पंढरपुर में श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर के कार्यभार में घोटाला !

सैकडों मूल्यवान आभूषणों की तुलन पत्र (वित्तीय स्थिति विवरण अर्थात बैलेंस शीट) में प्रविष्टी ही नहीं !

आभूषणों को हडपे जाने की संभावना !

मुंबई, २३ दिसंबर (वार्ता.) : महाराष्ट्र के आराध्यदेवता पंढरपुर में श्री विठ्ठल एवं रुक्मिणी मंदिर की प्राचीन काल से राजा, महाराजा, संस्थानिक, पेशवे आदि द्वारा अर्पण किए गए मूल्यवान आभूषणों की प्रविष्टी भी बैलेंस शीट में न होने का धक्कादायक प्रकार मंदिर समिति के वर्ष २०२१-२२ के लेखा परीक्षण ब्योरे से सामने आया है । भगवान श्री विठ्ठल के २०३ और माता रुक्मिणीदेवी के १११ प्राचीन आभूषणों की प्रविष्टी भी बैलेंस शीट में नहीं है । इसके साथ ही मंदिर का गरुडखंभा, सभा मंडप के दरवाजे, इसके साथ ही श्री विठ्ठल एवं माता रुक्मिणी के मुख्य गृभगृहों का मूल्यांकन न करने का धक्कादायक प्रकरण भी ब्योरे से उजागर हुआ है । कुल मिलाकर यह सब संशयास्पद है । अत: इससे आभूषणों के हडपे जाने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता ।

वर्ष १९८५ में पंढरपुर में श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिरों का सरकारीकरण किया गया । तब से ‘श्री विठ्ठल-रुक्मिणी समिति, पंढरपुर’ इस सरकारमान्य समिति द्वारा मंदिर का कार्यभार देखा जाता है । वर्ष २०२१-२२ इस आर्थिक वर्ष के देवस्थान का लेखापरीक्षण शासननियुक्त लेखा परीक्षक मे.बी.एस.जी.एंड असोसिएट्स (पुणे) द्वारा किया गया है । इस ब्योरे से ध्यान में आया है कि मंदिरों के सुनियोजन के लिए सरकार द्वारा नियंत्रण में लिए गए इस मंदिर के कार्यभार में घोटाला हुआ है ।

श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर की वस्तुएं जिनकी बैलेंस शीट एवं प्रविष्टी बही में प्रविष्टी नहीं !

अ.क्र वस्तुओं का विवरण
१. सभा मंडप के सामने का दरवाजा
२. गरुडखंबा
३. श्री विठ्ठल मंदिर का मुख्य गर्भगृह
४. श्री रुक्मिणीदेवी के मंदिर का मुख्य गर्भगृह
५. श्री रुक्मिणीदेवी के मंदिर का मुख्य गर्भगृह की चौखट
६. श्री रुक्मिणीदेवी के मंदिर का सेज (सोने के कक्ष) दरवाजा
७. श्री रुक्मिणीदेवी के मंदिर के दर्शन की कतार का दरवाजा
८. चौखंबा में चौखट और दरवाजा
९. कोषागार का अंदर का दरवाजा
१०. श्री विठ्ठल मुख्य गर्भगृह चौखट

उपरोक्त वस्तुओं के अतिरिक्त देवताओं को अर्पण की हुई अनेक वस्तुओं का न तो मूल्यांकन किया गया है और न ही बैलेंस शीट में उसकी प्रविष्टी हुई है ।

आभूषणों की थैलियां ‘सील’ नहीं की जा रही हैं !

श्री विठ्ठल-रुक्मिणी को अर्पण किए अथवा मंदिर में दान किए गए आभूषण ‘सील’ नहीं किए जाते, ऐसा धक्कादायक प्रकार लेखापरीक्षण ब्योरे से उजागर हुआ है । अर्पण आए आभूषण दिनांकानुसार थैलियों में भरकर रखे जाते हैं; परंतु इन थैलियों को न तो सील किया जाता है और न ही संबंधित अधिकारियों के उस पर हस्ताक्षर ही लिए जाते हैं । केवल गांठ बांधकर थैली बैग में रख दी जाती है । इससे आभूषण को हडपे जाने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता । इससे पहले भी ऐसा हो चुका होगा ।

१२ वर्षाें के उपरांत भी आगाऊ (अडवांस) धनराशि की वसूली नहीं !

मंदिर समिति द्वारा कर्मचारियों को दी जानेवाली आगाऊ धनराशि (अडवांस) की वसूली समय पर नहीं की जाती । देवस्थान द्वारा वर्ष २०१० में ७ व्यक्तियों को १ लाख ८० सहस्र ५४० रुपये आगाऊ धनराशि दी गई थी; परंतु १२ वर्षाें उपरांत भी उसकी वसूली नहीं हुई है । इसके अतिरिक्त भी अनेकों को दी गई आगाऊ धनराशि की भी वसूली समय पर नहीं हुई है ।

लाखों रुपये किराया देकर भी सुलभ शौचालय नहीं बनाया गया !

