महाराष्ट्र : जलगांव के प्रांतीय हिन्दू अधिवेशन का द्वितीय सत्र संपन्न !

जलगाव का प्रांतीय हिन्दू अधिवेशन

जलगांव के प्रांतीय हिन्दू अधिवेशन के २२ नवंबर के द्वितीय सत्र में हिंदुत्वनिष्ठोंद्वारा व्यक्त किये गये विचार . . .

महाराष्ट्र शासनद्वारा मंदिरें उद्ध्वस्त कि गई, इसके विरोध में आंदोलन करेंगे ! – श्री. अनिल अर्डक, शिवसेना

जलगाव : यहां आयोजित प्रांतीय हिन्दू अधिवेशन में शिवसेना ग्राहक संरक्षण मंच के श्री. अनिल अर्डकद्वारा प्रतिपादित किया गया कि, छत्रपति शिवाजी महाराज ने सभी गडोंपर मंदिरोंका निर्माण कार्य किया है। इसलिए वहां सात्विकता एवं जाज्वल्य धर्माभिमान जागृत होता है !

आज अपने मंदिर शासन के अधीन होने से वहां भारी मात्रा में भ्रष्टाचार हो रहा है। कसाईयोंको गायोंका विक्रय कर यह निधि अल्पसंख्यकों के विकास के लिए प्रयुक्त किया जा रहा है। इसके लिए हिन्दुओं को संगठित होकर सूचना अधिकारद्वारा सभी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए एवं सभी हिन्दुओं को जात-पात, संप्रदाय, पक्ष तथा पद भूल कर बडा जनआंदोलन खडा करना चाहिए।

संभाजीनगर में पिछले सप्ताह ५ मंदिर तोडे गए; परंतु वहिंपर ५ अवैधानिक मस्जिदें खडी होते हुए भी किसी में उन्हें हाथ लगाने का साहस नहीं है ! इसका कारण, हम हिन्दू संगठित नहीं हैं !

प्रांतीय अधिवेशन के द्वितीय सत्र में गोरक्षा, मंदिर सुरक्षा, स्वसंरक्षण, लैंड-जिहाद, अश्लिलता आदि विषयोंपर विचार-विमर्श किया गया।

संविधान की शर्तों एवं कानून का उचित उपयोग किया गया, तो गोरक्षकोंपर अपराध प्रविष्ट नहीं हो सकेंगे ! – श्री. नरेंद्र पाटिल, गोरक्षा दल, नंदुरबार

किसान २ से ५ सहस्र रुपयोंके लिए गाय कसाई को देता है। गुजरात में पूरी तरह गोवंश हत्या बंदी कानून है। इसलिए महाराष्ट्र में भारी मात्रा में गुजरात से छिप कर गो-तस्करी की जाती है। यह गो-तस्करी एक माह में ४० से ५० सहस्र तक होती है। इस गो-तस्करी को रोकने हेतु नंदुरबार नगर में हिन्दू जनजागृति समिति एवं सनातन संस्थाद्वारा संघटित हो कर २७ जनवरी २०१५ को एक भव्य मोर्चे का आयोजन किया गया था। इस मोर्चे में वैधानिक मार्ग से ४-५ सहस्र हिन्दू संघटित हुए थे।

महाराष्ट्र में गोवंश हत्या बंदी लागू होने हेतु हिन्दू जनजागृति समिति एवं सनातन संस्थाद्वारा थोडा बहुत कार्य किया गया है। यदि हमने भारतीय संविधान की शर्तों एवं कानून का उचित रूप से उपयोग किया, तो गोरक्षकोंपर अपराध नहीं प्रविष्ट हो पाएंगे !

हमें ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना कर, गोवंश हत्या बंदी के लिए स्थाई रूप से उपाय योजना करनी पडेगी !

