भारत को लूटनेवाले क्रूर, बर्बर विदेशी शासक – एक तथ्य

हमारे देश भारत को कभी सोने की चिडिया कहा जाता था। कुछ दार्शनिक और विदेशी इतिहासकारोंने भारत में कभी गरीबी नहीं देखी थी। हम सब जानते है की मध्य युग में भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। इसलिए हमारा देश शुरू से ही विदेशी आक्रांताओंके निशाने पर रहा। सन १८७ ईपू में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय इतिहास की राजनीतिक एकता बिखर गई।

इस खंडित एकता के चलते देश के उत्तर-पश्चिमी मार्गोंसे कई विदेशी आक्रांताओंने आकर अनेक भागों में एक ओर जहां लूटपाट की, वहीं दूसरी ओर उन्होंने अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए। इन आक्रांताओं और लुटेरों में से कुछ तो महाक्रूर और बर्बर हत्यारे थे जिन्होंने भारतीय जनता को बेरहमी से कुचला।

आओं जानते हैं ऐसे कुछ बर्बर लुटेरोंके बारे में . . .

मुहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim)

७वीं सदी के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान भारत के हाथ से जाता रहा। भारत में इस्लामिक शासन का विस्तार ७वीं शताब्दी के अंत में मोहम्मद बिन कासिम के सिन्ध पर आक्रमण और बाद के मुस्लिम शासकोंद्वारा हुआ। लगभग ७१२ में इराकी शासक अल हज्जाज के भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने १७ वर्ष की अवस्था में सिन्ध और बूच पर के अभियान का सफल नेतृत्व किया।

इस्लामिक खलीफाओंने सिन्ध फतह के लिए कई अभियान चलाए। १० हजार सैनिकोंका एक दल ऊंट-घोड़ोंके साथ सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। सिन्ध पर ईस्वी सन ६३८ से ७११ ई. तक के ७४ वर्षोंके काल में ९ खलीफाओंने १५ बार आक्रमण किया। १५वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया।

मुहम्मद बिन कासिम अत्यंत क्रूर यौद्धा था। सिंध के दीवान गुन्दुमल की बेटी ने सर कटवाना स्वीकर किया, पर मीर कासिम की पत्नी बनना नहीं। इसी तरह वहां के राजा दाहिर (६७९ईस्वी में राजा बने) और उनकी पत्नियों और पुत्रियोंने भी अपनी मातृभूमि और अस्मिता की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। सिंध देश के सभी राजाओंकी कहानियां बहुत ही मार्मिक और दुखदायी हैं। आज सिंध देश पाकिस्तान का एक प्रांत बनकर रह गया है। राजा दाहिर अकेले ही अरब और ईरान के दरिंदोंसे लड़ते रहे। उनका साथ किसी ने नहीं दिया बल्कि कुछ लोगोंने उनके साथ गद्दारी की।

महमूद गज़नवी (Mahmud Ghaznavi)

अरबोंके बाद तुर्कोंने भारत पर आक्रमण किया। अलप्तगीन नामक एक तुर्क सरदार ने गजनी में तुर्क साम्राज्य की स्थापना की। ९७७ ई. में अलप्तगीन के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर शासन किया। सबुक्तगीन ने मरने से पहले कई लड़ाइयां लड़ते हुए अपने राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख एवं पश्चिमोत्तर भारत तक फैला ली थीं। सुबुक्तगीन की मुत्यु के बाद उसका पुत्र महमूद गजनवी गजनी की गद्दी पर बैठा। महमूद गजनवी ने बगदाद के खलीफा के आदेशानुसार भारत के अन्य हिस्सोंपर आक्रमण करना शुरू किए।

उसने भारत पर १००१ से १०२६ ई. के बीच १७ बार आक्रमण किए। उसने प्रत्येक वर्ष भारत के अन्य हिस्सोंपर आक्रमण करने की प्रतिज्ञा की। अपने १३वें अभियान में गजनवी ने बुंदेलखंड, किरात तथा लोहकोट आदि को जीत लिया। १४वां आक्रमण ग्वालियर तथा कालिंजर पर किया। अपने १५वें आक्रमण में उसने लोदोर्ग (जैसलमेर), चिकलोदर (गुजरात) तथा अन्हिलवाड (गुजरात) पर आक्रमण कर वहां खूब लूटपाट की।

माना जाता है कि महमूद गजनवी ने अपना १६वां आक्रमण (१०२५ ई.) सोमनाथ पर किया। उसने वहां के प्रसिद्ध मंदिरोंको तोड़ा और वहां अपार धन प्राप्त किया। इस मंदिर को लूटते समय महमूद ने लगभग ५०,००० ब्राह्मणों एवं हिन्दुओंका कत्ल कर दिया। इसकी चर्चा पूरे देश में आग की तरह फैल गई। १७वां आक्रमण उसने सिन्ध और मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रोंके जाटोंके पर किया। इसमें जाट पराजित हुए।

