धर्माचरणपर आघात करनेवाले जादूटोनाविरोधी विधेयकको स्थायी रूपसे विरोध ! – पू. गोविंददेवगिरीजी महा

अश्विन शुक्ल १ , कलियुग वर्ष ५११५


बायीं ओरसे ह.भ.प. रामेश्‍वरशास्त्री महाराज, महामंडलेश्‍वर, पू. विश्‍वेश्‍वरानंदजी, पू. गोविंददेवगिरीजी महाराज, ह.भ.प. प्रकाश महाराज जवंजाल एवं ह.भ.प. रामदास महाराज बली

वारकरी संप्रदायके साथ धर्माचार्योंका भी विरोध !

शिवसेना एवं भाजपा वारकरियोंके साथ ! – ह.भ.प. रामेश्‍वरशास्त्री महाराज

ह.भ.प. रामेश्‍वरशास्त्री महाराजने कहा कि शिवसेना एवं भाजपाने हमारा साथ नहीं छोडा है । शिवसेनाके कार्यकारी प्रमुख श्री. उद्धव ठाकरेने कहा है कि वारकरियोंसे विचार-विमर्श किए बिना कानून नहीं पारित किया जाएगा ।

भविष्यके कार्यकी दिशा !

१. सभी धर्मगुरुओंद्वारा विचार-विमर्श कर सम्मति दिए बिना हम जादूटोनाविरोधी कानून नहीं पारित होने देंगे ।

२.३० नवंबरको वारकरी संप्रदायद्वारा महासम्मेलन आयोजित कर जादूटोनाविरोधी कानूनके संदर्भमें आंदोलनकी  दिशा निश्चित की जाएगी ।

मुंबई – यहांके मुंबई मराठी पत्रकार संघमें ४ अक्तूबरको एक पत्रकार परिषद आयोजित की गई । इस परिषदमें पू. गोविंददेवगिरीजी महाराजने (पूर्वाश्रमीके आचार्य किशोरजी व्यासने) अपना मत व्यक्त करते हुए कहा कि जादूटोनाविरोधी कानूनके कारण सप्तशतीके ग्रंथ तथा हनुमानचालीसाका प्रचार करना अपराध सिद्ध होगा तथा सज्जनोंको प्रताडित करनेके लिए असामाजिक शक्तियोंको अवसर मिलेगा । मंत्र प्रयोग तथा आवर्तनोंको अपराध माने जानेकी संभावना है । इस कानूनके आधारपर कोई भी व्यक्ति कहीं भी परिवाद प्रविष्ट कर सकता है । अतः इससे हिंदुओंका दमन होगा । इस कानूनका दुरुपयोग होनेकी संभावना है । इसलिए धर्माचरणपर आघात करनेवाले जादूटोनाविरोधी कानूनको स्थायी रूपसे हमारा विरोध रहेगा ! इस अवसरपर महामंडलेश्‍वर पू. विश्‍वेश्‍वरानंदजी, ह.भ.प. रामेश्‍वरशास्त्री महाराज, निवृत्त न्यायाधीश श्री. सुधाकर चपलगावकर, ज्येष्ठ विधिज्ञ श्री. सुरेश कुलकर्णी, ह.भ.प. प्रकाश महाराज जवंजाल, ह.भ.प. बापू महाराज रावकर, वांद्रेके ज्ञानेश्‍वर महाराज मंदिरके ह.भ.प. रामदास महाराज बली उपस्थित थे ।

संत एवं धर्माचार्योंद्वारा व्यक्त विचार !

पू. महामंडलेश्‍वर विश्‍वेश्‍वरानंदगिरीजी महाराज

वर्तमान समयमें केवल बहुसंख्यक हिंदुओंके विरोधमें ही कानून सिद्ध कर उनका प्रयोग किया जा रहा है । इसलिए यह विधेयक सम्मत होनेसे पूर्व उसका शोधन होना आवश्यक है । इस प्रकारके कानूनसे समाजमें समन्वय नहीं रहता । यह देश आरंभसे ही वेद तथा मंत्रोंके मार्गदर्शनके अनुसार चल रहा है ।

