययन कर डॉ. अमित थडानी ने यह पुस्तक लिखी है ।

नास्तिकतावादियों की हत्याओं के प्रकरणों में हिन्दुत्वनिष्ठों को फंसाने के पीछे षड्यंत्र – डॉ. अमित थडानी, शल्यकर्म चिकित्सक, समाजसेवी तथा लेखक

डॉ. अमित थडानी, शल्यकर्म चिकित्सक, समाजसेवी तथा लेखक

रामनाथ देवस्थान – सनातन संस्था लोगों को संगठित करती है; इसलिए उसे नास्तिकतावादियां के हत्याओं के प्रकरणों में लक्ष्य बनाया गया । इन प्रकरणों में वास्तविक हत्यारों को खोजने का प्रयास न करते हुए अन्वेषण किया गया । इन सभी प्रकरणों में कहीं भी ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, अपितु इससे राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास हुआ है । तत्कालीन सरकार ने देश में ‘हिन्दुत्वनिष्ठ आतंकवादी हैं’ इस ‘नैरेटिव’ (कथानक) को स्थापित करने के लिए इन प्रकरणों में हिन्दुत्वनिष्ठों को फंसाया । उसके कारण आधुनिकतावादियों के हत्याओं के प्रकरणों में हिन्दुत्वनिष्ठों को फंसाने के पीछे एक बडा षड्यंत्र होने का स्पष्ट होता है, ऐसा ठोस प्रतिपादन शल्यकर्म चिकित्सक, समाजसेवी तथा लेखक डॉ. अमित थडानी ने किया । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव में वे ऐसा बोल रहे थे ।
डॉ. अमित थडानी ने नास्तिकतावादियों की हत्याओं के प्रकरणों में हिन्दुत्वनिष्ठों को फंसाने के षड्यंत्र उजागर करनेवाला ‘रैशनलिस्ट मर्डर्स’ नामक पुस्तक लिखा है ।

रैशनालिस्ट मर्डर्स’ की सच्चाई’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में डॉ. अमित थडानी ने कहा,

१. इससे भी चौंकानेवाली बात यह है कि अन्वेषण विाग ने दाभोलकर प्रकरण में हिन्दुत्वनिष्ठों की कानूनी सहायता करनेवाले अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर को बंदी बनाया । उन्हें ४० दिन से अधिक कारावास में रखा गया । क्या भविष्य में सरकार के विरुद्ध न्यायालयीन अभियोग लडनेवाले अधिवक्ताओं को भी बंदी बनाया जाएघा ? प्रशांत भूषण जैसे अधिवक्ता अपराधियों के अभियोग लडते हैं; इसलिए क्या उन्हें भी बंदी बनाया जाएगा ?

२. डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी एवं गौरी लंकेश इन सभी की हत्याओं के प्रकरणों में जानबूझकर हिन्दुत्वनिष्ठों को फंसाने का प्रयास किया गया । इन सभी प्रकरणों में संदिग्ध आरोपी निरंतर बदले गए । प्रत्येक बार आरोपियों के भिन्न-भिन्न रेखाचित्र बनाए गए, साथ ही उसमें कहीं भी वास्तविक हत्यारोंतक पहुंचानेवाले प्रमाण नहीं मिले । केवल हिन्दुत्वनिष्ठों को लक्ष्य बनाना ही इन अन्वेषण विभागों का लक्ष्य था ।

३. गौरी लंकेश प्रकरण में शीरस्त्राण (हैल्मेट) पहने संदिग्ध का रेखाचित्र बनाया गया । हत्या की घटना के समय उस क्षेत्र में बिजली भी नहीं थी, तो ‘संदिग्धों का रेखाचित्र कैसे बनाया गया ?’, यह एक चौंकानेवाली बात है । गौरी लंकेश प्रकरण में विभिन्न राज्यों के १८ संदिग्धों को बंदी बनाया गया, उनमें से १५ लोगों से बलपूर्वक हस्ताक्षर लिए गए, जबकि अन्य तीनों के बिनाहस्ताक्षर के ही जबाब प्रविष्ट किया गया । इससे उसमें अन्वेषण विभागों को अपेक्षित लेखन कैसे नहीं हो सकता है ?