मुहम्मद गोरी (Muhammad Ghori)

मुहम्मद बिन कासिम के बाद महमूद गजनवी और उसके बाद मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण कर अंधाधुंध कत्लेआम और लूटपाट मचाई। इसका पूरा नाम शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद गोरी था। भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना करने का श्रेय मुहम्मद गोरी को ही जाता है। गोरी गजनी और हेरात के मध्य स्थित छोटे से पहाड़ी प्रदेश गोर का शासक था।

उसने पहला आक्रमण ११७५ ईस्वी में मुल्तान पर किया, दूसरा आक्रमण ११७८ ईस्वी में गुजरात पर किया। इसके बाद ११७९-८६ ईस्वी के बीच उसने पंजाब पर फतह हासिल की। इसके बाद उसने ११७९ ईस्वी में पेशावर तथा ११८५ ईस्वी में स्यालकोट अपने कब्जे में ले लिया। ११९१ ईस्वी में उसका युद्ध पृथ्वीराज चौहान से हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद गोरी को बुरी तरह पराजित होना पड़ा। इस युद्ध में गौरी को बंधक बना लिया गया, किंतु पृथ्वीराज चौहान ने उसे छोड दिया। इसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता था।

इसके बाद मुहम्मद गोरी ने अधिक ताकत के साथ पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया। तराइन का यह द्वितीय युद्ध ११९२ ईस्वी में हुआ था। अबकी बार इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान हार गए और उनको बंधक बना लिया गया। ऐसा माना जाता है कि बाद में उन्हें गजनी ले जाकर मार दिया गया। गोरी भारत में गुलामवंश का शासन स्थापित करके पुन: अपने राज्य लौट गया।

चंगेज खान (Changez khan)

(मंगोलियाई नाम चिंगिस खान, सन ११६२ से १८ अगस्त, १२२७)। चंगेज खान ने मुस्लिम साम्राज्य को लगभग नष्ट ही कर दिया था। वह एक मंगोल शासक था। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। हलाकू खान भी बौद्ध था। चंगेज अपनी संगठन शक्ति, बर्बरता तथा साम्राज्य विस्तार के लिए कुख्यात रहा। भारत सहित संपूर्ण रशिया, एशिया और अरब देश चंगेज खान के नाम से ही कांपते थे।

चंगेज खान का जन्म ११६२ के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसका वास्तविक या प्रारंभिक नाम तेमुजिन (या तेमूचिन) था। उसके पिता का नाम येसूजेई था जो कियात कबीले का मुखिया था।

चंगेज खान ने अपने अभियान चलाकर ईरान, गजनी सहित पश्‍चिम भारत के काबुल, कन्धार, पेशावर सहित उसने कश्मीर पर भी अधिकार कर लिया। इस समय चंगेज खान ने सिंधु नदी को पार कर उत्तरी भारत और असम के रास्ते मंगोलिया वापस लौटने की सोची। किंतु वह ऐसा नहीं कर पाया। इस तरह उत्तर भारत एक संभावित लूटपाट और वीभत्स उत्पात से बच गया।

एक नए अनुसंधान के अनुसार इस क्रूर मंगोल योद्धा ने अपने हमलों में इस कदर लूटपाट की और खूनखराबा किया कि एशिया में चीन, अफगानिस्तान सहित उजबेकिस्तान, तिब्बत और बर्मा आदि देशोंकी बहुत बड़ी आबादी का सफाया हो गया था। मुसलमानोंके लिए तो चंगेज खान और हलाकू खान अल्लाह का कहर था।

तैमूर (Timur Lang)

तैमूल लंग भी चंगेज खान जैसा शासक बनना चाहता था। सन १३६९ ईस्व में समरकंद का शासक बना। उसके बाद उसने अपनी विजय और क्रूरता की यात्रा शुरू की। मध्य एशिया के मंगोल लोग इस बीच में मुसलमान हो चुके थे और तैमूर खुद भी मुसलमान था।

क्रूरता के मामले में वह चंगेज खान की तरह ही था। कहते हैं, एक जगह उसने दो हजार जिन्दा आदमियोंकी एक मीनार बनवाई और उन्हें ईंट और गारे में चुनवा दिया।

जब तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया तब उत्तर भारत में तुगलक वंश का राज था। १३९९ में तैमूर लंगद्वारा देहली पर आक्रमण के साथ ही तुगलक साम्राज्य का अंत माना जाना चाहिए। तैमूर मंगोलोंकी फौज लेकर आया तो उसका कोई कड़ा मुकाबला नहीं हुआ और वह कत्लेआम करता हुआ मजे के साथ आगे बढ़ता गया।

