मंदिरों का सरकारीकरण करना, शासन का हिन्दू धर्म में अनावश्यक हस्तक्षेप ! – प.पू. स्वामी गोविंद देवगिरीजी महाराज

मंदिर सरकारीकरण के विरोध में पुणे स्थित अपने निवासस्थान धर्मश्री पर आयोजित पत्रकार परिषद में प.पू. स्वामी गोविंद देवगिरीजी महाराजजी ने स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया कि, हिन्दू धर्म में मंदिरों का अनन्यसाधारण महत्त्व है । वास्तव में मंदिरों को सुविधाएं देने के लिए शासन को प्रयास करने चाहिए; परंतु वर्तमान स्थिति में इसके विपरीत सुनाई दे रहा है । हाल ही में शासन ने श्री शनैश्‍वर देवस्थान नियंत्रण में लेने की सूचना मिली है तथा महाराष्ट्र के अनेक मंदिर नियंत्रण में लेने की चर्चा भी सुनाई दे रही है । इससे पूर्व सरकारीकृत मंदिरों में हुआ भ्रष्टाचार उजागर हुआ है । मंदिरों का सरकारीकरण होने के उपरांत प्राचीनतम प्रथाएं बंद करना, उनमें मनचाहा परिवर्तन करना, धार्मिक विधियों की आवश्यक अवधि कम करना, पारंपरिक पुजारियों को हटाने के प्रयास चल रहे हैं । संक्षेप में सरकारीकरण होने के पश्‍चात श्रद्धापूर्वक परंपराआें की रक्षा करने के स्थान पर मंदिरों की ओर केवल व्यवसाय की दृष्टि से देखा जा रहा है । एक ओर शासन केवल हिन्दू धर्मियों के मंदिर नियंत्रण में ले रहा है तथा दूसरी ओर अन्य धर्मियों का कोई भी प्रार्थनास्थल नियंत्रण में लेने के संबंध में सुनाई नहीं दिया है । वर्तमान में सभी क्षेत्रों में निजिकरण हो रहा है, तब शासन मंदिरों का सरकारीकरण क्यों कर रहा है ?, यह एक न सुलझनेवाला रहस्य है ! मंदिरों का सरकारीकरण करना, शासन का हिन्दू धर्म में किया जानेवाला अनावश्यक हस्तक्षेप है ।

स्वामीजी ने आगे कहां कि, अभी तक सर्वपक्षीय सरकारों ने मंदिर नियंत्रण में लिए हैं । यदि सरकार को मंदिरों का सरकारीकरण कर उनकी स्थिति सुधारनी है, तो महाराष्ट्र में अनेक मंदिरों की दुरावस्था है, वे मंदिर नियंत्रण में लेकर सरकार उनकी स्थिति सुधारने का प्रयास क्यों नहीं करती ? जिन मंदिरों की आर्थिक स्थिति अच्छी है, सरकार उन्हें नियंत्रण में ले रही है, दुर्भाग्यवश कहना पड रहा है कि उन मंदिरों के पैसे पर सरकार की नजर है । सरकारीकरण हुए मंदिरों के पैसों का उपयोग विकास के नाम पर शासकीय और सामाजिक कार्य के लिए किया जाता है । वास्तव में देवनिधि का उपयोग धर्मकार्य, धर्मशिक्षा देने के लिए तथा श्रद्धालुआें को सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए होना चाहिए; परंतु अनेक स्थानों पर वैसा होते हुए दिखाई नहीं देता । वारकरियों के विशेष आस्थास्थान पंढरपुर स्थित देवस्थान की गोशाला के गोवंशों के प्रति मंदिर समिति द्वारा लापरवाही के अनेक उदाहरण सामने आ रहे हैं । सरकारीकृत मंदिरों का न तो भ्रष्टाचार कम हुआ और न ही व्यवस्थापन में सुधार हुआ । इसलिए शासन श्रद्धालुआें को पैरों तले न रौंदे और मंदिरों का सरकारीकरण न करे ।