४. डॉ. दाभोलकर प्रकरण में आरंभ में २ संदिग्ध आरोपियों को पकडा गया; परंतु वे हिन्दुत्वनिष्ठ नहीं थे; इसलिए उन्हें छोड दिया गया । उसके उपरांत हिन्दुत्वनिष्ठों को पकडा गया । इस प्रकरण में पहले संदिग्धों को पकडकर उसके उपरांत अन्वेषण किया गया ।

५. ऐसा कहा गया कि आरोपियों ने जिस शस्त्र से डॉ. दाभोलकर की हत्या की, उस शस्त्र के टुकडे खाडी में फेंके गए । कालांतर से ६ करोड रुपए का व्यय कर उन टुकडों को समुद्र से बाहर निकाला गया । टुकडे कर समुद्र में फेंके गए शस्त्र के टुकडे यथास्थिति में कैसे मिले ? इससे अन्वेषण विभागों का अन्वेषण संदेहास्पद है, ऐसा ध्यान में आता है । यह सब कथानक रचने के लिए ही किया गया था ।

६. नाक, कान एवं गला विशेषज्ञ डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे को दाभोलकर प्रकरण में बंदी बनाया गया, उसके लिए ५ वर्ष पूर्व का एक ‘इमेल’ खोजा गया । उसके उपरांत उन्हें पानसरे हत्या प्रकरण में फंसाया गया । वे अब भी कारावास में हैं । एक दूरभाष के आधार पर समीर गायकवाड को बंदी बनाया गया । इससे किसी के विरुद्ध कोई ठोस प्रमाण न होते हुए भी उन्हें लक्ष्य बनाया गया । यह सब केवल ‘नैरेटिव’ चलाने का प्रयास है ।

नक्सली ही वामपंथी तथा वामपंथी ही नक्सली हैं, यह न बताना ही वैचारिक आतंकवाद – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

विद्याधिराज सभागृह – एम्.एस्. कलबुर्गी की हत्या के उपरांत ६३ लोगों ने ‘पुरस्कार वापसी’ की । मोहनदास गांधी की हत्या के उपरांत अभीतक मानो किसी की हत्या ही नहीं हुई तथा डॉ. दाभोलकर एवं कलबुर्गी हत्याएं कोई भयंकर घटनाएं थीं, ऐसा वातावरण बनाया गया । हमें किसी की हत्या का समर्थन नहीं करना है । नास्तिकतावादियों की हत्याओं के उपरांत हिन्दुत्वनिष्ठों को आतंकी प्रमाणित किया जाता है; परंतु क्या कोई ‘वामपंथियों ने कितने लोगों को मारा ?’, यह प्रश्न पूछेगा ? वामपंथियों ने संपूर्ण विश्व में जो हत्याएं कीं, उनका आंकडा १० करोड से भी अधिक है । नक्सलियों ने ही भारत में १४ सहस्र से अधिक लोगों की हत्याएं की हैं । नक्सलियों ने जिनकी हत्याएं की हैं, उनमें आदिवासी, विधायक एवं मंत्री अंतर्भूत हैं; परंतु यह हमें दिखाया नहीं जाता । तथाकथित बुद्धिजीवी हमें जो दिखाते हैं, वही हम देखते हैं । वामपंथियों द्वारा भारत में की गई १४ सहस्र हत्याओं की अपेक्षा हमें ४ नास्तिकतावादियों की हत्याएं बडी लगती हैं । नक्सली ही वामपंथी हैं तथा वामपंथी ही नक्सली हैं; यह सच्चाई कोई नहीं बताता । यही वैचारिक आतंकवाद है । नक्सलियों द्वारा किए गए आक्रमणों के उपरांत वामपंथियों ने क्या कभी शोकसभा की है ? नहीं !; परंतु उसके विपरीत उन्होंने नक्सली गतिविधियों का समर्थन किया है । भारत में मुगलों द्वारा किए गए आक्रमणों की जब चर्चा होती है, उस समय ‘ये घटनाएं ४०० वर्ष पूर्व की हैं’, ऐसा बताया जाता है; परंतु २ सहस्र वर्ष पूर्व की बताई जानेवाली तथा कहीं पर भी लिखित स्वरूप में न होते हुए भी ‘आर्याें ने द्रविडों पर अत्याचार किए’, ऐसा हमें सुनाया जाता है । यही वैचारिक आतंकवाद है । केवल ४ नास्तिकवादियों की हत्याओं के विषय में नहीं , अपितु वामपंथियों द्वारा अभीतक की गई सहस्रों हत्याओं के विषय में हिन्दुत्वनिष्ठों को प्रश्न उठाना चाहिए, ऐसा प्रतिपादन हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने किया ।