तैमूर के आक्रमण के समय वक्त हिन्दू और मुसलमान दोनोंने मिलकर जौहर की राजपूती रस्म अदा की थी, यानी युद्ध में लड़ते-लड़ते मर जाने के लिए बाहर निकल पड़े थे। देहली में वह १५ दिन रहा और उसने इस बड़े शहर को कसाईखाना बना दिया। बाद में कश्मीर को लूटता हुआ वह समरकंद वापस लौट गया। तैमूर के जाने के बाद देहली मुर्दोंका शहर रह गया था।

बाबर (Babar)

मुगलवंश का संस्थापक बाबर एक लूटेरा था। उसने उत्तर भारत में कई लूट को अंजाम दिया। मध्य एशिया के समरकंद राज्य की एक बहुत छोटी सी जागीर फरगना (वर्तमान खोकन्द) में १४८३ ई. में बाबर का जन्म हुआ था। उसका पिता उमर शेख मिर्जा, तैमूरशाह तथा माता कुनलुक निगार खानम मंगोलोंकी वंशज थी।

बाबर ने चगताई तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा ‘तुजुक ए बाबरी’ लिखी इसे इतिहास में बाबरनामा भी कहा जाता है। बाबर का टकराव देहली के शासक इब्राहिम लोदी से हुआ। बाबर के जीवन का सबसे बड़ा टकराव मेवाड़ के राणा सांगा के साथ था। बाबरनामा में इसका विस्तृत वर्णन है। संघर्ष में १९२७ ई. में खन्वाह के युद्ध में, अन्त में उसे सफलता मिली।

बाबर ने अपने विजय पत्र में अपने को मूर्तियोंकी नींव का खण्डन करनेवाला बताया। इस भयंकर संघर्ष से बाबर को गाजी की उपाधि प्राप्त की। गाजी वह जो काफिरोंका कत्ल करे। बाबर ने अमानुषिक ढंग से तथा क्रूरतापूर्वक हिन्दुओंका नरसंहार ही नहीं किया, बल्कि अनेक हिन्दू मंदिरोंको भी नष्ट किया। बाबर की आज्ञा से मीर बाकी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर निर्मित प्रसिद्ध मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बनवाई, इसी भांति ग्वालियर के निकट उरवा में अनेक जैन मंदिरोंको नष्ट किया। उसने चंदेरी के प्राचित और ऐतिहासिक मंदिरोंको भी नष्ट करवा दिया था, जो आज बस खंडहर है।

औरंगजेब (Aurangzeb)

aurangazeb

भारत में मुगल शासकों में सबसे क्रूर औरंगजेब था। मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब का जन्म १६१८ ईस्वी में हुआ था। उसके पिता शाहजहां और माता का नाम मुमताज था।

बाबर का बेटा नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूं देहली के तख्त पर बैठा। हुमायूं के बाद जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर, अकबर के बाद नूरुद्दीन सलीम जहांगीर, जहांगीर के बाद शाहबउद्दीन मुहम्मद शाहजहां, शाहजहां के बाद मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब ने तख्त संभाला।

हिन्दुस्तान के इतिहास के सबसे जालिम शासक जिसने, अपने पिता को कैद किया, अपने सगे भाइयों और भतीजोंकी बेरहमी से ह्त्या की, गुरु तेग बहादुर का सर कटवाया, गुरु गोविन्द सिंह के बच्चोंको जिंदा दीवार में चुनवाया, जिसने सैकड़ों मंदिरोंको तुडवाया, जिसने अपनी प्रजा पर वे-इन्तहा जुल्म किए और अपने शासन क्षेत्र में गैर-मुस्लिमोंके लिए मुनादी करावा दी थी कि या तो आप इस्लाम कबूल कर ले या फिर मरने के लिए तैयार रहें। औरंगजेब एक तुर्क था। उसके काल में ही उत्तर भारत का तेजी से इस्लामिकरण हुआ। अधिकतर ब्राह्मणोंको या तो मुसलमान बनना पड़ा या उन्होंने प्रदेश को छोड़कर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के गांवों में शरण ली।

उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध इतिहासकार राधाकृष्ण बुंदेली अनुसार मुगल शासक औरंगजेब ने अपनी सेना को सन १६६९ में जारी अपने एक हुक्मनामे पर हिंदुओंके सभी मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इस दौरान सोमनाथ मंदिर, वाराणसी का मंदिर, मथुरा का केशव राय मंदिर के अलावा कई हिंदू देवी-देवताओंके प्रसिद्ध मंदिर तोड़ दिए गए थे।