श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर समिति एवं रेलवे विभाग में ३५ वर्षाें के लिए सुलभ शौचालय निर्माण के संदर्भ में करार हुआ है । उसके लिए मंदिर समिति ने २१ मार्च २०१७ को रेलवे विभाग को १ करोड ५४ लाख ४६ सहस्र ४१ रुपये दिए । इस किराए के लिए प्रति वर्ष मंदिर के ४ लाख ४१ सहस्र ३१५ रुपये खर्च किए जा रहे हैं; परंतु ५ वर्ष होने के पश्चात भी इस स्थान पर सुलभ शौचालय का निर्माणकार्य प्रारंभ तक नहीं हुआ है । इसकारण देवस्थान के लाखों रुपये अनावश्यक खर्च हो गए ।

श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में दिए जानेवाले लड्डुओं में घोटाला !

भक्तों को प्रसाद के रूप में दिए जानेवाले लड्डू बनाने का ठेका श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर समिति द्वारा महिला बचत गुटों को दिया गया है । यह ठेका देते समय निर्देश दिए गए थे कि लड्डुओं में ‘सूखा मेवा (ड्रायफ्रूट) एवं अन्य पौष्टिक पदार्थाें का उपयोग किया जाए’, परंतु लेखा परीक्षकों ने देखा कि इन लड्डुओं में सूखे मेवे का उपयोग नहीं होता है । करार करते समय यह भी सुस्पष्ट नहीं किया गया कि कितनी मात्रा में सूखे मेवे का उपयोग करना है । करार में इसका भी उल्लेख था कि लड्डू बनाने के लिए मूंगफली के तेल का उपयोग करना है और लड्डुओं के वेष्टन पर भी लिखा है कि मूंगफली के तेल का उपयोग किया जाता है; जबकि मूंगफली के तले के स्थान पर ‘कॉटन सीड्स’ (कपास के बीज) तेल का उपयोग होता है । लेखा परीक्षक जब लड्डू बनाने के कारखाने गए तो वहां ‘कॉटन सीड्स’ के तेल के डिब्बे पाए गए । लेखा परीक्षकों के ब्योरे के साथ उनके छायाचित्र भी संलग्न हैं ।

लड्डू सुखाने के लिए उपयोग में लाई जानेवाली ताडपत्री अत्यंत अस्वच्छ !

लेखा परीक्षकों ने पाया कि जहां लड्डू बनाए जाते हैं, वहां लड्डू सुखाने के लिए उपयोग में लाई जानेवाली ताडपत्री अत्यंत अस्वच्छ, जीर्ण और काली पड गई थी । ब्योरे के साथ ही उनके छायाचित्र भी उन्होंने सरकार को प्रस्तुत किए हैं । कारखाने में किसी भी प्रकार की स्वच्छता नहीं है । वहां का दरवाजा टूटा होने से उससे चूहे, छिपकलियां और अन्य प्राणी अंदर जा सकते हैं । लेखापरीक्षकों के ब्योरे के अनुसार वहां की स्थिति अत्यधिक दयनीय है ।

गोशाला की गायों की उपेक्षा !

मंदिर की गोशाला में गायों की प्रविष्टी ही नहीं रखी गई है । गोशाला में कचरा, कबाड-रद्दी, तेल के खुले डिब्बे रखे गए हैं । १२ जनवरी २०२३ को जब लेखापरीक्षक गोशाला गए, तब उन्होंने पाया कि २ गाएं और ३ बछडों को ‘लंपी’ रोग हो गया है; परंतु उनकी उचित देखभाल नहीं हो रही थी । लंपी रोग से ग्रस्त जानवरों को वृक्ष के नीचे बांध दिया गया था ।

दूधबिक्री की प्रविष्टी नहीं रखी जा रही थी !

गोशाला की गायों का दूध निकालकर, उसकी बिक्री बाहर की जा रही थी; परंतु उसकी कहीं कोई प्रविष्टी नहीं थी । गायों का बीमा भी नहीं किया गया था । गोशाला के परिसर में लेखापरीक्षकों को लगभग ३० ट्रॉली गोबर की खाद मिली । उसका मूल्य सामान्यत: १ लाख ३५ रुपए था । उसकी समय-समय पर बिक्री नहीं हुई थी ।

लेखापरीक्षकों के आक्षेपों पर मंदिर समिति द्वारा संदिग्ध उत्तर

लेखापरीक्षण ब्योरे में किए गए आक्षेपों में सुधार करने के विषय में श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर देवस्थान समिति द्वारा अनुपालन ब्योरा प्रस्तुत किया गया है, इसमें ठोस एवं वस्तुनिष्ठ उपाययोजना के स्थान पर बहुतांश आक्षेपों पर ‘आवश्यकतानुसार कार्यवाही शुरू है’, ऐसा संदिग्ध उत्तर दिया गया । (इससे ध्यान में आता है कि मंदिर समिति को इस विषय में कितनी गंभीरता है ? – संपादक)

मंदिर सरकारीकरण के गंभीर दुष्परिणाम जानें ! आरंभ में सरकार मंदिरों के व्यवस्थापन को अव्यवस्थित और अनियंत्रित होने का कारण बताती है और मंदिर को अपने नियंत्रण में ले लेती है । तदुपरांत सरकारीकरण हुए उन्हीं मंदिरों में प्रचंड भ्रष्टाचार होता है ! भगवान की निधि का ऐसा अपहार करना और उसे होने देना महापाप है, यह ध्यान में रखकर हिन्दुओं को इसके विरुद्ध संगठितरूप से वैध मार्ग से आवाज उठानी चाहिए और सभी मंदिरों को सरकारीकरण से मुक्त होने के लिए प्रयत्न करना चाहिए !

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