पूर्वाग्रहदूषित जांच के कारण बंदी बनाए गए हिंदुत्वनिष्ठों को न्याय दिलवाना होगा – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकरद

हिंदुत्वनिष्ठों को झूठे आरोपों में अकारण फंसानेवालों का, दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में धिक्कार !

रामनाथी – ‘प्रसिद्धि और पैसे मिलेंगे, इसलिए हिन्दू धर्म और धर्माभिमानियों की निंदा करो’ ऐसे षड्यंत्र आजकल बडी संख्या में बढ गए हैं । ‘माध्यमों के द्वारा होनेवाली अपकीर्ति को अनदेखा करना’, ऐसी भूमिका कुछ संगठनों की है । इसलिए ऐसे प्रसारमाध्यम अधिक फलते हैं; परंतु सनातन संस्था ने प्रारंभ से ही ऐसे माध्यमों के विरोध में कानूनी लडाई लडने की भूमिका निभाई है । हिन्दू धर्म के विरोध में लिखनेवाले प्रसिद्धि माध्यमों को न्यायालय में उत्तर देना पडेगा, ऐसा प्रखर प्रतिपादन हिन्दू विधिज्ञ परिषद के सचिव अधिवक्ता नागेश जोशी ने किया । वह श्री रामनाथ मंदिर के श्री विद्याधिराज सभागृह में आरंभ दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में ‘सनातन पर लगे आरोपाें का खंडन’ विषय पर बोल रहे थे । इस समय हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने भी सनातन पर लगनेवाले आरोपों का खंडन किया । ‘हिंदुत्वनिष्ठों पर अकारण लगनेवाले आरोपों को आगे से वैध मार्ग से परंतु सटीक प्रत्युत्तर दिया जाएगा’, ऐसा संकल्प इस समय उपस्थित हिन्दुत्ववादियों ने किया । उत्साहपूर्वक विविध जयघोष करके हिंदुत्वनिष्ठों ने इसका समर्थन किया ।

अधिवक्ता इचलकरंजीकर बोले,

हिंदुत्वनिष्ठों को अनेक झूठे आराेंपों में फंसाया गया है । प्रत्येक अभियोग में अनुचित पद्धति से जांच हो रही है । आप कहीं भी जाओ और किसी से पूछो कि, ‘गौरी लंकेश कौन थी ? वह विचारक थी, तो उन्होंने कौन सा वैचारिक संघर्ष किया ?’ किसी को भी उसके बारे में कुछ भी बताना नहीं आता; कारण गौरी लंकेश ने समाज के लिए कोई भी विशेष कार्य नहीं किया । इसके विपरीत गौरी लंकेश ने अयोग्य पद्धति से लेख लिखने के लिय न्यायालय ने उसे सजा दी थी ।

१. मालेगाव विस्फोट प्रकरण में मुसलमानों को निर्दाेष मुक्त कर हिन्दुओं को फंसाया गया । इस अभियोग से ‘भगवा आतंकवाद’ सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया ।

२. ‘डॉ. दाभोलकर हत्या प्रकरण में जांच समाप्त नहीं हुई है’, ऐसे बताकर सनातन के साधक श्री. विक्रम भावे को २ वर्ष कारागृह में रखा गया ।

३. हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय सचिव तथा सुप्रसिद्ध अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर को भी बंदी बनाकर उन्हें ४२ दिन कारागृह में रखा गया ।

४. कॉ. गोविंद पानसरे हत्या प्रकरण में सनातन के साधक श्री. समीर गायकवाड को बिना कारण बंदी बनाया गया । श्री. समीर गायकवाड २२ महीने कारागृह में रहे । उनका अभियोग लडने के लिए कोल्हापुर के न्यायालय के अधिवक्ताओं ने वकीलपत्र नहीं लिया; पर दूसरे दिन महाराष्ट्र से ३१ अधिवक्ता यह अभियोग लडने के लिए संगठित होकर कोल्हापुर आए । वर्ष २०१६ में पुलिस ने बताया कि, समीर गायकवाड ने यह खून नहीं किया । सनातन के साधक सारंग अकोलकर और विनय पवार ने यह खून किया है ।

५. कोल्हापुर से पूना तक डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे को वाहन से लाने के उपरांत ‘डॉ. तावडे का छायाचित्र निकालें’, ऐसे पुलिस ने छायाचित्रकारों को बताया । यह नियम का उल्लंघन है । एक सुप्रतिष्ठित आधुनिक वैद्य की यह जानतेबूझते की हुई अपकीर्ति है । पुलिस के ऐसे व्यवहार से चिढ निर्माण होती है ।

इस प्रकार के अनेक अभियोगों में सनातन के साधक और हिंदुत्वनिष्ठों को फंसाकर उन्हें अकारण कष्ट दिया गया । इस विषय पर प्रसारमाध्यमों ने भी सत्य समाचार नहीं दिया । उन्होंने झूठा समाचार प्रसिद्ध किया ।

६. वर्ष २०१८ में गौरी लंकेश हत्या प्रकरण से सचिन अंदुरे और शरद कळसकर का कोई संबंध नहीं होते हुए भी उन्हें बंदी बनाया गया ।
देश में ऐसा वातावरण निर्माण किया जा रहा है कि, ‘गांधी की हत्या के उपरांत अभी तक देश में शांति थी; पर डॉ. दाभोलकर की हत्या के बाद से ही देश का वातावरण बिगड गया है ।’ ४ साम्यवादियों की हत्या होने पर देश में इतना तनाव का वातावरण निर्माण किया जाता है; पर देश की स्वतंत्रता के बाद से साम्यवादियों ने १४ हजार से अधिक निरपराधियों की हत्या की । पर उस विषय पर कोई भी चर्चा नहीं करता है । इसलिए ऐसे अनेक प्रकरणों में हमें मूलभूत संघर्ष कर न्याय प्राप्त करना होगा ।

हिन्दू धर्म के विरोध में लिखनेवाले प्रसिद्धि माध्यमों को न्यायालय में उत्तर देना होगा ! – अधिवक्ता नागेश जोशी, सचिव, हिन्दू विधिज्ञ परिषद, गोवा

अधिवक्ता नागेश जोशी आगे बोले, ‘‘हिन्दू धर्म, देवताओं की अपकीर्ति करनेवाले और सनातन संस्था पर झूठे आरोप लगानेवाले ५० से अधिक प्रसिद्धि माध्यमों के विरोध में हमने न्यायालय में अभियोग प्रविष्ट किए हैं । हिन्दू धर्म और सनातन संस्था की अपकीर्ति करनेवाले बडे नेताओं के विरोध में भी हमने न्यायालय में अभियोग प्रविष्ट किए हैं । इसमें हमें सफलता भी मिली है । कुछ समाचारपत्रों को गलत लिखने के लिए क्षमा भी मांगनी पडी है । जो संविधान के नाम पर सदा आसमान सिर पर उठाते हैं, उनके लिए हम संविधान में दिए मार्ग से ही लडाई कर रहे हैं । न्यायालयीन लडाई धर्मजागृति का एक माध्यम है ।’’

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