औरंगजेब ने हिन्दू त्योहारोंको सार्वजनिक तौर पर मनाने पर प्रतिबन्ध लगाया और उसने हिन्दू मंदिरोंको तोड़ने का आदेश दिया. औरंगजेब दारुल हर्ब (काफिरोंका देश भारत) को दारुल इस्लाम (इस्लाम का देश) में परिवर्तित करने को अपना महत्त्वपूर्ण लक्ष्य बनाया था। १६६९ ई. में औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मंदिर एवं मथुरा के केशव राय मदिंर को तुड़वा दिया था।

नादिर शाह (Nadir Shah)

(जन्म ६ अगस्त, १६८८ मृत्यु १७ जून, १७४७) : नादिरशाह का पूरा नाम नादिर कोली बेग था। यह ईरान का शासक था। उसने भारत पर आक्रमण कर कई तरह की लूटपाट और कत्लेआम को अंजाम दिया। देहली की सत्ता पर आसीन उस वक्त के मुगल बादशाह मुहम्मदशाह को हराने के बाद उसने वहां से अपार सम्पत्ति अर्जित की, जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल था।

मुगल बादशाह मुहम्मदशाह और नादिरशाह के मध्य करनाल का युद्ध १७३९ ई. में लड़ा गया। काबुल पर कब्ज करने के बाद उसने देहली पर आक्रमण किया। करनाल में मुगल राजा मोहम्मद शाह और नादिर की सेना के बीच लड़ाई हुई। इसमें नादिर की सेना मुगलोंके मुकाबले छोटी थी पर अपने बारूदी अस्त्रोंके कारण फारसी सेना जीत गई।

हरने के बाद देहली के सुल्तान मोहम्मद शाह ने संभवत मार्च १७३९ में देहली पहुंचने पर यह अफवाह फैली कि नादिर शाह मारा गया। इससे देहली में भगदड़ मच गई और फारसी सेना का कत्ल शुरू हो गया। नादिर को जब यह पता चला तो उसने इस का बदला लेने के लिए देहली पर आक्रमण कर दिया। उसने देहली में भयानक खूनखराबा किया और एक दिन में कोई हजारों लोगोंको मौत के घाट उतार दिया। इसके अलावा उसने शाह से भारी धनराशि भी लूट ली। मोहम्मद शाह ने सिंधु नदी के पश्चिम की सारी भूमि भी नादिरशाह को दान में दे दी। हीरे जवाहरात का एक जखीरा भी उसे भेंट किया गया जिसमें कोहिनूर (कूह-ए-नूर), दरियानूर और ताज-ए-मह नामक विख्यात हीरे शामिल थे।

अहमद शाह अब्दाली (Ahmad Shah Abdali)

अहमदशाह अब्दाली को अहमदशाह दुर्रानी भी कहते हैं। सन १७४७ में नादिर शाह की मौत के बाद वह अफगानिस्तान का शासक बना। अपने पिता की तरह अब्दाली ने भी भारत पर सन १७४८ से १७५८ तक कई बार आक्रमण किए और लूटपाट करके अपार धन संपत्ति को इकट्ठा किया।

सन १७५७ में जनवरी के माह में देहली पर किया। उसने अब्दाली से बहुत ही शर्मनाक संधि की, जिसमें एक शर्त देहली को लूटने की अनुमति देना भी था। अहमदशाह एक माह तक देहली में ठहरकर लूटमार और कत्लेआम करता रहा। वहां की लूट में उसे करोड़ोंकी संपदा हाथ लगी।

देहली लूटने के बाद अब्दाली का लालच बढ गया। वहां से उसने आगरा पर आक्रमण किया। आगरा के बाद बल्लभगढ़ पर आक्रमण किया। वल्लभगण में उसने जाटोंको हराया और बल्लभगढ़ और उसके आस-पास लूटा और व्यापक जन−संहार किया।

उसके बाद अहमदशाह ने अपने पठान सैनिकोंको मथुरा लूटने और हिन्दुओंके सभी पवित्र स्थलोंको तोड़ने के साथ ही हिन्दुओंका व्यापक पैमाने पर कत्लेआम करने का आदेश दिया। उसने अपने सिपाहियोंसे कहा प्रत्येक हिन्दू के एक कटे सिर के बदले इनाम दिया जाएगा।

मथुरा के इस जनसंहार के विस्तृत ब्योरा आज भी मथुरा के इतिहास में दर्ज है। अब्दालीद्वारा मथुरा और ब्रज की भीषण लूट बहुत ही क्रूर और बर्बर थी। यह लेख यहां से लिया गया है।
– शिवम शर्मा भारतीय

स्त्रोत : इंडियन नोव्हा

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