गोरक्षा हेतु पुलिस में परिवाद प्रविष्ट करें ! — अधिवक्ता श्री. मनीष वर्मा

भुसावल के अधिवक्ता श्री. मनीष वर्मा ने गोरक्षा कानून के विषय में मार्गदर्शन करते हुए कहा कि, पुलिस इस प्रकरण का परिवाद प्रविष्ट करने में टालमटोल करती है; परंतु हमें परिवाद का आवेदन पत्र उचित पद्धति से भर कर प्रविष्ट करना चाहिए।

यदि पुलिस निरीक्षकद्वारा उचित प्रतिसाद नहीं दिया गया, तो हम उनके विरोध में दिवानी मुक़दमा प्रविष्ट कर सकते हैं।

जब हम गाय के प्रति भावना के कारण गायों से भरी गाडी को रोकते हैं, तब हम इतना ध्यान नहीं रख सकते कि, किसी भी प्रकार की हानि न हो। क्यों कि ‘समाज’ क्या कहेगा, इसकी निश्‍चिति नहीं रहती। इसकी अपेक्षा हमारे लिए विधिवत परिवाद प्रविष्ट करना ही उचित है। यह अपराध दंडनिय एवं प्रविष्ट करने योग्य है। इसके लिए ५ वर्ष कैद एवं १० सहस्र रुपए दंड का प्रावधान है।

नगरें, वास्तुएं एवं शहरोंको दिए गए विदेशी आक्रामकोंके नाम बदलने चाहिए। – श्री. शंकर जाधव, संभाजीनगर

देश में चुनिंदे गावोंके नाम बदल कर हिन्दू धर्म पर बडा आक्रमण किया गया है। चलचित्रों के माध्यम से हिन्दुओंके देवी-देवताओंका अनादर किया जाता है; मात्र छत्रपति संभाजी महाराज का हिन्दुत्वनिष्ठ चित्रपट अब तक प्रदर्शित नहीं हो रहा है !

यदि महिलाआें द्वारा धर्मांधोंको स्वसंरक्षणार्थ मारा गया, तो कानूनन वो छूट सकती है ! – अधिवक्ता श्री. पंकज पाटिल, जलगाव

स्वसंरक्षण प्रशिक्षण लेने पर हम उसका उपयोग कर अपनी अथवा किसी की रक्षा करने हेतु धर्मांधोंका प्रतिकार करते हैं, तो उस समय यह परिवाद उच्च न्यायालय में ही चलाया जाता है। केवल हमें न्यायालय में यह सिद्ध करना पडता है कि, स्वसुरक्षा हेतु हमने धर्मांध को मारा है। जब किसी महिला पर कोई धर्मांध बलात्कार करने का प्रयास करता है तो महिला द्वारा स्वयं की रक्षा हेतु धर्मांध की हत्या की गई, तब भी धारा १०० के अनुसार महिला की मुक्ति हो सकती है !

कौन सा इतिहास भूलें, यह हमें न सिखाएं ! – श्री. सुधाकर चपलगावकर, निवृत्त जिला न्यायाधीश

उडीसा की रथयात्रा, बदरीनाथ, केदारनाथ, कुंभमेला ऐसे उत्सवोंपर साधारण कारणोंसे विरोध होता है। अपने यहां भी कानून एवं सुरक्षा के नाम पर शोभायात्राओंको विरोध होता है। जिलोंके नामांतर के लिए विरोध होता है। मुझे राजनीतिक नेताओंकी एक बैठक में आमंत्रित किया गया था। बैठक में कहा गया कि, पर्यटन की दृष्टि से संभाजीनगर का विचार होना चाहिए। मैंने उनसे पूछा कि क्या हमें पर्यटकोंको ‘बीवी का मकबरा’, ‘दौलताबाद किला’ तथा अनेक स्थानोंपर मुगलोंद्वारा खडे किए गए बडे बडे द्वार दिखाना है ?

पैठण में शालीवाहन राजा का राज्य था एवं मुगलोंके आने से पूर्व संभाजीनगर में क्या बंजर बस्ती थी ? ऐसा प्रश्न पूछ कर उन्होंने कहा कि, हमें कौन सा इतिहास भूलें, यह न सिखाएं !

सवेरे बजनेवाले भोंपुओंका किरोध करने हेतु सक्रिय हों ! – श्री. सुरेश कुलकर्णी, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

प्राचीन समय में हम वेदमंत्र एवं पशुपक्षियोंकी चहचहाट से जागते थे; परंतु अब कर्णकर्कश भोंपूओं के माध्यम से हमें जानबूझकर उठाया जाता है। इसका विरोध करने हेतु सूचना अधिकार कानून का आधार लेकर प्रार्थनास्थलोंकी जानकारी प्राप्त करें। यदि जानकारी अवैधानिक हो, तो स्थानीय स्वराज्य समिति के पदाधिकारियोंको सूचित करें। साथ ही सातबारा के उतारे की जांच करें।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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