साधना के बल पर हम समाज में स्थित नकारात्मक शक्तियों से से लडकर हिन्दू राष्ट्र ला सकते हैं ! – अधिवक्ता कृष्णमूर्ती पी., ‍विश्व हिन्दू परिषद, कोडागू, कर्नाटक

अधिवक्ता कृष्णमूर्ती पी., विश्व हिन्दू परिषद, कोडागू, कर्नाटक

विद्याधिराज सभागृह – मैं ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ के (पी.एफ्.आई. के) विरुद्ध अभियोग लड रहा हूं । इससे पूर्व यह अभियोग लडनेवाले अधिवक्ता ने यह अभियोग छोड दिया; क्योंकि वहां पी.एफ्.आई. के कोर्यकर्ता मैसुरू जिला न्यायालय के परिसर में हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ताओं के छायाचित्र खींचते, वीडियो बनाते थे तथा उन्हें धमकियां देते थे । मेरे संदर्भ में उन्होंने वही किया; परंतु नामस्मरण करने के कारण मुझे उनका भय नहीं लगा । मुझे मिल रही धमकियों के विषय में न्यायाधीश को ज्ञात होने पर मुझे सुरक्षा दी गई; परंतु तब भी मुझ पर आक्रमण हुआ । नामस्मरण करने के कारण अब मुझे किसी प्रकार का भय प्रतीत नहीं होता । उसके कारण हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ता यात्रा करते समय, अभियोग की सुनवाई आरंभ होनेतक तथा जब जब समय मिलेगा, तब नामस्मरण करें । यहां सनातन संस्था जो स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया सिखाती है, उसे सिखकर अपनाएं । उससे हम समाज की नकारात्मक शक्तियों से लडकर हिन्दू राष्ट्र ला सकते हैं; ऐसा प्रतिपादन कर्नाटक के हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ता कृष्णमूर्ती पी. ने किया । वैश्विक हिन्दू महोत्सव में ‘पी.एफ्.आई. : भविष्यकालीन संकट’ विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।

क्षणिकाएं

इस अवसर पर सनातन संस्था के धर्मप्रचारक पू. रामानंद गौडाजी ने कहा, ‘‘अधिवक्ता कृष्णमूर्ति धर्मनिष्ठ अधिवक्ता हैं । उनका अखंड नामजप चलता है । यात्रा में वे प.पू. भक्तराज महाराजजी के भजन सुनते हैं । भजन सुनते-सुनते ‘यात्रा कब पूर्ण हुई’, यह समझ में ही नहीं आता ।’, ऐसा वे बोलते हैं । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी एवं श्रीकृष्ण के प्रति उनके मन में बहुत भाव है तथा वे उनके विषय में कितने भी लंबे समयतक बोल सकते हैं । न्यायालयीन प्रकरणों तथा उनके लिए यात्रा करते समय वे अपने धन का व्यय करते हैं । एक बार एक अभियोग के लिए वे ३-४ घंटे यात्रा कर न्यायालय पहुंचे थे; परंतु वहां जाने पर वहां के न्यायाधीश के छुट्टी पर होने का उन्हें ज्ञात हुआ । अन्य अधिवक्ता ने जब उन्हें इस विषय में पूछा, तब उन्होंने ‘ईश्वरेच्छा !’, ऐसा उत्तर दिया । ऐसा होने के विषय में उनके मन में किसी प्रकार का विचार अथवा प्रतिक्रिया नहीं आई थी । कुछ दिन पूर्व जब उन पर आक्रमण हुआ, उस समय उन्होंने ‘परमपूज्य गुरुदेवजी ने मेरी रक्षा की है । मुझे अभी बहुत कार्य करना है’, ऐसा बताया । अब उन्होंने कर्नाटक राज्य के अधिवक्ताओं का संगठन करने का दायित्व स्वीकार किया है ।

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