ह.भ.प. रामेश्‍वरशास्त्री महाराज

भावनाके आधारपर कानून बनानेका प्रयास न किया जाए । ‘भारूड‘ गीत गानेसे वणीकी ८४ वर्ष आयुकी वयोवृद्ध महिलाको कारागृहमें भेजा गया । यदि इस दादीने अपकीर्तिके निमित्त आत्महत्या की, तो क्या सरकार इसका दायित्व स्वीकार करेगी ? यह हमारी वैचारिक लडाई है तथा इस कानूनको हमारा विरोध है । वारकरी संप्रदाय राजनीतिविरहित है; परंतु यदि कोई वारकरियोंके वेशमें राजनीति करता होगा, तो वह चूक है ।

ह.भ.प. प्रकाश महाराज जवंजाल

मुख्यमंत्रीने हमसे कहा था कि विचार-विमर्श किए बिना कानून पारित नहीं करेंगे । तो भी यह कानून पारित किया । इस कानूनके विरोधमें दो बार हमें हमारी यात्रा स्थगित करना पडी । सांसदीय कामकाजमंत्री हर्षवर्धन पाटिलके आश्‍वासन देनेके पश्चात भी कानून पारित करते समय वारकरियोंका मत नहीं लिया गया । अनेक जनपद एवं तहसील ऐसे हैं कि जहांपर अथर्ववेदके अनुसार औषधियां दी जाती हैं । क्या उसे इस कानूनसे  धक्का तो नहीं लगेगा ? यह प्रश्न उपस्थित हो गया है ।

५. क्या महाराष्ट्रकी संतपरंपराको रोकेंगे ?

६. जिस पद्धतिसे प्रधानमंत्रीने जनप्रतिनिधिके विषयमें अध्यादेश पीछे लिया, उसी पद्धतिसे यह अध्यादेश भी पीछे लिया जा सकता है ।
७. मूलतः ऐसा क्या हुआ, जिससे कानूनकी आवश्यकता न होते हुए भी इस कानूनमें सभी अपराध हस्तक्षेप के लिए पात्र एवं प्रतिभूके लिए अपात्र किए गए । इस कानूनको मंत्रीमंडलके ५० प्रतिशत मंित्रयोंका विरोध है तथा वे हमारे संपर्कमें हैं ।

जादूटोनाविरोधी कानूनकी आवश्यकता नहीं है ! – निवृत्त न्यायाधीश सुधाकर चपलगांवकर

१. ह.भ.प. जवंजाल महाराजके गुरुने ४० वर्षोंतक अन्न एवं जल नहीं लिया । यह चमत्कार है । भक्तजन स्वयं उन्हें पैसे अर्पण करते हैं । इस संदर्भमें उसे सिद्ध कर किस प्रकार अर्थार्जन सिद्ध करेंगे ? क्या संतोंने पैसे मांगे इसलिए अथवा भक्तोंने पैसे दिए इसलिए ? यह बात किस प्रकारसे स्पष्ट करेंगे ? पैसे मांगना एवं देना दो कृत्योंमें बहुत अंतर है तथा भ्रष्टाचार प्रतिबंधक कानूनमें यह झंझट अभी स्थायी है । इसलिए इस कानूनके अनुसार अर्थार्जन किया कहकर संत अपराधी सिद्ध होंगे !

२. कानूनके अनुसार प्रतिभूके लिए अपात्र सिद्ध होने समान एक भी गंभीर कृत्य नहीं है, जिसमें न्यायालयके आदेशके बिना किसीको बंदी बनाया जाए । न्यायालयकी अनुमतिके बिना प्रतिभू नहीं दी जाएगी, ऐसे प्रबंध किए गए हैं, जो आपत्तिजनक हैं ।

३. इस कानूनमें कौनसा कृत्य अघोरी है एवं कौनसा अनिष्ट यह सिद्ध नहीं किया गया है । संबंधित व्याख्याओंका केवल संदिग्ध स्वरूप सूचित किया गया है, जो अति गंभीर चूक है । मोक्षप्राप्ति हेतु जिन बातोंका अवलंब करनेके लिए कहा गया है, उसका अवलंब करना प्रत्येक व्यक्तिकी आस्थाका प्रश्‍न है ।

४. पितृपक्षमें पितरोंको जल देनेमें जल पितरोंतक पहुंचानेका जरा भी उद्देश्य नहीं रहता है । पितरोंको वर्षमें एक बार जल देना ऐसा उद्देश्य है । इस प्रकारके सभी धार्मिक कृत्योंपर प्रश्‍नचिह्न उपस्थित करनेवाले कानूनकी आवश्यकता नहीं है ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​