अयोध्या : स्मृतियों को सहेजने की जरूरत ताकि दुनिया भूल न सके हिंदुओं का दमन

अयोध्या की पुण्यभूमि की खुदाई शुरू हो गई है। भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए इसे तैयार किया जा रहा है। 500 सालों तक ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ में दफन रहने वाला भारत का वास्तविक इतिहास प्रस्फुटित होने लगा है।

आजादी के 70 साल बाद तक वामपंथी इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के ताकतवर गठजोड़ ने इन आवाजों को दबाने की कोशिश की। लेकिन वे असफल रहे। न्याय और सत्य में विश्वास रखने वाले सभी लोगों के लिए यह विजय का क्षण है।

हालाँकि यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के साथ यह जीत पूरी नहीं हुई है। अयोध्या में महज भव्य राम मंदिर का निर्माण ही वास्तविक जीत नहीं है।

वास्तविक जीत वह है, जब भारत के दबे-कुचले हिंदू पीढ़ियों की व्यथा को इतिहास के पन्नों में दर्ज किया जाएगा। इसके लिए इससे जुड़े साक्ष्यों को संरक्षित और सुरक्षित रखे जाने की आवश्यकता है, जिससे इसे पूरी दुनिया देख सके और याद रख सके।

वामपंथी इतिहासकारों की लॉबी 70 साल बाद भले ही बिखर गई हो, लेकिन अभी खत्म नहीं हुई है। दरअसल वामपंथी इतिहासकारों की बहुत बड़ी साजिश थी, जिसके तहत सैकड़ों वर्षों तक हिंदुओं पर किए गए अत्याचारों को इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया गया। यह साजिश आज भी लगातार चल रही है।

यही कारण है कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तथ्यों के बजाय भावनाओं पर निर्णय लेने का आरोप लगाते हैं। इतना ही नहीं ये लोग सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को भाजपा की राजनीतिक सफलता और ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ के एजेंडे से जोड़ने के साथ अफवाह फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।

वामपंथी इतिहासकार चाहते हैं कि दुनिया को यह लगे कि हिंदुओं पर अत्याचार कभी हुआ ही नहीं। हम यहूदी लोगों से सीख सकते हैं कि इस तरह के प्रोपेगेंडा को कैसे धराशायी किया जाए।

इसी तरह के अत्याचार झेलने वाली यहूदी लोगों की पीढ़ी ने दो संकल्प लिए। पहला, उन्हें एक महान यहूदी राष्ट्र बनाना है। दूसरा, दुनिया यह कभी नहीं भूले कि उनके साथ क्या हुआ था।

अपने साथ हुए अत्याचारों से संबंधित साक्ष्यों को इकट्ठा करना, उनका दस्तावेजीकरण कर उन्हें सहेजना सुनिश्चित किया। अत्याचारों की निशानियों से संबंधित संग्रहालय पूरे यूरोप के अंदर खोले गए। इनमें स्कूली बच्चों को ले जाया जाता, जिससे वे खुद जान सकें कि अतीत में उनके साथ क्या हुआ था। यहूदी लोगों के खिलाफ हुए भीषण अत्याचारों की गाथाएँ मानवता की अंतरात्मा को चुभती रहे।

उनका मानना था कि अत्याचारों की हकीकत आखिर में लोगों के सामने आएगी। सार्वजनिक स्मृतियाँ कभी भी विशेष रूप से अच्छी नहीं होती। समय के साथ नैरेटिव के युद्ध में वास्तविक इतिहास के खो जाने का भी खतरा है। इसके लिए आपको जनता के सामने वास्तविक इतिहास रखना होगा।

भारत में हम हिंदुओं के सामने भी इसी प्रकार का खतरा है। वामपंथियों की एक लॉबी इस देश में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों से संबंधित सभी ऐतिहासिक दस्तावेजों को नकारने में लगातार लगी हुई है। वे हमारे ऊपर कथित गंगा-जमुनी तहज़ीब थोपते का प्रयास करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि वे झूठ बोल रहे हैं। वे नहीं चाहते कि अयोध्या में जमीन की खुदाई हो और हकीकत सामने आए।

ऐतिहासिक साक्ष्य हर जगह है। लेकिन वे हमें इसके बारे में बात नहीं करने देंगे और इसके लिए सही शब्दों का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

मैं आपको बताता हूँ कि यह कैसे काम करता है। यदि साक्ष्य जमीन के अंदर मिलते हैं तो वे कहेंगे कि मंदिर की जगह इस स्थान पर मंदिर होने की कहानियाँ महज किंवदंतियाँ हैं। अगर किसी दस्तावजों में साफ तौर पर लिखा हुआ मिलता है कि एक मंदिर को नष्ट किया गया था, तो वे कहते हैं कि वास्तविक उद्देश्य लूट था न कि किसी धर्म को थोपना। यदि दस्तावेज कहते हैं कि उनका उद्देश्य मूर्ति पूजा करने वालों को कुचलना था, तो वे पूछते हैं कि उन हिंदुओं के बारे में क्या कहोगे जिन्हें उस समय अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया गया था?

यदि आप वास्तव में पुराने मंदिर के अवशेषों को देखते हैं, तो वे कहेंगे कि यह इंडो-इस्लामिक वास्तुकला की एक अनूठी शैली है, जो गंगा-जमुनी तहज़ीब का हिस्सा है! तो सवाल उठता है कि हम इस प्रोपेगेंडा को कैसे धराशायी कर सकते हैं?

हमें बिल्कुल वही करना है जो यहूदियों ने खुद पर हुए अत्याचारों को लेकर किया था। हमें साक्ष्यों को एकत्रित करना, दस्तावेजीकरण करना और उन्हें संरक्षित करना शुरू करना होगा। हमें अयोध्या में राम मंदिर के साथ ही एक संग्रहालय स्थापित करना होगा, जहाँ दुनिया उन साक्ष्यों को देख सके, जो आज तक लोगों के सामने आए ही नहीं।

इसके बाद हमें इसे वैश्विक स्तर पर लाना होगा। हमें हिंदुओं के साथ हुए अत्याचारों के बारे में लोगों को बताने के लिए संग्रहालय बनाने, प्रदर्शनियाँ लगाने और स्कूली बच्चों के भ्रमण की शुरुआत करने की आवश्यता है। हमें यह याद रखने के लिए एक वैश्विक दिवस की आवश्यकता है कि हिंदुओं को अपनी ही भूमि पर क्या-क्या झेलना पड़ा।

आज भी जर्मनी में ऐसे रेल कोच हैं जो एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं और लोगों को याद दिलाते हैं कि उनके साथ क्या अत्याचार हुए थे। दुनिया यह कभी नहीं भूलती, क्योंकि यहूदी लोगों ने ये सुनिश्चित किया कि इसे लोग भूल नहीं पाए।

भारत में हिंदुओं ने इस तरह की समस्याओं को झेला। मैं कहता हूँ कि अधिकांश हिंदू यह भूल गए हैं। पहले हमें हिंदुओं को बताना पड़ेगा कि उनके पूर्वजों ने क्या झेला। फिर हमें यह पूरी दुनिया को बताना होगा।

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