इस समय मंदिर और धार्मिक संस्था महासंघ (महाराष्ट्र) के समन्वयक और हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र और छत्तीसगढ राज्य संगठक, श्री. सुनील घनवट ने कहां, कांग्रेस ने विशेष कानून बनाकर पंढरपुर का श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर, मुंबई स्थित श्री सिद्धिविनायक मंदिर, शिर्डी स्थित श्री साई संस्थान तथा पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति स्थापित कर कोल्हापुर, सांगली और सिंधुदुर्ग जनपद के ३०६७ मंदिर नियंत्रण में लिए । जिसमें कोल्हापुर स्थित प्रसिद्ध श्री महालक्ष्मी और श्री ज्योतिबा देवस्थान का भी समावेश है । ऐसी ही स्थिति तुळजापुर स्थित श्री भवानी मंदिर की है । पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति और श्री तुळजाभवानी देवस्थान मंदिर समिति की  भ्रष्टाचार प्रकरण में राज्य अपराध अन्वेषण विभाग की ओर से पूछताछ हो रही है । इससे संबंधित कुछ और गंभीर उदाहरण

१. पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति : इस समिति के पास २५ सहस्र एकड भूमि थी जिसमें से ८ सहस्र एकड भूमि लापता है; देवस्थानों के अलंकारों की कहीं प्रविष्टि नहीं है, २५ वर्षों से लेखापरीक्षण नहीं हुआ है ।

२. श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर समिति, पंढरपुर : इस मंदिर की १२०० एकड भूमि होते हुए भी गत २५ वर्षों से वह नियंत्रण में नहीं; इसके साथ ही एक रुपये की आय भी मंदिर को नहीं मिलती; मंदिर की गोशाला का गोधन कसाईयों को बेच दिया गया ।

ऐसी ही स्थिति तमिलनाडु राज्य के हिन्दुआें के मंदिरों की थी । इस संबंध में भाजपा के नेता सुब्रह्मण्यम् स्वामी ने वर्ष २०१३ में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका (सिविल अपील : १०६२०/२०१३) प्रविष्ट की थी । उस समय न्यायमूर्ति  डॉ. बी.एस. चव्हाण और न्यायमूर्ति शरद बोबडे के खंडपीठ ने ६ जनवरी २०१४ को तमिलनाडु के चिदंबरम स्थित श्री नटराज मंदिर के प्रकरण में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा है कि, देश की धर्मनिरपेक्ष सरकार को हिन्दुआें के मंदिर चलाने और अधिग्रहित करने का अधिकार नहीं है । केवल वहां के व्यवस्थापन की त्रुटियां दूर कर वे मंदिर पुनः संबंधित भक्तों अथवा समाज को लौटाना आवश्यक है । ऐसी जानकारी भी श्री. घनवट ने इस समय दी ।

इस पत्रकार परिषद में पंढरपुर के पुजारी ह.भ.प. बाळासाहेब बडवे, आचार्य महेश महाराज उत्पात, कोल्हापुर स्थित महालक्ष्मी देवस्थान के पुजारी श्री. मकरंद मुनीश्‍वर और श्री. मयुर मुनीश्‍वर उपस्थित थे । साथ ही अन्य मंदिरों के विश्‍वस्त, पुजारी तथा पदाधिकारी भी उपस्थित थे ।

इस पत्रकार परिषद में सभी मान्यवरों ने निम्नांकित मांगें की . . .

१. मंदिरों में दान स्वरूप मिले हुए धन का विनियोग धर्मकार्य के लिए होना चाहिए ।

२. सरकारीकरण हुए मंदिरों के भ्रष्ट कारोबार की गहन जांच करने के लिए न्यायालयीन अन्वेषण समिति नियुक्त की जाए ।

३. मंदिरों की देवनिधि में हुए घोटालों के लिए उत्तरदायी लोगों पर तत्काल अपराध प्रविष्ट कर उन्हें बंदी बनाया जाए ।

४. दोषी पाए जानेवाले पदाधिकारियों और कर्मचारियों की संपत्ति जब्त कर उनसे घोटालों की राशि वसूल की जाए ।

५. सरकारीकरण हुए सर्व मंदिर शासन भक्तों को सौंपे ।

६. वंशपरंपरागत पुजारियों की परंपरा वैसी ही रखी जाए ।

७. मंदिरों की धार्मिक प्रथा-परंपराआें में शासन मनमाना परिवर्तन न करे ।

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